Monday, December 29, 2008

प्यार ने ढहाई मजहब की दीवार

मेरठ में एक प्रेम दीवानी खालिदा से पूजा हो गई। अपना प्‍यार पाने के लिए उसने मजहब की दीवारें गिरा दीं। अपने पड़ोसी राजदीप के सामने वाली खिड़की में रहने वाली खालिदा जब राजेश के दिल में बसी; उसे चांद का टुकड़ा लगी तो दोनों ने मिलन के बीच आने वाली हर दीवार को गिराने का फैसला किया। राजदीप अपना धर्म छोड़कर मुस्लिम धर्म अपनाने को तैयार था लेकिन खालिदा ने पूजा बनकर मजहब की दीवार गिराई और विधिवत विवाह कर लिया। लेकिन अब ये विवाह दोनों की जान की मुसीबत बन गया है।इस प्रेमी युगल को देखकर हर कोई यही कहेगा कि रब ने बनाई जोड़ी..... लेकिन ये जोड़ी अब जान बचाती हुई घूम रही है। युवती के घरवालों ने पहले तो अपनी बेटी को नाबालिग बताते हुए युवक और उसके घरवालों के खिलाफ अपहरण की नामजद रिपोर्ट दर्ज कराई लेकिन जब युवती ही अपने घरवालों के खिलाफ हाईकोर्ट में बोल गई तो जमानत मिलने से बौखलाए युवती के घरवाले दोनों को जान से मारने की धमकियां दे रहे हैं। मेरठ के शास्‍त्री नगर इलाके के रहने वाले राजदीप और खालिदा के प्‍यार की सजा राजदीप के परिवार को भी भुगतनी पड़ रही है। इसी मामले में अपहरण के आरोप में जमानत पर जेल से छूटकर आए राजदीप के माता-पिता कहते हैं कि यदि उनके उत्‍पीड़न का सिलसिला नहीं रुका तो वे अपनी जान दे देंगे।राजदीप चौधरी चरणसिंह यूनीवर्सिटी के सर छोटूराम इंजीनियरिंग कालेज से बीटेक की पढ़ाई कर रहा है और खालिदा ने इंटरमीडिएट किया है। दोनों पड़ोसी हैं और जवानी की दहलीज पर पैर रखते-रखते दोनों की आंखे चार हुईं। पींगे बढ़ने लगीं और दोनों एक दूसरे को दिलोजान से चाहने लगे। दोनों जानते थे कि उनके मौहब्‍बत को मंजिल मिलना आसान नहीं हैं क्‍योंकि दोनों के बीच मजहब की दीवार थी। दोनों जानते थे कि उनके घरवाले इस रिश्‍ते के लिए तैयार न होंगे लेकिन राजदीप ने अपने घरवालों को तैयार कर लिया। राजदीप हर हाल में अपनी मोहब्‍बत को हासिल करना चाहता था और यही हाल खालिदा का भी था। इसी बीच राजदीप ने खालिदा से कहा कि यदि उसके घरवाले निकाह को तैयार हों तो वह धर्म परिवर्तन करने को तैयार है लेकिन खालिदा अपने घरवालों को जानती थी लिहाजा उसने कहा कि वह राजदीप को अपना शौहर बनाना चाहती है इसलिए ये काम वह करेगी।....और एक दिन दोनों अपने-अपने घरों की दहलीज से निकलकर विवाह के बंधन में बंधने के लिए चले गए। खालिदा ने मजहब की दीवार तोड़ी और वह खालिदा से पूजा बन गई और फिर विधिवत तरीके से दोनों विवाह के बंधन में बंध गए। उनके प्रेम को मुकाम मिल गया लेकिन इसके साथ ही दोनों पर टूटना शुरू हुआ मुसीबतों का पहाड़।राजदीप के प्रेम को तो उसके परिवार ने सहमति दे दी थी लेकिन खालिदा के घरवाले इसे पचा नहीं पाए। उसके व‍कील पिता ने काला कोट पहनकर सीधे-सीधे अपनी बेटी को नाबालिग बताते हुए अपनी बेटी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी। रिपोर्ट में सिर्फ राजदीप को नहीं बल्कि उसके माता पिता और बड़े भाई को भी नामजद किया। राजदीप और पूजा बनी खालिदा तो पुलिस के हत्‍थे नहीं चढ़े लेकिन पुलिस ने राजदीप के माता-पिता को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। अपने सास-ससुर को जेल भेजे जाने की खबर मिलने पर पूजा उर्फ खालिदा हाइकोर्ट की शरण में पंहुची और अपने बालिग होने के प्रमाणपत्र के साथ अपनी मर्जी से विवाह करने का शपथ पत्र दिया लिहाजा उसके सास-ससुर को जमानत मिली और कानून की नजर में फरार राजदीप और उसके भाई की गिरफ्तारी पर उच्‍च न्‍यायालय ने रोक लगा दी।भले ही राजदीप की गिरफ्तारी पर रोक लग गई हो और उसके माता-पिता को जमानत मिल गई हो लेकिन अभी उनके सामने खड़ा मुसीबतों का पहाड़ कम नहीं हुआ है। पूजा उर्फ खालिदा के पिता ने दोनों का जीना हराम कर रखा है और प्रेमी युगल को हर तरह से भुगत लेने की धमकियां मिल रहीं हैं। प्रेमी युगल ने मानवाधिकार आयोग का दरवाजा खटखटाया है और पूजा बनी खालिदा राष्‍ट्रीय महिला आयोग से गुहार लगाने की तैयारी कर रही है। देखना है कि इन प्रेम पुजारियों को अभी कितनी मुसीबतें झेलने को मिलती हैं।
अब आप बताइए कि खालिदा और राजदीप का ये कदम ठीक था या नहीं? अगर आप ठीक मानते हैं तो ये भी सुझाव दीजिए कि वह अपनी जान कैसे बचाएं।

Tuesday, December 2, 2008

पुरबिया मज़दूर


रामेश्‍वर काम्बोज ‘हिमांशु’ अंतर्जाल पर लघुकथा डॉट कॉम नाम से एक आंदोलन चला रहे हैं। कथा के अतिरिक्त इनका हस्तक्षेप कविता में भी है। इर्द-गिर्द के पाठक इनकी कविताएँ पढ़ते भी रहे हैं। आज हम पाठकों के लिए इनकी एक कविता 'पुरबिया मजदूर' लेकर आये हैं-


घर से बाँधकर पोटली में भूजा
परदेस के लिए निकलता है
पुरबिया मज़दूर ।
रेलगाड़ी की जनरल बोगी में
भीतर ठुँसकर
कभी छत पर बैठकर (टिकट होने पर भी )
सफ़र करता है पुरबिया मज़दूर।
सुनहले सपने पेट भरने के
आँखों में तैरते हैं।
कभी चलती गाड़ी की छत से
किसी नीचे पुल से टकराकर
बैमौत मरता है पुरबिया मज़दूर।
सफ़र में जो भी टकराता है
जी भरकर गरियाता है
कुहुनी से इसको ठेलकर
खुद पसर जाता है
गठरी-सा सिकुड़ा भूजा खाता है
पुरबिया मज़दूर ।
एल्यूमिनियम के पिचके लोटे से
पानी पीता है
इस तरह पूरे सफ़र को
अपने ढंग से जीता है ।
भीड़ बढ़ने पर
डिब्बे से बार-बार भगाया जाता है
पुरबिया मज़दूर।

टिकट होने पर भी
प्लेटफ़ार्म पर छूट जाता है
भगदड़ होने पर
पुलिस के डण्डे खाता है
सिर और पीठ सहलाता है
पुरबिया मज़दूर।
पॉकेटमार किसी का बटुआ मार
चुपके से उतर जाता है
उसके बदले में भी धरा जाता है
पुरबिया मज़दूर।
सीट पर उकड़ू बैठकर बीड़ी पीता है
एक –एक कश के साथ
एक-एक युग जीता है
पुरबिया मज़दूर।
पंजाब जाएगा बासमती धान काटेगा
मोटे चावल का भात
और आलू का चोखा खाकर
पेट के गड्ढे को पाटेगा
अपनी किस्मत को सराहेगा
फिर भी पता नहीं घर आएगा
या किसी की गोली से ढेर हो जाएगा ।
लाश की शिनाख़्त नहीं होगी
लावारिस समझकर जला दिया जाएगा
घरनी सुबक-सुबककर गाती रहेगी-
“गवना कराई पिया घर बैइठवले
अपने गइले परदेस रे बिदेसिया।”
कलकता जाएगा
हाथ –रिक्शा खींचेगा;
तपती सड़क पर घोड़े-सा दौड़ेगा
बहुतों को पीछे छोड़ेगा
और अपने तन से
लहू की एक-एक बूँद फींचेगा ।
पथराए पैरों को ढोकर
सँभालकर दमे से उखड़ती साँसे
मिर्च -नमक के साथ सत्तू फाँकेगा
अपनी सारी उम्र को
हरहे जानवर की तरह हाँकेगा
मुल्क़ भर की पीड़ा
अपने ही भाग्य में टाँकेगा
पुरबिया मज़दूर।
गुवाहाटी हो या दिल्ली
तिनसुकिया हो या बम्बई
हर जगह मिल जाएगा
पुरबिया मज़दूर।
सभी शहरों ने इसको
बेदर्दी से चूसा है
फिर भी यह पराया रहा हर शहर में
किसी ने इसको अपना नहीं कहा
अपना खून पिलाकर भी
यह न तो उन शहरों का रहा
न अपने देस का ,
न पत्नी का न बच्चों का ।
ये पचास –साठ भी मर जाएँ
तो ख़बर नहीं बनते
किसी का दिल नहीं दहलता इनके मरने पर
कोई जाँच नहीं होती
किसी को आँच नहीं आती
कोई शोक सभा नहीं होती
कोई भाषण नहीं देता ।
इसके लहू में जो लाली हुआ करती थी
वह अब
ठेकेदार के गालों पर नज़र आती है
अस्थि पंजर ढोकर
जब यह अपने देस लौटता है
सबको अपने आराम के किस्से सुनाता है
बात –बात में सहम जाता है
जैसे कोई बुरा सपना याद आ गया हो
सारी उम्र
मीठे दम तोड़ते सपनों को चढ़ाता है
यह आदमी है ठीकरा नहीं
फिर भी बहुत कुछ सह जाता है
पुरबिया मज़दूर।
उम्र भर बिचौलियों का शिकार होता है
बार-बार धोखा खाता है
मरने तक सिर्फ़ तकलीफ़ उठाता है
एक दिन फिर गहरी नींद में सो जाता है
पुरबिया मज़दूर।
इस तरह भव-बन्धन से
मुक्त हो जाता है
पुरबिया मज़दूर।

तकनीकी सहयोग- शैलेश भारतवासी

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