tag:blogger.com,1999:blog-8541976845351444163.post4819539599617006732..comments2023-10-22T21:14:22.947+05:30Comments on इर्द-गिर्द: ...भाषा पुल बने!Hari Joshihttp://www.blogger.com/profile/13632382660773459908noreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-8541976845351444163.post-10388895351949033402008-09-29T15:57:00.000+05:302008-09-29T15:57:00.000+05:30भाषा पुल बने एक गम्भीर एवं विचारणीय लेख है ।रामेश्...भाषा पुल बने एक गम्भीर एवं विचारणीय लेख है ।<BR/>रामेश्वर काम्बोज हिमांशुसहज साहित्यhttps://www.blogger.com/profile/09750848593343499254noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8541976845351444163.post-45290852805012675772008-09-17T17:58:00.000+05:302008-09-17T17:58:00.000+05:30बेहद रोचक. राज ठाकरे की समस्या अलग है. वह अपनी लकी...बेहद रोचक. <BR/><BR/>राज ठाकरे की समस्या अलग है. वह अपनी लकीर तो बडी नहीं कर सका, तो जैसा कि हर नेता करता है, उसनें दूसरों की लकीर छोटी करना चाही, या मिटा ही देना चाही.<BR/><BR/>राज ठाकरे पर मेरा पोस्ट पढें -<BR/>गुड्डी, महानायक और मराठी माणूस- <BR/>www.amoghkawathekar.blogspot.comदिलीप कवठेकरhttps://www.blogger.com/profile/16914401637974138889noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8541976845351444163.post-58354906978986877092008-09-16T10:08:00.000+05:302008-09-16T10:08:00.000+05:30Bahut acha likha. Hindi prdesh (up) m hindi ka par...Bahut acha likha. Hindi prdesh (up) m hindi ka parchm lehrane wale akhbar hindi ka jitna bedagark jitna kr rahe h utna aur koi nahi. In pr bhi kuch likhne ki avshykta h. pta hi nahi chlta ki hindi ka akhbar padh rahe h ki angreji ka. Ane wali peri k liye yeh nuksandeh h.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8541976845351444163.post-47034095410881833132008-09-15T18:34:00.000+05:302008-09-15T18:34:00.000+05:30अच्छा लिखा है आपने।आजादी के ६१ वर्षों में हिन्दी क...अच्छा लिखा है आपने।<BR/>आजादी के ६१ वर्षों में हिन्दी को इतना सम्मान भी नहीं मिल सका कि इसे कोई भी राज्य या संगठन प्रतिबंधित या अपमानित नहीं कर सके। बापू और लाल बहादुर शास्त्री ने जोर देकर कहा था कि हिंदी ही राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोकर रख सकती है। लेकिन आजादी के बाद सत्ता का सुख भोगने वालों ने राष्ट्रभाषा की चिंता कभी नहीं की। किसी ने यदि की भी, तो प्रयास ठोस साबित नहीं हुए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।<BR/>यह और बात है कि इस दौरान हिंदी का लगातार विस्तार हुआ है, लेकिन इसके लिए सरकारी प्रयास नहीं बाजार की नीतियां बधाई के पात्र हैं।रंजन राजनhttps://www.blogger.com/profile/03646063513055002728noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8541976845351444163.post-80583888605336617722008-09-15T14:47:00.000+05:302008-09-15T14:47:00.000+05:30विचारोत्तेजक विश्लेषण.=================बधाईडॉ.चन्द...विचारोत्तेजक विश्लेषण.<BR/>=================<BR/>बधाई<BR/>डॉ.चन्द्रकुमार जैनDr. Chandra Kumar Jainhttps://www.blogger.com/profile/02585134472703241090noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8541976845351444163.post-84288782628840507322008-09-14T15:24:00.000+05:302008-09-14T15:24:00.000+05:30राज ठाकरे का न हिन्दी से कोई मतलब है न मराठी से। उ...राज ठाकरे का न हिन्दी से कोई मतलब है न मराठी से। उनका उद्देश्य मराठी 'लुंपेन एलीमेण्ट्स' को अपनी तरफ़ करके अपनी ग़ुंडागर्दी चलाते रहना भर है। आश्चर्य तो यह है कि एक पुलिस अधिकारी जैसे उन्हें लताड़ सकता है वैसा साहस न तो राज्य सरकार ने दिखाया न ही केन्द्र सरकार ने।Dr. Amar Jyotihttps://www.blogger.com/profile/08059014257594544439noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8541976845351444163.post-58809516410643102012008-09-14T09:00:00.000+05:302008-09-14T09:00:00.000+05:30hindi ko ek din jaad karne se kuch nahi haoga....i...hindi ko ek din jaad karne se kuch nahi haoga....is per chrcha hoti rahni chahiye....<BR/>darasal hindi hamara beech pul nahi,,,,hamara garw hai....pahchaan haiMANVINDER BHIMBERhttps://www.blogger.com/profile/16503946466318772446noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8541976845351444163.post-76064743943995672742008-09-14T04:59:00.000+05:302008-09-14T04:59:00.000+05:30बाकी फिर कभी, अभी:हिन्दी में नियमित लिखें और हिन्द...बाकी फिर कभी, अभी:<BR/><BR/><BR/>हिन्दी में नियमित लिखें और हिन्दी को समृद्ध बनायें.<BR/><BR/>हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.<BR/><BR/>-समीर लाल<BR/>http://udantashtari.blogspot.com/Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8541976845351444163.post-28343741253531613292008-09-13T23:00:00.000+05:302008-09-13T23:00:00.000+05:30richa ji badhaie etne achche lekh he liye. Lekh ke...richa ji badhaie etne achche lekh he liye. Lekh ke bahane aapki puraskrat kavita padne ko mili. phir se kuch kavitayen likhiye.<BR/><BR/>VanyaAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8541976845351444163.post-4424036742150179972008-09-13T21:50:00.000+05:302008-09-13T21:50:00.000+05:30अपने देश के अन्दर हिन्दी इतनी भी कमजोर नहीं हैं जि...अपने देश के अन्दर हिन्दी इतनी भी कमजोर नहीं हैं जितना कि लगता है....अब देख ही रहे हैं सारे खिलाडी, स्टार, मीडिया हिंदी को स्वीकारने लगे हैं. अरे हिंदी में तो गुरुत्वाकर्षण है आपको बस थोडा सा धक्का लगाने की जरूरत है. मेरे कोलेज में भी हिंदी की प्रतियोगिताएं कम होती थी मगर हमलोगों ने शुरु किया तो अब काफी प्रतियोगिता होने लगी है और सब काफी मनोरंजन करते हैं. इसीलिए भाषा कमजोर नहीं होती है प्रयास कमजोर होता है. <BR/>ये लेख बहुत ही सुन्दर और स्पष्ट था और बहुत ही उत्साहवर्द्धक भी.<BR/>-आलोक कुमार-आलोक कुमारhttps://www.blogger.com/profile/11343758275347219485noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8541976845351444163.post-88457996056318901312008-09-13T20:43:00.000+05:302008-09-13T20:43:00.000+05:30ऋचा जी,आपका मानना सही है। हिन्दी-ऊर्दू के जन्म पर ...ऋचा जी,<BR/><BR/>आपका मानना सही है। हिन्दी-ऊर्दू के जन्म पर ढेरों शोध हुए हैं। शुरू में उर्दू जुबान को हिन्दवी ही कहा जाता था। अमीर खुसरो ने सम्मिलित बोलियों को हिन्दवी नाम दिया। मिर्ज़ा गालिब ने हिन्दुस्तान के ग़ज़ल प्रेमियों के लिए जो पुस्तक लिखी उसमें भी 'हिन्दी' शब्द तो शीर्षक में ही आया था (नाम ठीक से याद नहीं)।<BR/><BR/>भारत में सभी भाषाएँ मिल-जुलकर ही आगे बढ़ सकती हैं। दुनिया की कोई भी भाषा दूसरे से झगड़कर, दूसरे को कुचलकर आगे नहीं बढ़ सकती हैं और बढ़ना भी नहीं चाहिए इस तरह।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8541976845351444163.post-28467117051244814192008-09-13T18:25:00.000+05:302008-09-13T18:25:00.000+05:30हम ने पहला देश देखा दुनिया वालो जहां उस देश की भाष...हम ने पहला देश देखा दुनिया वालो जहां उस देश की भाषा बोले जाने पर लोग उसे तुछ ओर अनपध करार देते हे, वो हे हमारा देश जहां विदेशी भाषा को सर आंखो पर विठाया जाता हे,जिन्हो ने हमे कुत्तो के समान सम्झा हम उन्ही की भाषा वोल हर साहिब बनते हे, पढे लिखे.<BR/>ओर मे करता हू इन अंग्रेजी बोलने वालो को हमेशा नजर आंदाज, मेरे साथ जब भी कोई अग्रेजी मे बात करता हे तो मे उसे गुलामो की नजर से देखत हु, ओर साफ़ कहता हु मे एक आजाद हू, मेरी मात्र भाषा हिन्दी ओर जर्मन हे अगर मेरे साथ आप ने बात करनी हे तो इन दो भाषाओ मे करे.<BR/>ओर सामने वाला कितना शर्मिंदा होता हे एक बार आप भी यह कह कर देखे, किसी को कह कर देखे तो आप कॊ भी महसुस होगा,एक गुलाम को आईना दिखाना....<BR/>भाषाये सीखाना गलत नही, लेकिन हमारी तरह से ...... यह गलत हे, <BR/>धन्यवाद आप का लेख बहुत ही अच्छा लगाराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8541976845351444163.post-41122097118530224052008-09-13T18:24:00.000+05:302008-09-13T18:24:00.000+05:30भाषा केवल पुल नहीं है. वेह हमारी अस्मिता और हमारी ...भाषा केवल पुल नहीं है. वेह हमारी अस्मिता और हमारी पहचान भी है. उसी से दूर होने के कारन हम अपनी पहचान खो बैठे हैं. एक विचारात्मक लेख के लिए आभार.शोभाhttps://www.blogger.com/profile/01880609153671810492noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8541976845351444163.post-74846403022233118512008-09-13T16:49:00.000+05:302008-09-13T16:49:00.000+05:30हिंदी पर लेख पढ़ा, टिप्पणी तुरंत करना चाहता था लेक...हिंदी पर लेख पढ़ा, टिप्पणी तुरंत करना चाहता था लेकिन ज़रुरी काम से डाकखाने जाना पड़ गया। साहिबाबाद औद्योगिक क्षेत्र में भारत नगर के पोस्ट ऑफिस जाते हुए रास्ते में लिक रोड थाना पड़ता है। देखा वहां थाने के सामने तीन-चार मज़दूर लगे हुए हैं भरी धूप में साफ-सफाई करने में। शायद किसी सिपाही को तेज़ बुखार हो गया होगा इसलिये सफाई की याद आ गई। पास जाकर देखा तो कोने में तीन-चार रिक्शे खड़े हुए थे। समझने में देर नहीं लगी कि इन लोगों से बेगार करवाई जा रही है। हांफते खांसते लोगो को सफाई में जुटा छोड़कर आगे बढ़ गया। डाकघर में हमेशा की तरह ज़रा से काम के लिये दो घंटे लगे। वापसी में थाने के पास आकर जब टांगे जवाब दे गईं तो रिक्शा करना चाहा पेड़ के नीचे सुसताते रिक्शे वाले से चलने के लिये कहा तो उसने मना कर दिया। गुस्सा आया, लेकिन जब उसकी मुरझाई शक्ल देखी तो दया आई। वो उन्ही रिक्शे वालों में से एक था जो थाने के सामने बेगार कर रहे थे। बाकी तो उस समय भी थाने को चमकाने में लगे हुए थे लेकिन इसकी हालत देखकर सिपाही राजा ने दया कर दी थी। लेकिन कई घंटों तक बेगार करने के बाद वो इस काबिल नहीं रह गया था कि रिक्शा खींच सके। उसकी शक्ल सब कुछ बोल चुकी थी। बात हिंदी कहानी की तरह बनावटी नही है सच है, थाने की सेवा में थक जाने की वजह से आज ना उसके रिक्शे का किराया निकला होगा और ना ही आज घर में चूल्हा जलेगा। बाकी का हाल भी ऐसा ही होगा। ये किस्सा में इसलिये सुना रहा हूं कि हिंदी की हालत भी आजकल ऐसी ही है। वो विश्वविद्यालयों के हिंदी विभागों,टीवी चैनलों की बोली और विज्ञापनों की अधकचरी भाषा के थानों में अंग्रेज सिपाहियों की चाकरी कर रही है। थक जाती है इसलिये चुप रहती है। अपने हालात पर रो भी नहीं सकती है। 14 सितंबर आता है उसे पुचकार देते हैं, वो खड़ी हो जाती है बाकी 364 दिन अपमान झेलने के लिये। <BR/>पप्पू पढ़ाकू, पांचवी पासपप्पूhttps://www.blogger.com/profile/16178019972891228830noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8541976845351444163.post-9115195037420260222008-09-13T16:30:00.000+05:302008-09-13T16:30:00.000+05:30मेरी टिप्पणी से सहमति जताने के लिये भाई ओमकार चौधर...मेरी टिप्पणी से सहमति जताने के लिये भाई ओमकार चौधरी का बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं उन लोगों में से हूं जिनका मानना है कि चाहे जो हो जाये, <BR/>हिंदी अजर-अमर है इसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता, हमको निश्चिंत रहना चाहिये। पहले भारत के जिन क्षेत्रों मसलन नौकरशाही, फिल्म, विज्ञापन, जनसंपर्क आदि में अंग्रेजी का दबदबा था अब वो सब हिंदी के आगे-पीछे हैं। अब हिंदी के विज्ञापन अंग्रेजी से अनुवाद होकर नहीं बनते हैं, बल्ति प्रसून जोशी और पीयूष पांडे जैसे लोग उनको हिंदी में लिखते हैं और वो अंग्रेजी में अनुवाद होते हैं। तमाम अंग्रेजी चैनल हिंदी में लिये गये इंटरव्यू अनुवाद करके चलाते हैं। ये पुल बनने और कारवां के आगे बढ़ने का सबूत है। चीयर्स फॉर हिंदी। <BR/>Martin देहाती, 5 th AvenueAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8541976845351444163.post-77894874659948737012008-09-13T16:04:00.000+05:302008-09-13T16:04:00.000+05:30सवाल हिन्दी के लिए रोने-गाने का नहीं है. बहाना 14 ...सवाल हिन्दी के लिए रोने-गाने का नहीं है. बहाना 14 सितम्बर का हो या किसी और तारीख का, एन मसलों पर चर्चा होते रहना चाहिए. ऋचा जी ने आपने बिल्कुल सही लिखा है कि जिन लोगों कि जिम्मेदारी बनती है, वे आदतन अंगरेजी दा हैं. वैसे सच कहूँ तो हिन्दी इन लोगों कि वजह से न तो कभी पिछड़ सकती है, न ही ये आगे बढ़ा सकते हैं. हमारे संचार के माध्यमो ने हिन्दी को विश्व फलक पर ले जाने में बड़ी ही अहम् भूमिका निभाही है. वो चाहे फ़िल्म हो, टी वी चैनल हों, अखबार-मैगजीन हों या फ़िर हिन्दी के पोर्टल और अब ब्लोग्स. <BR/>देहाती जी कि इस बात से मै इत्तेफाक रखता हूँ कि हिन्दी को कोई खतरा नहीं है. अब इसका कारवां बढ़ चला है और वो भी द्रुत गति से. ये ही वजह है कि अंग्रेजी दा भी हिन्दी चैनल ला रहे हैं. <BR/>ऋचा जी अच्छे आलेख के लिए बधाईओमकार चौधरीhttps://www.blogger.com/profile/00252694907504968476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8541976845351444163.post-27177307271940110022008-09-13T15:55:00.000+05:302008-09-13T15:55:00.000+05:30मेरा नेक सुझाव है कि हिंदी दिवस 14 सितंबर की बजाय ...मेरा नेक सुझाव है कि हिंदी दिवस 14 सितंबर की बजाय 14 फरवरी को मनाया जाना चाहिये, तब इसे याद रखने या याद दिलाने की भी ज़रुरत नहीं पड़ेगी। जिस तरह 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी के साथ ही लाल बहादुर शास्त्री को भी याद कर लिया जाता है उसी तरह 14 फरवरी को वेलेंटाइन डे की याद की वजह से हिंदी दिवस भी मना लिया जाया करेगा। 14 सितंबर से तो ज्यादा ही रौनक रहेगी उस दिन।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8541976845351444163.post-77256486132012394372008-09-13T14:34:00.000+05:302008-09-13T14:34:00.000+05:30हिंदी के लिये रोना-किलसना कुछ ज़्यादा ही हो गया है...हिंदी के लिये रोना-किलसना कुछ ज़्यादा ही हो गया है, 14 सितंबर आते-आते ये विलाप में बदल जाता है। लेकिन हकीकत ये है कि हिंदी की हालत इतनी बुरी है नहीं। अब इसे हिंदी अखबारों का दम कह लीजिये या टीवी चैनलों की महिमा पिछले पांच-छह साल में हिंदी की स्वीकार्यता बढ़ी है। हिंदी से परहेज करने वाले नेता-अभिनेता, क्रिकेटर और बड़े अफसर अब टीवी पर हिंदी में बोलते नज़र आते हैं। एनडीटीवी पर पिछले दिनों पूर्व राष्ट्रपति कलाम हिंदी बोलते नज़र आये। कलाम हिंदी-गैर हिंदी के झगड़े से दूर हैं लेकिन उनका हिंदी बोलने की कोशिश करना ये तो साबित करता ही है कि हिंदी सबको प्यारी है। उसकी हालत भले ही घर की मुर्गी दाल बराबर वाली हो गई हो उसे किसी तरह का कोई खतरा नहीं है। हिंदी अमर है, उसे किसी तरह की महाप्रलय भी खत्म नहीं कर सकती। हिंदी को रुदालियों की ज़रुरत नहीं है, जीत के गीत गाने वालों की ज़रुरत है। तो इसी बात पर हिंदी के लिये आज हो जाये..चीयर्स।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8541976845351444163.post-70128619917093717372008-09-13T14:15:00.000+05:302008-09-13T14:15:00.000+05:30माननीय अनुनाद जी,जन्मदिन की गलती सुधार दी है। मार्...माननीय अनुनाद जी,<BR/>जन्मदिन की गलती सुधार दी है। मार्गदर्शन के लिए आभार। आपकी बात सही है लेकिन उर्दु हिंदुस्तानी जुबान ही है। एेसा मेरा मानना है।Richa Joshihttps://www.blogger.com/profile/05908845774715158021noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8541976845351444163.post-17322518743476202232008-09-13T13:55:00.000+05:302008-09-13T13:55:00.000+05:30हिन्दी को हिन्दुस्तानी बनाइये - इसका अर्थ ये होना ...हिन्दी को हिन्दुस्तानी बनाइये - इसका अर्थ ये होना चाहिये कि हिन्दी को देश की अन्य भाषाओं (बांग्ला, ओड़िया, मराठी, कन्नड, मलयालम आदि) के समीप आना चाहिये। उनके जो शब्द बहुत प्रचलित हैं उन्हे हिन्दी में तुरन्त ले लेना चाहिये। इससे हिन्दी की स्वीकार्यता बढ़ेगी; भारत की एकता के सूत्र सशक्त होंगे। <BR/><BR/>हिन्दी का हिन्दुस्तानी होने का मतलब यह कतई नहीं लगाना चाहिये कि वह अरबी, फ़ारसी, अंग्रेजी के शब्द अंधाधुंध लेकर कचड़ा हो जाय। हिन्दी को अनावश्यक रूप से अंग्रेजी का 'डस्टबिन' बनाने के प्रयासों का विरोध भी होना चाहिये।<BR/><BR/>(१४ सितम्बर किसी भी तरह से हिन्दी का जन्म दिन नहीं है।)अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.com