Thursday, July 24, 2008

मुद्दा : कांवड़ यात्रा


चारों तरफ शिव की जय-जयकार। हर-हर महादेव और बोल बम के जयघोष के साथ हरिद्वार से दिल्ली राजमार्ग पर बारह दिन तक सिर्फ कांवड़ियों का राज चलता है। इस हाइवे पर या तो शिवभक्त कांवड़िये चल सकते हैं या फिर कांवड़ियों के भक्त। हिंदी तिथि के मुताबिक सावन के महीने में पड़ने वाली शिवरात्रि से पहले शिवभक्त हरिद्वार पंहुचते हैं और वहां से गंगाजल को अपने कंधे पर रखी कांवड़ में रखकर अपने अपने शिवालयों की तरफ चल पड़ते हैं। शिव की आराधना की यह परम्परा पूरे उत्तर भारत में है और जहां से गंगा बहती है, शिवभक्त वहीं से गंगाजल लेकर शिवालय पंहुचते हैं लेकिन हरिद्वार में तो कांवड़ियों का महाकुंभ लग जाता है। भक्तों के इस सैलाब में न कोई अमीर होता है और न गरीब, न कोई अवर्ण होता है और न सवर्ण। हरिद्वार से जब कांबड़िये मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद, दिल्ली, राजस्थान और हरियाणा की तरफ कांवड़ लेकर चलते हैं तो भक्ति की रसधारा बहती है लेकिन यह तस्वीर का एक पहलू है। तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि जरा सी बात हो जाने पर कांवड़िए उत्पाती हो जाते हैं। बारह दिनों के बीच कांवड़ मार्ग में उपद्रव होना भी एक परम्परा बन गया है। कांवड़ मार्ग में हर कांवड़िया शिव के तीसरे नेत्र के समान गुस्सैल हो जाता है।
इस बार साठ लाख कांवड़ियों के हरिद्वार पंहुचने की उम्मीद है। यह संख्या हर साल बढ़ती ही जा रही है और हर साल पुलिस प्रशासन को कुछ खास इंतजाम करने पड़ते हैं। सुरक्षा इंतजामों के मद्देनजर शिवरात्रि से करीब दस दिन पहले दिल्ली हरिद्वार हाइवे पर यातायात रोक दिया जाता है। इस बीच यदि किसी बीमार को भी एंबुलेंस से गुजरना हो तो उसे परिवर्तित मार्ग, जो गांव और कस्बों से होकर गुजरते हैं, जाना होता है। यानी कुछ घंटे की यात्रा कई घंटों में तब्दील हो जाती है। इतना ही नहीं ये सड़कें ऐसी हैं जिनमें गड्डे नहीं हैं बल्कि गड्डों में सड़क हैं। अब जरा आप सोचिए कि राजमार्ग का इस तरह के भक्तिमार्ग में तब्दील हो जाना उचित है? भारत जैसे देश में किसी महोत्सव में श्रद्धालुओं को रोका नहीं जा सकता लेकिन यह तो सोचना ही होगा कि कई सौ किमी तक राजमार्ग पर पड़ने वाले सभी शहरों और कस्बों की जिंदगी ही थम जाए। मरीज अस्पताल न जा सकें। कारोबार की चूलें हिल जाएं। मेरठ, मुजफ्फरनगर और गाजियाबाद जैसे शहरों में आदमी घर में कैद होकर बैठ जाएं। क्या आज हम इन हालातों को वहन कर पाने की स्थिति में हैं?
जरा सोचिए! इन बारह दिनों की यात्रा में कारोबारियों को बीस अरब का चूना लगता है, जिसमें सरकार को राजस्व की होने वाला नुकसान शामिल नहीं है। एशिया की सबसे बड़ी गुड़ मंडी मुजफ्फरनगर सहित हापुड़, मेरठ और मंगलौर की मंडियों में कारोबार ठप है। दालों सहित सब्जियों के दाम आवक कम होने से बढ़ने लगे हैं। मेरठ का सराफा हो या स्पोर्टस गुड्स उद्योग या फिर मुजफ्फरनगर का इस्पात उद्योग, सभी जगह कारोबार करीब करीब ठप है क्योंकि न ग्राहक आ पा रहें हैं और न कारीगर। न माल बाहर जा पा रहा है और न कच्चा माल आ पा रहा है। ऐसे में कौन प्रसन्न होगा?
यह एक अलग बहस का मुद्दा है कि विकास के पहियों में ब्रेक लगाने वाले, रफ्तार की सांसों पर अवरोधक बनने वाली और दूसरों को कष्ट पंहुचाने वाली भक्ति से क्या भगवान प्रसन्न होते है? लेकिन सत्ता में बैठे हमारे आका इतना तो कर ही सकते हैं कि ऐसी व्यवस्था बनाए जिससे आम आदमी को कम से कम कष्ट हो। आम आदमी की मांग पर उत्तर प्रदेश सरकार ने गंगा का पानी दिल्ली तक पंहुचाने वाली गंग नहर के किनारे कांवड़ मार्ग बनाया था लेकिन इस मार्ग का उपयोग केवल एक साल हो सका क्योंकि भारी वाहनों की आवाजाही से ये मार्ग पैदल यात्रियों के लिए भी सही सलामत नहीं बचा और मरम्मत के लिए सरकार कंगली थी। तो क्या ये माना जाए कि बारह दिन जनजीवन अस्त-व्यस्त रखने के लिए भक्ति से अधिक शक्ति यानी हमारे शासक जिम्मेदार हैं?
हम मानते हें कि हमारे मित्र और सुधीजन इस पर जरूर विचार मंथन करेंगे और अपने सुझाव भेजकर यह सुझाएंगे कि कैसे इस तरह की समस्या का हल हो कि भक्ति की धारा भी बहती रहे और जिंदगी की रफ्तार भी न थमे। इस मंच पर आपकी प्रतिक्रियाओं का हमें इंतजार रहेगा।

तकनीकी सहयोग- शैलेश भारतवासी

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