Thursday, February 26, 2009

आदमखोर बाघ : धिक्‍कार है इस फतह पर!

आज सुबह उठते ही मेरे सिरहाने रखे अखबार में छपी एक खबर पर नजर गई। हिंदुस्‍तान में दो टूक शीर्षक से एक समाचार टिप्‍पणी पहले ही पन्‍ने पर शीर्ष खबर के बाएं छपी हुई थी। आपके सामने पहले वही प्रस्‍तुत करता हूं-- अंतत: बाघ मारा गया। मारने वाले इसे बड़ी उपलब्धि बता रहे हैं। आल्‍हादित शिकारी बड़े शान से फोटो खिंचवा रहे हैं। वन विभाग और उसके मुलाजिमों की भाषा और देहभाषा जरा गौर से देखिए। कुछ ऐसे बिहेव कर रहें हैं मानो उन्‍होंने कोई खूंखार आतंकवादी मार गिराया हो। क्‍या विडम्‍बना है! दरअसल हमने एक निरीह बेजुवान की हत्‍या की है। कानूनी मंत्रोच्‍चार के साथ कानून को ही ढाल बना कर उसे घेर कर मारा है। पहले हमने उस बेजुवान को बेघर किया। फिर भूखे बाघ को नरभक्षी बनने दिया। कायदे से तो हमें भटके बाघ को पकड़कर सही-सलामत उसके घर पंहुचाना चाहिए था। तकनीक और तरकीब के तमाम तामझाम वाले 2009 में भी हम इतना नहीं कर सके। फिर इस बेजुवान पर वाहवाही कैसी! धिक्‍कार है इस फतह पर!
खबर सचमुच हिला कर रख देने वाली थी। दो दिन पहले ही मैने इर्द-गिर्द पर एक पोस्‍ट आदमखोर होते बाघ : घर उजड़ेगा तो क्‍या होगा? लिखी थी। इस पोस्‍ट पर पहली ही प्रतिक्रिया थी कि बाघ को क्‍या आदमी की कीमत पर संरक्षण दिया जाना चाहिए। ये सवाल लंबे समय से उठता रहा है। इसी कड़ी में कुछ और प्रतिक्रियाएं थीं जिसमें से निर्मल गुप्‍त जी की प्रतिक्रिया भी कुछ इस तरह थी कि क्‍या आदमी को उदरस्‍थ करने के लिए बाघों को यूं ही खुला छोड़ देना चाहिए। सवाल गंभीर है लेकिन निर्मल जी उसका घर भी तो हमने ही उजाड़ा है। जंगलों का दोहन भी तो आदमी ने किया है अपने स्‍वार्थ के लिए और जब किसी का घर उजड़ता है, उसका भोजन छिनता है तो वह क्‍या करेगा। आबादी की तरफ भागेगा और वहां खेतों में झुक कर नियार खाती महिला को चौपाया समझकर हमला करेगा। या भूख से व्‍याकुल अपने भोजन के लिए कुछ भी करेगा। लेकिन आदमी और जानवर में फर्क होता है। क्‍या आदमी को भी जानवर हो जाना चाहिए। क्‍या हम इतने आधुनिक और तकनीकी तौर पर उन्‍नतशील हो जाने के बाद भी एक बाघ को (चाहें वह आदमखोर घोषित हो गया हो) जिंदा नहीं पकड़ सकते। बाघ को ट्रेंकुलाइजर गन से बेहोश कर घने जंगल में किसी दूसरी जगह भी शिफ्ट किया जा सकता था। लेकिन नहीं! बाघ को मारकर अपना शौर्य प्रदर्शित करने वाली टीम के साथ वन विभाग ने फोटो खिंचवाए। जश्‍न मनाया। क्‍या ये सचमुच वीरता या शौर्य का कार्य है।
सवाल उठता है कि बाघ जंगलों से निकलकर आबादी से आबादी में भागते रहे क्‍योंकि बाघ को भी अपनी जान का खतरा था। बाघ को बचाने की जिम्‍मेदारी अपने कंधों पर संजोने वाले वन विभाग के 'काबिल' अधिकारी और कर्मचारी बाघ की इस तरह से घेराबंदी करते रहे कि वह जंगल की तरफ न जाकर आबादी की तरफ ही भागता रहा। इस बात से हर कोई इत्‍तफाक रखेगा कि बाघ चाहें कितना भी क्रूर और हिंसक क्‍यों न हो लेकिन पैंतरेबाजी में वह आदमी का मुकाबला कभी नहीं कर सकता।..और जब आदमी यह ठान ले कि उसे मारना है तो बाघ का जीवित रहना नामुमकिन है। वन विभाग भी कानून की ढाल बनाकर बाघ को आदमखोर घोषित कर पकड़ने या मारने का आदेश दे चुका था और जाहिर है कि उनकी नीयत बाघ को जीवित पकड़ने की होती तो उन्‍होंने उस तरह के इंतजाम किए होते। बंदूक हाथ में लेकर बाघ को पकड़ा तो नहीं जा सकता। बाघ भी कोई खरगोश का बच्‍चा तो है नहीं कि दौड़े और पकड़ लिया।
हमने ज्‍यों-ज्‍यों तरक्‍की की राह पकड़ी, सभ्‍य हुए, आधुनिकता का रंग चढ़ा; त्‍यों-त्‍यों साल-दर-साल बाघ गायब होते गए। कानून सख्‍त हुए, रखवाले बढ़ाए गए, अरबों रुपया प्रोजेक्‍ट टाइगर के नाम पर बहाया गया लेकिन जनता का वह पैसा भी पानी बन गया। कई जगह बाघ का नामोनिशान नहीं बचा। बाघ की झूठी गणनाएं रखकर सफलता की मुनादी होती रही लेकिन एक दिन पता चला कि सारिस्‍का में तो बाघ बचे ही नहीं। कारण साफ है कि बाघ को बचाने के लिए धन बहाया जाता रहा लेकिन उसके प्राकृतिक आवास सिकुड़ते रहे। वन माफियाओं ने जंगल का दोहन किया। क्‍या रखवालों की आंखे खुली रहने पर क्‍या ये संभव था। लेकिन दो ही काम संभव थे- या तो जेब गर्म रहें या जंगल बचें। हर साल शिकारी पकड़े जाते हैं और उनकी खालें और दूसरे अंग बरामद होते हैं लेकिन फिर भी संसार सिंह जैसे वन्‍य जीव के तस्‍करों का कुछ नहीं होता। वह जेल भी जाते हैं तो अंदर रहकर भी अपना नेटवर्क चलाते रहते हैं। कुछ दिन बाद वह कानूनी दावपेंच के सहारे बाहर भी आ जाते हैं। क्‍यों होता है ऐसा? साफ है कि हमारा सिस्‍टम और सिस्‍टम को दुरुस्‍त रखने वाले ही उनके मददगार हैं। क्‍या ये लोग भी स्‍वात घाटी से आते हैं? क्‍या इन्‍हें भी आईएसआई और पाकिस्‍तानी हुकुमत मदद करती है? ट्रेनिंग देती है? वन माफिया हों या वन्‍य जीवों के तस्‍कर; इनके मददगार हमारे और आपके बीच के लोग हैं। वही इन भक्षकों के मददगार हैं जिन्‍हें हमने रक्षक बनाया है।
अगर हम एक आदमखोर बाघ को इस युग में भी कैद नहीं कर सकते तो इस विवशता पर भी विचार करना चाहिए। अब समय आ गया है जब हम प्रोजेक्‍ट टाइगर की दशा और दिशा की चहुंमुखी समीक्षा करें। आज मैं इतना ही सोच पा रहा हूं; बाकी आप बताइए कि मेरी सोच गलत है या सही।

Monday, February 23, 2009

आदमखोर होते बाघ : घर उजड़ेगा तो क्‍या होगा?

'जय हो' के अलावा आज देश को कुछ नहीं सूझ रहा। ये गलत भी हो सकता है लेकिन मुझे अखबार और खबरिया चैनल देखकर यही लग रहा है। इन्‍हीं खबरों के बीच में एक अखबार के एक कोने में छपी खबर पढ़कर मैं सोचने लगता हूं। खबर है-- उत्‍तर प्रदेश और उत्‍तरांचल में बाघ तीन महीने के भीतर बीस बाघों को अपना निवाला बना चुके हैं। अगर संख्‍या पर जाएं तो उत्‍तर प्रदेश में बारह और उत्‍तरांचल में आठ लोग बाघ का शिकार हुए हैं। दोनों राज्‍यों के बारह से ज्‍यादा जिले आदमखोर बाघों के खौफ से रात को आबादी वाले इलाकों में पहरा दे रहे हैं। वन विभागों का अमला बाघों को पकड़ने या मारने के लिए कोशिशें कर रहा है। खबर ये भी है कि वन विभाग के शिकारियों ने एक बाघ को मारकर अपनी वीरता का परिचय भी दे दिया है। वैसे आप चाहें तो इसे पूरी आदम जाति की वीरता भी मान सकते हैं।
आपको मैं सच-सच बता दूं कि मैं बाघ से बहुत प्रेम करता हूं। जंगल में घूमते हुए बाघ और उसकी शान-शौकत मुझे बहुत भाती है। मैं अपने को उन सौभाग्‍यशाली लोगों में से एक मानता हूं जिन्‍होंने जंगल में बाघ को अपने इर्द-गिर्द घूमते देखा है। ये मेरा सौभाग्‍य है कि मैं जब भी जंगल/अभ्‍यारण्‍य में गया; मुझे बिल्‍ली परिवार के दर्शन जरूर हुए। स्‍वर्गीय राजीव गांधी एक बार कॉरवेट नेशनल पार्क अपनी छ़ट्टियां बिताने गए तो मुझे कवरेज पर भेजा गया। आखिर प्रधानमंत्री अपनी घोषित छुट्टियां बिताने जा रहे थे। तीन दिन राजीव गांधी कॉरवेट रहे, जंगल घूमें, उन्‍हें बाघ दिखाने के लिए स्‍थानीय प्रशासन ने काफी कोशिशें की; जंगल में एक जगह पाड़ा बांधा गया ताकि बाघ उसे खाने आए और स्‍वर्गीय राजीव गांधी को बाघ के दर्शन हो जाएं लेकिन बाघ नहीं आया बल्कि दहशत से पाड़ा जरूर परलोक सिधार गया। स्‍वर्गीय राजीव गांधी का परिवार भले ही बाघ न देख पाया हो लेकिन जंगल का राजा मुझसे हैलो कहने जरूर आया। बाघ जब मुझे मिला तो वह मेरे वाहन के आगे करीब आधा किमी दौड़ता रहा और फिर नीचे खाई में उतरकर ओझल हो गया। मैं कभी भी जंगल से खाली नहीं लौटा। बाघ और तेंदुए मेरे सामने कई बार आए और मेरी घिग्‍गी बंध गई। कई बार तो ऐसा हुआ कि जब बाघ मेरे सामने से ओझल हुआ तब मुझे ख्‍याल आया कि मैं अपने गले में लटके कैमरे का उपयोग तो कर ही नहीं सका।
जंगल में रहने वाले या जंगल से प्रेम करने वाले लोग जानते हैं कि जितना आदमी बाघ से डरता है उतना ही बाघ भी। आदमी की मौजूदगी का आभास होते ही जंगल का राजा रास्‍ता बदल देता है। बाघ तब तक आदमी पर हमला नहीं करता जब तक उसे अपने अस्तित्‍व को खतरा न लगे। चालाक जीव है; इसलिए आदमी के सामने आने पर पीछे या दाएं-बांए हो जाता है। बाघ अपने शिकार को भी आमतौर पर सामने से आकर नहीं दबोचता। पहले शक्‍ल दिखाकर डराता है और फिर पीछे से घूम कर आता है और दबोच लेता है क्‍योंकि हिरन प्रजाति के तेज धावकों को अपने शिकंजे में लेना आसान नहीं होता। ऐसे में सवाल उठता है कि बाघ आदमी पर हमला क्‍यों करता रहा है। या क्‍यों उसे अपना शिकार बना रहा है? बाघ तभी आदमखोर होता है जब उसकी क्षमताएं खत्‍म हो जाएं। चोटिल हो। दौड़ कर अपना शिकार न दबोच पाए। अक्षम हो जाए। ऐसी स्थितियां बहुत कम पैदा होती हैं। इसके अलावा ऐसी स्थितियां तब पैदा होती हैं जब आदमी उस पर हमला कर दे। या उसके आवासीय परिक्षेत्र में अतिक्रमण करे। जंगल का अंधाधुंध दोहन हो। जंगल सिमटेगें तो वहां रहने वाले जीव क्‍या करेंगे। सच तो ये है कि आबादी बाघों के पास जा रही है न कि वन्‍य जीव आबादी की तरफ रुख कर रहे हैं।
नरभक्षी बाघों के आदमखोर हो जाने की इक्‍का-दुक्‍का घटनाएं तो सामने आती रहीं हैं लेकिन अब तक सबसे बड़े पैमाने पर बाघ के आदमखोर होने की घटनाएं हमारे देश में करीब ढाई दशक पहले हुईं थीं। उननीस सौ अस्‍सी से पिचयासी के बीच में आदमखोर बाघों ने बयालीस लोगों की जान ली थी और करीब सात आदमखोर बाघ मार गिराए गए थे। इतने बड़ी संख्‍या में बाघ के आदमखोर हो जाने पर नेशनल बोर्ड फार वाइल्‍ड लाइफ ने अपने अध्‍ययन में पाया था कि नेपाल में बड़ी संख्‍या में वनों की कटाई से तराई क्षेत्र में नेपाल से बेदखल बाघ आ गए थे और इन्‍हीं अपने घर से उजड़े बाघों में से कुछ ने कहर बरपाया था।
क्‍या आज भी वैसी ही परिस्थितियां तो नहीं बन रहीं। आज आबादी बढ़ रही है। वनों का दोहन तेज है। वन्‍य जीवों के तस्‍कर बेखौफ हैं। ऐसे में सोचिए कि बाघ क्‍या करे? एक बात तय है कि अगर इंसान और बाघ की दुश्‍मनी होगी तो नुकसान अंतत: बाघ का ही होगा। आज दुनिया भर में करीब तीन हजार से पैंतीस सौ बाघ बचे हैं जबकि अस्‍सी के दशक में करीब आठ हजार बाघ थे। दुनियां के कई हिस्‍सों से बाघ गायब हो चुके हैं या लुप्‍त होने के कगार पर हैं। हमारे देश में ही एक शताब्‍दी पहले चालीस हजार से अधिक बाघ थे लेकिन अब इनकी संख्‍या डेढ़ हजार से भी कम आंकी गई है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले पांच सालों में ही चार सौ से अधिक बाघ लापता हो चुके हैं। इसके बाबजूद दुनिया में बाघों की आबादी के चालीस प्रतिशत अभी भी हमारे देश में हैं। ऐसा न हो कि हमारी आने वाली पीढ़ी बाघ को सिर्फ तस्‍वीरों में ही देख सके।

Sunday, February 15, 2009

प्‍यार का उपहार!

मेरठ की एक ममता प्रेम दिवस पर मौत की नागिन बन गई। वेलेंटाइन डे पर घर आए प्रेमी को उसने अपनी आगोश में लेकर सल्‍फास खिला दिया। प्रेमी को क्‍या पता था कि उसकी माशूका उसे प्रेमपूर्वक आंख बंद कर उसके मुंह में जो पुडि़या डाल रही है वह उसकी मौत का सामान है। जी हां! ये कोई फिल्‍मी कहानी, धारावाहिक या उपन्‍यास अंश नहीं है बल्कि एक सीधी-सच्‍ची प्रेम कथा है जिसमें वेलेंटाइन डे पर प्रेमिका के घर मिलने गए प्रेमी ने जब अपनी प्रेमिका को बताया कि उसकी शादी तय हो गई है और अब उसे घरवालों की इज्‍जत के लिए शादी करनी पड़ेगी तो प्रेमिका ने उस बांसुरी को ही तहस-नहस करने का फैंसला लिया जिसके सुरों की आ‍सक्ति में वह मंत्रमुग्‍ध हो कर थिरकन महसूस किया करती थी।
ममता एम कॉम कर रही है और उसका प्रेमी किशन गुप्‍ता पॉलीथिन का कारोबारी था। चार साल से उनके बीच प्रेम की पींगे चढ़ रही थी। दोनों के घर वाले उनके प्‍यार की पींगों से अंजान थे। लुका-छिपी के साथ चल रही प्रेम कहानी में प्रेमी चांद-तारे जमीं पर लाने के ख्‍वाब दिखा रहा था और लड़की को आंख बंद कर भी हरियाली ही नजर आती थी। इसी तरह चार साल बीत गए। किशन व्‍यापारिक घराने वाले परिवार से ताल्‍लुक रखता था तो ममता के पिता रक्षा मंत्रालय में सहायक लेखा अधिकारी थे। बीते शनिवार यानी वेलेंटाइन डे को ममता के पिता अपनी पत्‍नी के साथ किसी काम से घर से बाहर गए। उनसे पहले उनकी दूसरी बेटी अपने ऑफिस जा चुकी थी। घर में अकेले ममता थी जो ऐसे ही वक्‍त का इंतजार कर रही थी। उसका प्रेमी भी व्‍याकुल था; लिहाजा सूचना मिलते ही ममता के पास चला आया। दोनों के बीच कथित प्रेम फिर परवान चढ़ने लगा। घर में अकेले दो युवा दिल धड़कते रहे लेकिन इसी बीच किशन ने जब ममता को बताया कि उसके घर वालों ने उसकी शादी तय कर दी है और वह घर वालों से विद्रोह करने की हैसियत में नहीं है तो ममता का दिल धक रह गया। उसके कलेजे में आग धधकने लगी। गुस्‍से में उसने किशन के दोनों मोबाइल तोड़ दिए। किशन ने ममता का गुस्‍सा शांत करने की कोशिश की लेकिन ममता के अंदर ज्‍वालामुखी धधक रहा था। किशन को धीरे-धीरे ममता शांत होते नजर आई तो उसने उसे स्‍वीटी सुपारी भेंट की लेकिन स्‍वीटी सुपारी खाने से पहले उसने किशन को बांहों में लेकर आंख बंद कर मुंह खोलने को कहा। ममता बोली कि तुम्‍हारी सुपारी मैं बाद में खाउंगी, उससे पहले तुम मेरी सौगात खाओ। किशन ने आंख बंद कर मुंह जैसे ही खोला वैसे ही ममता ने सल्‍फास की पुडि़या उसके मुंह में उड़ेल दी। पुडि़या के साथ-साथ कोल्‍ड ड्रिंक मुंह में डाला और जब तक किशन के कुछ समझ में आता ममता कमरे से बाहर निकलकर उस कमरे को बाहर से बंद कर चुकी थी। इसके बाद जब ममता ने कमरा खोला तो किशन निढाल हो चुका था।
शाम को चार बजे के आसपास जब ममता के माता-पिता लौटे तो ममता का कमरा बंद था। ममता के हाव-भाव देखकर उन्‍हें शक हुआ तो वह ममता के कमरे में घुसे और वहां का नजारा देखकर हतप्रभ रह गए। कमरे में किशन का शव पड़ा था और फर्श उल्टियों से गंदा हो चुका था। कुछ देर तक ममता के पिता को यह समझ में नहीं आया कि क्‍या करें। फिर उन्‍हें जब माजरा समझ में आया तो एक लाचार बाप खड़ा था। बेवस बाप क्‍या करता; ममता की मां के साथ मशीनी गति से घर का फर्श साफ कर अस्‍त-व्‍यस्‍त कमरे को ठीक किया और फिर पुलिस को सूचना दी कि उनके घर में एक शव पड़ा है। कुछ देर में ही शव की शिनाख्‍त हो गई और किशन के घर वालों को सूचित किया गया तो वह विफर पड़े और उन्‍होंने ममता और उनके घरवालों के खिलाफ हत्‍या का मामला दर्ज कराया। ममता के मां-बाप ने सफाई दी कि वह सुबह से ही घर से बाहर थे और मृतक को पहली बार उन्‍होंने देखा है। उन्‍होंने ममता के हवाले से ये भी कहा कि युवक ने खुद ही जहर खाकर आत्‍महत्‍या की है।
सच क्‍या है ये तो सिर्फ ममता ही जानती है या अब इस दुनिया को अलविदा कह चुका किशन। पुलिस के मुताबिक ममता ने जो सच पुलिस के सामने उगला है फिलहाल तो पुलिस उसी सच को सही मान रही है। और वह सच आप पढ़ चुके हैं। ममता के साथ पुलिस ने उसके माता-पिता को गिरफ्तार कर लिया है। ममता को हत्‍या के अपराध में और उसके माता-पिता को घटित अपराध के साक्ष्‍य मिटाने और षड्यंत्र में भागीदारी करने के आरोप में सींखचों के पीछे डाल दिया गया है।
ये एक ऐसी घटना है जो कई सवाल खड़े करती है। पहला सवाल क्‍या ममता और किशन में प्‍यार था? क्‍या कोई अपने प्रेम का इस तरह अंत कर सकता है? सल्‍फास एक ऐसा कीटनाशक है जो हवा के संपर्क में आते ही तेज दुर्गंध छोड़ता है तो क्‍या कोई व्‍यक्ति आंखें बंद होने पर भी निगल सकता है? तो फिर क्‍या ये ऐसा सच है जो पुलिस थाने में गढ़ा गया है? अगर ये सचमुच सच है तो क्‍या नए जमाने की स्‍त्री प्रेम और प्रतिशोध की नई परिभाषाएं लिख रही है? क्‍या हम इसे वैचारिक और नारी स्‍वतंत्रता की परि‍णति मान सकते हैं? मुझे तो कुछ सूझ नहीं रहा अगर आपको कुछ सूझ रहा हो तो जरूर बताईएगा।

Tuesday, February 10, 2009

प्‍यार के तालिबानी

आजकल सबसे ज्‍यादा तालिबानियों की चर्चा है। कोई भी अखबार या न्‍यूज चैनल तालिबानियों की चर्चा या खबर/अ-खबर के बगैर पूरा ही नहीं होता। खबर हो या न हो लेकिन तालिबानी जरूर होते हैं। वैसे तालिबानी होना अब एक मुहाबरा बन गया है। अब हर जगह तालिबानी याद आते हैं। बैंगलौर के पव में युवक-युवतियों की धुनाई हुई तो तालिबानी याद आए। वेलेंटाइन डे या वीक हो तो भी तालिबानी। जी हां! प्‍यार के तालिबानी। ...चलिए हम भी आज प्‍यार के तालिबानियों की चर्चा करते हैं।
वेलेंटाइन डे से पहले प्रेमी युगलों में जबरदस्‍त उत्‍साह है, वहीं प्‍यार के तालिबानियों ने मेरठ में कमर कस ली है। इस बार प्‍यार के इन तालिबानियों ने एक अनोखा फरमान सुनाया है। इस फरमान के मुताबिक प्रेम पर पहरा देने वाले लोग वेलेंटाइन डे पर अपने साथ हवनकुंड लेकर चलेंगे और इन्‍हें जहां भी अविवाहित प्रेमी युगल वेलेंटाइन डे सेलीब्रेट करते मिलेंगे, वहीं उन्‍हें पकड़कर सात फेरे करवा दिए जाएंगे। इसी तरह कुछ मंडलियां प्रेमी युगलों को मुर्गा बनाने और पिटाई करने का ऐलान कर रही हैं लेकिन इस सब के बावजूद प्रेमी युगल वेलेंटाइन वीक मनाते हुए अपनी लीलाओं में मस्‍त हैं।
मेरठ के गांधी बाग में करीब चार साल पहले उत्‍तर प्रदेश पुलिस के वीर जवानों ने ऑपरेशन मजनू चलाकर प्रेमी युगलों में थप्‍पड़ बजाए थे। युवक-युवतियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा था। पुलिस की महिला नेत्रियां प्रेमी युगलों को पकड़ने के लिए ऐसे भागी थीं जैसे ओलंपिक की रेस में दौड़ लगा रहीं हों लेकिन आज यहां का नजारा बिल्‍कुल अलग है। एक बार फिर ये गांधी बाग फिर प्रेमी युगलों से आबाद है। जिसने भी ऑपरेशन मजनु की तस्‍वीरें देखी होंगी वह यह सोच भी नहीं सकता था कि मेरठ के गांधी बाग को प्रेमी युगल फिर से हरा-भरा कर देंगे। एक-दो नहीं बल्कि सुबह से शाम तक दर्जनों जोड़े आजकल इस पार्क में आ जा रहे हैं। यही हाल शहर के दूसरे ऐसे स्‍थलों और मॉल्‍स का है, जहां वेलेंटाइन वीक के रोज डे से लेकर किस डे तक परमानंद अवस्‍था में सेलीब्रेट हो रहे हैं लेकिन प्‍यार के तालिबानियों के फरमान से ये लोग थोड़ा विचलित हैं और ऐसे फरमानों को अधिकारों पर हमला मान रहे हैं।
एक तरफ प्रेमी युगल प्रेम के इजहार से लेकर प्रेम लीलाओं में मस्‍त हैं वहीं प्‍यार के तालिबानी कहे जाने वाले संगठनों ने इसे विदेशी अपसंस्‍कृति कहकर जनजागरण शुरु कर दिया है। बजरंग दल ने शहर भर में होर्डिंग्‍स लगवाएं हैं जिसमें वेलेंटाइन वीक में पड़ने वाले दिवसों की अनुवाद कर बताया है कि इनके मायने क्‍या हैं। शहर भर में पर्चे भी बांटे जा रहे हैं और चेतावनी भी कि यदि कोई प्रेमी युगल सार्वजनिक स्‍थलों पर घूमता पाया गया तो उनकी मंडलियां वहीं पकड़कर उनके घरवालों को बुलवाएगीं और शादी कर कन्‍यादान भी बजरंग दल के लोग करेंगे। बजरंग दल की टोलियां वेलेंटाइन डे पर अपने साथ हवनकुंड लेकर निकलेंगी और साथ-साथ घूम रहे अविवाहित युवक-युवतियों को पकड़कर सात फेरे करा देंगी। बजरंग दल जहां प्रेमी युगलों का घर बसाने का फरमान लेकर मैदान में है तो शिव सेना उन ग्रीटिंग्‍स और अन्‍य सामग्री की होली जलाने का ऐलान कर चुका है जिसमें युवक-युवतियों की चुंबन लेते या बांहों में बांहें डाले तस्‍वीरें होंगी। साथ ही शिव सेना शादी नहीं कराएगी बल्कि अपने परंपरागत तरीके से इन युगलों को मुर्गा बनाकर धुनाई भी करेगी।
बजरंग दल ने शहर भर में जनजागरण के लिए जो पर्चे बटबाए हैं उसमें फ्रेगन्‍स डे को खुशबू देने का दिन, टेडी डे को खिलौने देने का दिन, प्रपोज्‍ड डे को दोस्‍ती करने का दिन, रोज डे को गुलाब देने का दिन, डेट डे को झूठ बोलकर यार के साथ जाने का दिन, चाकलेट डे को एक-दूसरे को झूठी चॉकलेट खिलाने का दिन, स्‍लेब डे को अश्‍लीलता के साथ एक-दूसरे को चांटे मारने का दिन, हग डे को बांहो में बांहें डालने का दिन, किस डे यानी चुंबन का दिन, वेलेंटाइन डे यानी बचा खुचा काम करने का दिन और फोरगिवनेस डे यानी मजे लेकर छुटकारा पाने का दिन बताया गया है। बजरंग दल का कहना है कि हम किसी युगल को छुटकारा नहीं लेने देंगे और उनकी पकड़े जाने पर शादी कराई जाएगी।
हमारे कई मित्र बजरंग दल के इस कदम को विरोध का सकारात्‍मक तरीका मानते हैं। आपकी क्‍या राय है; खुलकर इजहार कीजिएगा क्‍योंकि मेरठ तो एक प्रतीक है लेकिन मुद्दा समूचे समाज और राष्‍ट्र से जुड़ा है।

Wednesday, February 4, 2009

प्रेम के तमाशे में फंसी औरत

करीब साठ दिन से एक (अ)प्रेम कहानी सुर्खियों में है। मीडिया के लिए मुंबइया फिल्‍मों या एकता कपूर के सीरियलों से भी हिट मसाला। राष्‍ट्र की सबसे गंभीर समस्‍या। जी हां! हरियाणा के दिग्‍गज नेता भजनलाल के साहबजादे और पूर्व उपमुख्‍यमंत्री चंद्रमोहन के चांद मौहम्‍मद और चंडीगढ़ की एडवोकेट अनुराधा वाली के फिजा बनकर निकाह करने और फिर चांद के छिप जाने से आहत फिजा की दास्‍तान कई हफ्तों से सुर्खियां बनी हुई है। भले ही इस कहानी को चटखारे लेकर परोसा जा रहा हो लेकिन इस प्रसंग ने कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं। ऐसे सवाल जो मौकापरस्‍ती के लिए धर्म का ही नहीं बल्कि कानून का भी मजाक उड़ाते हैं और हमारा समाज, धर्म और कानून अभिशप्‍त होकर मूकदर्शक बना रहता है। एक मुद्दा महज चटखारेदार खबर बनकर रह जाता है।
ये कहानी एक ऐसे पुरुष और स्‍त्री की है जो सुसंस्‍कृत परिवार और समाज से हैं। पढ़े-लिखे हैं। समझदार हैं। या कहिए कि जरूरत से ज्‍यादा समझदार हैं। इस कहानी का एक पात्र चंद्रमोहन है। हरियाणा के दिग्‍गज राजनेता भजनलाल का पुत्र और सूबे का उपमुख्‍यमंत्री चंद्रमोहन एक दिन अचानक गायब हो गया। कुर्सी छोड़कर। यहां तक कि अपने बीबी-बच्‍चों को बिलखते हुए छोड़ गया। तलाश हुई लेकिन उसका कहीं पता नहीं चला लेकिन एक दिन वह एक युवती के साथ दुनिया के सामने आया। इस युवती का नाम था अनुराधा वाली। पेशे से एडवोकेट अनुराधा भी गायब थी। लेकिन प्रकट हुए चंद्रमोहन अब चांद मौहम्‍मद बन चुके थे और अनुराधा वाली नए अवतार में फिजां बनकर सामने आई थी। दोनों ने ऐलान किया कि उन्‍होंने निकाह कर लिया है। यानी कानून को धोखा देने के लिए चंद्रमोहन ने धर्म का सहारा लिया और अपनी प्रेयसी का भी धर्म परिवर्तन करा शादी कर ली। दोनों ने हीर-रांझा टाइप प्रेम कहानियों पर बनी मुंबइया फिल्‍मों की तरह डायलोग बोले। चांद मौहम्‍मद बन गए चंद्रमोहन ने कहा कि उनकी दोस्‍ती पुरानी थी और जब प्‍यार में बदली तो उन्‍होंने साथ रहने का फैसला किया क्‍योंकि वह दोनों एक दूसरे के बगैर रह नहीं सकते थे। फिजा ने चांद को हीरा कहा और दोनों ने एक-दूसरे को तारीफ के चंदन लगाए और साथ जीने-मरने का ऐलान कर दिया।
अगर ये हरकत हमारे देश के किसी आम चेहरे ने की होती तो उसका उपचार समाज और उसके रखवालों ने कर दिया होता। अगर 'रामू' या 'मुन्‍ना' ऐसा करते तो इलाके के दरोगा जी ही चार लाठियों में मामला सुलटा देते लेकिन मामला अपमार्केट था। एक राजघराने से जुड़ा था। लिहाजा कई हफ्तों तक चांद और फिजा के पीछे-पीछे कैमरे चलते रहे। सुर्खिया बनी रही। हर रोज एकता कपूर के सीरियलों जैसा एक नया घटनाक्रम सामने आ जाता। चटखारेदार खबर थी और खबर बिकने वाली थी तो जाहिर था कि कभी चांद बन चुके चंद्रमोहन के बीबी-बच्‍चों को लेकर एक कड़ी बनती और कभी उनके अन्‍य घरवालों की प्रतिक्रियाएं सामने आतीं और खबरची एक से पूछते और दूसरे को बताकर प्रतिक्रिया ले‍ते। कुल मिलाकर चटखारे लिए जाते रहे लेकिन किसी ने गंभीरता से ये सवाल नहीं उठाया कि चंद्रमोहन की ब्‍याहता स्‍त्री और उन बच्‍चों का क्‍या कुसूर था। क्‍या ये उस स्‍त्री और बच्‍चों के प्रति एक तरह की हिंसा नहीं थी। क्‍या धर्म परिवर्तन कर दूसरा विवाह इतना आसान है। क्‍या सामाजिक सुरक्षा के ताने-बाने को इस तरह तार-तार किया जा सकता है। क्‍या धर्म परिवर्तन कर लेने से एक व्‍यक्ति अपनी पत्‍नी से मुक्‍त हो सकता है। अगर नहीं तो चांद पर कानूनी शिकंजा क्‍यों नहीं कसा गया?
लेकिन ये कहानी यहीं पर खत्‍म नहीं हुई। चांद फिर गायब हो गया। चांद की फितरत है घटना, बढ़ना और छिप जाना। चंद्रमोहन जिस तरह अपनी पहली बीबी और बच्‍चों को छोड़ कर गायब हुआ था; उसी तरह फिजा को छोड़कर गायब हो गया। अपनी पत्‍नी और बच्‍चों को छोड़कर गायब होने के बाद चंद्रमोहन जब सदेह सामने आया तो चांद बना हुआ था। यानी उसने इस्‍लाम ग्रहण कर लिया था। तब वापस आया चांद अपने साथ फिजा को लेकर अवतरित हुआ था। ये ऐलान करता हुआ कि उसे अनुराधा से बेपनाह मुहब्‍बत है। इतनी मुहब्‍बत कि वह एक-दूसरे के बगैर जिंदा नहीं रह सकते। फिजा को अपना चांद हीरा लग रहा था। ऐसा चांद जिसमें उसे कोई धब्‍बा भी नहीं दिखाई दे रहा था। लेकिन कुछ दिनों बाद ही कृष्‍ण पक्ष आया और चांद एक बार फिर छिप गया। इस बार फिजा बन चुकी अनुराधा की जिंदगी में अमावस्‍या आई।
वजह कुछ भी हो। चाहे लोग ये माने कि उन्‍होंने प्‍यार को बदनाम किया है। बदनाम हुई है तो सिर्फ मौहब्‍बत। या ये माने कि चंद्रमोहन और अनुराधा दोनो ही दोषी हैं। लेकिन कड़वा सच यही है कि दोनों ही परिस्थितियों में अगर कोई ठगा गया है तो वह है औरत। हर हाल में अगर किसी का कुछ छिना है तो वह है स्‍त्रीत्‍व। चंद्रमोहन के गायब होने पर उसकी पत्‍नी और बच्‍चे ठगे गए और चांद मौहम्‍मद के गायब होने पर फिजा। यानी लुटी तो सिर्फ और सिर्फ औरत ही। हो सकता है कि आप कहें या तर्क दें कि अनुराधा वाली तो पढ़ी-लिखी कानून की जानकार औरत थी; ये भी मानें कि उसी की वजह से चंद्रमोहन ने अपनी पत्‍नी को छोड़ा लेकिन सच तो यही है कि एक औरत की आबरू लूट कर उसने दूसरी औरत की आबरू को भी तार-तार किया।
अब मजहब की भी सुनिए। हिंदु मैरिज एक्‍ट के मुताबिक चंद्रमोहन एक पत्‍नी के रहते दूसरी शादी नहीं कर सकते थे; इसलिए वह मुसलमान हो गए और अब इस्‍लाम के विद्वान कह रहे हैं कि अगर चांद मौहम्‍मद सार्वजनिक तौर पर यह कह दे कि वह इस्‍लाम धर्म छोड़कर फिर से हिंदु हो गए हैं तो उनका फिजा से निकाह अपने आप टूट जाएगा। और फिजा को इस्‍लाम धर्म में रहते हुए इद्दत करनी पड़ेगी। यानी हर हाल में एक औरत ही ठगी गई और यही सदियों से होता चला आ रहा है लेकिन सवाल उठता है कि आखिर कब तक? कब तक हम कबीलाई समाज की मानसिकता का दामन थामे बैठे रहेंगे? आखिर कब ऐसा होगा जब औरत को इंसाफ के लिए गुहार नहीं लगानी पड़ेगी? क्‍या लगाम सिर्फ औरत के लिए है? आपकी प्रतिक्रियाओं और विचारों का इंतजार रहेगा!

तकनीकी सहयोग- शैलेश भारतवासी

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