Wednesday, August 28, 2019

हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए, दुष्यन्त कुमार की हिंदी ग़ज़लें







दुष्यंत
कुमार
की
दो
हिंदी
गजलें
इर्द-गिर्द पर सुनिए। जहां दुष्यंत कहते हैं- हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए, वहीं उन्होंने यह भी लिखा लिखा- एक जंगल है तेरी आंखों में जहां मैं राह भूल जाता हूँ।
Please listen ghazal in Hindi by well-known Hindi
poet Dushyant Kumar on our classic YouTube poetry channel Ird Gird.

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ

एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ

तू किसी रेल-सी गुज़रती है
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ

हर तरफ़ ऐतराज़ होता है
मैं अगर रौशनी में आता हूँ

एक बाज़ू उखड़ गया जबसे
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ

मैं तुझे भूलने की कोशिश में
आज कितने क़रीब पाता हूँ

कौन ये फ़ासला निभाएगा
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ


हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए

तकनीकी सहयोग- शैलेश भारतवासी

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