Sunday, October 25, 2009

ये सच तो डरावना है

देश में सर्वशिक्षा अभियान की शुरुआत को सात साल पूरे होने को हैं। अभियान की सफलता का श्रेय लेने के लिए केंद्र-राज्‍य सरकारों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। सरकारे डंका पीट-पीट कर बता रही हैं कि अब 14 साल तक हर बच्‍चा स्‍कूल में है। पर, उत्‍तराखंड में सर्वशिक्षा अभियान के बारे में अचानक एक ऐसा कड़वा सच सामने आ गया कि जिसे स्‍वीकार करना आसान कतई नहीं है। यह 'सच' अनायास ही उस वक्‍त सामने आया जब उत्‍तराखंड की सरकार यह पता लगाने चली कि सरकारी स्‍कूलों से कितने मास्‍साब गायब हैं। मास्‍टर गायब मले तो उनके खिलाफ कार्रवाई भी हो गई, जो दूसरा सच उजागर हुआ उससे भौचक्‍की है।
पता ये चला कि कागजों में जो पंजीकरण दिखाया गया स्‍कूलों में वे बच्‍चे हैं ही नहीं। प्रदेश भर में औसत मिसिंग 20 प्रतिशत मानी गई। आंकड़े डरावने हैं क्‍योंकि यह मिसिंग राजधानी दून में 60 प्रतिशत और हरिद्वार जैसे संपन्‍न जिले में 50 प्रतिशत है। तीसरे मैदानी जिले उधमसिंह नगर में भी 25 प्रतिशत बच्‍चे नहीं हैं। प्रदेश में एक महीने से इन बच्‍चों की तलाश हो रही है, लेकिन ये नहीं मिले। सरकार भी परोक्ष तौर पर ये मान चुकी है कि नहीं मिलेंगे, क्‍योंकि संख्‍या बढ़ाने के लिए इनकी आड़ में करोड़ों का भ्रष्‍टाचार कर फर्जीवाड़ा हुआ है।
इस स्थिति के साथ कई गंभीर बातें जुड़ी हैं। कक्षा आठ तक के स्‍कूलों में 19 लाख बच्‍चों के आंकड़े के दम पर उत्‍तराखंड सरकार शिक्षा के क्षेत्र में दक्षिण भारत की बराबरी का दावा कर रही है। यदि स्‍कूलों में 20 प्रतिशत यानी करीब पौने चार लाख बच्‍चे फर्जी हैं, तो इससे साफ है कि असली बच्‍चे स्‍कूलों के बाहर हैं और वे अनपढ़ हैं। इसके साथ यह सवाल भी खड़ा हो गया कि जिस अभियान को आगामी मार्च में शत-प्रतिशत सफल घोषित किया जाना था वह पौने चार लाख फर्जी बच्‍चों के साल किस आधार पर सफल कहलाएगा?
एक अन्‍य सवाल यह है कि इतनी बड़ी संख्‍या में बच्‍चों का फर्जी पंजीकरण कैसे हुआ। दरअसल, धांधली पंजीकरण में दोहराव के जरिए हुई। एक बच्‍चे को अलग-अलग नामों से प्राइवेट स्‍कूलों, मदरसों, आंगनबाड़ी में पंजीकृत किया गया। इसके पीछे मकसद इन छात्रों के नाम पर मिलने वाली छात्रवृत्ति, मिड डे मील, ड्रेस, कॉपी-किताबों की धनराशि हड़पने का था। इन बच्‍चों को उत्‍तराखंड सरकार एक साल में 34 करोड़ की छात्रवृत्ति बांटती है और 20 प्रतिशत छात्र फर्जी होने के नाम पर सरकार को 7 करोड़ रूपये का चूना लगाया गया। इसी तरह किताबों के सेट तथा मिड डे मील की व्‍यवस्‍था पर सरकार द्वारा रोज ढाई रूपया प्रति बच्‍चा खर्च किया जाता है। पता ये चला कि पूरे साल में मिड डे मील में करीब 16-17 करोड़ रूपये का फर्जीवाड़ा हुआ। वजीफे, मिड डे मील और किताबें, तीनों मदों की यह राशि हर साल 28-30 करोड़ हो रही है यानी सात साल के अभियान में 2 अरब का घोटाला। अकेले उत्‍तराखंड के संदर्भ में यह राशि 200 करोड़ पंहुच रही है तो एक पल के लिए सोचिए कि पूरे देश के मामले में यह घोटाला कितना बड़ा होगा?
चूंकि यह सारी पड़ताल उत्‍तराखंड सरकार ने खुद कराई इसलिए इसे यह कह कर खारिज नहीं किया जा सकता कि यह विश्‍वसनीय नहीं है। अगर उत्‍तराखंड में इस अभियान की सफलता का सच इतना कड़वा है, तो देश के बाकी राज्‍यों खासकर बिहार, उत्‍तर प्रदेश, झारखंड, मध्‍य प्रदेश, छत्‍तीसगढ़ में स्थिति क्‍या होगी; इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। इन राज्‍यों में तो सरकारी अमला इस कदर हावी होता है कि वहां सरकारी अभियान सिर्फ कागज का पेट भरने के लिए चलते हैं। सवाल यह भी है कि क्‍या उत्‍तराखंड क पड़ोसी राज्‍यों हिमाचल, यूपी, हरियाणा, जम्‍मू एंड कश्‍मीर में ऐसा नहीं हुआ होगा? यदि दूसरे राज्‍यों में भी यही प्रतिशत दोहराया गया हो (जिसकी पूरी आशंका है) तो क्‍या सर्वशिक्षा अभियान को सफल मान लिया जाना चाहिए? उत्‍तराखंड का उदाहरण किसी न किसी स्‍तर पर इस बात के लिए भी प्रेरित कर रहा है कि एसएसए के समापन से पहले देशभर में छात्रों की वास्‍तविक स्थिति की जांच हो। आखिर फर्जी आंकड़ों से तो देश की नई पीढ़ी का भला नहीं हो सकता।
यह सामान्‍य मामला इसलिए नहीं है क्‍योंकि यह सीधे तौर पर नई पीढ़ी के साथ धोखा है। उनके भविष्‍य के साथ खिलबाड़ है। जिन शिक्षकों पर देश की नई पीढ़ी को गढ़ने-संवारने, देश को योग्‍य नागरिक देने का जिम्‍मा है यदि वे फर्जी छात्रों की आड़ में वजीफे की राशि, मिड डे मील, किताबों के सैट और छात्रों के काम आने वाली अन्‍य शैक्षिक सामग्री को ठिकाने लगें, तो सोचिए आम लोगों का भरोसा किस कदर टूटेगा। उत्‍तराखंड के उदाहरण से कम से कम इस बात का साफतौर पर पता चलता है कि इस सारे मामले में शिक्षकों की संलिप्‍तता है। आपराधिक इसलिए कि उन्‍होंने सरकारी पैसों की उन बच्‍चों पर खर्च दिखाया जो वास्‍तव में थे ही नहीं। ये साफ है कि उत्‍तराखंड के 25 हजार सरकारी स्‍कूलों में से ज्‍यादातर के हेडमास्‍टर इस घोटाले का हिस्‍सा रहे हैं। अब जाने-अनजाने उत्‍तराखंड ने तो इस काम को पूरा कर लिया, यदि दूसरे राज्‍य या केंद्र सरकार भी जाग जाए, तो शायद उन करोड़ों बच्‍चों का भला हो जाएगा, जो अब भी अनपढ़ हैं, स्‍कूल के बाहर हैं।

Monday, October 19, 2009

हैरतअंगेज

सात समन्‍दरों की
मिथकीय दूरी को लांघ
एक नाजुक से धागे का
या चावल के चंद दानों
और रोली का
बरस-दर-बरस
मुझ तक निरापद चला आना
हैरतअंगेज है!


खून से लबरेज
बारूद की गंध को
नथुनों में भरे
इस सशंकित सहमी दुनिया में
तेरे नेह का
यथावत बने रहना
हैरतअंगेज है!


दो संस्‍कृतियों की
सनातन टकराहट के बीच
सूचना क्रांति के शोरोगुल
और निजत्‍व के बाजार में
मारक प्रतिस्‍पर्धा के बावजूद
मानवीय संबंधों की उष्‍मा की
अभिव्‍यक्ति का
सदियों पुराना दकियानूसी तरीका
अभी तक कामयाब है
हैरतअंगेज है!


तमाम अवरोध हैं फिर भी
कुछ है जो बचा रहता है
किसी पहाड़ी नदी पर बने
काठ के पुल की तरह
जिस पर से होकर
युग गुजर गए निर्बाध
भावनाओं की आवाजाही की तकनीक
अबूझ पहेली है अब तक
हैरतअंगेज है!


मेरी बहन;
कोई कहे कुछ भी तेरे स्‍नेह-सिक्‍त
चावल के दानों से
प्रवाहित होती स्‍नेह की बयार का
तेरे भेजे नाजुक से धागे
के जरिए
मेरे मन के अतल गहराइयों में
तिलक बन कर सज जाना
बरस-दर-बरस
कम से कम मेरे लिए
कतई हैरतअंगेज नहीं है।

तकनीकी सहयोग- शैलेश भारतवासी

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