Thursday, February 17, 2011

अपना घर सारी दुनिया से हट कर है

अपना घर सारी दुनिया से हट कर है|
हर वो दिल, जो तंग नहीं, अपना घर है|१|

माँ-बेटे इक संग नज़ारे देख रहे|
हर घर की बैठक में इक जलसाघर है|२|

जिसने हमको बारीकी से पहचाना|
अकबर उस का नाम नहीं, वो बाबर है|३|

बिन रोये माँ भी कब दूध पिलाती है|
सब को वो दिखला, जो तेरे अन्दर है|४|

उस से पूछो महफ़िल की रंगत को तुम|
महफ़िल में, जो बंद - आया पी कर है|५|

'स्वाती' - 'सीप' नहीं मिलते सबको, वर्ना|
पानी का तो कतरा-कतरा गौहर है|६|

सदियों से जो दबा रहा, दमनीय रहा|
दुनिया में अब वो ही सब से ऊपर है|७|

मेरी बातें सुन सब मुझे से कहते हैं|
क्या तू भी पगला-दीवाना-शायर है|८|

पहले घर, घर होते थे, दफ्तर, दफ्तर|
अब दफ्तर-दफ्तर घर, घर-घर दफ्तर है|९|

http://thalebaithe.blogspot.com
नवीन सी चतुर्वेदी

तकनीकी सहयोग- शैलेश भारतवासी

Back to TOP