Tuesday, September 9, 2008

हमको मालूम है कयामत की हकीकत

आजकल मुझे बहुत डर लग रहा है। डर की वजह है मेरा खबरिया चैनलों से प्यार, ये जितना डराते हैं मैं उतना ही उनसे चिपक जाता हूं। सचमुच मैं बहुत डरपोक हूं इसलिए इन्हें छोड़ नहीं पा रहा। मुझे लगता है कि डर दूर करने की दवा भी यही बताएंगे। बिल्कुल वैसे ही जैसे वह गीत- तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना। या जिस तरह रेगिस्तान में क्षितिज के आस-पास पानी दिखाई देता है। इल्यूजन, मृग तृष्णा।

खैर! कविता छोड़कर सीधे पते की बात पर आते हैं। मुझे कुछ खबरिया चैनल डराए हुए हैं कि ये दुनिया तबाह हो जाएगी। एक चैनल ने तो घोषणा कर दी है कि कलयुग के सिर्फ इतने दिन/घंटे बाकी हैं। वैसे ये कोई नई बात नहीं है। हर दूसरे-तीसरे दिन या सुबह-शाम कोई ज्यातिषी सेलेबिल गेटअप में बुद्धु बक्से पर आकर फिट हो जाता है। भविष्यवाणी करता है या पौराणिक कथा सुनाता है और लिपीपुती एंकर डरा-डराकर किसी फिरंगी की भविष्यवाणी सुनाती है। तभी लगने लगता है कि बेटा अब दुनियादारी का कोई फायदा नहीं, तबाह तो होना ही है। अब तो ये खबरिया ठेकेदार तारीख तक ढूंढ लाए हैं। इस बार तो मामला आथेंटकि बताया जा रहा है। एकदम, सवा सोलह आने सच। अबकी खेल किसी गंडे बेचने वाले या राशिफल बताने वाले का नहीं बल्कि साइंस का है। आने वाले बुधवार को खेल खत्म। सच बताएं! रात भर नींद नहीं आई। तरह-तरह के ख्याल आते रहे। एक ख्याल आया कि घर वाली से चोरी करके जो पैसा शेयर बाजार में लगा रखा है, उसका क्या होगा? फिर अपनी ही गुद्दी पर धौल जमाया और कहा कि मूर्ख जब ब्रह्मांड ही नहीं रहेगा तो इनवेस्टमेंट कहां बचेगा। सोचा कि धरती ही नहीं रहेगी, ब्रहमांड ही नहीं रहेगा तो मैं भी न रहूंगा। इसी उधेड़बुन में ख्याल आया कि क्यों न नेट पर जाकर कयामत के बारे में कुछ जानकारी हासिल कर ली जाए। सो अब हम अंधों में काना राजा बनकर लौटे हैं लेकिन इतना जान गए हैं कि भैय्या ये खबरिया चैनल अपनी दुकान हमे और आपको डरा-डराकर या सीधे-सीधे बेवकूफ बनाकर चला रहे हैं।

वो कयामत है क्या जिसने इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा कर दिया है। बुधवार दस सितंबर दो हजार आठ को ब्रह्मांड की गुत्थी सुलझाने के लिए एक प्रयोग की शुरुआत हो रही है। इस प्रयोग का नाम है एलएचसी। अस्सी देशों के साइंसदां पिछले बीस सालों से इसमें लगे हैं। अपनी भारत की भी हैं। यूरोपीय परमाणु शोध संगठन ने फ्रांस और स्विटजरलैंड की सीमा पर सत्ताईस किलोमीटर लंबी सुरंग जैसी एक मशीन बनाई है। इस महामशीन का नाम रखा गया है- लार्ज हेड्रोन कोलाइडर जिसे शार्ट में एलएचसी कहा जा रहा है। सात दशमलव सात अरब डालर के खर्च से जमीन के अंदर सौ मीटर बनाई गई इस मशीन से न्यूक्लियर के सारे रहस्यों को हल कर लेने की उम्मीद है। यानी इस महाप्रयोग से जीवन के सारे रहस्यों से पर्दा उठ सकता है। इस प्रयोग में साइंटिस्ट दो साइक्लोट्रोन से निकलने वाली विद्युत आवेशित किरणों की टक्कर से निकलने वाली एनर्जी को एक टेस्ट ट्यूब में कैद कर ब्रह्मांड की उत्पत्ति के रहस्यों का अध्ययन करना चाहते हैं। इस मशीन से उतनी उर्जा पैदा करने की कोशिश की जाएगी जितनी बिग बैंग यानी महाविस्फोट के समानुपातिक उर्जा उत्पन्न होगी यानी सूर्य से एक लाख गुना ज्यादा गर्मी। इसके लिए साइक्लोट्रोन और सिंक्लोट्रोन के जरिए हाई वोल्टेज के मैग्नेटिक वेव्स के बीच हेड्रोन के प्रवाह से उर्जा पैदा की जाएगी।
ये तो हुई वैज्ञानिक बात जो हमारे जैसे लोगों के सिर के ऊपर से गुजर सकती है या गुजर रही है। लेकिन बवाल क्या है ये सबकी समझ में आ जाएगा क्योंकि हम बवाल समझने में कभी कोई कोताही नहीं करते। दरअसल यूरोप के कुछ वैज्ञानिक और मानवतावादी संगठन इस प्रयोग के खिलाफ खड़े हो गए हैं। ये लोग कोर्ट की शरण में भी पंहुचे लेकिन इनकी दलीलें नकार दी गईं। इनका तर्क है कि ब्रह्मांड की गुत्थी सुलझाने का ये प्रयोग कयामत ला सकता है। इन लोगों का मानना है कि इस विनाशकारी प्रयोग से धरती या सूरज ही नहीं बल्कि समूचे ब्रह्मांड का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। ब्लैक होल बनने से ब्रह्मांड का नामोनिशान भी नहीं रहेगा। लेकिन यूरोपीय परमाणु एजेंसी इस प्रयोग को एकदम सुरक्षित बता रही है। एजेंसी के मुताबिक प्रयोग के लिए टेस्ट ट्यूब के प्रत्येक चरण का टेस्ट किया गया है। सुरक्षा की दृष्टि से इसमें बड़-बड़े मैग्नेट लगाए गए हैं जो सुपर कंडक्टिंग नेचर के हैं। जिन तारों के गुच्छे में आवेशित कणों का प्रवाह किया गया है वह लिक्वीडेटर से जुड़े होने के कारण ठंडे रहते हैं। इसलिए विस्फोट की कोई गुंजाइश ही नहीं है। एलएचसी में ऐसे पार्टीकल का उपयोग भी किया गया है जिनसे उत्पन्न गुरूत्वाकर्षण शक्ति से ब्लैक होल जैसी स्थिति पैदा की जा सकती है। वैज्ञानिक इस प्रयोग के जरिए ब्लैक होल के रहस्यों को समझने का प्रयास भी करेंगे।

अब आपके सामने दोना पक्ष हैं। आप खुद फैसला कीजिए कि आपने खबरिया चैनलों पर क्या और किस अंदाज में देखा और सच्चाई क्या है।

20 comments:

पप्पू said...

पाठशाला लगाने का काम हमारी बिरादरी का है लेकिन पाठशाला लगा दी आपने, शानदार। मुझे पता है अगले दो दिन मेरे लिये कितने मुश्किल हैं, बच्चों के सवालों के जवाब देते देते जान निकल जायेगी। लेकिन सरल भाषा में लिखे आपके लेख से मुझे काफी मदद मिलने वाली है। अब मुझे बच्चों के सामने जाने से डर नहीं लग रहा है, मैं हर तरह की जानकारी से लैस हूं। एक बार फिर आपका शुक्रिया।

Anonymous said...

भई आपने तो इतना जटिल विषय इतनी आसानी से समझा दिया, हम तो कायल हो गये आपके।
लिखते रहिये इसी तरह और हमारा ज्ञानवर्धन करते रहिये। धन्यवाद, गुरु जी।
नीरज गोहिला, करनाल

Anonymous said...

राम राम भैया।
ये टीवी वाले जो बता रहे हैं वो सही है या जो आपने लिखा है वो। हम तो असमंजस में पड़ गये। चलो जो भी होगा बढ़िया ही होगा। जिस सभ्यता को बनाने में ईश्वर को लाखों करोड़ों साल लग गये वो उसे इतनी जल्दी थोड़े ही नष्ट हो जाने देंगे। करेंगे राम भली। राम राम भैया।
martin देहाती, 5th Avenue, देहात

Ramashankar said...

आपने सही लिखा है. ये चैनल लोगों को सिर्फ डराने का काम कर रहे है जबकि वास्तविकता यह है कि सही जानकारी स्वयं इनको नहीं होती. यह परीक्षण महज एक साधारण से सिद्धांत पर काम कर रहा है जिसमें इलेक्ट्रान व प्रोटान को काफी तेज गति से आपस में टकराया जाएगा और इस टक्कर से (महाविस्फोट) से जो कुछ होगा वह पृथ्वी की उत्पत्ति पर से पर्दा हटाएगा. यहां आप चाहे तो एक बात सुधार सकते हैं आपने लिखा है 'इस मशीन से इतनी उर्जा पैदा की जाएगी जितनी विग बैंग के महाविस्फोट में हुई थी' दरअसल उतनी उर्जा नहीं पैदा होगी बल्कि उसके समानुपातिक उर्जा पैदा होगी.

Dr. Amar Jyoti said...

टीवी चैनेल अपनी टी आर पी के चक्कर में आधा-अधूरा सच प्रचारित कर के दहशत और सनसनी फैला रहे हैं। इन पर कोई अंकुश नहीं है।
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के नाम पर इस छिछोरी पीत-पत्रकारिता को छुट नहीं मिलनी चाहिये।

Hari Joshi said...

भाई रमाशंकर जी,
ज्ञानवर्धन के लिए आपका आभार। मैने गलती ठीक कर दी है।

ओमकार चौधरी said...

बहुत खूब लिखा है आपने. टीवी चैनल्स का क्या हाल है, किस से छिपा है. ये लोगों को जागरूक करने का बहुत बेहतर माद्यम हो सकता है परन्तु टीआरपी ने इसका बड़ा बेडा गर्क कर दिया. वैसे मै अब भी आशान्वित हूँ कि एक दौर के बाद टीवी चैनल्स जिम्मेदार भूमिका में अवश्य नजर आएंगे. लेकिन तब तक कहीं देर न हो जाए, ऐसी उलटी सीधी बातें करके-दिखा कर ये अपनी ही विश्वसनीयता खो रहे हैं. बहरहाल, दर्शक समझदार हैं. जो नहीं हैं, उन्हें आप जैसे मित्र जागरूक कर रहें हैं, अच्छे आलेख के लिए बधाई.

Unknown said...

आपने सही लिखा है कि मीडिया सकारात्मक भूमिका नहीं निभा रहा है। चैनलों को सिर्फ टीआरपी की फिक्र रहती है। इतने बड़े प्रयोग को चैनलों ने टीआरपी का ब्लैक होल बना दिया है। आज के आईनेक्स्ट अखबार ने लिखा है कि ये लोग अब तक चार सौ बार धरती को खत्म करने की भविष्यवाणी कर चुके हैं।

राज भाटिय़ा said...

अरे डरो मत , अगर फ़िर भी डर लगे तो अपनी धन दोलत मुझे सोफ दो जब सब ऊपर जाये गे तो मेरे से वहा वापिस ले लेना :)
अजी पहले से डरने से क्या लाभ, जो पल आज ,अब हमारे पास हे इसे खुशी से मनाओ, कल क्या होगा किसने देखा अगर होना भी हे तो अभी से क्यो फ़िक्र करे, अभी से क्यो मरे... मस्त रहो यह टीवी वाले क्या उस के ऎजंट हे,
धन्यवाद

Dr. Chandra Kumar Jain said...

आपकी शैली प्रभावी है
और दृष्टिकोण में मौलिकता
साफ़ झलकती है.
=============
चन्द्रकुमार

Dr. Chandra Kumar Jain said...
This comment has been removed by the author.
Krishna Kumar Mishra said...

हरि जोशी जी आप बहुत अच्छी ब्लागिग कर रहे है अपने लोगो के लिये अपनी भाषा में पर्यावरण पर जरा अपना ध्यान अधिक रखियेगा यही मेरा अनुरोध है

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

sir jee not good best h.thanks ek to abhee main hindi me tippani likhana nahi janta, secondly plz tell me how do i copyrighat my blog as your blog
newsdelhi@ymail.com

manvinder bhimber said...

आपके ब्लॉग पर देर से आने के लिए क्षमा चाहती हूँ .......
अपने सही लिखा है ...टीवी चेनल पर लोगों को अच्छा खासा बेवकूफ बाया जा रहा है ....वैसे ओमकार जी बात
भी सही है , दर्शक समझ रहे है की क्या चल रहा है ......
अच्छी पोस्ट के लिए बधाई

Alok said...

१० को मेरी मध्यावधि परीक्षा थी और घर से माताजी फोन कर रही थी कि बेटा कल ब्रह्माण्ड नष्ट होने वाला है..मैंने जवाब दिया था कि कोई बात नहीं कल मैं परीक्षा भवन में रहूँगा. सचमुच मीडिया को अपनी जिम्मेदारी का अहसास नहीं है , उसे वो बताना चाहिए था जो आपने बताया है . आप जटिलता को सरलता में बदलने में कोई प्रयास नहीं छोड़ते हैं ,इसीलिए आपका लेख इतना प्रभावी बन जाता है !!

Unknown said...

भाई, मजा आ गया

सचिन मिश्रा said...

Bahut accha likha hai.

मियां मिट्ठू said...

कुछ नया भी लिखिये ज़नाब।

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

media ka kaam dahshat failana nahi, jagrook karna hai. jin channelon ney aisa kiya unhonney visvsniyata hi khoi hai.

रंजन राजन said...

जोशी जी, नमस्कार।
कैसे हैं आप। इतने डर गए कि 9 सितंबर के बाद 15 सितंबर तक कोई पोस्ट नहीं डाली। कुछ लोग आपको पढ़ने के लिए इंतजार करते रहते हैं।

पुरालेख

तकनीकी सहयोग- शैलेश भारतवासी

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