बीते एक अक्तूबर को दुर्गानवमी थी। समूचे देश में मां दुर्गा के नवम् सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा की जा रही थी। इसी दिन वायुसेना अध्यक्ष एयरमार्शल होमी मेजर साहब का बयान आया कि महिलाओं के लिए वायुसेना में भी कुछ कर दिखाने के बहुत से अवसर हैं। हांलाकि वायुसेना में महिलाओं को काफी पहले ही अवसर मिलने शुरू हो गए थे। पंजाब की एक वीरांगना को वायुसेना (नाम जानबूझकर नहीं दिया जा रहा है।) पहली फाईटर बनने का अवसर मिला था लेकिन दुर्भाग्य से वह वीर नायिका अपने हुनर दिखाने से पहले ही एक असमायिक दुर्घटना का शिकार होकर इस संसार को अलविदा कह गई थी। अभी तक महिलाएं रक्षा सेनाओं में शार्ट सर्विस कमिश्न्ड अफसर के रूप में ही अपनी सेवाएं दे पा रहीं थीं। यानी कि चौदह साल की सेवा के बाद बिना किसी पेंशन सुविधा के सेना से उनकी छट्टी कर दी जाती थी। अभी तक ऐसा हो भी रहा है।
इस बात को कुछ महिला अधिकारियों ने कुछ इस तरह भी कहा है कि अपने युवा जीवन के अमूल्य चौदह वर्ष देश के हित में सेना को समर्पित करने के बाद जब हम सेवा से विदा लेती हैं तो स्वयं को ठगा हुआ सा महसूस करती हैं।
इकत्तीस मई को खड़कवासला की राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के कमांडेंट एयरमार्शल टी एस रणधावा ने अकादमी के एक सौ चौदह वेच के केडेट्स की पासिंग परेड के समापन के अवसर पर पत्रकारों को बताया कि अकादमी महिलाओं को सेना अधिकारियों के रूप में प्रशिक्षित किए जाने को पूरी तरह तैयार है। उन्होंने कहा कि सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन्ड अफसर के रूप में जज एडवोकेट जनरल (जे ए जी विभाग) और एजूकेशन कोर में भर्ती किए जाने पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। एयरमार्शल रणधावा ने जो बात कही उसकी पुष्टि भारत के रक्षामंत्री श्री ए के एंटनी ने इस प्रस्ताव पर अपनी सहमति जता कर कर दी। फिलवक्त रक्षा सेनाओं में पांच हजार एक सौ सैंतीस महिला सेना अधिकारी अपनी सेवाएं दे रहीं हैं। इनमें से सर्वाधिक चार हजार एक सौ एक थल सेना में, सात सो चौरासी वायुसेना में और दो सौ बावन नौसेना में पदस्थ हैं।
इस मुद्दे पर ब्रिगेडियर चितरंजन सावंत (वीएसएम) का स्पष्ट मत है कि एक समय था जब सेना में किसी महिला का नाम भी नहीं सुना जाता था। रक्षा सेना के आफिसर्स मेस के बार रूम अथवा भोजनालय में महिलाओं का प्रवेश तक वर्जित था। सैनिक अधिकारियों के मैस में महिलाओं के लिए लेडीज रूम बनाए जाते थे लेकिन वहां सेना अधिकारियों के परिवार की महिला सदस्य ही पंहुच सकती थीं।
जिस देश में नारी की पूजा किए जाने की बात की गई है उस देश की सैनिक इकाइयों में महिलाओं के साथ अछूतों जैसा बर्ताव करना हैरत में डालने वाला है। अगर हम अपने पौराणिक ग्रंथों से ही उदाहरण ढूंढे तो महारानी कैकेयी के बारे में कहा जाता है कि वह अपने पति महाराज दशरथ के साथ युद्ध के मैदान में जाती थीं और सहयोगी के रूप में युद्ध में भाग लेती थीं।
उन्नीसवी सदी में महारानी लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिश सेनाओं के विरूद्ध युद्ध में भारतीय सेनाओं का नेतृत्व करते हुए देश के लिए अपना बलिदान दे दिया था। इसी प्रकार दक्षिण भारत में किट्टर की रानी चेनम्मा ने देश की स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहूति दी थी। द्वितीय विश्व युद्ध में नेताजी सुभाष चंद बोस के नेतृत्व में गठित की गई आजाद हिंद फौज में एक अलग महिला रेजिमेंट का गठन किया गया था जिसकी कमान सुश्री लक्ष्मी सहगल को सौंपी गई थी। इसके बावजूद आजादी के बाद भी भारतीय रक्षा सेनाओं में वही सामंती नियम कायदे कायम हैं जो अंग्रेजी सेनिक नेतृत्व से विरासत में मिले थे।
राष्ट्रीय रक्षा अकादमी खड़कवासला के कमांडेंट एयर मार्शल टीएस रणधावा का कहना है कि एन डी ए में पुरूष कैडेट्स को ही प्रशिक्षण दिया जाता है इसलिए महिला कैडेट्स के प्रशिक्षण के लिए चैन्नई की सैन्य अकादमी में व्यवस्था की जाएगी। श्री रणधावा ने कहा कि सेना की महिला रक्षा अधिकारी सीधे युद्ध में भाग नहीं लेंगी। सेना के केवल उन्हीं अंगों में उन्हें स्थान दिया जाएगा जहां उन्हें शत्रु के साथ युद्ध में सीधे-सीधे भाग न लेना पड़े।
वास्तव में 1990 में ही भारतीय नौ सेना और वायुसेना में महिला अधिकारियों के लिए अवसरों के द्वार खोल दिए गए थे। इन महिला अधिकारियों को शार्ट सर्विस कमिशन्ड अधिकारी का दर्जा दिया गया था परन्तु इन महिला अधिकारियों को पुरूष अधिकारियों के समान कठोर प्रशिक्षण दिए जाने के बाद भी बहुत साधारण से कार्यों पर नियुक्त किया गया। इस सारी प्रक्रिया में लिंग भेद का अहसास सीधे-सीधे होता था। हांलाकि बिट्रेन की शाही सेना में महिला अधिकारियों को पुरूषों के समान ही सम्मान और अधिकार प्राप्त होते हैं लेकिन भारतीय सेना के उच्च अधिकारी अपनी सामन्ती सोच से उबर न पाने के कारण महिला अधिकारियों को अभी तक भी उनके पुरूष सहयोगियों के बराबर सम्मान के योग्य नहीं समझते।
भारतीय सेना के उपसेनाध्यक्ष लेफ्टीनेंट जनरल पट्टाभिरमन का स्पष्ट रूप से कहना है कि हमें यूनिट स्टर पर लेडी आफिसर्स की नहीं युवा जेंटलमेन आफिसर्स की भागीदारी की आवश्यकता है। वास्तव में खेलने की गुडि़याओं (बार्बी डाल्स) का युद्ध मैदान के बंकर्स में कोई स्थान नहीं होता है। उच्च सेना अधिकारियों की इसी मानसिकता के कारण सेना में कार्य कर रही महिला अधिकारियों के यौन उत्पीड़न और यौन शोषण की घटनाएं भी सामने आने लगीं।
महिलाओं को मामूली सी घटना पर भी चार्जशीट किया गया जबकि उनके पुरूष सहयोगी बड़ा अपराध करने पर भी छुट्टे छोड़ दिए गए। सेना के दस्तावेजों के अनुसार पिछले चौदह वर्षों में कम से कम सात महिला अधिकारियों का कोर्टमार्शल किया गया। इनमें से अधिकांश महिलाएं अपने शैक्षणिक जीवनकाल में ही अपनी विलक्षण प्रतिभाओं का प्रदर्शन कर चुकीं थीं। यदि वे चाहती तो सिविल सेवाओं में भी अपना कैरियर चुन सकती थीं लेकिन स्वदेश प्रेम का जज्बा ही उन्हें रक्षा सेना मे खींच कर लाया था। पर इसका परिणाम क्या निकला। यही कि रक्षा सेना में उन्हें तरह-तरह से अपमानित किया गया। इसका विरोध करने पर मामूली से मामूली (पेटी मेटर्स) बातों पर उन्हें चार्जशीट थमाई गई। उनका कोर्ट मार्शल किया गया और अपमानित करके रक्षा सेवा से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। अफसोस की बात तो यह है कि एक मामले में तो एक महिला अधिकारी पर मात्र दस रूपये के गबन का चार्ज लगा कर उसे सेना से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
बातें बड़ी-बड़ी हैं पर सेना में कार्यरत महिला अधिकारियों की वास्तविक हालत क्या है, इस बात का अनुमान लेफ्टीनेंट जनरल पद्मनाभन की टिप्पणीं से तो लगता ही है। एक सेना अधिकारी द्वारा अपने पिता को लिखे पत्रों से भी लगता है। 27 मार्च 98 को लिखे एक ऐसे ही पत्र में उसने लिखा था - पापा आपने हमेशा इतनी खुशियां दी हैं कि पता ही नहीं चला कि दुख क्या है। यहां आई एन एस हमला और कोची ने बहुत कुछ सिखा दिया। लेकिन यह सब सहन करना आसान भी तो नहीं है। मेरे पास परिवार का कोई ऐसा व्यक्ति भी नहीं है जिससे अपनी चिंताएं और पीड़ा बांट सकूं। घर फोन करके कुछ शांति मिलती है पर बारह दिनों में चार हजार रूपये फोन पर खर्च हो चुके हैं फिर भी सुकून नहीं है।
कभी कोई सीनियर अफसर बुलाता है तो उनके व्यवहार पर इतना गुस्सा आता है कि दुनिया पलटने को मन करता है। पापा! असल बात यह है कि फौज में लड़कियों को कोई इंसान नहीं समझता। आदर, सम्मान केवल दिखाने को है पर असल जिंदगी में ऐसा नहीं होता। कुछ दिनों के लिए इस एनवायरमेंट से भाग जाने को दिल करता है। हरिद्वार, देहरादून जाने को मन कर रहा है। अपने भाई-बहिनों के पास, आपके पास आने का मन है। यहां से उड़ जाने का मन कर रहा है। पापा! डिफेंस लड़कियों के लिए कितना गंदा है, यह बात सब को पता लगनी चाहिए। फौज में इतने लोग आत्महत्या क्यों करते हैं यह बात सब को पता लगनी चाहिए। हम सोचते हैं डिफेंस और ज्यूडिसियरी यही दो अच्छी जगह बची हुईं हैं जबकि ऐसा नहीं है।
...फिर लगता है कि ये बातें बाहर गईं तो देश की अस्मिता को भी खतरा हो सकता है। बात उछली तो इंटरनेशनल लेवल तक खिंच सकती है। खैर छोड़ो यहां पीडि़त व्यक्ति का ही कोर्ट मार्शल होता है। ... इस कोर्ट मार्शल ने मुझे इन उच्च अधिकारियों का असली चेहरा तो दिखा ही दिया। वास्तव में इन लोगों को बेनकाब किया जाना चाहिए पर ऐसा हो नहीं सकता। ये सो काल्ड सीनियर आफिसर तो फिर भी बचे ही रहेंगे। क्योंकि न्याय तो इन्हें ही करना है। ... यहां फौज में अपराधियों को ही न्याय करने की पावर दी जाती है।
पत्र का मजबून तो दहलाने वाला है। ऐसे में फौज में महिलाओं को स्थाई कमीशन दिए जाने की बात बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं जगाती।
28 comments:
कल्पना से परे और रोंगटे खड़े कर देने वाली बात है। अगर ऐसा है तो शर्मनाक है।
बहुत ही अफसोसजनक और दुखद स्थितियाँ हैं. कभी ऐसा अहसास भी न था.
बाप रे,
शर्मनाक स्थिति है।
दिल में हरी वर्दी के लिये जो सम्मान हमको विरासत में मिलता है उसकी वजह से ही हम चाहते हुए भी खिलाफ नहीं बोल पाते हैं। लेकिन अब वक्त आ गया है कि कुछ बोला जाये। इस देश में नारी की पूजा होती है। नारी में मां, बहन, बेटी, बहू ही नहीं दुर्गा,लक्ष्मी ,सरस्वती भी हैं। जो नारी का सम्मान ना कर सके वो भारत माता का सम्मान कैसे कर सकता है। मुझे आज्ञा हो तो मैं भी इस बारे में लिखना चाहता हूं।
Sena ki andaruni hakikat shayad kuchh aur hi hai.
जोशी जी, आपको आपके ब्लॉग के लिए शुभकामनाएं। आपके अनुभव लोगों के काम आयेंगे इसलिए उन्हें लिपिबद्ध करने का बीड़ा सराहनीय है।
जटिल विषय पर बेबाकी से लिखा गया एक तथ्य .....सेना महिलायों को नही आत्मसात करती ये सच है.
भाई मार्टिन जी,
आप जरूर लिखिए। स्वागत है आपका। ये मंच तो सबका है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है लेकिन शालीनता, तथ्य और तर्कों के साथ।
बड़ी आश्चर्यचकित करने वाली जान कारी दी आपने ! धन्यवाद
स्वदेश प्रेम के नाम पर भी ठगी होती रही है, यह लेख इसका प्रमाण है। इसमें उदधृत पत्र लालवाब है- पापा आपने हमेशा इतनी खुशियां दी हैं कि पता ही नहीं चला कि दुख क्या है। ........अपने भाई-बहिनों के पास, आपके पास आने का मन है।... पापा! डिफेंस लड़कियों के लिए कितना गंदा है, यह बात सब को पता लगनी चाहिए। फौज में इतने लोग आत्महत्या क्यों करते हैं यह बात सब को पता लगनी चाहिए। हम सोचते हैं डिफेंस और ज्यूडिसियरी यही दो अच्छी जगह बची हुईं हैं जबकि ऐसा नहीं है।
...फिर लगता है कि ये बातें बाहर गईं तो देश की अस्मिता को भी खतरा हो सकता है।
देश के लिए यह विचार अब भावुक लोगों के लिए रह गई है, अब इन लोगों की देशभक्ति को भुनाना ही स्वार्थी तबकों के लिए सर्वोपरि है।
जी मैं इस बात को जानता हूँ ! क्योंकि मेरे सारे रिश्तेदारो का बैक्ग्राउन्ड ही आर्मी है जहा सिपाही से लेकर आफिसर्स मौजूद है ! लेकिन बात उठाते रहने से ही कभी ना कभी बनेगी ! दुसरे फील्ड्स में भी ऎसी ही हालत थी पर वहाँ आज महिलाए ससम्मान काबिज हैं ! यहाँ भी कुछ समय लगेगा ! फिलहाल तो आपकी बात सौ प्रतिशत सच है !
ird-gird lagataar avashayak muddon ko abhivyakt kar aha hai.dibain nay
jo likha jhakjhor dainay vala hai.nirmal
Presence of fair sex in armed forces is causing troubles in its own way. I would only say this piece of article is a totally one sided story which doesn't convey the real facts.
सेना में होने वाली कई बाते सुनते तो थे, किंतु यहां तक होता है यह कल्पना नही की थी
अशोक मधुप
yahi haqiqat hai, sari dunia me aisa hi hota hai shayad.
इस महत आलेख के लिए आपका साधुवाद.बहुत कम लोग इन सच्चाइयों से परिचित हैं.पर मुझे लगता है कि जिस तरह महिलाओं ने अन्य किसी भी पुरूष वर्चास्वा वाले कार्यक्षेत्र में अपना स्थान बनाना और स्थायी कर अपने काबिलियत का झंडा फहराना शुरू कर दिया है,यह क्षेत्र भी बहुत दिनों तक इससे अछूता नही रहेगा.
Sir ur article is really impressive... today judiciary and defence are really in critical condition.. because of there supremacy no one tries to comment on them but wat u write is absolutely fact based.
कड़वा यथार्थ...
आपकी प्रस्तुति को नमन..
Is katu sachchai se rubaru karane ka shukriya.
guptasandhya.blogspot.com
ये तो एक बड़ा बहस का मुद्दा है.क्या सत्य क्या नहीं,ये बाहर से तो जाना नहीं जा सकता...हाँ उन सब पे टिप्पणी करना बड़ा आसान है.हर जगह,हर संस्था में जहाँ अच्छे लोग होते हैं चंद बुरे भी.
मैं ज्यादा बोलना नहीं चाहता...इस हरी वर्दी को विगत तेरह सालों से अपने अंग सा महसूस कर रहा हूँ.कई सारी बातें अतिश्योक्ती हैं.इतना तो खैर दावे से कह ही ...खैर वो भी छोड़ ही देता हूँ
गौतम जी,
ये सत्य है कि सत्य को बाहर रहकर जाना नहीं जा सकता लेकिन दिबेन ने विचारोत्तेजक लेख लिखा है। कुछ सत्य ऐसे होते हैं जो दिखाई देते हैं और कुछ ऐसी चीजें भी दिखाई देती हैं जो सत्य नहीं भ्रम होते हैं। उस महिला अधिकारी की अपने पिता को लिखी गई चिट्ठी सत्य का सिर्फ एक रोशनदान खोलती है।
हो सकता है कि बहुत सी बातें अतिश्योक्ति हों या आपको लगती हों तो हम आपका स्वागत करते हैं कि आप उन्हें अवश्य लिखें। अपने ब्लाग पर या आपके साझा ब्लाग इर्द-गिर्द पर।
देखिये हरि जी,मैं दीबेन जी का खुद ही बहुत बड़ा फैन हूँ.उनकी लगभग सारी कहानियाँ और पहला उपन्यास{खुद की प्रति है} पढ़ चुका हूँ.
बात तो थी इस रपट की...जहाँ तक उस महिला-अधिकारी के खत का प्रश्न है,तो मेरी माँ के पास मेरे लिखे ही ऐसे कम अज कम पाँच-सात खत मिल जायेंगे आपको राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में मेरे तीन साल के प्रशिक्षण के दौरान या फिर कश्मिर की विकट परिस्थितियों में विचलित मनःस्थिती में लिखे गये.
...किन्तु इसका मतलब ये कदापि नहीं कि मैं फ़ौज से खुश नहीं.ये फ़ौज को व्यसाय या प्रोफेशन के रूप में नहीं एक जीवन-शैली के रूप में देखने वाली बात है.its about being volenteer for it.no one forces you to join this profession...
मेरे वो दर्द भरे मेरी माँ को लिखे खत महज इसलिये कोई महत्व नहीं रखते कि मैं पुरूष हूँ?
ये एक लंबी बहस है...कितनी ही बातें हैं.तेरह-तेरह सोलह-सोलह महीनों तक छुट्टी नहीं आ पाता.लेकिन ये सब समझ-बूझ कर ही तो शामिल हुआ था.ये सारी परेशानियाँ,ये तमाम मुश्किलें इस हरी वर्दी का एक अहम हिस्सा है.वर्दी पहनना है तो इसे भी पहनना होगा...there is no two way about it...
फिलहाल इतना ही
सैन्य जीवन की िस्थितयों का यथाथॆ शब्दांकन । अच्छा िलखा है आपने । सैन्य क्ेष्तर में भी मिहलाओं को समान अिधकार िमलने चािहए । यह वक्त की जरूरत भी है ।
सर
सलाम है उस ज़ज्बे को जो खराब परिस्थितियों [जैसा बताया गया ] में भी महिलाओं को सेना ज्वाइन करने को आमंत्रित करता है .
लेकिन सलाम उस मानसिकता को भी जो गौतम जी ने अपनी टिपण्णी में बताई है [जो नीचे लिखी है ]
'''.ये सारी परेशानियाँ,ये तमाम मुश्किलें इस हरी वर्दी का एक अहम हिस्सा है.वर्दी पहनना है तो इसे भी पहनना होगा...there is no two way about it...'''
केवल इसी मानसिकता से हमारी सरहदें सुरक्षित हैं .
bhai bhut din bad dekhno ko mila aapka chehra. yah sach hai.
mukund
हाल ही में हुए विवादों से सेना की साख घटी है....और उस पर आपकी ये पोस्ट सेना की महिलाओं के प्रति सोच को ही उजागर करती है जो कि काफी खतरनाक है.....
Sir ur article is absolutely correct.
jab hamare desh ki sena hi esa ganda kam karegi to fir dusro se kya apeksha rakhe? mahilao ke prati unki soch badalni chahiye or mahilaoko purush barabar ka sthan milna chahiye. ye ak bada gambhi mudda he. is mudde par sahi kadam uthne chahiye. shukriya mr. hari joshi.
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