Tuesday, March 3, 2009

दस दिन, पांच हिरन और कुत्‍ते!

बाघ एक हिंसक प्राणी हैं। मांसाहारी है। शायद मेरे कुछ शाकाहारी मित्रों को पसंद न हो। (क्षमायाचना सहित, वैसे मेरी मित्रमंडली में ऐसे लोग भी हैं जो शुद्ध शाकाहारी कौम से ताल्‍लुक रखते हैं लेकिन उनका धंधा मीट एक्‍सपोर्ट का है।) मेरे कुछ साथी मानते हैं कि अगर कोई आदमखोर हो जाए तो उसे मार देना चाहिए, चाहे वह बाघ हो या आतंकवादी। मेरे ऐसे मित्रों को मेरे कुछ वैचारिक साथियों ने अपनी प्रतिक्रिया के माध्‍यम से पिछली पोस्‍ट में जबाव दे दिया है। मेरा मानना है कि कोई भी प्राणी अपने विचारों और परिवेश से हिंसक होता है। बाघ को मारने वाले किसी हिंसक प्राणी के नहीं बल्कि शाकाहारी प्राणियों के भी शत्रु हैं। समस्‍त वन्‍य जीवों और प्रकृति के भी दुश्‍मन हैं। शायद वह नहीं जानते कि इस धरा पर हर प्राणी उतना ही महत्‍वपूर्ण हैं जितने आप। हर प्राणी का प्रकृति या प्रा‍कृतिक संतुलन में अपना महत्‍व है। चाहे या अनचाहे। इसलिए मैं आज की पो्स्‍ट भी वन्‍य प्राणियों को ही समर्पित कर रहा हूं।
जंगलों का दोहन होने से सिर्फ बाघ या तेंदुआ ही नहीं बल्कि सभी वन्‍य जीव संकट में हैं। बाघ के आदमखोर होने या आबादी वाले इलाकों में घुस जाने पर तो मीडिया में हाहाकार मच जाता है। अफसर, मंत्री, संतरी सहित सभी चैतन्‍य हो जाते हैं। ठीक उसी तरह जैसे राजधानी या महानगरों में कोई वारदात सभी को हिला देती है। लेकिन जैसे छोटे आदमी की चिंता किसी हुक्‍मरान को नहीं होती; ठीक वैसे ही दूसरे वन्‍य प्राणियों पर भी हल्‍ला नहीं मचता। हल्‍ला भले ही न हो लेकिन वन्‍य जीव लगातार भटक कर आबादी में घुस रहे हैं और अपनी जान गंवा रहे हैं। हल्‍ला हो या न हो लेकिन सच यही है कि जंगल सिकुड़ रहे हैं और वहां के निवासियों का जीवन भी घटते वनों के साथ ही सिमट रहा है। अगर ऐसा नहीं होता तो हस्तिनापुर अभ्‍यारण्‍य से भटककर पांच हिरन आबादी में न घुसते और न ही कुत्‍तों की गिरफ्त में आते।
जी हां! ये खबर किसी राष्‍ट्रीय अखबार की सुर्खिया नहीं बनी लेकिन हमारी और आपकी आंखे खोलती है। बीते दस दिन में मेरठ जिले में पांच ऐसी घटनाएं हुईं जब हिरन जंगल का रास्‍ता भटककर आबादी की तरफ आ गए और उन्‍हें कुत्‍तों ने घेर कर फफेड़ डाला। इनमें एक काला हिरन और चार चीतल हैं। वन विभाग की माने तो ये आहार के लिए जंगल से खेतों की तरफ आए और फिर आबादी की तरफ गलती से मुड़ गए। वन विभाग ये भी कहता है कि ये गन्‍ने के खेतों में छिपे थे लेकिन खेत से गन्‍ना कट जाने के कारण ये अपने को छिपा नहीं सके। लेकिन सवाल उठता है कि ऐसी नौबत ही क्‍यों आई जब ये सुरक्षित क्षेत्र हस्तिनापुर अभ्‍यारण्‍य छोड़कर खेतों में अपने आहार की तलाश में आए। वैसे मैं आपको बता दूं कि हिरन प्रजाति के वन्‍य जीव बेहद शर्मीले होते हैं और समूह में रहना पसंद करते हैं। ये मानव या किसी हिंसक जीव की आहट पाते ही कुलांचे भरते हुए ओझल हो जाते हैं। इनकी संवेदन तंत्रिकाएं इतनी तेज होती हैं कि इन्‍हें दुश्‍मनों का आभास हो जाता है। आमतौर पर बाघ या तेंदुआ भी इन्‍हें सीधे नहीं दबोच पाता बल्कि झांसा देकर अपनी चतुरता से इनका शिकार करता है। ऐसे में ये सोच सहज बनती है कि यदि हिरन प्रजाति का कोई जीव शहर की तरफ तभी आता है जब उसके प्राकृतिक आवास में उसे कोई असुविधा हो।
यदि ये एक घटना होती तो हम ये भी मान लेते कि यह महज एक दुर्घटना है। रास्‍ता भटककर आबादी में आ गया होगा लेकिन दस दिन में पांच घटनाएं महज एक संयोग नहीं हो सकता। आज ही मीत जी के ब्‍लाग किस से कहें पर कैफी आजमी की रचना पढ़ रहा था। उसका कुछ पंक्तियां पढि़ए- शोर यूं ही न परिंदों ने मचाया होगा; कोई जंगल की तरफ शहर से आया होगा। यहां भी मैं कुछ ऐसा ही मानता हूं कि जंगल में किसी आदमी ने कुछ तो ऐसा किया होगा जिससे हिरन शहर की तरफ आया होगा। यहां तो एक नहीं बल्कि पांच आए और पांचो कुत्‍तों के हत्‍थें चढ़ गए। घायल अवस्‍था में उन्‍हें आदमी ने देखा और वन विभाग को सूचना दी। वन विभाग उन्‍हें अपने अहाते में ले गया और बांध दिए। दस दिन बाद उन्‍हें एक समाजसेवी संस्‍था की दया से चिकित्‍सक मिला। लेकिन आज उनमें से एक चीतल ने दम तोड़ दिया। उसके घावों में पस पड़ चुका था। पैर की हड्डी टूट चुकी थी। बाकी हिरनों की हालत भी बहुत अच्‍छी नहीं है। शायद उन्‍हें समय पर इलाज मिला होता तो हो सकता था कि चीतल बच जाता।
हो सकता है कि वन विभाग के पास चिकित्‍सा सुविधाएं न हो। वन्‍य जीवों के इलाज के लिए बजट न हो। और इन सबसे पहले वह संवेदना या इच्‍छाशक्ति न हो। वैसे अगर वन विभाग के पास इतना सब कुछ होता तो जंगलों का दोहन भी क्‍यों होता। इसी कड़ी में मुझे बीते महीने की एक घटना याद आ रही है। सत्‍ताधारी पार्टी के एक असरदार नेता के गुर्गों ने जंगल से टीक के करीब सत्‍तर वेशकीमती पेड़ों पर कुल्‍हाड़ी चलवा दी। जब वनरक्षक और रेंजर नेता के उन गुर्गों को रोकने गए तो नेता जी के गुर्गों ने उन्‍हें खदेड़ दिया। रेंजर ईमानदार था। उसने मामला दर्ज कर लिया लेकिन वह काटे गए दरख्‍तों की लकड़ी को जब्‍त नहीं कर सका क्‍योंकि उसके आला अफसरों ने उसे नौकरी का पाठ पढ़ा कर मामला रफा-दफा कर दिया।
ऐसी व्‍यवस्‍था और सोच के साथ हम कितने दिन तक जंगल और वन्‍य प्राणियों का अस्तित्‍व बचा पाएंगे? मुझे एक बार फिर मीत जी के ब्‍लाग किस से कहें पर पढ़ा कैफी आजमी का एक शेर याद आ रहा है- पेड़ के काटने वालों को ये मालूम न था, जिस्‍म जल जाएंगे जब सर पे न साया होगा।

35 comments:

Anonymous said...

बहुत दुर्भाग्‍यपूर्ण है ये सब। बहुत देर हो चुकी है। अगर अब नहीं सोचेंगे तो ये अवसर भी हाथ से जाता रहेगा।

इरशाद अली said...

आपकी सवेंदनाए आहत करने वाली हैं। तीन पोस्ट लगातार एक ही विषय पर लिखकर आपने अपने मर्म का साझा तो किया ही है साथ ही साथ अपने वन्य प्रेम को भी जाहिर किया।

आवारा प्रेमी said...

बाघ एक हिंसक प्राणी है.
जिंदा बाघ.
बहुत अच्छा लेख है.

P.N. Subramanian said...

हम आपका समर्थन करते हैं. दो दिन पूर्व एक सेवानिवृत्त ई.ऍफ़.एस से बातों ही बातों में हमने पुछा कि आपके यहाँ का ये क्या तरीका है. आदमखोर शेर को मार गिरना ही निर्धारित है क्या. उनका कहना था कि उनके विभाग में ऐसी संवेदना कहीं नहीं दिखाई देती. नीचे से लेकर ऊपर तक शेर को मारने में ही उनका स्वार्थ निहित होता है.

राज भाटिय़ा said...

शर्मा जी बहुत ही अच्छी बात कही आप ने , मुझे भी बहुत दुख हुया, लेकिन इंसान की गलतियो का नतीजा यह जानवर भुगत रहे है , अगर हम अब भी ना चेते तो बो दिन दुर नही जब भारत जेसा देश भी अफ़रीका या भी रेगिस्तान जेसा बन जायेगा,
धन्यवाद इस अच्छी ओर सुंदर पोस्ट के लिये

संगीता पुरी said...

वन्‍य जीवों के प्रति आपकी संवेदना अच्‍छी लगी ... बहुत दुभाग्‍यपूर्ण है यह सब ।

Dr. Amar Jyoti said...

भूली-बिसरी संवेदनाओं को जगाने के लिये साधुवाद।

Smart Indian said...

हरि भाई, बहुत ही अच्छा आलेख है. प्राणी-जगत की हर कड़ी महत्त्वपूर्ण है और हमें इन सबकी जीवन-शैली, खासकर जंगल बचाने का पूरा प्रयास करना होगा.

Unknown said...

हरि जी । सुन्दर आलेख। वन्य जीवों की तस्करी पर प्रशासन कान में तेल डाल के सो रहा है ।

रावेंद्रकुमार रवि said...

जोशीजी,
यह आलेख भी प्रभावशाली है। आप यूँ ही लिखते रहिए। आप सारे वन्य-प्रेमियों को एक मंच पर जोड़ने का भी पुनीत कार्य कर रहे हैं। मेरी शुभकामनाएँ सदैव आपके साथ हैं।

आवारा प्रेमियों के लिए यह जगह ठीक नहीं है।
जिंदा बाघ से तुम्हारी जान को भी ख़तरा हो सकता है। कहीं और जाकर पिटो। मरने से तो यही अच्छा रहेगा।

के सी said...

हरी जी आप बहुत साफ़ सुथरा और समीचीन लिखते हैं आपका लेख पसंद आया कई वैचारिक टिप्पणियां भी आ चुकी है जो आपकी बात का समर्थन करती हूई जागने का आह्वान कर रही है,

Anonymous said...

यह आलेख एक और सच्ची बात बता रहा है कि जंगल में मांसाहारी और शाकाहारी, दोनों प्रकार के पशुओं को जीवन यापन करने में दिक्कत आ रही है। बाघ भी शहर की ओर भाग रहा है और हिरन भी। बहुत सोचनीय स्थिति है।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

अति उत्तम.....कितनी संवेदनशीलता के साथ आपने वन्य जीवन की दुर्दशा का चित्रण किया है..आज आवश्यकता इस बात की है कि पुन: सृष्टि की रक्षा एवं जीव-कल्याण हेतु हमें इस दिशा में एक सार्थक प्रयास करना होगा.

प्रेम सागर सिंह [Prem Sagar Singh] said...

"पेड़ के काटने वालों को ये मालूम न था, जिस्‍म जल जाएंगे जब सर पे न साया होगा।" उक्त उक्ति वर्तमान समय की वास्तविक गाथा है।
हरिजी, अभी हमारे देश में वन्य जंतुओं के लिए आधुनिक अस्पताल की कमी है। वर्तमान में पालतू पशुओं के चिकित्सक से काम चलया जा रहा है वन्य जंतूओं का ईलाज इससे भिन्न है। चिड़ियाघर के पास वन्य जंतूओ के ईलाज की सुविधा रहती है।
लेख के लिए आभार!

sanjay vyas said...

जोशी जी,आज आपके विचार पूर्ण आलेख के साथ आपके ब्लॉग पर आने का सुअवसर भी प्राप्त हुआ.अफ़सोस ये रहा कि इस जगह की प्रदक्षिणा में देर क्यों हुई.खैर,अब चर्चा आपकी महत्वपूर्ण पोस्ट पर.ये खेद का विषय है कि इस चर्चा में तब तक वज़न नहीं आ सकता जब तक भारत में इससे जुड़े विमर्श को फैशन परस्त विमर्श की संज्ञा दी जाती रहेगी.काश भारत में वन्य जीवन के सवाल मूल धारा में आ गए होते तो आपका आलेख महत्व पूर्ण मांग पत्र की तरह होता.

naresh singh said...

बहुत अच्छी बात कही आप ने |बहुत अच्छा लेख है धन्यवाद |

Anonymous said...

हरिजी, जंगल कटेंगे तो जंगल में रहने वाले कहाँ जायेंगे शहर की तरफ ही ना। यहाँ तो जंगल और घर इतने पास पास होते हैं कि हिरन अक्सर सड़क क्रोस करते हुए मिल जाते हैं। बकायदा सड़को में बोर्ड भी लगा होता है कि आगे हिरन बहुल इलाका है लिहाजा सावधानी पूर्वक चलायें। बस सड़को में कुत्ते सरीके जानवर नही मिलते इसलिये हिरनों को खतरा सिर्फ तेज भागती कार से ही होता है।

अभिषेक मिश्र said...

हमारी वन नीति और आम आदमी की सम्वेदना में कमी ने भी वन्य जीवों को अपने ठिकानों से बाहर आने को मजबूर किया है. इन मूक प्राणियों के लिए भी सार्थक प्रयास होने चाहिए...

अभिषेक मिश्र said...
This comment has been removed by the author.
अभिषेक मिश्र said...
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ओमकार चौधरी said...

aapki kalam me jadu hai.
tabhi to itne prashasak our pathak tippani bhejte hain.
achcha lekh..
hamesha ki tarah..
badhai hari joshi ji.

दिनेशराय द्विवेदी said...

बढ़ती आबादी को रोकिए जनाब! वरना इंसान दुनिया को भी तबाह कर रहा है, और खुद को भी।

दिलीप कवठेकर said...

पेड़ के काटने वालों को ये मालूम न था, जिस्‍म जल जाएंगे जब सर पे न साया होगा।

क्या बखूबी लिखा है आपने कैफ़ी जी की इन पंक्तियों का संदर्भ दे कर.

हर बात सिमट कर वहीं आती है. खेत ही बागड़ खा रही है.

नीरज मुसाफ़िर said...

अजी, हस्तिनापुर के जंगलों में बड़ी संख्या में हिरन व चीतल हैं. लेकिन वे समय समय पर मानवीय क्रियाकलापों की वजह से अपनी जान गवां रहे हैं.

प्रवीण त्रिवेदी said...

दुर्भाग्‍यपूर्ण!!
....कितनी संवेदनशीलता के साथ वन्य जीवन की दुर्दशा का चित्रण किया है??

मोहन वशिष्‍ठ said...

भाई काम तो काम है वह अलग बात है लेकिन यह सब हमारे लिए बहुत दुर्भाग्‍यपूर्ण बात हे

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

रेंजर ईमानदार था। उसने मामला दर्ज कर लिया लेकिन वह काटे गए दरख्‍तों की लकड़ी को जब्‍त नहीं कर सका क्‍योंकि उसके आला अफसरों ने उसे नौकरी का पाठ पढ़ा कर मामला रफा-दफा कर दिया।

हरि भाई यह बात केवल जंगल ही नहीं, पूरे देश के साथ हो रही है.

Anonymous said...

आपके आलेख ने एक गंभीर विषय को समाज के सामने रखे की कोशिश की है.. जानवर से पालतू बने कुत्ते के इस तरह आदमखोर होने का विषय वाकई विचारणीय है..मांसाहारी हो रहे इन कुत्तो के हमले लगातार बढ़ रहे हैं... कुत्तो के इस आदमखोर होने की वजह पैदा हुआ प्राकर्तिक असंतुलन है.. बुचहड़ खानों पर जिन मरे हुए पशुओ को कभी गीद्ध खाया करते थे आज उन्हें गीद्धो के लुप्त होने पर कुत्ते खा रहे हैं.. इन्ही कुत्तो को जब मीट नहीं मिलता तो वे आदमखोर हो इंसानों पर हमला करते हैं.. कुत्तो का ये रुख एक चिंता का विषय है और समय रहते इस पर ठोस कदम उठाया जाना जरुरी है..

Anonymous said...

hamare ird-gird hi aisi ghatnayein ghat rahi hain jo hamari sanvedan-shoonyata ko darsha rahi hain....kuch kutton ne kuch ghatnao mein bachon ko kata, kin paristithiyon mein yeh kisi ko nahi pata...janta ne aav dekha na taav marna shuru kar diya in bezubano ko....aur had tab ho gayi jab local media mein khabar chapti hai ' ki ab tak 49'(49 dogs have been brutally killed!)

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

हरी जी ,
वन्य जीवों के प्रति आपकी चिंता ,और आपके विचार .....इनके संरक्षण के लिए आपके द्वारा किये जा रहे प्रयास प्रशंसनीय हैं .लोगों को आज नहीं तो कल ये एहसास होगा ..जरूर होगा की
वनों को काट कर कितनी बड़ी भूल कर रहे थे ...लेख काफी प्रभावशाली है .
होली के अवसर पर आपको एवं परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनायें .
हेमंत कुमार

ताऊ रामपुरिया said...

होली की घणी रामराम.

sandhyagupta said...

होली की हार्दिक शुभकामनाएँ .

ओम आर्य said...

हमारे विचारों पे पराबैंगनी किरणों का हमला हो रहा है. ओजोन की परत में छेद जो हो गया है

anil yadav said...

रहिमन पानी राखिए.....
बिन पानी सब सून.....
पानी गए न उबरे ......
मोती मानुस चून..........


होली की शुभकामनाएं................

खुश said...

जोशी जी कहां हो आप। अपना नंबर तो बताइए।

तकनीकी सहयोग- शैलेश भारतवासी

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