डोली सजी। दुल्हनियां उड़ी। ससुराल पंहुची। स्वागत हुआ। लेकिन दूल्हे राजा गायब मिले। अब ससुरालियों के हाथ-पांव फूले हुए हैं कि दुल्हन बिन साजन सुहागिन कैसे रहेगी। पहले तो यही ढिंढोरा पिटता रहा कि दूल्हे राजा घर में ही हैं लेकिन शर्मा कर सामने नहीं आ रहे हैं। दुबके-दुबके घूम रहें हैं लेकिन झूठ कितने दिन छिपता। सच सामने आना ही था। अब सच सामने आ ही गया तो कह रहे हैं कि जैसे दुल्हन लाए वैसे ही दूल्हे का भी आयात कर लेंगे। जी हां! हम किसी साधारण दुल्हन की बात नहीं कर रहे बल्कि जिस दुल्हन की बात कर रहें हैं उसका नाम रानी है और उसका मायका है बांधवगढ़। बांधवगढ़ बाघ अभयारण की बाघिन को पन्ना बाघ अभयारण लाया गया था ताकि वहां बचे बाघ को साथिन मिल जाए और दोनों के समागम से बाघों की संख्या में कुछ इजाफा हो जाए। इसी तरह एक बाघिन कान्हा नेशनल पार्क से लाई गई थी लेकिन मार्च में लाईं गईं दोनों बाघिन पन्ना के जंगलों में तन्हा घूम रही हैं।
वैसे तो पन्ना टाइगर रिजर्व है लेकिन वहां टाइगर ही नहीं बचा है। ये खुलासा अभी हाल में पन्ना में बाघों की संख्या की जांच करने केंद्र से गई एक तीन सदस्यीय कमेटी ने किया है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के एक पूर्व निदेशक की अगुवाई में भेजी गई भारत सरकार की इस कमेटी ने गहन जांच-पड़ताल के बाद पाया कि पन्ना टाइगर रिजर्व में एक भी बाघ की मौजूदगी नहीं है जबकि पन्ना टाइगर रिजर्व का प्रबंधन यहां बीस बाघों की मौजूदगी बताता रहा है। बाघ संरक्षण प्राधिकरण को टाइगर रिजर्व के बाहर तो एक बाघ होने के प्रमाण मिले हैं लेकिन कई दिन की ट्रैकिंग के बाद कमेटी इस निष्कर्ष पर पंहुची कि ये बाघ भी पन्ना टाइगर रिजर्व की सरहद में नहीं घुस रहा बल्कि उससे बाहर ही घूमता रहता है। आखिर ऐसा क्यों है? वैसे बाघ तो राजा है उसे किसी परिधि में बांधकर रखना तो मुमकिन नहीं लेकिन क्या जंगल का राजा भी टाइगर रिजर्व की सरहद में घुसने से डर रहा है। पन्ना के जिन जंगलों में कभी इस राष्ट्रीय पशु की भरमार हुआ करती थी वहां बचा हुआ इकलौता बाघ भी पन्ना टाइगर रिजर्व को कुछ इस अंदाज में अलविदा कह गया- ए मेरे दिल कहीं और चल......
बाघ आदमखोर हो जाए तो उसे मार गिराने के लिए जंगल की पूरी मशीनरी सक्रिय हो जाती है। हल्ला मच जाता है। नाटक किया जाता है कि बाघ को जिंदा पकड़ना है। पिंजरे लगाए जाते हैं और फिर नौटंकी का समापन किसी एक बाघ को गोली का निशाना बना कर किया जाता है। शिकारी और वन विभाग के हुक्मरान अपना सीना चौड़ा कर बेजान हो चुके जंगल के राजा की लाश के साथ अपने फोटो खिंचवाते हैं। इसके कुछ दिन बाद फिर खबर आती है कि बाघ ने किसी गांव पर हमला बोला और पशुओं को खा गया। ऐसी खबरों के साथ, फिर आवाजे उठती हैं कि मारा गया बाघ तो वह था ही नहीं जिसने आदम पर हमला किया था। लेकिन कभी आपने बाघखोरों के खिलाफ आवाजे सुनी हैं। क्या आपने कभी सुना है कि बाघखोरों के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई हो। पन्ना टाइगर रिजर्व के बाघ खत्म हो गए लेकिन इस नेशनल पार्क का प्रबंधन बाघों की झूठी मौजूदगी बताकर करोड़ों रुपये का हेरफेर करता रहा।
पन्ना टाइगर रिजर्व का प्रबंधन किस तरह आंखों में धूल झोंकता रहा है उसके लिए 2002 और 2006 में कराए गई बाघ गणना के आंकड़े उसे आईना दिखाते हैं। 2002 में पंजों के निशान के आधार पर हुई गणना में अभयारण्य में तैतीस बाघ होने की बात कही गई थी जिसमें प्रति सौ किमी के दायरे में एक बाघ के साथ तीन बाघिन दर्शायी गईं थीं। इसके चार साल बाद यानी 2006 में कैमरा ट्रैप तकनीक से गणना हुई जिसमें आंकड़ा एकदम उलटा था। कैमरा ट्रैप तकनीक से हुई गणना में एक बाघिन पर तीन बाघ थे। लेकिन यदि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण के पूर्व निदेशक की पड़ताल पर यकीन करें तो 2008 तक पन्ना टाइगर रिजर्व से बाघों का नामोनिशान ही मिट चुका था। ऐसे में अब तक बीस बाघों के होने का दावा करने वाला पन्ना रिजर्व टाइगर का प्रबंधन आखिर फर्जी आंकड़े क्यों दे रहा था और जब बाघ था ही नहीं तो कान्हा और बांधवगढ़ से बाघिन लाकर पन्ना के टाइगर रिजर्व में क्यों छोड़ी गईं। क्यों ये कहा गया कि दुल्हन बनाकर लाईं गईं बाघिनों की गतिविधियों पर पैनी नजर रखी जा रही है। बाघों की वंशवृद्धि के लिए राष्ट्र के साथ इतना भद्दा मजाक क्यों किया गया। अब भारत सरकार की ये समिति इस बात की जांच करेगी कि 2002 से अब तक चौंतीस बाघों के रखरखाब, भोजन और संरक्षण के लिए अब तक खर्च हुए करोड़ो रुपये कहां गए। अब समिति ये पड़ताल भी कर रही है कि भारत कि किस अधिकारी के कार्यकाल में कितना खर्च हुआ।
फिलहाल पन्ना की दोनों दुल्हनें वीरान है। बिन साजन वह कैसे बने सुहागन। लेकिन पन्ना का बेशर्म प्रबंधन कह रहा है कि हमने यहां दूसरी जगह से बाघों को लाकर पन्ना के टाइगर रिजर्व में बसाने का प्रस्ताव भेजा हुआ है। इससे ज्यादा शर्म की बात और क्या हो सकती है कि अपने बाघ तो बचाए नहीं गए और अब बेशर्मी की हदों को भी पन्ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन पार कर रहा है। अब आप ही बताइए कि बाघ आदमखोर है या उसके रखवाले ही बाघखोर बन गए हैं।
वैसे तो पन्ना टाइगर रिजर्व है लेकिन वहां टाइगर ही नहीं बचा है। ये खुलासा अभी हाल में पन्ना में बाघों की संख्या की जांच करने केंद्र से गई एक तीन सदस्यीय कमेटी ने किया है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के एक पूर्व निदेशक की अगुवाई में भेजी गई भारत सरकार की इस कमेटी ने गहन जांच-पड़ताल के बाद पाया कि पन्ना टाइगर रिजर्व में एक भी बाघ की मौजूदगी नहीं है जबकि पन्ना टाइगर रिजर्व का प्रबंधन यहां बीस बाघों की मौजूदगी बताता रहा है। बाघ संरक्षण प्राधिकरण को टाइगर रिजर्व के बाहर तो एक बाघ होने के प्रमाण मिले हैं लेकिन कई दिन की ट्रैकिंग के बाद कमेटी इस निष्कर्ष पर पंहुची कि ये बाघ भी पन्ना टाइगर रिजर्व की सरहद में नहीं घुस रहा बल्कि उससे बाहर ही घूमता रहता है। आखिर ऐसा क्यों है? वैसे बाघ तो राजा है उसे किसी परिधि में बांधकर रखना तो मुमकिन नहीं लेकिन क्या जंगल का राजा भी टाइगर रिजर्व की सरहद में घुसने से डर रहा है। पन्ना के जिन जंगलों में कभी इस राष्ट्रीय पशु की भरमार हुआ करती थी वहां बचा हुआ इकलौता बाघ भी पन्ना टाइगर रिजर्व को कुछ इस अंदाज में अलविदा कह गया- ए मेरे दिल कहीं और चल......
बाघ आदमखोर हो जाए तो उसे मार गिराने के लिए जंगल की पूरी मशीनरी सक्रिय हो जाती है। हल्ला मच जाता है। नाटक किया जाता है कि बाघ को जिंदा पकड़ना है। पिंजरे लगाए जाते हैं और फिर नौटंकी का समापन किसी एक बाघ को गोली का निशाना बना कर किया जाता है। शिकारी और वन विभाग के हुक्मरान अपना सीना चौड़ा कर बेजान हो चुके जंगल के राजा की लाश के साथ अपने फोटो खिंचवाते हैं। इसके कुछ दिन बाद फिर खबर आती है कि बाघ ने किसी गांव पर हमला बोला और पशुओं को खा गया। ऐसी खबरों के साथ, फिर आवाजे उठती हैं कि मारा गया बाघ तो वह था ही नहीं जिसने आदम पर हमला किया था। लेकिन कभी आपने बाघखोरों के खिलाफ आवाजे सुनी हैं। क्या आपने कभी सुना है कि बाघखोरों के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई हो। पन्ना टाइगर रिजर्व के बाघ खत्म हो गए लेकिन इस नेशनल पार्क का प्रबंधन बाघों की झूठी मौजूदगी बताकर करोड़ों रुपये का हेरफेर करता रहा।
पन्ना टाइगर रिजर्व का प्रबंधन किस तरह आंखों में धूल झोंकता रहा है उसके लिए 2002 और 2006 में कराए गई बाघ गणना के आंकड़े उसे आईना दिखाते हैं। 2002 में पंजों के निशान के आधार पर हुई गणना में अभयारण्य में तैतीस बाघ होने की बात कही गई थी जिसमें प्रति सौ किमी के दायरे में एक बाघ के साथ तीन बाघिन दर्शायी गईं थीं। इसके चार साल बाद यानी 2006 में कैमरा ट्रैप तकनीक से गणना हुई जिसमें आंकड़ा एकदम उलटा था। कैमरा ट्रैप तकनीक से हुई गणना में एक बाघिन पर तीन बाघ थे। लेकिन यदि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण के पूर्व निदेशक की पड़ताल पर यकीन करें तो 2008 तक पन्ना टाइगर रिजर्व से बाघों का नामोनिशान ही मिट चुका था। ऐसे में अब तक बीस बाघों के होने का दावा करने वाला पन्ना रिजर्व टाइगर का प्रबंधन आखिर फर्जी आंकड़े क्यों दे रहा था और जब बाघ था ही नहीं तो कान्हा और बांधवगढ़ से बाघिन लाकर पन्ना के टाइगर रिजर्व में क्यों छोड़ी गईं। क्यों ये कहा गया कि दुल्हन बनाकर लाईं गईं बाघिनों की गतिविधियों पर पैनी नजर रखी जा रही है। बाघों की वंशवृद्धि के लिए राष्ट्र के साथ इतना भद्दा मजाक क्यों किया गया। अब भारत सरकार की ये समिति इस बात की जांच करेगी कि 2002 से अब तक चौंतीस बाघों के रखरखाब, भोजन और संरक्षण के लिए अब तक खर्च हुए करोड़ो रुपये कहां गए। अब समिति ये पड़ताल भी कर रही है कि भारत कि किस अधिकारी के कार्यकाल में कितना खर्च हुआ।
फिलहाल पन्ना की दोनों दुल्हनें वीरान है। बिन साजन वह कैसे बने सुहागन। लेकिन पन्ना का बेशर्म प्रबंधन कह रहा है कि हमने यहां दूसरी जगह से बाघों को लाकर पन्ना के टाइगर रिजर्व में बसाने का प्रस्ताव भेजा हुआ है। इससे ज्यादा शर्म की बात और क्या हो सकती है कि अपने बाघ तो बचाए नहीं गए और अब बेशर्मी की हदों को भी पन्ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन पार कर रहा है। अब आप ही बताइए कि बाघ आदमखोर है या उसके रखवाले ही बाघखोर बन गए हैं।
42 comments:
धिक्कार है इन बाघखोरों पर।
इसके विपरीत गुजरात के गिर के जंगलों में बराबर सिंहों की सख्या बढ़ती जा रही है। यहाँ कई बार सड़क चलते हुए सिंह को आराम से सड़क पार करते हुए देखा जा सकता है।
घुघूती बासूती
संख्या बढा कर दर्शाने के पीछे मात्र एक ही कारण रहा होगा. राशिः करोडों में मिल रही थी. सब स्वाहा. धिक्कार है ऐसे अमले पर.
फिर कहते है की बाघ आदमखोर है.....
बाघ अब अधिक दिन बचा रह पाएगा, ऐसा नहीं लगता है। दुखद स्थिति है।
सही है जी कि साजन बिना सुहागन है जो जंगलो में अपने साजन की प्रतीक्षा कर रही है .अभी हाल में एक समाचार में पढ़ा है कि पन्ना के जंगलो में बाघ नहीं रह गए है जाँच एक केन्द्रीय टीम द्वारा की गई है लोगो ने धन के साथ बाघों को भी गायब कर दिया है . आगे और खुलासा होने की उम्मीद जतायी जा रही है .
हां परसों ही यह खबर पढी थी. वाकई मुझे तो बहुत शर्म आ रही है. क्या कहूं? इस बाघखोर आदमी के लिये?
और इतने बाघों के नाम पर हर साल जो माल मिलता र्हा था, उसका हिसाब जरा इनसे पूछिये? किस किस बाघखोर ने खाया वो पैसा?
बहुत धन्यवाद इस बात को सभी के संज्ञान मे लाने के लिये.
रामराम.
देखो भाई, बाघ तो बचे नही! और पैसे हो गए सब खत्म, समागम के लिये दूसरी जगह से बाघ मंगाने में हमें शर्म बिल्कुल आती नहीं और ना ही हम किसी से डरते है। और ये जांच-वांच की धौंस किसी और को देना, बहुत देखी है ऐसी जांचे। हम पहले से ही चाकचैबंद है, कुछ हडडीयां हमने अभी भी बचा रखी है, खिला देगे। होने दो जांच। हां तुम्हे बताये देते है, कि अब बाघ तो हमने खा लिये है। अब जो बचा है, हिरन, नीलगाय, बारहासिंघा, मोर, इत्यादी। अब ये भी ना बचेगा। फिर तुम इस पर चिल्लाना। आखिर मैं बताये देते है कि वन्य प्राणियों का संरक्षण हम कर तो रहे है। अपने लिये!
ये हालत पन्ना की नहीं बल्कि देश के दूसरे टाइगर रिजर्व की भी निकलेगी अगर निष्पक्ष जांच हो। उत्तरांचल से बाघ और तेंदुए मारकर उनकी खालों का व्यापार करने वाले हर दूसरे महीने पकड़े जाते हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि शिकार कितने बड़े पैमाने पर किया जा रहा है और ये शिकार बिना मिलीभगत के संभव नहीं।
आपकी चिंता वाजिब है. लगे रहिये.
दुखद. घुघूतीजी की टिपण्णी आशा की किरण है !
भृष्ट और निरंकुश नौकरशाही पर कड़ी लगाम लगाकर ही कुछ किया जा सकता है।
aaj kal to rakhwaale hi baghkhor ban gaye hai .....
aap mere blog par aaye ''bachpan ''ko padha ..saraaha bhi ..koti koti dhanyawaad....
इससे ज्यादा शर्म की बात और क्या हो सकती है कि अपने बाघ तो बचाए नहीं गए और अब बेशर्मी की हदों को भी पन्ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन पार कर रहा है।
धिक्कार है......!!
पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ कि आपको मेरी शायरी पसंद आई!
मुझे आपका ब्लॉग बहुत ही अच्छा लगा!बहुत सुंदर लिखा है आपने !
मेरे इन ब्लोगों पर आपका स्वागत है-
http://khanamasala.blogspot.com
http://urmi-z-unique.blogspot.com
ab ye duniya sheron layak nahi rahi. jo bache hain vo bhi bus mukhote bhar hain
अब तो इन्हें ही पकड़कर डाल दीजिये किसी चिड़ियाघर के बाघ के पिंजरे में... अंतिम समय में बाघ अपने संरक्षकों को और ये लोग बाघ को देख तो लेंगे...
... अपने देश में सभी सरकारी योजनाओं का यही हाल है और कर्ता-धर्ता सभी मालामाल हैं।
Rashi ke ghotale ki jaanch to hogi, magar kya vo paise vapas lautenge. Sath hi Vanon aur Baghon ka jo nuksaan hua uski bharpai kabhi ho payegi!
बाघ संरक्षण के उपाय कारगार साबित नहीं हो पा रहे हैं ऐसा लगता है.
कुछ और कदम उठाने चाहियें.
वर्तमान में बाघों की यह बेहद दुखद स्थिति है.
कहने को तो बिलकुल सही बात कही आपने...यह बहुत साधारण ज्ञान की बात है कि आज बाघ लुप्तप्राय हो गए हैं...लेकिन, मसला यह है कि क्या कुछ हो रहा है..इन्हें बचाने के लिए... बात यहीं ख़त्म भी हो जाती...लेकिन सरकार तो पैसा बहाए ही जा रही है..फिर क्या पंगा...आखिर में घूम फिरकर फिर वही कि...जिस देश के नौकरशाहों और नेताओं कि रगों में खून कि जगह भ्रष्टाचार दौड़ता है वहां के जंगलों में बाघ नहीं शापिंग माल्स मिलेंगे..
आलोक सिंह "साहिल"
बाघ नही तो पैसे हज़म..
Adarneeya Hari ji,
Sadar namaste
Baghon ke sath hone vale is anyay par rok lagnee chahiye.apkee tippanee se mera utsah badha..shubhkamnayen.
Poonam
kya karen abhi tak to ye baghkhor he the ab to adamkhor bhi ho gaye hain inse baghon ki suraksha mangana bekaar hai dhanyavaad
हरि जी ,
आपकी चिंता जायज है ..जब रक्षक ही भक्षक की भूमिका निभाने लगे तो इन जीवों का गुजारा कैसे संभव होगा ...अच्छी पोस्ट .
हेमंत कुमार
gyanvardhak lekh sir
chinta vajib hai aapne achche visay to is post ke madhyam se utaya hai .post ke liye aapko aabhaar
insaano ki tulana jaanvaron se karke kripya jaanvaron ko sharminda na kare.vaise baaghkhor satik shabda hai
आदमी तो हमेशा से ही बाघखोर रहा है....
अब आप ही बताइए कि बाघ आदमखोर है या उसके रखवाले ही बाघखोर बन गए हैं।
Sach hai.
इस बात को संज्ञान मे लाने के लिये आपको धन्यवाद...
सही बात, इन्हें हमने ही आदमखोर बनाया है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
समझ में नहीं आता... ये साला कॉलेज कहाँ है... जो इतने भांति-भांति के चोरों को पैदा करता है...
धन्य है मेरा देश.. यहाँ सब मिल जायेंगे... चारा चोर...ताबूत चोर... चीनी चोर... यूरिया चोर... बिजली चोर...पानी चोर...तेल चोर... और अब बाघ चोर भी....
क्या बात है... भविष्य उज्जवल है...!!!
बहुत धारदार व्यंग वाह
बहुत ही खुब लिखा है आपने......आभार....मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ जिस पर हर गुरुवार को रचना प्रकाशित नई रचना है "प्रभु तुमको तो आकर" साथ ही मेरी कविता हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" at www.hindisahityamanch.com पर प्रकाशित..........आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे..धन्यवाद
dukhad sthiti hai!
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