Thursday, November 25, 2010

पेड़, पर्यावरण और काग़ज़

कटते जा रहे हैं
पेङ
पीढी दर पीढी

बढता जा रहा है
धुंआ
सीढी दर सीढी

अपने अस्तित्व की
रक्षा के लिये ,
चिन्तित है -
कागजी समुदाय

हावी होता जा रहा है
कम्पयुटर,
दिन ब दिन ,
फिर भी
समाप्त नहीं हुआ -
महत्व,
कागज का अब तक

बावजूद
इन्टरनेट के ,
कागज
आज भी प्रासंगिक है -
नानी की चिठ्ठियों में ,
दद्दू की वसीयत में

कागज ही
होता है इस्तेमाल ,
हर मोङ पर
जिन्दगी के

परन्तु
थकने भी लगा है
कागज
बिना वजह
छपते छपते

कागज के अस्तितव के लिये
जितने जरूरी हैं
पेङ,
पर्यावरण,
आदि आदि ,
उतना ही जरूरी है -
उनका सदुपयोग -
सकारण
अकारण नहीं


नवीन सी चतुर्वेदी

2 comments:

अर्चना said...

पर्यावरण के प्रति आपकी सजगता को नमन

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

कविता के सराहना के लिए आभार अर्चना जी|

तकनीकी सहयोग- शैलेश भारतवासी

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