'जय हो' के अलावा आज देश को कुछ नहीं सूझ रहा। ये गलत भी हो सकता है लेकिन मुझे अखबार और खबरिया चैनल देखकर यही लग रहा है। इन्हीं खबरों के बीच में एक अखबार के एक कोने में छपी खबर पढ़कर मैं सोचने लगता हूं। खबर है-- उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल में बाघ तीन महीने के भीतर बीस बाघों को अपना निवाला बना चुके हैं। अगर संख्या पर जाएं तो उत्तर प्रदेश में बारह और उत्तरांचल में आठ लोग बाघ का शिकार हुए हैं। दोनों राज्यों के बारह से ज्यादा जिले आदमखोर बाघों के खौफ से रात को आबादी वाले इलाकों में पहरा दे रहे हैं। वन विभागों का अमला बाघों को पकड़ने या मारने के लिए कोशिशें कर रहा है। खबर ये भी है कि वन विभाग के शिकारियों ने एक बाघ को मारकर अपनी वीरता का परिचय भी दे दिया है। वैसे आप चाहें तो इसे पूरी आदम जाति की वीरता भी मान सकते हैं।
आपको मैं सच-सच बता दूं कि मैं बाघ से बहुत प्रेम करता हूं। जंगल में घूमते हुए बाघ और उसकी शान-शौकत मुझे बहुत भाती है। मैं अपने को उन सौभाग्यशाली लोगों में से एक मानता हूं जिन्होंने जंगल में बाघ को अपने इर्द-गिर्द घूमते देखा है। ये मेरा सौभाग्य है कि मैं जब भी जंगल/अभ्यारण्य में गया; मुझे बिल्ली परिवार के दर्शन जरूर हुए। स्वर्गीय राजीव गांधी एक बार कॉरवेट नेशनल पार्क अपनी छ़ट्टियां बिताने गए तो मुझे कवरेज पर भेजा गया। आखिर प्रधानमंत्री अपनी घोषित छुट्टियां बिताने जा रहे थे। तीन दिन राजीव गांधी कॉरवेट रहे, जंगल घूमें, उन्हें बाघ दिखाने के लिए स्थानीय प्रशासन ने काफी कोशिशें की; जंगल में एक जगह पाड़ा बांधा गया ताकि बाघ उसे खाने आए और स्वर्गीय राजीव गांधी को बाघ के दर्शन हो जाएं लेकिन बाघ नहीं आया बल्कि दहशत से पाड़ा जरूर परलोक सिधार गया। स्वर्गीय राजीव गांधी का परिवार भले ही बाघ न देख पाया हो लेकिन जंगल का राजा मुझसे हैलो कहने जरूर आया। बाघ जब मुझे मिला तो वह मेरे वाहन के आगे करीब आधा किमी दौड़ता रहा और फिर नीचे खाई में उतरकर ओझल हो गया। मैं कभी भी जंगल से खाली नहीं लौटा। बाघ और तेंदुए मेरे सामने कई बार आए और मेरी घिग्गी बंध गई। कई बार तो ऐसा हुआ कि जब बाघ मेरे सामने से ओझल हुआ तब मुझे ख्याल आया कि मैं अपने गले में लटके कैमरे का उपयोग तो कर ही नहीं सका।
जंगल में रहने वाले या जंगल से प्रेम करने वाले लोग जानते हैं कि जितना आदमी बाघ से डरता है उतना ही बाघ भी। आदमी की मौजूदगी का आभास होते ही जंगल का राजा रास्ता बदल देता है। बाघ तब तक आदमी पर हमला नहीं करता जब तक उसे अपने अस्तित्व को खतरा न लगे। चालाक जीव है; इसलिए आदमी के सामने आने पर पीछे या दाएं-बांए हो जाता है। बाघ अपने शिकार को भी आमतौर पर सामने से आकर नहीं दबोचता। पहले शक्ल दिखाकर डराता है और फिर पीछे से घूम कर आता है और दबोच लेता है क्योंकि हिरन प्रजाति के तेज धावकों को अपने शिकंजे में लेना आसान नहीं होता। ऐसे में सवाल उठता है कि बाघ आदमी पर हमला क्यों करता रहा है। या क्यों उसे अपना शिकार बना रहा है? बाघ तभी आदमखोर होता है जब उसकी क्षमताएं खत्म हो जाएं। चोटिल हो। दौड़ कर अपना शिकार न दबोच पाए। अक्षम हो जाए। ऐसी स्थितियां बहुत कम पैदा होती हैं। इसके अलावा ऐसी स्थितियां तब पैदा होती हैं जब आदमी उस पर हमला कर दे। या उसके आवासीय परिक्षेत्र में अतिक्रमण करे। जंगल का अंधाधुंध दोहन हो। जंगल सिमटेगें तो वहां रहने वाले जीव क्या करेंगे। सच तो ये है कि आबादी बाघों के पास जा रही है न कि वन्य जीव आबादी की तरफ रुख कर रहे हैं।
नरभक्षी बाघों के आदमखोर हो जाने की इक्का-दुक्का घटनाएं तो सामने आती रहीं हैं लेकिन अब तक सबसे बड़े पैमाने पर बाघ के आदमखोर होने की घटनाएं हमारे देश में करीब ढाई दशक पहले हुईं थीं। उननीस सौ अस्सी से पिचयासी के बीच में आदमखोर बाघों ने बयालीस लोगों की जान ली थी और करीब सात आदमखोर बाघ मार गिराए गए थे। इतने बड़ी संख्या में बाघ के आदमखोर हो जाने पर नेशनल बोर्ड फार वाइल्ड लाइफ ने अपने अध्ययन में पाया था कि नेपाल में बड़ी संख्या में वनों की कटाई से तराई क्षेत्र में नेपाल से बेदखल बाघ आ गए थे और इन्हीं अपने घर से उजड़े बाघों में से कुछ ने कहर बरपाया था।
क्या आज भी वैसी ही परिस्थितियां तो नहीं बन रहीं। आज आबादी बढ़ रही है। वनों का दोहन तेज है। वन्य जीवों के तस्कर बेखौफ हैं। ऐसे में सोचिए कि बाघ क्या करे? एक बात तय है कि अगर इंसान और बाघ की दुश्मनी होगी तो नुकसान अंतत: बाघ का ही होगा। आज दुनिया भर में करीब तीन हजार से पैंतीस सौ बाघ बचे हैं जबकि अस्सी के दशक में करीब आठ हजार बाघ थे। दुनियां के कई हिस्सों से बाघ गायब हो चुके हैं या लुप्त होने के कगार पर हैं। हमारे देश में ही एक शताब्दी पहले चालीस हजार से अधिक बाघ थे लेकिन अब इनकी संख्या डेढ़ हजार से भी कम आंकी गई है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले पांच सालों में ही चार सौ से अधिक बाघ लापता हो चुके हैं। इसके बाबजूद दुनिया में बाघों की आबादी के चालीस प्रतिशत अभी भी हमारे देश में हैं। ऐसा न हो कि हमारी आने वाली पीढ़ी बाघ को सिर्फ तस्वीरों में ही देख सके।
आपको मैं सच-सच बता दूं कि मैं बाघ से बहुत प्रेम करता हूं। जंगल में घूमते हुए बाघ और उसकी शान-शौकत मुझे बहुत भाती है। मैं अपने को उन सौभाग्यशाली लोगों में से एक मानता हूं जिन्होंने जंगल में बाघ को अपने इर्द-गिर्द घूमते देखा है। ये मेरा सौभाग्य है कि मैं जब भी जंगल/अभ्यारण्य में गया; मुझे बिल्ली परिवार के दर्शन जरूर हुए। स्वर्गीय राजीव गांधी एक बार कॉरवेट नेशनल पार्क अपनी छ़ट्टियां बिताने गए तो मुझे कवरेज पर भेजा गया। आखिर प्रधानमंत्री अपनी घोषित छुट्टियां बिताने जा रहे थे। तीन दिन राजीव गांधी कॉरवेट रहे, जंगल घूमें, उन्हें बाघ दिखाने के लिए स्थानीय प्रशासन ने काफी कोशिशें की; जंगल में एक जगह पाड़ा बांधा गया ताकि बाघ उसे खाने आए और स्वर्गीय राजीव गांधी को बाघ के दर्शन हो जाएं लेकिन बाघ नहीं आया बल्कि दहशत से पाड़ा जरूर परलोक सिधार गया। स्वर्गीय राजीव गांधी का परिवार भले ही बाघ न देख पाया हो लेकिन जंगल का राजा मुझसे हैलो कहने जरूर आया। बाघ जब मुझे मिला तो वह मेरे वाहन के आगे करीब आधा किमी दौड़ता रहा और फिर नीचे खाई में उतरकर ओझल हो गया। मैं कभी भी जंगल से खाली नहीं लौटा। बाघ और तेंदुए मेरे सामने कई बार आए और मेरी घिग्गी बंध गई। कई बार तो ऐसा हुआ कि जब बाघ मेरे सामने से ओझल हुआ तब मुझे ख्याल आया कि मैं अपने गले में लटके कैमरे का उपयोग तो कर ही नहीं सका।
जंगल में रहने वाले या जंगल से प्रेम करने वाले लोग जानते हैं कि जितना आदमी बाघ से डरता है उतना ही बाघ भी। आदमी की मौजूदगी का आभास होते ही जंगल का राजा रास्ता बदल देता है। बाघ तब तक आदमी पर हमला नहीं करता जब तक उसे अपने अस्तित्व को खतरा न लगे। चालाक जीव है; इसलिए आदमी के सामने आने पर पीछे या दाएं-बांए हो जाता है। बाघ अपने शिकार को भी आमतौर पर सामने से आकर नहीं दबोचता। पहले शक्ल दिखाकर डराता है और फिर पीछे से घूम कर आता है और दबोच लेता है क्योंकि हिरन प्रजाति के तेज धावकों को अपने शिकंजे में लेना आसान नहीं होता। ऐसे में सवाल उठता है कि बाघ आदमी पर हमला क्यों करता रहा है। या क्यों उसे अपना शिकार बना रहा है? बाघ तभी आदमखोर होता है जब उसकी क्षमताएं खत्म हो जाएं। चोटिल हो। दौड़ कर अपना शिकार न दबोच पाए। अक्षम हो जाए। ऐसी स्थितियां बहुत कम पैदा होती हैं। इसके अलावा ऐसी स्थितियां तब पैदा होती हैं जब आदमी उस पर हमला कर दे। या उसके आवासीय परिक्षेत्र में अतिक्रमण करे। जंगल का अंधाधुंध दोहन हो। जंगल सिमटेगें तो वहां रहने वाले जीव क्या करेंगे। सच तो ये है कि आबादी बाघों के पास जा रही है न कि वन्य जीव आबादी की तरफ रुख कर रहे हैं।
नरभक्षी बाघों के आदमखोर हो जाने की इक्का-दुक्का घटनाएं तो सामने आती रहीं हैं लेकिन अब तक सबसे बड़े पैमाने पर बाघ के आदमखोर होने की घटनाएं हमारे देश में करीब ढाई दशक पहले हुईं थीं। उननीस सौ अस्सी से पिचयासी के बीच में आदमखोर बाघों ने बयालीस लोगों की जान ली थी और करीब सात आदमखोर बाघ मार गिराए गए थे। इतने बड़ी संख्या में बाघ के आदमखोर हो जाने पर नेशनल बोर्ड फार वाइल्ड लाइफ ने अपने अध्ययन में पाया था कि नेपाल में बड़ी संख्या में वनों की कटाई से तराई क्षेत्र में नेपाल से बेदखल बाघ आ गए थे और इन्हीं अपने घर से उजड़े बाघों में से कुछ ने कहर बरपाया था।
क्या आज भी वैसी ही परिस्थितियां तो नहीं बन रहीं। आज आबादी बढ़ रही है। वनों का दोहन तेज है। वन्य जीवों के तस्कर बेखौफ हैं। ऐसे में सोचिए कि बाघ क्या करे? एक बात तय है कि अगर इंसान और बाघ की दुश्मनी होगी तो नुकसान अंतत: बाघ का ही होगा। आज दुनिया भर में करीब तीन हजार से पैंतीस सौ बाघ बचे हैं जबकि अस्सी के दशक में करीब आठ हजार बाघ थे। दुनियां के कई हिस्सों से बाघ गायब हो चुके हैं या लुप्त होने के कगार पर हैं। हमारे देश में ही एक शताब्दी पहले चालीस हजार से अधिक बाघ थे लेकिन अब इनकी संख्या डेढ़ हजार से भी कम आंकी गई है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले पांच सालों में ही चार सौ से अधिक बाघ लापता हो चुके हैं। इसके बाबजूद दुनिया में बाघों की आबादी के चालीस प्रतिशत अभी भी हमारे देश में हैं। ऐसा न हो कि हमारी आने वाली पीढ़ी बाघ को सिर्फ तस्वीरों में ही देख सके।
24 comments:
बाघ को क्या आदमी की कीमत पर संरक्षण दिया जाना चाहिए। शायद आपका जबाव भी न हो।
मुझे बिल्कुल नही लगा कि मैंने कोई पोस्ट पढ़ी लगा, नेशनल ज्योग्राफिक पर कोई वन्य डाक्यूमेंट्री देख रहा हूं। इतनी अच्छी तरह से बाघ भी अपना पक्ष नहीं रख सकता था। लेकिन पोस्ट में समस्या और उसका कारण तो नजर आया परन्तू साल्यूशन कही नही दिखता। आपका वन्य और बाघो के प्रति प्रेम देखकर अच्छा लगा।
बहुत सुन्दर आलेख. वन्य प्राणियों को यथोचित संरक्षण मिलना ही चाहिये. एक उम्दा पोस्ट.
संजीवजी की बात से
सहमत नहीं हुआ जा सकता।
बाघ ऐसा क्यों करता है?
इससे संबंधित एक कविता
रचनाकार पर प्रकाशित हुई है।
आप भी पढ़कर देखिए --
http://rachanakar.blogspot.com/2009/02/blog-post_2460.html
लाजवाब आलेख.बाघ के आदमखोर हो जाने पर पुराने समय में मार गिराना आम बात हुआ करती थी क्योंकि उनकी संख्या भी उतनी थी. हमने बस्तर के जंगलों में चीते देखे हैं. काले भी. लेकिन अब डिस्कवरी या फ़िर नेशनल जाग्रफिक चैनल देखना पड़ता है. अतः हमें भी भविष्य दिखाई दे रहा है. आदमखोर बाघ को tranquilizer gun का प्रयोग कर पकड़ने की कोशिश होनी ही चाहिए.
बहुत सुंदर लगा आप का यह लेख पढ कर, ओर रोमांच भी हुआ, अगर मुझे मिल जाये कही यह बाघ तो ..... मेरा क्या होगा? पता नही, लेकिन दोनो मे से एक तो जरुर बचेगा.
जब बाघ आदम ळ्खोर हो जाये तो उसे किसी तरह से पकडना चाहिये ओर फ़िर उसे किसी चिडिया घर मै केद कर के रखे, मारने से अच्छा यह तारीखा सही लगा.
धन्यवाद
बहुत सुंदर आलेख....आपकी चिंता जायज है...सरकार को भी ध्यान देना चाहिए...महा शिव रात्रि की बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं..
बाग़ की बात को बहुत अच्छे से आपने लिख दिया .मै इरशाद भाई की बात से सहमत hun
बहुत सुंदर लगा आप का यह लेख पढ कर, ओर रोमांच भी हुआ,.... आपकी चिंता अपनी जगह ठीक है...सरकार को भी ध्यान देना चाहिए
बाघ को तो वही खा गए जिनपर उनके संरक्षण की जिम्मेदारी थी। शिकार भी उनकी जानकारी में होता है और दोष आता है उन गरीब लोगों को जो जंगल या उनके आसपास रहते हैं।
आप किसी से उसके रहने की आज़ाद घूमने-फिरने की जगह छीन लें या बहुत सीमित कर दें; उसके भोजन के स्रोत भी लगभग खत्म कर दें तो कौन प्राणी ऐसा है जो आदमखोर नहीं हो जाएगा? और जब वो आदमखोर हो उठता है तो आप के भीतर यह इंसानियत जागती है कि इसे मारना गलत है, कैद करके चिड़ियाघर में डाल देना चाहिए। क्यों? ताकि आपके वंशज उसे देखने का सुख भोग सकें? जुल्म करना और फिर अहसान-तले दबा डालना--इंसान की इस तुच्छ वास्तविकता/मानसिकता को जान और समझ लेना ही नहीं मान भी लेना चाहिए।
समस्या विचारणीय है ,पर दुःख है की पशुओ के प्रति इन्सान की सवेदनाये उस स्तर पर नहीं है जिस तरह की होनी चाहिए ,यहाँ तक की हमारे वन विभाग वाले न उनके पास संसाधन है ओर जो है उनके प्रति उनकी उदासीनता भी बहुत है..अगर्वाल जी कुछ प्रशन वाजिब उठाये है
भाई हरी जी,
बाघ का आतंक तो काफी दिनों से चल रहा है .
लेकिन अभी तक वन विभाग के लोग उसे नहीं पकड़ सके .सवाल ये है की जंगलों को हम जिस तरह से काटते जा रहे हैं ,अगर यही
गति रही तो किसी दिन सुबह उठने पर जंगल के जीव जंतु हमें अपने घरों के बहार ही मिलेंगे .
संध्या गुप्ता ने एक कविता इसी चिंता और सोच को व्यक्त करते हुए लिखी है .मौका लगे तो पढियेगा .
अपने लेख में जो चिंता व्यक्त की है उस पर हम सभी को सोचना होगा .
हेमंत
जोशीजी
बाघ के विषय में आपकी चिंता पढ़ी.आपकी चिंता वाजिब है.
पशुओं के प्रति आपका प्रेम सराहनीय है,लेकिन मेरा सवाल
है क्या बाघों को आदमिओं को उदरस्थ करने के लिए यूँ
आजाद घूमने देना उचित है?अभ्यारण्य बनाने के नाम पर
कितने वनवासी हिंसक पशुओं के आहार प्रतिवर्ष बन रहें हैं ,
इसे नहीं भुलाया जा सकता .सुन्दर वन की हकीकत किसी से
छुपी नहीं है .यह मेरी निजी राय है......निर्मल
... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति है, न सिर्फ बाघ वरन समस्त वन्यप्राणी हमारे लिये अनमोल है।
बहुत सुन्दर आलेख.....! आपका वन्य और बाघो के प्रति प्रेम देखकर अच्छा लगा......!!
pandit ji
baghon wali baat to akhbaron par bhi lagu hoti hai na.
सही कहा आपने, पहले हम घर उजाडकर उन्हें आदमखोर बनने पर मजबूर करते हैं, फिर आदमखोर कहकर शोर मचाते हैं।
टिप्पणीकारो का बाघों के संरक्षण देनेवालो पर दोष मढ़ना वेमानी है। आत्म निरीक्षण किजिए, पता चलेगा विकशित मस्तिष्क के मानव समुदाय ने बाघों के लिए क्या किया?
bahut acha lekh ha..meri to kai bar mulakat hui ha baghon se mujhe yaha ke jangal men ghumna bahut pasnd ha or janvaron se bahut payar bhi...
गुरु जी.. मै भी बाघ प्रेम से पीड़ित हूँ लेकिन फिर भी जो हो रहा है उसके लिए में इंसान को जिम्मेदार नहीं मानता. परिवर्तन ही प्रकर्ति का नियम है और ये खूबी इंसान में है जिसने खुद को हर खांचे में आज ढाल लिया है. कभी स्रष्टि का विधाता भगवान को माना जाता था लेकिन आज वैज्ञानिक युग में इंसान पूरी प्रकर्ति पर हावी है. जो भी इंसान के लिए खतरा साबित हो रहा है उसे ख़त्म किया जा रहा है हालाँकि ये सही नहीं है.. इसकी वजह ये है की इंसानी ख्वाहिश आज प्राकर्तिक संतुलन के लिए खतरा बनती जा रही हैं ऐसे में व्यापक स्तर पर इसके बारे में विचार मंथन करने की जरुरत है.
Aadamkhor ko maar dena accha hai use sanrakshan dene ki apeksha
Aadamkhor ko maar dena accha hai use sanrakshan dene ki apeksha
आपने बहुत ही प्रासंगिक विषय पर कलम चलाई है।
बाघ मनुष्य की बस्तियों में नहीं आ रहे हैं, बल्कि मनुष्य उनके जंगलों में घुसपैठ कर रहा है, आपके इस विचार से मैं बिलकुल सहमत हूं।
मैं उन गिने-चुने सौभाग्यवान लोगों में अपने आपको गिन सकता हूं, जिन्होंने बाघ को वन्य अवस्था में करीब से देखा है। यह सचमुच एक रोमांचक, अविस्मरणीय और भव्य अनुभव है। मैंने बांधवगढ़ और कान्हा में बाघों के दर्शन किए हैं।
बाघों की समस्या सचमुच जटिल है। हमारे सभी जंगलों में घनी मानव बस्तियां है। अभयार्णयों में पर्यटना का बहुत अधिक दबाव है। जंगल समिटते जा रहे हैं। बाघों को बचाना मुश्किल होता जा रहा है।
वन विभाग की अब तक की नीति बाघ और मनुष्य को अलग-अलग रखने की रही है, जो अब विफल होती नजर आ रही है।
नई रणनीति क्या हो, यह किसी को समझ में नहीं आ रहा।
लेख में एक बात की कमी लगी। आपने अपनी ओर से कोई समाधान नहीं सुझाया है, यद्यपि समाधान आसान है भी नहीं।
यदि समाधान के तौर पर अपने विचार भी दिया होता, तो यह लेख अधिक पूर्ण और प्रभावशाली बन गया होता।
बालसुब्रमण्यम जी,
समाधान क्या हो इस पर गंभीर विचार मंथन की जरुरत है। आपने सच कहा कि समाधान होता तो पोस्ट सार्थक होती लेकिन जब समस्या सामने होती है तो आदमी समाधान भी खोज ही लेता है। बाघ को मारना भी तो आदमी ने खोजा ही; यदि वह चाहे तो बचाने का तरीका भी खोजा जा सकता है लेकिन सबसे बड़ी बाधा सरकारी लड्डू हैं।
वैसे इसका एक छोटा सा समाधान इर्द-गिर्द की पोस्ट 'घास बचेगी तो हम भी बचेंगे, बाघ भी बचेगा' में है। कृपया इस पोस्ट पर भी अपनी नजरें इनायत कीजिए।
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