Sunday, January 30, 2011

कोई लेखक किसी भी क़ौम का चेहरा नहीं होता

हमें इक दूसरे से गर गिला शिकवा नहीं होता|
तो फिर गैरों ने हम को इस तरह बाँटा नहीं होता|१|

नयों को हौसला भी दो, फकत ग़लती ही ना ढूँढो|
बड़े शाइर का भी हर इक शिअर आला नहीं होता|२|

हज़ारों साल पहले सीसीटीवी आ गई होती|
युधिष्ठिर जो शकुनि के सँग जुआ खेला नहीं होता|३|

अदब से पेश आना चाहिए साहित्य में सबको|
कोई लेखक किसी भी क़ौम का चेहरा नहीं होता|४|

ज़रा समझो कि अब तो कॉरपोरेट भी मानता है ये|
गृहस्थी से जुड़ा इन्सान लापरवा[ह] नहीं होता|५|

नवीन सी चतुर्वेदी

7 comments:

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद

mridula pradhan said...

अदब से पेश आना चाहिए साहित्य में सबको|
कोई लेखक किसी भी क़ौम का चेहरा नहीं होता|४|
bahut pasand aayee.

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

राज भाटिया जी, मृदुला प्रधान जी आप जैसे साहित्य रसिकों का उत्साह वर्धन मेरे लिए संजीवनी समान है| आपका स्नेह बनाए रखिएगा|

अनुभूति said...

बहुत सुन्दर रचना के लिए कोटि कोटि अभिनन्दन......

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

भाई श्री प्रकाश डिमरी जी उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया|

अमरनाथ 'मधुर'امرناتھ'مدھر' said...

"कोई लेखक किसी भी कौम का चेहरा नहीं होता" बहुत अच्छी गजल है |
भाई कुमार अनिल को मुबारकबाद --- अमरनाथ मधुर

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

भाई अमरनाथ माथुर जी मेरी कोशिश आप को अच्छी लगी, बहुत बहुत धन्यवाद

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