Sunday, October 5, 2008

कहां तक जाएंगे हम

ये कविता मैने करीब बीस साल पहले तब लिखी थी जब मेरठ दंगों की आग में झुलस रहा था। तब से अब तक मैने कई मेरठ झुलसते देखे हैं। गोलियां और मारक हुई हैं और बमों के फटने का सिलसिला थम नहीं रहा है। इस कविता में मैने जो सवाल बीस साल पहले उठाए थे वह आज और भयावह हो गए हैं। उम्‍मीद है आप इस कविता को गुनेंगे और मेरे दुख में शरीक होंगे।


कर्फ्यू, गोलियां बम
कहां तक जाएंगे हम
आंचल में खून मां के
अश्‍कों से आंख है नम
कहां तक पाएंगे गम
कहां तक जाएंगे हम

कर्फ्यू गोलियां बम
कहां तक जाएंगे हम

ये किताबें, ये धर्मस्‍थल
सब हो रहें हैं मक़त़ल
लिखें आदमी की किस्‍मत
कानून और राइफल
सबकी निगाह में दौलत
और बारूद पे कदम

कर्फ्यू गोलियां बम
कहां तक जाएंगे हम

खेतों और खलिहानों में
सुरक्षा नहीं मकानों में
देश कहां है, पता नहीं
सब कुछ बंद बयानों में
रोजी रोटी सुख और गम
राजा रानी आप और हम

कर्फ्यू गोलियां बम
कहां तक जाएंगे हम

41 comments:

sanjeev said...

पूरी संवेदनशीलता के साथ लिखी गई सशक्‍त कविता। बधाई।

Anonymous said...

जगाने वाली कविता है|
आपकी कविता पढ़ कर
मेरे मन में विचार आया कि ---;
देश कहाँ है पता नहीं ,
सब कुछ बंद बयानों में.
बाँट लिया है बिना मिले ही ,
अब कुछ मंद सयानों नें .

सूर्यकांत द्विवेदी said...

ऋचा जी की कविता लगती है. लगती क्या वाकई है। हरिजोशी जी के साथ जुड़कर लेखिका का नाम गायब हो गया है। यह ठीक नहीं है ऋचा जी। इस कविता के तो हम शुरूआत से ही कायल हैं। लिखते रहिए।
इस दौर के इंसान की तरक्की देखिए
तेरी दीवार से ऊंची मेरी दीवार बने।

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही मार्मिक ओर संवेदनाशील कविता, एक सच को दर्शाती हुयी.
धन्यवाद

सचिन मिश्रा said...

sach se rubaru karne ke liye aabar.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत ही मार्मिक ओर संवेदनाशील कविता है।

रंजन राजन said...

देश कहां है, पता नहीं
सब कुछ बंद बयानों में
...देशकाल के हालात पर बढ़िया शब्द जाल बुना है....जगाने वाली कविता है|
नवरात्रि की कोटि-कोटि शुभकामनाएं। मां दुर्गा आपकी तमाम मनोकामनाएं पूरी करें। यूं ही लिखते रहें और दूसरों को भी अपनी प्रतिक्रियाओं से प्रोत्साहित करते रहें, सदियों तक...

राज भाटिय़ा said...

सुर्या कांत जी क्या आप ऋचा जी (ऋचा जोशी) के बारे मे जानते है??? :) ओर हरि जोशी को नही,
जरा इन का परिचय ध्यान से पढे, एक बात ऋचा जोशी भी चाहेगी कि हरि जोशी की ही बात हो. धन्यवाद

Udan Tashtari said...

मार्मिक एवं संवेदनशील कविता.

राजेश चौधरी said...

बहुत खूब.

वीनस केसरी said...

जोशी जी आपने कभी ये कविता मेरठ दंगा के लिए लिखी थी मगर आज तो हर शहर का वो ही हाल है
एक अच्छी कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद
गजल की क्लास चल रही है आप भी शिरकत कीजिये www.subeerin.blogspot.com


वीनस केसरी

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

joshiji,
kabhi jikr hi nahi kiya ki aap kavita bhi likhtey hain. badi prakhar abhivyakti hai, silsila banaye rakhiyega.

parul said...

bhuat such likha h. very nice sir

aaku said...

kavita dil se hai.
hame isee main jeena hai
voh baat dusri, kavita kisi ki bhi ho
aapki ya richa ji ki.
bhadaiiiii.

Anonymous said...

Madam i really dont know that you are such a serious poet, but your poem is really admirable. It's twenty year old but still its gold which focus on the problems that are till now.

Unknown said...

बहुत ही अच्छी कविता है सर

ओमकार चौधरी said...

खेतों और खलिहानों में
सुरक्षा नहीं मकानों में
देश कहां है, पता नहीं
सब कुछ बंद बयानों में
रोजी रोटी सुख और गम
राजा रानी आप और हम

कर्फ्यू गोलियां बम
कहां तक जाएंगे हम

बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ हैं. आज भी उतनी ही सटीक. वैसे मै भी सूर्यकान्त से सहमत हूँ. मैंने ये कविता ऋचा से सुनी है. हरि भाई असलियत बता ही दो.

makrand said...

bhaut sunder rachan
aap ki lekheni sashakt e
keep writing
if possible visit my post

makrand-bhagwat.blogspot.com

Hari Joshi said...

भाई ओमकार जी,
सूर्यकांत के साथ-साथ आपको भी गलतफहमी हुई है। ये कविता ऋचा की है। उन्‍होंने ही पोस्‍ट की है। उन्‍हीं का नाम है। आप तो ब्‍लागर हैं इसलिए आपको तो ये गलतफहमी होनी ही नहीं चाहिए। मैं तो कभी कविता लिखता ही नहीं। हां, एक रहस्‍योदघाटन कर ही दूं कि मेरठ आने के बाद यही कविता सुनकर मैं ऋचा के प्रति आकर्षित हुआ था।

भूतनाथ said...

कर्फ्यू गोलियां बम
कहां तक जाएंगे हम

बहुत मार्मिक कविता ! धन्यवाद !

गौतम राजऋषि said...

...पहले तो आपके शब्दों के लिये धन्यवाद..सच कहा आपने,पुराने का मोह नहीं छूटता...आपकी कविता एकदम कचोटने वाली और मार्मिक है
और ब्लौग तो इतना प्यारा लगा कि पुछिये मत

manvinder bhimber said...

ऋचा ,
देर से ब्लॉग पर आने के लिए माफ़ी चाहती हूँ....ब्लॉग के कमेन्ट देख रही थी....लोगों को बिना वजह ही जोशी जी को सफाई देनी पड़ रही है......मुझे पता है कि आप अच्छी कवियत्री हो......यह कविता भले ही पुरानी है लेकिन हालत आज भी वैसे ही हैं......कविता के भाव दिल को छू गए......बधाई

रश्मि प्रभा... said...

खेतों और खलिहानों में
सुरक्षा नहीं मकानों में
देश कहां है, पता नहीं
सब कुछ बंद बयानों में
waakai aaj bhi yahi prashn hai,aur sthiti aur bhi bhayanak ho chuki hai
bahut sajiv aur marm se paripurn prashn.....

नीरज गोस्वामी said...

बेहतरीन रचना..आज के दौर की कड़वी सच्चाई को बयां करती हुई...वाह...वा...
नीरज

योगेन्द्र मौदगिल said...

खूब कहा भाई
कालजयी संवेदनशील रचना

akanksha said...

didi, mai jab agli baar aue to sangrah layak kavitayen alag nikal kar rakhiye. hamari bahan kisi mahadevi se kam hai kya??

Anonymous said...

सुरक्षा नहीं मकानों में
देश कहां है, पता नहीं
सब कुछ बंद बयानों में

Bahut khoob likhi hain ye lines

डॉ .अनुराग said...

५ साल पहले का दर्द अब भी ज्यूँ का त्यु है मगर !

Anonymous said...

sasnsar se goli vkSj bum shayad gh khatm ho. esliye ye kavita hamesha prasangik rahegi. par vartman mai es kaita ki ek uplabdhi ye bhi hai ki esne 23 sal bad joshiji se rahasya udghatan kara diya.
badiya hai!
vandana

बाल भवन जबलपुर said...

pvaah aisaa goyaa gangaa kee sadhee dhaaraa ho
badhaaiyaan

सूर्यकांत द्विवेदी said...

कर्फ्यू गोलियां बम
घर पे ले आए हम
बम-बम की नाद कहां
ब्लाग पे दिखा रहे ग़म।

जोशी जी
सचगोई पर बधाई। आप गोलियां-बम सुनकर आकर्षित हुए, इसके लिए और बधाई। एसे सज्जन और महान आत्माएं आजकल कहां मिलती हैं। कोई क्राइम रिपोर्टर-या फोटोग्राफर ही कर्फ्यू गोलियां बम से आकर्षित हो सकता है। बधाई। जीवेम् शरदः शतम्।
-सूर्यकांत

सलीम अख्तर सिद्दीकी said...

priy joshi ji
aap kavita bhi likhte hain. yeh hamin maloom nahin tha. richa ji achhi kaviytri rahin. hain. mujhe ye maloom hai. bahrhaal. ab richa aur aap alg alg to hain nahin.
saleem

दीपक said...

खेतों और खलिहानों में
सुरक्षा नहीं मकानों में
देश कहां है, पता नहीं
सब कुछ बंद बयानों में
रोजी रोटी सुख और गम

मानवीय संवेदना को छुती एक अर्थपुर्ण कविता !!आभार

इरशाद अली said...

सशक्त स्वर, कड़ा तेवर और पुरानी बात लेकिन नये सन्दर्भ आज भी वैसे ही है परन्तु ऐसा न हो कि अगले २० वर्षो बाद भी प्रासंगिग बनी रहें।

Ankur's Arena said...

aap ise aur badhaiye, aur behtar ho jaegi ye kavita.. achchhi lagi...

ताऊ रामपुरिया said...

इतनी सशक्त कविता के लिए आपका आभार !
बहुत शुभकामनाएं !

admin said...

वल्लाह, आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूं, देखकर मन बाग-बाग हो गया।
और जीवन के विभिन्न रंगों से सजी कविता देखकर भी अच्छा लगा। बधाई।

प्रदीप मानोरिया said...

बहुत सुंदर रचना है मेने दू;साहस पूर्वक निम्न पंक्तियाँ जोड़ी हैं क्षमा चाहते हैं
ये कहाँ आ गए हम
बस धमकी और बम
लोकतंत्र की इस नियिती को
आज नाम क्या देंगे हम

roushan said...

दुःख यही है कि बीस साल में कुछ नही बदला
शायद हम सबको सबसे ज्यादा खुशी तब होती जब ये कविता आज अप्रासंगिक हो चुकी होती.

अभिषेक मिश्र said...

kavit chahe kabhi bhi likhi ho aaj bhi satik hai aur yahi aapki safalta. Badhai. Swagat mere blog par bhi.

Arshia Ali said...

आपका ब्लॉग बहुत ही प्यारा है, बधाई स्वीकारें।

पुरालेख

तकनीकी सहयोग- शैलेश भारतवासी

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