Tuesday, October 14, 2008

फिर याद आए मातादीन



ये कोई नई खबर नहीं है। बस! समय, स्‍थान और पात्र बदले हुए हैं। पुलिसिया किस्‍सों में ये आम हैं। परंपरागत हैं। लेकिन फिर भी ये घटनाएं जहां भी हों, परदे में नहीं रहनी चाहिएं। आप अपनी मनपसंद बात न सुनने या पढ़ने पर मीडिया को चाहें जितना भी कोसें लेकिन ये भी सच है कि ऐसे मामले गिनती की दुनिया से परे हैं जिनमें मीडिया की वजह से न्‍याय का दीपक जल पाता है।


इंस्‍पेक्‍टर मातादीन का किस्‍सा तो आपने सुना होगा। अगर नहीं तो हम सुनाए देते हैं। मातादीन को टास्‍क मिला कि उन चूहो को पकड़ कर लाया जाए जिसने सरकारी गोदाम के माल को चट कर दिया। तीन दिन का समय और मुश्किल टास्‍क लेकिन मातादीन ने मुमकिन कर दिखाया। कप्‍तान साहब के सामने मातादीन एक हाथी को लाकर खड़े हो गए और बोले कि हुजूर यही वह चूहा है। कप्‍तान साहब झल्‍लाए तो इंस्‍पेक्‍टर बोले कि हुजूर ये इकबाल-ए-जुर्म कर रहा है। इंस्‍पेक्‍टर ने हाथ के डंडे को हवा में लहराते हुए हाथी से पूछा कि बताओ सरकारी गोदाम के माल को चट करने वाले चूहे हो या नहीं? हाथी जोर-जोर से सूंड और सिर हिलाने लगा। ऐसा ही कुछ हुआ है उत्‍तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में जहां पुलिस की कहानी में मार डाला गया बच्‍चा वापस आ गया और उसके अपहृता और कथित हत्‍यार छह महीने से जेल की हवा खा रहे हैं।

पुलिस की ऐसी कारगुजारियां अक्‍सर देखने-सुनने को मिलती हैं और निरपराध लोग सींखचों के पीछे चले जाते हैं। मुजफ्फरनगर के सुनील, सोनू और रवि पिछले छह महीने से मुजफ्फरनगर की जिला जेल में बंद हैं। मुजफ्फरनगर के भोपा थाना इलाके के रहने वाले इन तीनों लोगों पर छठी क्‍लास में पढ़ने वाले राजन के अपहरण और हत्‍या का इल्‍जाम है। पुलिस ने करीब छह महीने पहले राजन का बस्‍ता और हत्‍या में प्रयोग किया गया चाकू भी गंग नहर के किनारे से बरामद कर लिया और धारा एक सौ इकसठ के तहत अपराधियों के बयान भी दर्ज कर लिए जिसमें तीनों अभियुक्‍तों ने इकबाल-ए-जुर्म कुछ इस तरह से किया-''सोनू और रवि ने अपहृत राजन के हाथ पकड़े और सुनील ने उसकी पेट में चाकू घोंपकर नहर में फेंक दिया।'' इसी इकबाल-ए-जुर्म के बाद कथित अपराधियों की कथित निशानदेही पर आला कत्‍ल यानी हत्‍या में प्रयुक्‍त चाकू भी बरामद कर लिया लेकिन अब राजन वापस आ गया है। यानी जिस बच्‍चे को अपहरण के बाद मार डाला गया और तीन युवक पिछले छह महीने से जेल की हवा खा रहे हैं, जबकि वह बच्‍चा अभी जिंदा है।

आप समझ ही सकते हैं कि राजन के वापस आ जाने के बाद क्‍या हो रहा होगा। राजन के वापस आते ही मुजफ्फरनगर पुलिस सकते में आ गई है तो दूसरी तरफ जेल में बंद राजन की कथित हत्‍या के हत्‍यारोपियों के घरवाले पुलिस की हाय-हाय कर प्रदर्शन कर रहें हैं। उनका आरोप है कि पुलिस ने रंजिश के चलते राजन के पिता से रिश्‍वत खाकर अपहरण और हत्‍या का ड्रामा करवाया और सुनील, सोनू और रवि को कई दिन तक अवैद्य हिरासत में रखकर जमकर मारा-पीटा और फिर कथित इकबाल-ए-जुर्म के आधार पर जेल भेज दिया। पिछले छह महीने से जेल में बंद तीनों युवकों के घर वाले अब इंसाफ मांग रहे हैं लेकिन साथ में वे शंका भी जता रहें हैं कि उन्‍हें न पहले इंसाफ मिला था और न अब उम्‍मीद है।

राजन के जिंदा लौटने पर पुलिसिया कहानी और षडयंत्र का आधा सच तो सामने आ चुका है लेकिन बाकी के सच पर पर्दा डाले रखने और महकमें की तार-तार हो रही लाज को बचाने के लिए पुलिस ने एक बार फिर से लीपापोती शुरू कर दी है। थानेदार साहब कह रहे हैं कि मामला उनसे पहले थानेदार साहब के कार्यकाल का है। और साथ ही साथ अपहृत राजन और उसके पिता को थाने में बुलाकर बिठा लिया है और वे दोनों अपहरण की कहानी को सच बता रहे हैं।

अब एक तरफ राजन और उसके परिजन अपने अपहरण की मॉलीवुड कथा सरीखी अपहरण की कहानी सुना रहे हैं वहीं अभियुक्‍तों के परिजनों का कहना है कि राजन पहले भी कई बार घर से भाग चुका है और गायब हो जाना उसकी फितरत है। सचाई क्‍या है? आधा सच तो सामने है। पुलिस के कागजों में मर चुका राजन वापस आ गया है। कब सामने आएगा बाकी बचा सच।

16 comments:

sanjeev said...

मातादीन को हरिशंकर परसाई जी ने अमर कर दिया लेकिन लगातार मातादीनों की संख्‍या बढ़ी ही है और इस सिस्‍टम में तो मातादीन होकर ही जिया जा सकता है।

SHEHZAD AHMED said...

मातादीन की याद को आपने ताज़ा कर दिया है, लेकिन यह भी सच है की अब मिडिया की जिम्मेदारी और भी ज्यादा बढ़ गई है। पुलिस को तब तक नही सुधाराजा सकता जब तक सिस्टम न सुधरे और जनता अपने अधिकारों के लिए सजग न हो। मीडिया पर ही जनता का द्रोम्दर है। आपने अपने ब्लॉग के मध्यम से सच को सामने लेन की कोशिश की है। प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया भी इस जिम्मेदारी को समझे तो जनता को न्याय दिलाना ज्यादा आसन होगा और निर्दोष सलाखों के पीछे नही जायंगे।

गुफरान सिद्दीकी said...

हरी भाई,
आप हमेशा प्रभावित करते हैं मातादीन के ज़रिये जो सवाल अपने उठाये हैं वो वास्तव में आज के हर भारतीय की कहानी छुपी है और जहाँ तक सच की बात है तो वो तभी बाहर आयेगा जब लोग सच नामक शब्द से परिचित होंगे.आज समाज में लोग हम नहीं मै की परिपाटी पर चल रहे हैं.न्याय के लिए क्या करना है ये लोग खुद ही सोचे. आपके लेख के लिए आपको बधाई.
आपका हमवतन भाई.....गुफरान

Manish Kumar said...

Waah bhai policewalon ka jawab nahin. Wo waqt yaad aata hai jab hum faridabad mein college se paas karne ke baad ESCORTS mein naukari kar rahe the aur wahan ek makaan mein kiraye pe rahte the. Huya yoon ki humare aane ke kuch hi din baad padosi ke ghar chori ho gayi thi.

Bas chutti ke din police aayi aur mere mitra ko utha kar seedhe thane le gayi. Wahan padosi ke maali ko nanga kar peet rahe the.Sipahi ne mitra se kaha sach sach ugal de varna tera bhi yahi haal hoga.

राज भाटिय़ा said...

वाह पुलिस हो तो अपने देश की, क्या बात है, हरि जी अपना तो पुरा देश ही दल दल मे फ़संता जा रहा है, चाहे पुलिस हो, नेता हो या फ़िर आम आदमी.....?

सचिन मिश्रा said...

pulish karti hi hai kuch aise hi karname.

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

up police ki filon mein aisey bahut sey mamley dabey hua hain. aap aisi ghatna ko samney laye. badhai.

Kishor Srivastava said...

Vah janab apke kya kahne. bahut accha laga.

Abhishek Ojha said...

मातादीन को सही सन्दर्भ में याद किया है आपने. पर ये सन्दर्भ धीरे-धीरे बड़ा व्यापक होता जा रहा है.

admin said...

शायद मातादीनों की यदि नियति है।
वैसे इसे पुलिस महात्म्य भी कहा जा सकता है।
बहरहाल रोचक आख्यान के लिए शुक्रिया।

Danish Khan said...

sir bahut acha likha hai

डॉ .अनुराग said...

सच कहूँ हरी जी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की एक अपनी जिम्मेदारी है जिसे उसे समझना बाकी है...अब उसका शैशव काल का दौर निकल चुका है ...ख़बर भर दिखाना ही जरूरी नही है..उसके दूरगामी परिणाम ...उसमे निहित सच्चाई ....समाज पर उसका असर ...उन हालातो का सही जायजा ....यही काम है एक संपादक का....जो लगता है .ब्रेकिंग न्यूज़ के चलते सब भूल रहे है या इग्नोर कर रहे है.....वक़्त अब चेतने का है.....आखिर चौथा खम्भा भी मीडिया ही है ना

प्रदीप मानोरिया said...

एक और मातादीन लाजबाब व्यंग मेरे ब्लॉग पर दस्तक देकर देखें अन्दर कैसे व्यंग और गीत रखे हैं

हिन्दीवाणी said...

आपकी यह रचना आंख खोलने वाली है। इस शानदार पेशकश के लिए आप दोनों को बधाई।

Ankur's Arena said...

matadeen sahab police tabke ki pahchaan ban chuke hain, chhote ilakon mein, jahan media 'prabhavshali' nahi hai, vahan inka sarvatra raaj chalta hai...

kai bekasoor apraadhi ho jaate hain, kai jawaan bebas ho jaate hain,
aur kai bhavishyon ki taasir hi badal jaati hai...

bahut prabhavi likha hai uncle!

hemen said...

hemen bhatt(rajkot)
wah..wah.hariji,maja aai.

पुरालेख

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