Saturday, November 15, 2008

पाँच रुपये की शादी

आजकल डेंगू और शादियों की बहार है। मेरे जैसे तमाम लोग या तो मच्‍छरों के सताए हुए हैं या दावतें उड़ा रहे हैं। इन दिनों या तो डाक्‍टरों के यहां भीड़ है या विवाह मंडपों और फार्म हाउसों में जहां डीजे पर लोग थिरक रहें हैं और तेज आवाज पूरे शरीर में कंपन पैदा कर रही है। गाना बज रहा है- तेनू दूल्‍हा किसने बनाया भूतनी के... हम भी बिस्‍तर से आजाद हो गए हैं और सामाजिक प्राणी कहलाये जाने की लालसा में दावते उड़ा रहे हैं। ऐसी ही एक शादी का जिक्र ब्‍लाग जगत के लिए-




कहते हैं कि आम हिंदुस्‍तानी जीवन में सबसे ज्‍यादा धन या तो मकान बनाने में खर्च करता है या शादी में। शादियां आमतौर पर दो सितारों का मिलन नहीं बल्कि स्‍टेटस सिंबल ज्‍यादा होती हैं। गरीब हो या अमीर, राजा हो या रंक; सभी अपनी हैसियत बनाने और दिखाने में नहीं चूकते। फकीरों की नुमाइंदगी करने वाले आधुनिक महाराजा हों या वजीर या फिर हर काल में राज करने वाले सेठों की शादियां हमेशा चर्चा में रहती हैं। ऐसी ही एक शादी में जाना हुआ तो सोचा कि ब्‍यौरा अपने ब्‍लाग साथियों से भी शेयर कर लिया जाए। ये शादी थी महात्‍मा टिकैत के घर में। जी हां! नंगे पैर घूमकर हुक्‍का गुड़गुड़ाते हुए किसान आंदोलन चलाने वाले उत्‍तर भारत के सबसे दमदार किसान नेता को लोग महात्‍मा टिकैत या बाबा‍ टिकैत के नाम से ही जानते हैं। किसानों के हित में शासन से सीधी टक्‍कर लेने वाले किसान नेता चौधरी महेन्‍द्र सिंह टिकैत के घर उनकी पोती की शादी थी उनके गांव सिसौली में। गन्‍ना बाउल मुजफ्फरनगर के गांव सिसौली में इस शादी को देखकर आंखे चुंधिया रही थी।

अपनी सादगी के लिए मशहूर इस किसान नेता की शादी में पचास हजार से ज्‍यादा मेहमान आए। मेहनतकश किसानों की नुमाइंदगी करने वाले बाबा टिकैत के परिवार में इस शाही शादी का अंदाजा आप मेहमानों की संख्‍या से भी लगा सकते हैं। करीब एक बीघा जमीन में अतिथियों के लिए स्‍वरुचि भोज का आयोजन किया गया था और इस पंडाल में ऐसा कोई शाकाहारी व्‍यंजन अनुपलब्‍ध नहीं था जिसमें आपकी रुचि हो। करीब एक हजार कारीगर एक हफ्ते पहले से मेहमानों के लिए पकवान और मिष्‍ठान तैयार करने में जुटे हुए थे। दूध, जलेबी से लेकर बंगाली मिठाइयों और व्‍यंजनों की महक पूरे पंडाल में बिखरी हुई थी। पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश के तमाम हैसियतदार लोग फास्‍ट फूड से लेकर देसी जायकों का चटखारा ले रहे थे। उत्‍तर से लेकर दक्षिण तक के व्‍यंजन विशाल पंडाल में लगी मेजों पर शाही दावत का हिस्‍सा थे।

दूल्‍हा राजा दिल्‍ली में डाक्‍टर हैं। बारात कारों से आई लेकिन दूल्‍हे राजा के लिए हेलीकॉप्‍टर बुक था। बुरा हो मौसम का जो उड़ान संभव न हो सकी तो दूल्‍हा को भी कार से आना पड़ा। कार तो कार है लेकिन लक्‍जीरियस विदेशी कार हो तो उसकी शान समाज में अलग ही होती है। दूल्‍हा राजा कार से गांव पंहुचे और विवाह स्‍थल तक उन्‍हें ट्रैक्‍टर पर बिठा कर लाया गया। आखिर किसानों के म‍सीहा के यहां शादी थी तो ट्रैक्‍टर प्रेम कैसे छूटता। विदाई के समय हेलीकॉप्‍टर आ गया। गांव में ही हेलीपेड बनबाया गया था। दुल्‍हन का ख्‍वाब था कि उसके सपनों का राजकुमार उसे आसमान में उड़ा कर ले जाए लेकिन तब तक मीडिया वाले बाबा से शादी की फिजूलखर्ची पर कुछ सवाल पूछ चुके थे। मीडिया से भी किसी की खुशी बरदाश्‍त नहीं होती! लिहाजा चौधरी टिकैत ने दूल्‍हे से कह दिया कि लड़की तो सुबह ही विदा होगी। दुल्‍हन तो नहीं उड़ पाई लेकिन दूल्‍हा पक्ष के निकटतम परिजन हेलीकॉप्‍टर से वापस हो गए।

अब हम बताते हैं कि मीडिया ने टिकैत पर क्‍या सवाल दागे। पत्रकारों ने पूछा कि शादी में कितने लोग आए तो टिकैत ने कहा कि मैने तो अभी तक सिर्फ दूल्‍हे को देखा है। जब उनसे पूछा गया कि पचास हजार लोगों के भोज का आयोजन किसके लिए था और कौन लोग शामिल हुए तो बाबा टिकैत मासूमियत से बोले कि सभी घर के लोग हैं। कितना खर्च हुआ? किसान नेता का जबाव था कि पांच रूपये की शादी है। कोई दिखावा नहीं। सादगी के साथ। इसके बाद जब उन्‍हें याद दिलाया कि आपने किसानों की पंचायत कर ये फैंसला लिया था कि शादी में कोई दिखावा नहीं होगा, पंद्रह लोगों से ज्‍यादा की बारात नहीं होगी और सादा भोजन कराया जाएगा, तब ये हेलीकॉप्‍टर और दिखावा क्‍यों हुआ? बड़ी मासूमियत से महात्‍मा जी बोले कि भई कहां आया हेलीकॉप्‍टर, मुझे तो मालूम नहीं....मैं तो यहां से कहीं निकला नहीं....और मेहमानों की आवभगत तो गांव वाले कर रहे हैं।

ये तो एक बानगी है। देश में रोज शादियां होती हैं और कुछ अपवादों को छोड़कर राजा से लेकर रंक तक सभी अपनी हैसियत के मुताबिक या हैसियत से ज्‍यादा खर्च करते हैं। हम भी उन समारोह का हिस्‍सा बनते हैं। क्‍या कभी हमें ये सब अखरता है। यदि अखरता है तो शुरुआत तो खुद से ही करनी होगी। अगर ये शुरूआत चौधरी टिकैत ने की होती तो इसका व्‍यापक असर होता क्‍योंकि वह उत्‍तर भारत में किसानों के सबसे बड़े अलंबरदार हैं।

16 comments:

makrand said...

bahut accha lekh
samayik bhi
regards

ताऊ रामपुरिया said...

जब उनसे पूछा गया कि पचास हजार लोगों के भोज का आयोजन किसके लिए था और कौन लोग शामिल हुए तो बाबा टिकैत मासूमियत से बोले कि सभी घर के लोग हैं। कितना खर्च हुआ? किसान नेता का जबाव था कि पांच रूपये की शादी है। कोई दिखावा नहीं। सादगी के साथ।

बहुत सटीक लिखा आपने ! उपरोक्त कथन ही साबित करता है की नेता आख़िर नेता होता है चाहे किसानो का हो या आम लोगो ! आपको बहुत धन्यवाद !

राज भाटिय़ा said...
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Anonymous said...
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sanjeev said...

ये सही है कि कथनी और करनी में बहुत अंतर होता है लेकिन राज भाटिया जी को शब्‍दों के चयन में शालीनता को दरकिनार नहीं करना चाहिए। सभ्‍यता के साथ भी आप अपनी भावनाएं व्‍यक्‍त कर सकते हैं। ये सही है कि चौधरी टिकैत को एक उदाहरण प्रस्‍तुत करना चाहिए था जो वे नहीं कर सके।

Bahadur Patel said...

achchha hai.

एस. बी. सिंह said...

भाटिया साहब कहते हैं कि शिक़वा जायज़ हो तो भी लाज़िम है सऊर । विरोध और बेहतर भाषा में किया जा सकता है।

Anonymous said...
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ओमकार चौधरी । @omkarchaudhary said...

सही मुद्दा उठाया है आपने. आजकल के नेताओं की दिक्कत यही है. वे कहते कुछ हैं, करते कुछ हैं. हमने और आपने टिकैत को काफी करीब से देखा है. शुरू के और आज के टिकैत में जमीन आसमान का अन्तर है. उनके असर के कम होने की वजह भी यही है. दूसरों को उपदेश देना आसान है, उस पर ख़ुद अमल करना बहुत मुश्किल. खासकर आजकल नेताओं के लिए. गाँधी इसलिए राष्ट्रपिता हैं, क्योंकि वे जो कहते थे, उस पर अमल भी करते थे. टिकैत बाबा को भी शुरू में लोग महात्मा मान बैठे थे. कभी-कभी होता है ऐसा भी. दुःख होता है, इस आन्दोलन के इस पतन को देख कर. जोशी जी अच्छी पोस्ट के लिए बधाई. सही सवाल उठाया आपने.

ओमकार चौधरी । @omkarchaudhary said...

ऋचा जी भूल चूक के लिए माफी. लेख आपका है, मै हरि जोशी भाई को बधाई दे गया. वैसे आप दोनों अलग कहाँ हैं ? घर की बात है. बहुत अच्छे लेख के लिए ऋचा जी आपको बहुत बधाई.

अनुपम अग्रवाल said...

जन जाग्रति पैदा करने के लिए आप को बधाई .
यदि अखरता है तो शुरुआत तो खुद से ही करनी होगी।
बहुत अच्छा संदेश देती हुई aapkee rachnaa

योगेन्द्र मौदगिल said...

ऋचा जी
इन सच्ची बातों का जनता के सामने आना बहुत जरूरी है
आपने आईना दिखाया
आप को नमन

सहज साहित्य said...

यह दिखावे की मार देखने वाले और अनुकरण करने वाले गरीब के लिए जानलेवा साबित होगी । जिनके पास अनाप-शनाप पैसा है,उनके लिए तो यह धन को ठिकाने लगाने की कला है ।
-रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

Aadarsh Rathore said...

देखिए बाबा टिकैत की अच्छाईयां इतनी हैं कि इस घटना को नज़रअंदाज कर दिया जाए तो ही बेहतर है।
उनका किसानों के लिए किए गए कार्य अलग हैं और उनका जीवन अलग। बेहतर है आप शाहरुख खान से जाकर पूछें कि जब देश की एक चौथाई जनता कच्ची छत/बिना छत के रात गुज़ारती है, ऐसे में एक रात के 18 लाख रुपये वाले सुइट में ठहरने का क्या मतलब?

bijnior district said...

बात टिकैत के यहा की शादी की नही है। यह हमारे देश के नेताआे का चरित्र है। उनकी कथनी एव करनी में बहुत फर्क है। टिकैत को दुलहे का हैलिकाप्टर नही दीखता नही भीड नजर आती है। नेता भी तो वही देखते है जिसमे उनकी भलाई हो।अच्छे लेख के लिए साधुवाद

कडुवासच said...

... नेता-अभिनेता पाँच या पाँच करोड क्या फर्क पडता है, क्या सही-क्या गलत क्या फर्क पडता है।

तकनीकी सहयोग- शैलेश भारतवासी

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