आज से इर्द-गिर्द पर हमारे साथ एक और साथी जुड़ रही हैं। हिमा अग्रवाल एक तेजतर्रार पत्रकार हैं और उन जगहों पर जाकर रिपोर्टिंग करती हैं जहां पुरुष भी जाने में कतराते हैं। सामाजिक सरोकारों और आम आदमी से जुड़े मुद्दों की गहरे से पड़ताल करने वाली हिमा अग्रवाल का स्वागत करेंगे तो अच्छा लगेगा। ----हरि जोशी----
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सर्दियां शबाव पर हों तो मेरठ की रेवड़ी-गजक की बहार आ जाती है। जी हां! गुड़ और गुड़ से बने व्यंजन सर्दियों में पूरे देश की पसंद है। लेकिन गुड़ और उससे बनी मिठाइयां खाने से पहले जरा सोच लीजिए क्योंकि हर्बल औषधि माने जाना वाला गुड़ आपके लिए धीमा जहर भी हो सकता है। हम आपको बताएंगे कि क्यों गुड़ हो सकता है धीमा जहर और कैसे परखें फायदेमंद गुड़।
मक्के की रोटी सरसों के साग और गुड़ के साथ खाते समय जो जायका आता है उसका मजा शायद आप भी लेते हों। अगर किसी पार्टी में आजकल मक्खन के साथ सरसों का साग, मक्के की रोटी और गुड़ न हो तो लगता है कि दावत में कुछ खास था ही नहीं। लेकिन गुड़ खाते समय गुड़ की सूरत नहीं सीरत को देखिए। जी हां। गरीबों का मेवा और सेहत के लिए फायदेमंद माने जाने वाला गुड़ आपकी सेहत के लिए नुकसानदायक ही नहीं बल्कि धीमा जहर भी साबित हो सकता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में घुसते ही गन्ने और गुड़ की मिठास भरी खुशबु आपका स्वागत करती है। यहां हर गांव/गली में कोल्हू चलते हैं और भट्टियों पर रस पककर गुड़ बनता है और देश भर में यहां की मंडियों के जरिए देश भर में बिकने के लिए चला जाता है। इसी गुड़ से बनी रेवड़ी और गजक का जायका अब सात समंदर पार भी पंहुच गया है। मेरठ की रेवड़ी और गजक का नाम सुनकर मुंह में जायका घुल जाता है। लेकिन सावधान! आप बाजार से कौन सा गुड़ खरीद रहे हैं। या किस गुड़ से बनी रेवड़ी-गजक? गुड़ की सूरत खरीदकर गुड़ मत खरीदिये। गुड़ और रेवड़ी-गजक बनाने वाले इन हुनरमंद कारीगरों की बात माने तो अगर गुड़ बनाने के लिए गन्ने का रस साफ करने के लिए खतरनाक रसायन इस्तेमाल न किए जाएं तो बाजार में उस गुड़ की कीमत कम मिलती है, जबकि वनस्पतियों से गन्ने का रस साफ कर गुड़ बनाने में मेहनत अधिक लगती है और लागत भी अधिक लगती है। ग्राहक चाहता है पीला या केसरिया चमकदार गुड़ और उसे तैयार करने के लिए अकार्बनिक रसायनों और रंगों का इस्तेमाल करना पड़ता है। साथ ही इस गुड़ के दाम भी मंडियों में अच्छे मिलते हैं।
एक समय था जब सुकलाई नाम की वनस्पति या अरंडी के तेल से गन्ने के रस को साफ किया जाता था लेकिन धीरे-धीरे उसकी जगह अकार्बनिक रसायनों ने ले ली। ब्लीचिंग एजेंट के रूप में हाइड्रोजन सल्फर ऑक्साइड, लिक्विड अमोनिया, यूरिया और सुपर फास्फेट खाद जैसी अखाद्य चीजों का इस्तेमाल होने लगा। सस्ते पड़ने वाले अकार्बनिक रसायन जहां गुड़ निर्माताओं के लिए आर्थिक तौर पर फायदे का सौदा था वहीं उनकी मेहनत भी कम लगती थी और देखने में गुड़ का रंग चमकदार पीला या केसरिया मिलता था जबकि परंपरागत वनस्पतियों की मदद से बना गुड़ कालापन लिए हुए आकर्षणहीन होता है। आप खुद देखिए कि गुड़ बनाते समय रस साफ करने के लिए इस कोल्हु पर सफेद रंग का पाउडर किस तरह डाला जा रहा है। खास बात ये है कि गुड़ बनाने वाले कारीगर इन अकार्बनिक रसायनों के नाम तक भी ठीक से नहीं जानते। इन्हें तो यही मालूम है कि हाइड्रो और पपड़ी से गुड़ का रंग निखर जाता है। इन्हें सिर्फ इतना मालूम है कि बाजार में किस रंग का गुड़ बिकता है और उसकी कहां मांग है। इन्हें मानकों का भी पता नहीं क्योंकि ये तो बस अपना काम अनुभव और अनुमानों के आधार पर करते हैं। मानकों के मुताबिक गुड़ में यदि ब्लीचिंग एजेंट का इस्तेमाल किया भी जाए ता उसमें सल्फर की मात्रा 70 पीपीएम से अधिक नहीं होनी चाहिए। लेकिन इनको क्या मालूम कि पीपीएम क्या होता है। इसलिए आज तक यहां का कोई गुड़ प्रयोगशाला में मानको पर खरा नहीं उतरा।
गुड़ बनाने वाले और बेचने वाले दोनों जानते हैं कि अकार्बनिक रसायनों का इस्तेमाल कर बनाया गया गुड़ सेहत के लिए बेहद नुकसानदायक है लेकिन बाजार में लोग पीला, केसरिया और चमकदार गुड़ चाहते हैं। परंपरागत तरीके से बने गुड़ का रंग और सूरत उन्हें पसंद नहीं आती। गुजरात की पसंद अलग है तो राजस्थान की अलग और माल वही बिकता है जिसकी डिमांड होती है। भले ही वह धीमा जहर क्यों न हो। अब आप खुद ही तय कर लीजिए कि एशिया में गुड़ की सबसे बड़ी मुजफ्फरनगर मंडी या हापुड़ मंडी से आपके शहर में पंहुचा गुड़ खरीदते समय उसका रंग-रूप देखते हैं या सेहत के लिए लाभकारी मटमैला भूरा गुड़ चुनते हैं।
मक्के की रोटी सरसों के साग और गुड़ के साथ खाते समय जो जायका आता है उसका मजा शायद आप भी लेते हों। अगर किसी पार्टी में आजकल मक्खन के साथ सरसों का साग, मक्के की रोटी और गुड़ न हो तो लगता है कि दावत में कुछ खास था ही नहीं। लेकिन गुड़ खाते समय गुड़ की सूरत नहीं सीरत को देखिए। जी हां। गरीबों का मेवा और सेहत के लिए फायदेमंद माने जाने वाला गुड़ आपकी सेहत के लिए नुकसानदायक ही नहीं बल्कि धीमा जहर भी साबित हो सकता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में घुसते ही गन्ने और गुड़ की मिठास भरी खुशबु आपका स्वागत करती है। यहां हर गांव/गली में कोल्हू चलते हैं और भट्टियों पर रस पककर गुड़ बनता है और देश भर में यहां की मंडियों के जरिए देश भर में बिकने के लिए चला जाता है। इसी गुड़ से बनी रेवड़ी और गजक का जायका अब सात समंदर पार भी पंहुच गया है। मेरठ की रेवड़ी और गजक का नाम सुनकर मुंह में जायका घुल जाता है। लेकिन सावधान! आप बाजार से कौन सा गुड़ खरीद रहे हैं। या किस गुड़ से बनी रेवड़ी-गजक? गुड़ की सूरत खरीदकर गुड़ मत खरीदिये। गुड़ और रेवड़ी-गजक बनाने वाले इन हुनरमंद कारीगरों की बात माने तो अगर गुड़ बनाने के लिए गन्ने का रस साफ करने के लिए खतरनाक रसायन इस्तेमाल न किए जाएं तो बाजार में उस गुड़ की कीमत कम मिलती है, जबकि वनस्पतियों से गन्ने का रस साफ कर गुड़ बनाने में मेहनत अधिक लगती है और लागत भी अधिक लगती है। ग्राहक चाहता है पीला या केसरिया चमकदार गुड़ और उसे तैयार करने के लिए अकार्बनिक रसायनों और रंगों का इस्तेमाल करना पड़ता है। साथ ही इस गुड़ के दाम भी मंडियों में अच्छे मिलते हैं।
एक समय था जब सुकलाई नाम की वनस्पति या अरंडी के तेल से गन्ने के रस को साफ किया जाता था लेकिन धीरे-धीरे उसकी जगह अकार्बनिक रसायनों ने ले ली। ब्लीचिंग एजेंट के रूप में हाइड्रोजन सल्फर ऑक्साइड, लिक्विड अमोनिया, यूरिया और सुपर फास्फेट खाद जैसी अखाद्य चीजों का इस्तेमाल होने लगा। सस्ते पड़ने वाले अकार्बनिक रसायन जहां गुड़ निर्माताओं के लिए आर्थिक तौर पर फायदे का सौदा था वहीं उनकी मेहनत भी कम लगती थी और देखने में गुड़ का रंग चमकदार पीला या केसरिया मिलता था जबकि परंपरागत वनस्पतियों की मदद से बना गुड़ कालापन लिए हुए आकर्षणहीन होता है। आप खुद देखिए कि गुड़ बनाते समय रस साफ करने के लिए इस कोल्हु पर सफेद रंग का पाउडर किस तरह डाला जा रहा है। खास बात ये है कि गुड़ बनाने वाले कारीगर इन अकार्बनिक रसायनों के नाम तक भी ठीक से नहीं जानते। इन्हें तो यही मालूम है कि हाइड्रो और पपड़ी से गुड़ का रंग निखर जाता है। इन्हें सिर्फ इतना मालूम है कि बाजार में किस रंग का गुड़ बिकता है और उसकी कहां मांग है। इन्हें मानकों का भी पता नहीं क्योंकि ये तो बस अपना काम अनुभव और अनुमानों के आधार पर करते हैं। मानकों के मुताबिक गुड़ में यदि ब्लीचिंग एजेंट का इस्तेमाल किया भी जाए ता उसमें सल्फर की मात्रा 70 पीपीएम से अधिक नहीं होनी चाहिए। लेकिन इनको क्या मालूम कि पीपीएम क्या होता है। इसलिए आज तक यहां का कोई गुड़ प्रयोगशाला में मानको पर खरा नहीं उतरा।
गुड़ बनाने वाले और बेचने वाले दोनों जानते हैं कि अकार्बनिक रसायनों का इस्तेमाल कर बनाया गया गुड़ सेहत के लिए बेहद नुकसानदायक है लेकिन बाजार में लोग पीला, केसरिया और चमकदार गुड़ चाहते हैं। परंपरागत तरीके से बने गुड़ का रंग और सूरत उन्हें पसंद नहीं आती। गुजरात की पसंद अलग है तो राजस्थान की अलग और माल वही बिकता है जिसकी डिमांड होती है। भले ही वह धीमा जहर क्यों न हो। अब आप खुद ही तय कर लीजिए कि एशिया में गुड़ की सबसे बड़ी मुजफ्फरनगर मंडी या हापुड़ मंडी से आपके शहर में पंहुचा गुड़ खरीदते समय उसका रंग-रूप देखते हैं या सेहत के लिए लाभकारी मटमैला भूरा गुड़ चुनते हैं।
17 comments:
अरे कही तो कुछ खाने की चीज शुद्ध मिले, अब मेरे प्यारे गुड का भी सत्यनाश ... पहले भिंडी के पोढो को पानी मे भीगो कर उस से गुड साफ़ किया जाता था.
धन्यवाद इस अच्छी जानकरी के लिये
दरअसल गुड़ की बहुतायत में खपत शराब बनाने में होने लगी है। इसलिए गुड़ को रसायनों से साफ कर गुड़ निर्माता अधिकाधिक मात्रा में फटाफट गुड़ बना रहे हैं। दूसरे चकाचौंध जिंदगी में गुड़ भी चमकदार चाहिए आज की पीढ़ी को। ये तो मांग और आपूर्ति का सिद्धांत है।
स्वागत और साधुवाद!!
acchi jaankaari......
Aapne bahut Faayedemand jaankaari dee. Dhanyabaad.
जी आपने जो लिखा है वो पहले भी पढा है. हम तो कोल्हापुर का गुड लाते हैं जो बिल्कुल सफ़ेद झ्हक आता है, और महंगा भी काफ़ी है. शायद ये भी अच्छी गुणवता का नही होता है. क्योंकी इसका सफ़ेद पन कहां से आता होगा?
सो हमने तो गुड या उसकी बनी चीजे होली दिवाली ही खाने की कसम खाली है. और बताईये क्या करे? कोई भी शुद्ध चीज मिलना तो बहुत मुशकिल हो चला है.
रामराम.
बहुत बढ़िया जानकारी . रासायनिक पदार्थ उपयोग कर लोगो की जान से खिलवाड़ किया जा रहा है . सभी को इस और ध्यान देना चाहिए.
बहुत बढ़िया जानकारी . रासायनिक पदार्थ उपयोग कर लोगो की जान से खिलवाड़ किया जा रहा है . सभी को इस और ध्यान देना चाहिए.
Respected Joshee ji,
Main is group blog par pahlee bar aya hoon.Abhee to sirf Meetha Jahar hee padh saka hoon.Kafee achchha,janta ko jagrook karne vala lekh hai.sabse badh kar Hima Agraval ji ne ise bahut hee rochak,tarkik shailee ke sath pravahmayee bhasha men likha hai.
Hima Ji ko meree taraf se badhai.
Hemant Kumar
हिमा स्वागत है.
अच्छा है.
यूँ ही लिखती रहो.
शुभकामनाएँ.
गुड / मीठा जहर
... अच्छी जानकारी है।
हर क्षेत्र में रंग रूप को महत्त्व दिया जाता है तो गुड़ बनाने वाले भी सोचते हैं कि रंग साफ हो चाहे जैसे /विक्री ज़्यादा होगी ,फायदा नुकसान से उन्हें क्या मतलब
achhi jankari
एक अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद....
जोशीजी, हिमा का आलेख पढ़ा.मेरठ की रेवडी पर क्या खूब लिखा है.
मेरे तो मुह मे पानी आगया .बधाई .निर्मल
आपके ब्लॉग पर आकर सुखद अनुभूति हुयी.इस गणतंत्र दिवस पर यह हार्दिक शुभकामना और विश्वास कि आपकी सृजनधर्मिता यूँ ही नित आगे बढती रहे. इस पर्व पर "शब्द शिखर'' पर मेरे आलेख "लोक चेतना में स्वाधीनता की लय'' का अवलोकन करें और यदि पसंद आये तो दो शब्दों की अपेक्षा.....!!!
Beshak achha likha hai lakin kafi antral ke bad.hima ji likhati raho.
Santram Pandey
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