सभी पुकारते हैं उसे
नदी के नाम से
पर बिना जल के भी
कोई नदी होती है भला.
कभी रही होगी वह
एक जीवंत नदी
आकाश की नीलिमा को
अपने आलिंगन में समेटे
कलकल करते जल से भरपूर.
तभी हुआ होगा इसका नामकरण
समय की धार के साथ
बहते-बहते वाष्पित हो गया
नदी का जल .
और बादलों ने भी
कर लिया नदी से किनारा
सभी ने भुला दिया नदी को
बस नाम चलता रहा.
अपनों की बेरुखी देख
सूख गई नदी .
अब नदी कहीं नहीं
केवल नाम भर है
जिसमे बहता है
पाखण्ड, धर्मान्धता और स्वार्थ का
हाहाकारी जल .
Sunday, August 1, 2010
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8 comments:
बहुत खूब निर्मल जी...
नदी जो अब बहती नही
भावनाये भी दूर है कंही
ये किस ओर इशारा है वक्त का
नदी हो इंसान सब बदल रहे है
बहुत सुंदर.
शानदार कविता। कल जब बच्चे पूछेंगे कि पापा नदी क्या होती है तो क्या जबाव देगे, आज ही संभलने की जरूरत है।
सभी पुकारते हैं उसे
नदी के नाम से
पर बिना जल के भी
कोई नदी होती है भला.
सही कहा आपने!..यही कहना पडेगा कि कभी यहां नदी थी!...सुंदर रचना!
नदी के बहाने इंसान पर एक सटीक टिप्पणी...बहुत खूब निर्मल जी
जब पानी ही सूख गया क्या करे नदी । सचमुच बहुत बेरहम है आज की सदी ॥ -रामेश्वर काम्बोज
kyaa khoob kaha ! Mubaarak.
मन को द्रवित करती पंक्तियाँ:-
समय की धार के साथ
बहते-बहते वाष्पित हो गया
नदी का जल .
और बादलों ने भी
कर लिया नदी से किनारा
सभी ने भुला दिया नदी को
बस नाम चलता रहा.
अपनों की बेरुखी देख
सूख गई नदी .
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