कुल्लू से मणिकर्ण जाते हुए रास्ते हुए में एक जगह पड़ती है कसोल। अजीब माहौल, अजीब से रेस्त्रां और अजीब सी ही दुकाने, अजीब सी बोली में खुसुर-पुसुर के अंदाज़ में बात करते लोग और अजीब सी भाषा में लिखे हुए साइन बोर्ड। कुछ अपने से दिखते लोगों के बीच एक और अपनी सी चीज़ नज़र आती है रॉयलइनफील्ड की बुलेट मोटरसाइकिल, जिसके तीन छोटे-बड़े सर्विस स्टेशन इस ज़रा सी बस्ती में मुझे दिख गये। फिर पता चलता है कि ये लोग इज़राइल के सैलानी हैं, और इन्हीं की सुविधा के लिये यहां के सारे साइनबोर्ड इज़राइल की भाषा हिब्रू में लिखे गये हैं। मिनी इज़राइल सा नज़र आ रहे कसोल में आने वाले सैलानियों में से 90 फीसदी इज़राइल के होते हैं जो दो चार पांच दिन के लिये नहीं बल्कि 5-6 महीने और कई तो यहीं बस जाने के लिये आते हैं। परदेस में अपने देश की हैसियत जानकर बड़ा अच्छा लगा। कुछ लोगों ने बताया कि लड़ाई और आतंकवाद से ऊबे इन लोगों को कसोल में सुकून मिलता है। लेकिन जब वहां गाड़ी खड़ी की और एक दिन ठहरने का मन बनाया तो कसोल और इज़राइलियों की तारीफ के कसीदे काढ़ रहे लोग परेशान हो गये। मेरी खोजी बातों से हाल ये हो गया कि खाली होटल (अगर उनको होटल माना जाये तो) वालों ने भी मुझे कमरा देने से मना कर दिया। गाड़ी पर लगा एक बड़े नेशनल टीवी चैनल का स्टीकर उनको कुछ ज़्यादा ही परेशान कर रहा था जबकि ना मेरे पास कोई कैमरा था ना माइक। बिखरे बालों में मैं भी टी शर्ट, लिनेन का पायजामा और स्लिपर्स पहने वहां के सैकड़ों सैलानियों जैसा ही हिप्पी लग रहा था। लेकिन ना जाने क्या हुआ कि देखते-देखते कसोल में कर्फ्यू सा लग गया, कोई मुझसे बात करने को तैयार नहीं। दुकानदारों ने बिसलरी की बोतल तक बेचने से मना कर दिया।
चढ़ी आंखों वाले एक आदमी ने मेरे ड्राइवर को समझाया, चले जाओ यहां से। ड्राइवर ने भी आकर बस इतना कहा, साहब निकल लो बस। जब ड्राइवर ने भी हाथ खड़े कर दिये तो मेरे सामने कोई रास्ता नहीं बचा। लेकिन मैने तय कर लिया कि मैं रहूंगा आसपास ही कहीं। और फिर इसके बाद कुल्लू से जगतसुख और कसोल होकर मणिकर्ण के बीच तीन रोज़ तक गाड़ी दौड़ाकर जो कहानी सामने आई वो चौंकाने वाली है।
आगे की कहानी यहाँ है॰॰॰॰
9 comments:
टीवी के अंदाज़ में प्रचार पसंद आया। मैं समझ रहा हूं कि आप क्या बताने वाले हैं लेकिन मैं बाकी लोगों का रोमांच खत्म करने के मूड में नहीं हूं इसलिये चुप ही रहूंगा।
martin देहाती
हमको मालूम है कसोल की हकीकत, आप बतायें
या ना बतायें। दुख इस बात का ही कि इतनी सुंदर जगह, जहां देवता बसते हैं इस तरह बदनाम हो रही है। दम मारो दम।
आपने तो उत्सुकता जगा दी। अच्छा होता आज ही सब कुछ बता देते और एक-आध फोटो ही दिखा देते। या सब कुछ कल ही दिखाओगे/बताओगे।
kasol ko hi shayad kasouli bhi kehte hai, kher jitna pada beshk achambhit kerne wala tha , jo aage padhane ke liye bhi prarit kerta hai,
कसौल और कसौली दो अलग-अलग जगह हैं। दोनों में बस एक समानता है कि दोनों ही हिमाचल प्रदेश में हैं। कसौली के लिये कालका से शिमला के रास्ते पर धर्मपुर से रास्ता ऊपर की ओर जाता है। 20-22किलोमीटर बाद कसौली है, जहां सनावर में सेंट लॉरेंस स्कूल है। इसी स्कूल में अपने संजू बाबा पढ़े(अगर पढ़े हों तो)हैं। खुशवंत सिंह समेत कई बड़े लोगों के बंगले कसौली में हैं जहां वो गर्मियां बिताने के लिये जाते हैं। कसोल एकदम अलग दिशा में है, कुल्लू-मनाली के पास। कुल्लू से मणिकर्ण (जहां का गुरुद्वारा और घर्म पानी के सोते बहुत मशहूर हैं)जाते हुए रास्ते में कसोल पड़ता है।
हरि भाई अगर यह बात सच है तो यह हम सब पर लानत है, हम अपने ही घर मै दुबकते फ़िरते है,आप का पुरा लेख पढने की इच्छा अब जोर पकडने लगी है....
धन्यवाद
joshijee,
now you are in form. nice investigating writeup.nirmal
कसोल के बारे में जानती नहीं हूं, हालांकि क्लाइमेक्स का अंदाज़ा लग गया है, टिप्पणियां पढ़कर।
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