तार, अरे भाई टेलीग्राम,
जो जैमिनी की पुरानी
काली-सफेद फिल्मों
और दूरदर्शन के
सीरियलों में अब
भी दिख जाता है।
दीपावली आ रही, त्यौहार के 4 दिन पहले से लेकर 4 दिन बाद तक इनाम मांगने वालों की भीड़ लगी रहेगी। चंद्रयान के युग में भी हमेशा डेड रहने वाले बीएसएनएल के लैंडलाइन फोन वाला लाइनमैन आएगा, बत्ती गुल हो जाने पर कभी भी फोन ना उठाने वाले बिजली कर्मचारी आएंगे, रोज़ आधा कचरा डिब्बे में ही छोड़ जाने वाला सफाई कर्मचारी आएगा, रात को दफ्तर से लौटने पर हमेशा सोता नज़र आने वाला सोसायटी का चौकीदार आएगा और मुहल्ले भर की चिट्ठियां एक ही घर में पटक जाने वाला डाकिया भी खींसे निपोरते हुए घंटी बजाएगा। सब आएंगे, साल भर के ताने एक दिन में सुनेंगे फिर पचास का नोट लगभग हाथ से छीनने के अंदाज़ में जेब में ठूंसेंगे और मुस्कराते हुए चले जाएंगे, मानो कह रहे हों देखा कैसा बनाया, साले को।
जो जैमिनी की पुरानी
काली-सफेद फिल्मों
और दूरदर्शन के
सीरियलों में अब
भी दिख जाता है।
दीपावली आ रही, त्यौहार के 4 दिन पहले से लेकर 4 दिन बाद तक इनाम मांगने वालों की भीड़ लगी रहेगी। चंद्रयान के युग में भी हमेशा डेड रहने वाले बीएसएनएल के लैंडलाइन फोन वाला लाइनमैन आएगा, बत्ती गुल हो जाने पर कभी भी फोन ना उठाने वाले बिजली कर्मचारी आएंगे, रोज़ आधा कचरा डिब्बे में ही छोड़ जाने वाला सफाई कर्मचारी आएगा, रात को दफ्तर से लौटने पर हमेशा सोता नज़र आने वाला सोसायटी का चौकीदार आएगा और मुहल्ले भर की चिट्ठियां एक ही घर में पटक जाने वाला डाकिया भी खींसे निपोरते हुए घंटी बजाएगा। सब आएंगे, साल भर के ताने एक दिन में सुनेंगे फिर पचास का नोट लगभग हाथ से छीनने के अंदाज़ में जेब में ठूंसेंगे और मुस्कराते हुए चले जाएंगे, मानो कह रहे हों देखा कैसा बनाया, साले को।
लेकिन इन सामाजिक झपटमारों की भीड़ में मुझे लुटने के लिये सबसे ज़्यादा इंतज़ार रहता है तार बाबू का। तार बाबू यानी वो कर्मचारी जो तार लाता था। अब तार तो नहीं आते हैं लेकिन कुछ इलाकों में दीपावली के मौके पर तार बाबू ज़रूर नज़राना लेने आते हैं। जो कम उम्र के हों उनको बता दूं कि आजकल जो छोटे मोटे संदेश एसएमएस से भेजे जाते हैं ना वो पहले तार से भेजे जाते थे। हर शहर में एक तारघर होता था। खाकी वर्दी पहने, खाकी टोपी लगाये हेडलाइट वाली साइकिल पर घंटी बजाते हुए आने वाले तारबाबू को आते देखते ही आम लोग सहम जाते थे और फौजी खुश हो जाते थे। मोहल्ले में दहशत फैल जाती थी कि पता नहीं किसके बाबू जी या अम्मा जी चल बसे। लेकिन फौजियों के लिये घर से आने वाला अम्मा-बाबू की बीमारी तार छुट्टी मिलने की गारंटी होता था, शायद अब भी होता हो। हमारे गांव के कई फौजी तो जब छुट्टी में गांव आते थे तो घर के कामकाज के हिसाब से अगली छुट्टी के लिये तारीख तय करके तार भेजने के लिये मजमून भी लिखवा जाते थे। तय तारीख को उनके लिये तार होता था, तार पहुंचता था और और फौजी गांव भर के लिये कैंटीन से मंगाई रम, मच्छरदानी, एचएमटी की घड़ी, टॉर्च, रब़ड़ की चप्पलें और अफगान स्नो की चार शीशियां लेकर हाज़िर हो जाता था। तार झूठ को विश्वसनीयता में बदलने की ही नहीं तेजी की भी गारंटी था। लैंब्रेटा और फिएट के उस युग में भी आज की स्पीड पोस्ट से जल्दी तार पहुंचते थे। चाहे उत्तर-पूरब में बसा नेफा हो या जैसलमैर में रेत के टीलों के बीच नज़र ना आने वाली सीमा सुरक्षा बल की चौकी हो, जम्मू-कश्मीर की बर्फ में गश्त लगाते सैनिक हों या समंदर की पहरेदार करते कोस्ट गार्ड, दूसरे विश्व युद्ध के वक्त की बनी मशीनों से तार झट से पहुंचता था। तेजी का आलम ये था कि 10 पैसे के पोस्टकार्ड पर चिट्ठी को ही तार का रूप देने के लिये अम्मा नीचे एक लाइन जुड़वा देती थीं, इसे चिट्ठी नहीं तार समझना और मिलते ही बच्चों के साथ चले आना।
बाद में खुशी के भी तार आने लगे, नौकरी मिलने के, शादी होने के बेटा होने के, अपने मकान में जाने के, तरक्की होने के वगैरह-वगैरह। लेकिन अब तो कोई तार नहीं आता। मुझे तो 22 साल पहले आखिरी तार मिला था, नौकरी मिलने का। जिसके जवाब में मैनें भी तार किया था। उसके बाद दो-तीन साल तक तार से आने वाली खबरें बनाता रहा और एक दिन अचानक वो तार गायब हो गये और उनकी जगह फैक्स ने ले ली। कुछ पुरानी पत्रिकाओं और सरकारी दफ्तरों की स्टेशनरी में आपको अब भी तार का पता मिल जायेगा लेकिन तारघर ढूंढे नहीं मिलेगा। पहले हर शहर में टाउनहाल, घंटाघर, गांधी रोड की तरह एक तारघर भी होता था। लेकिन ना अब टाउन हाल रहे ना घंटाघर और ना ही तारघर। लेकिन होली और दीपावली के वक्त दिखने वाला तारबाबू अभी है। मुझे बाकी लोगों की तरह तारबाबू को बख्शीश देना नहीं खटकता। बल्कि मैं चाहता हूं कि वो आये मैं उसके साथ बैठकर चाय पीऊं और उन दिनों के बारे में जानूं जो उसने जिये हैं। अब तो मैं हर होली-दीपावली बड़ी शिद्दत से उसका इंतज़ार करता हूं कि क्योंकि मुझे पता है कि अब वो कोई बुरी खबर नहीं लाता है। अब वो हमारे लिये तेजी से गुजरते समय में उन सुस्त रफ्तार दिनों के इतिहास का हरकारा है जिन्हे हमने जिया है।
17 comments:
तार के बारे में हमने तो बस सुना ही है, या फिल्मों में देखा है, हिंदी की किताबों में पढ़ा है।
ये फौजियों वाला एंगल कुछ समझ में नहीं आया।
अच्छे लगे आपके अनुभव तार के बारे में ..मैंने देखा तो था एक तार ६-७ साल की उम्र में ..अब धुंधली सी याद बाकि है बस.
aane waali pidi ke liye to bas ek shabad hai taar....
bahut achcha likha
सचमुच इतिहास का हरकारा है जिन्हे हमने जिया है।
बहुत ही अच्छा लगा तार की बाबत आपकी अनुभवों को पढ़ना.
बेटी को पिछले साल अपनी छुट्टियों में डाकघर का प्रोजेक्ट बनाने को मिला। मनीऑर्डर फॉर्म से लेकर पोस्टकार्ड और बचत खाते की स्लिप तक सब कुछ मिल गया, बस नहीं मिला तो टेलिग्राम भेजने का फार्म। क्लास के सारे बच्चों के साथ ये परेशानी थी, तब एक बच्चे ने पहाड़ पर रहने वाले अपने दादा जी से तार भेजने का फार्म मंगवाया और फिर सारे बच्चों ने उसकी फोटो कॉपी अपनी फाइल में चिपकाई। इस कहानी का सार ये निकलता है कि आपको कहीं तार भेजने का फार्म मिले तो उसे सहेजकर रख लें कुछ दिनों बाद उसकी एंटीक वैल्यू होगी।
प्रिय अनाम भाई, फौजियों वाला एंगल ये है कि (जो मुझे मेरे स्वर्गीय पिता बताते थे)सरहद पर देश की सेवा कर रहे बहादुरों को पहले छुट्टी मिलने में बड़ी परेशानी होती थी। लेकिन घर से अगर कोई तार आ जाये तो कमांडिंग ऑफीसर बिना कोई हीलहुज्जत किये छुट्टी मंज़ूर कर देते थे। लेकिन सुनते हैं कि तार की इस विश्वसनियता का बेजा फायदा भी बहुत उठाया गया।
सही कहा आपने 'अब तार नहीं आते हैं बस तार बाबू आता है'... दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
बल्कि मैं चाहता हूं कि वो आये मैं उसके साथ बैठकर चाय पीऊं और उन दिनों के बारे में जानूं जो उसने जिये हैं। अब तो मैं हर होली-दीपावली बड़ी शिद्दत से उसका इंतज़ार करता हूं कि क्योंकि मुझे पता है कि अब वो कोई बुरी खबर नहीं लाता है। अब वो हमारे लिये तेजी से गुजरते समय में उन सुस्त रफ्तार दिनों के इतिहास का हरकारा है जिन्हे हमने जिया है।
.......
गुम होकर रह गई इन पंक्तियों में. एक युग के तार दूसरे से टूट गए सचमुच.
चिट्ठी नही इसे तार समझना..........अपने आप में कितने भाव समेटे होती थी.
सही कहा....सब पुराने ज़माने की बातें हों गयीं.अब की पीढी तो तार का मतलब वायर ही समझेगी.
हरि जी बहत ही सुन्दर लिखा आप ने इस लेख को तार बाबु, हम ने भेजे भी है, ओर पाे भी है तार ओर सच मै तार हम सब को बेचेन कर देता था
धन्यवाद
जोशी जी,
उम्मीद कीिजए िक तार बाबू आएगा और खुशखबरी लाएगा । दीपावली की शुभकामनाएं ।
दीपावली की हार्दिक मंगलकामनाएं...
joshi ji
deepawli ki hardik shubhkamnan. ab to taar ki jagha aise hee sadhnon se kaam chlaya jata hai.
आपकी सुख समृद्धि और उन्नति में निरंतर वृद्धि होती रहे !
दीप पर्व की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
तार अब भी आते हैं बैंक की किस्तें चुकाने के नोटिस के लिए।
दीपावली बहुत मुबारक हो।
दीपावली के पावन पर्व पर समझो इसको तार
आपके लिए लाये हैं करो शुभकामना स्वीकार
कुमकुम भरे क़दमों से आयें लक्ष्मी जी आपके द्वार
सुख,संपत्ति,समृद्धि, सफलता मिले आपको अपार
Janab! Achha likha hai apne, par chijon ka itna samanyikaran bhi na kar dijiye ki har karmchari apne ko 50/- wali category men hi dekhe....samaj men achhe log bhi hain.......Jahan tak tar ki bat hai ab wah Postal Dept. ke pas nahi balki BSNL ke pas hai.
Bhavnaon ko itni khubsurati se sahejne ke liye sadhuvad !!
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