गैस कीमतों को कम करने की बात कहकर सरकार भले ही आम आदमी को रिझाने का प्रयास कर रही हो लेकिन सच ये है कि गैस की कीमते कम कर देने भर से आम आदमी को राहत नहीं मिलेगी क्योंकि रसोई गैस वितरित करने वाला तंत्र ही भ्रष्ट हो चुका है। आम आदमी को न समय पर एलपीजी मिलती है, न ही उपभोक्ता काला बाजारी से बच पाता है। आम उपभोक्ता अधिक मूल्य देकर भी सिलेंडर में भरी एलपीजी की पूरी मात्रा को तरसता रहता है लेकिन उसकी कहीं सुनवाई नहीं। हांलाकि प्रशासन हमेशा यही कहता है कि कालाबाजारियों की ख्ौर नहीं। हद तो ये है कि गैस गोदाम पर आम आदमी को सिलेंडर लेने जाना पड़ता है और उसकी जेब से डिलीवरी का चार्ज भी निकलवा लिया जाता है।
लोहे की एक खोखली रोड से बनी एक डिबाइस आपको सप्लाई होने वाले गैस सिलेंडर से कुछ ही मिनटों में एलपीजी को एक दूसरे खाली सिलेंडर में पंहुचा देती है। जी हां! आपके घर पंहुचने से पहले ही गैस सिलेंडर को लूटा जा रहा है। गैस गोदाम से पूरे वजन का गैस सिलेंडर चलता है लेकिन डिलीवरीमेन रास्ते में ही चुपचाप उस एलपीजी सिलेंडर से दो-ढाई किलो गैस उड़ा देते हैं। इन के सधे हुए हाथ आसानी से गैस को दूसरे खाली सिलेंडर में ट्रांसफर कर देते हैं। पलक झपकते ही आपकी रसोई के लिए चले गैस सिलेंडर से दो से ढाई किलो गैस दूसरे सिलेंडर या मिनी एलपीजी सिलेंडर में भर दी जाती है। ऐसा नहीं है कि ये किसी एक शहर की कहानी हो; सच तो ये है कि हर शहर में गैस चोरी एक आम शिकायत है। इस कालाबाजारी को कोई और नहीं बल्कि एलपीजी गैस एजेंसी के कर्मचारी ही अंजाम देते हैं और अगर इन कर्मचारियों की बात सच है तो इस कालाबाजारी में एजेंसी मालिक की पूरी तरह मिलीभगत होती है। सच तो ये है कि डिलीवरी पर्सन को या तो वेतन मिलता ही नहीं और यदि कहीं मिलता भी है तो उसमें गुजारा संभव नहीं बल्कि ये शाम को हिसाब करते समय कालाबाजारी का हिस्सा एजेंसी मालिकों को भी देते हैं।
हांलाकि उपभोक्ता को ये हक है कि वह एलपीजी सिलेंडर की डिलीवरी लेते समय डिलीवरी मैन को वजन चैक कराने को कहें लेकिन या तो वजन तोलने वाला वैलेंस इनके पास होता नहीं या खराब होता है और उपभोक्ता इसी से संतोष कर लेता है कि चलो देर से ही सही एलपीजी आ तो गई। लेकिन ये भी आंशिक सच है कि डिलीवरीमैन आप के घर सप्लाई लेकर पंहुच जाए। सच तो ये है कि या तो आधा-अधूरा सिलेंडर भी उपभोक्ता ब्लैक में खरीदने के लिए अभिशप्त हैं या फिर अक्सर ऐसा होता है कि डिलीवरीमैन न होने या कम होने का बहाना बनाकर ऐजेंसी संचालक ग्राहक को खुद ही गोदाम से गैस सिलेंडर ढो कर ले जाने को मजबूर करते हैं लेकिन कोई भी गैस एजेंसी ग्राहक से डिलीवरी चार्ज उस हालत में भी वसूलती है जब वह डिलीवरी देने में असमर्थ है। नियमानुसार गैस से भरे एलपीजी सिलेंडर को यदि उपभोक्ता सीधे गोदाम से ले तो उससे आठ रूपये डिलीवरी चार्ज नहीं वसूला जा सकता।
एलपीजी की किल्लत बनाकर या बताकर गैस ऐजेंसियों के संचालक जहां दोनों हाथों से अपनी जेबें गर्म कर रहे हैं वहीं प्रशासन के लोग अपनी जिम्मेदारी एक-दूसरे विभाग पर डालते रहते हैं। उपभोक्ताओं को जहां गैस समय पर नहीं मिल रही वहीं जिला प्रशासन तीन से चार दिन का बैकलॉग बताता है। मेरठ के जिला आपूर्ति अधिकारी वड़े गर्व से बताते हैं कि पिछले साल गैस की कालाबाजारी करने के चौंतीस मामलों में एफआईआर दर्ज कराई गई और सात सौ सिलेंडर जब्त करने के साथ ही कुछ गिरफ्तारियां भी हुईं वहीं नौ गैसे ऐजेंसी मालिकों के खिलाफ जिलाधिकारी स्तर से एलपीजी सप्लाई करने वाली कंपनियों को कार्रवाई के लिए लिखा गया लेकिन इन कंपनियों ने कोई कार्रवाई नहीं की।
अब आप खुद समझ सकते हैं कि अगर आपकी रसोई में पंहुचने से पहले ही डिलीवरी पर्सन एलपीजी का कुछ हिस्सा पार कर देता है तो इसके लिए कौन और किस स्तर तक के लोग जिम्मेदार है। अधिकारी कहते हैं कि अगर गैस कम निकले तो उपभोक्ता फोरम में शिकायत की जाए लेकिन उन्हें ये कहते हुए शर्म नहीं आती वरना किसी उपभोक्ता को कंज्यूमर फोरम जाने की जरूरत ही क्यों पड़े।
लोहे की एक खोखली रोड से बनी एक डिबाइस आपको सप्लाई होने वाले गैस सिलेंडर से कुछ ही मिनटों में एलपीजी को एक दूसरे खाली सिलेंडर में पंहुचा देती है। जी हां! आपके घर पंहुचने से पहले ही गैस सिलेंडर को लूटा जा रहा है। गैस गोदाम से पूरे वजन का गैस सिलेंडर चलता है लेकिन डिलीवरीमेन रास्ते में ही चुपचाप उस एलपीजी सिलेंडर से दो-ढाई किलो गैस उड़ा देते हैं। इन के सधे हुए हाथ आसानी से गैस को दूसरे खाली सिलेंडर में ट्रांसफर कर देते हैं। पलक झपकते ही आपकी रसोई के लिए चले गैस सिलेंडर से दो से ढाई किलो गैस दूसरे सिलेंडर या मिनी एलपीजी सिलेंडर में भर दी जाती है। ऐसा नहीं है कि ये किसी एक शहर की कहानी हो; सच तो ये है कि हर शहर में गैस चोरी एक आम शिकायत है। इस कालाबाजारी को कोई और नहीं बल्कि एलपीजी गैस एजेंसी के कर्मचारी ही अंजाम देते हैं और अगर इन कर्मचारियों की बात सच है तो इस कालाबाजारी में एजेंसी मालिक की पूरी तरह मिलीभगत होती है। सच तो ये है कि डिलीवरी पर्सन को या तो वेतन मिलता ही नहीं और यदि कहीं मिलता भी है तो उसमें गुजारा संभव नहीं बल्कि ये शाम को हिसाब करते समय कालाबाजारी का हिस्सा एजेंसी मालिकों को भी देते हैं।
हांलाकि उपभोक्ता को ये हक है कि वह एलपीजी सिलेंडर की डिलीवरी लेते समय डिलीवरी मैन को वजन चैक कराने को कहें लेकिन या तो वजन तोलने वाला वैलेंस इनके पास होता नहीं या खराब होता है और उपभोक्ता इसी से संतोष कर लेता है कि चलो देर से ही सही एलपीजी आ तो गई। लेकिन ये भी आंशिक सच है कि डिलीवरीमैन आप के घर सप्लाई लेकर पंहुच जाए। सच तो ये है कि या तो आधा-अधूरा सिलेंडर भी उपभोक्ता ब्लैक में खरीदने के लिए अभिशप्त हैं या फिर अक्सर ऐसा होता है कि डिलीवरीमैन न होने या कम होने का बहाना बनाकर ऐजेंसी संचालक ग्राहक को खुद ही गोदाम से गैस सिलेंडर ढो कर ले जाने को मजबूर करते हैं लेकिन कोई भी गैस एजेंसी ग्राहक से डिलीवरी चार्ज उस हालत में भी वसूलती है जब वह डिलीवरी देने में असमर्थ है। नियमानुसार गैस से भरे एलपीजी सिलेंडर को यदि उपभोक्ता सीधे गोदाम से ले तो उससे आठ रूपये डिलीवरी चार्ज नहीं वसूला जा सकता।
एलपीजी की किल्लत बनाकर या बताकर गैस ऐजेंसियों के संचालक जहां दोनों हाथों से अपनी जेबें गर्म कर रहे हैं वहीं प्रशासन के लोग अपनी जिम्मेदारी एक-दूसरे विभाग पर डालते रहते हैं। उपभोक्ताओं को जहां गैस समय पर नहीं मिल रही वहीं जिला प्रशासन तीन से चार दिन का बैकलॉग बताता है। मेरठ के जिला आपूर्ति अधिकारी वड़े गर्व से बताते हैं कि पिछले साल गैस की कालाबाजारी करने के चौंतीस मामलों में एफआईआर दर्ज कराई गई और सात सौ सिलेंडर जब्त करने के साथ ही कुछ गिरफ्तारियां भी हुईं वहीं नौ गैसे ऐजेंसी मालिकों के खिलाफ जिलाधिकारी स्तर से एलपीजी सप्लाई करने वाली कंपनियों को कार्रवाई के लिए लिखा गया लेकिन इन कंपनियों ने कोई कार्रवाई नहीं की।
अब आप खुद समझ सकते हैं कि अगर आपकी रसोई में पंहुचने से पहले ही डिलीवरी पर्सन एलपीजी का कुछ हिस्सा पार कर देता है तो इसके लिए कौन और किस स्तर तक के लोग जिम्मेदार है। अधिकारी कहते हैं कि अगर गैस कम निकले तो उपभोक्ता फोरम में शिकायत की जाए लेकिन उन्हें ये कहते हुए शर्म नहीं आती वरना किसी उपभोक्ता को कंज्यूमर फोरम जाने की जरूरत ही क्यों पड़े।
15 comments:
क्या करें, उपभोक्ता फोरम ही इसलिए बनाया गया ताकि वहाँ जाना पड़े!
हर स्तर पर भ्रष्टाचार.....
सिर्फ़ गैस ही क्यों ..पेट्रोल कभी भी आपको एक लीटर पूरा नहीं मिलता .ये दोनों ही चीजें ऐसी हैं जिनकी घटतौली का सीधा असर हमारी जेबों और बजट पर सबसे ज्यादा पड़ता है
हेमंत कुमार
सामयिक समस्या उठाई है। इसे रोकने के लिए उपभोक्ता को ही पहल करनी होगी। तभी निजात मिल सकती है।
बहुत बडी पीडा है, पर क्या किया जा सकता है? भ्र्ष्टाचार का बोलबाला है. सब मिलिभगत है. अब तो जनता ही को जागना पडेगा.
रामराम.
रसोई गैस की कालाबाजारी , चोरी और अनियमितताओं का खुला चिटठा पसंद आया, आदरणीया अग्रवाल
-विजय
लीजिए साहब गैस हो या पेट्रोल या कोई और चीज़, हर जगह घटतौली का आलम. अभी आज ही हमारे घर एक सज्जन एक सिलिंडर ले कर आए थे, जिसमें गैस कम थी. जब वापसी और शिक़ायत का जूता चलाया तब जाकर दुबारा लेकर वह आए और वह कम ही, पर थोडा कम. इस तंत्र में जूता हर जगह ज़रूरी है. लिहजा एक जोडी जूते पहनने के अलावा अलग से रिजर्व रखे. सिर्फ़ चलाने के लिए.
कालाबाजारी ,भ्रष्टाचार,घटतौली,समस्या,चोरी ,ओर घटोले,रिश्वत, सब तरफ़ यही दिखाई देता है भारत मै, क्या हो गया किस की नजर लग गई इस संस्कार भरे भारत को.
धन्यवाद आप ने एक गंभीर समस्या से पर्दा ऊठाया
घाट घाट पर उल्लू बैठे है जो जनता का खून चूस रहे है . सटीक लेख धन्यवाद.
हिमा,
गैस की काला बाजारी पर लगभग सभी का यही
कहना है कि क्या किया जा सकता है व्यवस्था
ही ऐसी है.पर क्या बेचारगी प्रकट करना ही
हमारी नियति है.इन सारी समस्यों के
खिलाफ हम लामबंद क्यों नहीं होते?
सही लिखा है. बुरा हाल है.
सामयिक समस्या उठाई है। इसे रोकने के लिए उपभोक्ता को ही पहल करनी होगी। तभी निजात मिल सकती है।
is cheej ke bare mein sochna shai h, lekin in halato se nipta kaise jay aub vo bhi sochna h
. ऐसी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाना ही पड़ेगा. क्या हम लोग उस तराजू को खरीद सकेंगे?. इस समस्या को प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने के लिए आभार.
guru ji aapne jo kaha vo bilkul thik hai.. in todays world LPG stands for loote - pite grahak
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