हम गुड़ और चीनी खाते हैं। शराब पीते हैं। कागजों पर लिखते हैं। लेकिन गन्ने को नही समझते। जिस फसल में मिठास है, नशा है और साक्षात लक्ष्मी व सरस्वती का वास है, उस फसल की यह तौहीन। समझ से परे है. इसी दशहरे की बात है। गन्ने का पूजन होना था। बाजार गया। एक गन्ना पांच रूपये का मिला। चीनी लेने निकले तो 36 रूपये किलो थी। एक क्विंटल गन्ने में करीब दो सौ गन्ने चढ़ते हैं। हिसाब लगाया तो एक हजार रूपये क्विंटल कीमत बैठी। चीनी 3600 रूपये क्विंटल थी। सुना है,कागज के दाम भी आसमान छू रहे हैं। पेपर मालिक सरकार से इस पर रियायत मांग रहे हैं। सरकार का इरादा भी है। हो सकता है कि करम हो जाए।
मैं बता दूं कि मैं किसान परिवार से नहीं हूं। लेकिन गन्ना किसानों का दर्द करीब से देखा है। जब केंद्र सरकार ने गन्ने की कीमत 130 (129.84 रूपये) लगाई तो सोच में पड़ गया। किसान क्या बोएगा, क्या कमाएगा और क्या खाएगा। अगर वह पटरी पर गन्ना बेचे तो भी शायद उसको उचित दाम मिल जाए। लेकिन सरकार तो देने से रही। सरकार ने यह कीमत किस आधार और किस मानक से लगाई है, समझ से परे है। फुटकर में गन्ना एक हजार रूपये क्विंटल और चीनी 3600 रूपये क्विंटल। और गन्ना 130 रूपये। फिर भी नारा-जय किसान। जितना सस्सा गन्ना है, उतना सस्ता तो इंसान भी नहीं। किसान की पीड़ा पर हम मौन क्यों हैं। हम उसको अपना क्यों नहीं समझते। हम उसको वाजिब मूल्य देने से क्यों कतराते हैं। हम मकान बेचते हैं तो अपनी संपत्ति की कीमत खुद लगाते हैं। सरकार ने सर्किल रेट तय कर रखे हैं। इस पर रजिस्ट्री तो होती है लेकिन क्रय-विक्रय नहीं होता। यह सरकार की संपत्ति का भी हाल है। बाजार में जाते हैं तो हम नही कहते कि लाला जी, तुम्हारे माल की कीमत यह है। हम मोलभाव अवश्य करते हैं। हम अपना लाभ देखते हैं और व्यापारी अपना लाभ देखता है। परता खाया तो सौदा पट जाता है। लेकिन गन्ना किसान बोता है, उसके माल की कीमत सरकार लगाती है। चंद चीनी मिल मालिक और उनके पिछलग्गू नेता तय करते हैं कि किसान की फसल की कीमत क्या हो। इस देश का दुर्भाग्य है कि यहां चंद लोग ही आवाम का फैसला करते हैं। ओबामा मे पूरी दुनिया का अक्स देखने लगते है। आसमान सिर पर उठा लेते हैं। अपनों को गिरा देते हैं। सागर में मोती नहीं तलाश करते। मोती हाथ लग जाए तो उससे ही पूछते हैं...सागर कितना गहरा है। पूरे देश में मिल मालिक दो सौ से अधिक नहीं होंगे। कुकुरमुत्तों की तरह उग रहे राजनीतिक दलों की भी तादाद इससे अधिक नहीं होगी। लेकिन यह हमारे भाग्य निर्माता हैं। मुश्किल यह है कि अपने देश में 15फीसदी लोग 85 फीसदी लोगों का भाग्य तय करते हैं। कहा जाता है कि इंसान का भाग्य भगवान लिखता है और किसान अपना भाग्य खुद लिखता है। यानी भगवान ने भी किसान को भगवान ही माना है। लेकिन कया यह हकीकत है।
कुछ और कड़वी हकीकत देखिए। गुड़ और चीनी का निर्माता किसान गन्ना बेचने के बाद हमारे और आपकी तरह एक उपभोक्ता ही है। वह बाजार से उसी मोल से चीनी और गुड़ लाता है, जो आप लाते हैं। उनको रियायत नहीं होती। लेकिन मिल मालिक के घर इस मोल से चीनी नहीं आती। उसके तो घर का माल है। अगर चीनी उसका घर का माल है तो गन्ना किसान का घर का माल क्यों नहीं है। जब और लोग अपने माल की कीमत खुद लगा सकते हैं तो किसान को यह अधिकार क्यों नहीं है। सरकार ने फसलों के दाम तय करने के लिए आयोग बनाए, लेकिन क्या रेट इनकी सिफारिशों से तय होते हैं। अपने देश मे गन्ने का दाम लगाते हैं-शरद पंवार। कृषि मंत्री। जिनकी खुद की चीनी मिले हैं। किसान राजनीति पर आइये। किसान राजनीति के मुद्दे पर समूचा विपक्ष एक है। जिनको गन्ने की समझ है, वे भी और नासमझ भी। उनको किसान एक वोट बैंक के रूप में दिख रहा है। दिखता रहा है और आगे भी दिखता रहेगा।
भारतीय किसान यूनियन के उदयकाल मे किसानों को उम्मीद जगी थी कि अब अऱाजनैतिक यह संगठन उनकी मदद करेगा। महाभारत का दृष्टांत देखिए। अर्जुन जब रणक्षेत्र मे था तो वह आवाक सा था। कृष्ण ने पूछा-क्या देख रहे हो। अर्जुन ने कहा-सोच रहा हूं। कौन अपना है कौन पराया। किसको मारना है और क्यों मारना है। यह सभी तो अपने हैं। किसानों के साथ भी यही तो हुआ। जिनको उसने अपना समझा, वह कौरव निकले। टिकैत को भी राजनीति का चस्का लग गया। अब तो वह अपने बेटे राकेश टिकैत को एडजेस्ट करने में लगे हैं। टिकट नहीं मिला तो बगावत। सम्मान नहीं मिला तो बगावत। भाकियू का किसान खो गया। दिल्ली में चार दिन धरना दिया, लेकिन भीड़ लायी गई पूर्वांचल से। पश्चिम को क्या हुआ। नहीं पता। जैसी भीड़ कभी टिकैत के साथ देखी जाती थी, वह चौधरी अजित सिंह के साथ हो ली। हाईफाई पालिटिकल ड्रामा हुआ। धरने पर विपक्षी नेता आए। कुछ दूर रहे। कुछ संसद में रहे। शोर हुआ। हंगामा हुआ। भाषण हुए। दिल्ली हिली। दिल्ली डोली। दिल्ली बोली-देखेंगे। विजयमुद्रा में किसान लौट आया। मांगने गया था दाम। बात खत्म हो गई एफएंडआरपी पर। अजित सिंह भी खुश। ताकत दिखा दी। रालोद के कांग्रेस में विलय की बात कहने वालों को झटका दे दिया। कांग्रेस को अहसास दिला दिया कि रालोद में कितनी ताकत है। अजित पहली बार लीडर की शक्ल में थे। उनके पीछे थे मुलायम सिंह। टीवी (धरने पर नही) पर थे भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह। मानो पूरा विपक्ष एक था। लेकिन....यक्ष प्रश्न अपनी जगह है-गन्ना किसान को क्या मिलेगा। 280, 250, 225, 200 या बोनस के साथ सिर्फ 180 रूपये। यह अभी तय नहीं। हो सकता है कि इस आंदोलन के बाद अजित या जयंत मंत्री बन जाएं लेकिन वजीरों की वजारत में क्या गारंटी कि किसान फकीर नहीं बनेगा। उसको वाजिब दाम मिलेगा।
सचमुच....किसान हर दम हारा। हर दिन रीता।
सूर्यकांत द्विवेदी
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Friday, November 20, 2009
....सुनो सुनो गन्ने का गम
Saturday, November 15, 2008
पाँच रुपये की शादी
आजकल डेंगू और शादियों की बहार है। मेरे जैसे तमाम लोग या तो मच्छरों के सताए हुए हैं या दावतें उड़ा रहे हैं। इन दिनों या तो डाक्टरों के यहां भीड़ है या विवाह मंडपों और फार्म हाउसों में जहां डीजे पर लोग थिरक रहें हैं और तेज आवाज पूरे शरीर में कंपन पैदा कर रही है। गाना बज रहा है- तेनू दूल्हा किसने बनाया भूतनी के... हम भी बिस्तर से आजाद हो गए हैं और सामाजिक प्राणी कहलाये जाने की लालसा में दावते उड़ा रहे हैं। ऐसी ही एक शादी का जिक्र ब्लाग जगत के लिए-
कहते हैं कि आम हिंदुस्तानी जीवन में सबसे ज्यादा धन या तो मकान बनाने में खर्च करता है या शादी में। शादियां आमतौर पर दो सितारों का मिलन नहीं बल्कि स्टेटस सिंबल ज्यादा होती हैं। गरीब हो या अमीर, राजा हो या रंक; सभी अपनी हैसियत बनाने और दिखाने में नहीं चूकते। फकीरों की नुमाइंदगी करने वाले आधुनिक महाराजा हों या वजीर या फिर हर काल में राज करने वाले सेठों की शादियां हमेशा चर्चा में रहती हैं। ऐसी ही एक शादी में जाना हुआ तो सोचा कि ब्यौरा अपने ब्लाग साथियों से भी शेयर कर लिया जाए। ये शादी थी महात्मा टिकैत के घर में। जी हां! नंगे पैर घूमकर हुक्का गुड़गुड़ाते हुए किसान आंदोलन चलाने वाले उत्तर भारत के सबसे दमदार किसान नेता को लोग महात्मा टिकैत या बाबा टिकैत के नाम से ही जानते हैं। किसानों के हित में शासन से सीधी टक्कर लेने वाले किसान नेता चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत के घर उनकी पोती की शादी थी उनके गांव सिसौली में। गन्ना बाउल मुजफ्फरनगर के गांव सिसौली में इस शादी को देखकर आंखे चुंधिया रही थी।
अपनी सादगी के लिए मशहूर इस किसान नेता की शादी में पचास हजार से ज्यादा मेहमान आए। मेहनतकश किसानों की नुमाइंदगी करने वाले बाबा टिकैत के परिवार में इस शाही शादी का अंदाजा आप मेहमानों की संख्या से भी लगा सकते हैं। करीब एक बीघा जमीन में अतिथियों के लिए स्वरुचि भोज का आयोजन किया गया था और इस पंडाल में ऐसा कोई शाकाहारी व्यंजन अनुपलब्ध नहीं था जिसमें आपकी रुचि हो। करीब एक हजार कारीगर एक हफ्ते पहले से मेहमानों के लिए पकवान और मिष्ठान तैयार करने में जुटे हुए थे। दूध, जलेबी से लेकर बंगाली मिठाइयों और व्यंजनों की महक पूरे पंडाल में बिखरी हुई थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तमाम हैसियतदार लोग फास्ट फूड से लेकर देसी जायकों का चटखारा ले रहे थे। उत्तर से लेकर दक्षिण तक के व्यंजन विशाल पंडाल में लगी मेजों पर शाही दावत का हिस्सा थे।
दूल्हा राजा दिल्ली में डाक्टर हैं। बारात कारों से आई लेकिन दूल्हे राजा के लिए हेलीकॉप्टर बुक था। बुरा हो मौसम का जो उड़ान संभव न हो सकी तो दूल्हा को भी कार से आना पड़ा। कार तो कार है लेकिन लक्जीरियस विदेशी कार हो तो उसकी शान समाज में अलग ही होती है। दूल्हा राजा कार से गांव पंहुचे और विवाह स्थल तक उन्हें ट्रैक्टर पर बिठा कर लाया गया। आखिर किसानों के मसीहा के यहां शादी थी तो ट्रैक्टर प्रेम कैसे छूटता। विदाई के समय हेलीकॉप्टर आ गया। गांव में ही हेलीपेड बनबाया गया था। दुल्हन का ख्वाब था कि उसके सपनों का राजकुमार उसे आसमान में उड़ा कर ले जाए लेकिन तब तक मीडिया वाले बाबा से शादी की फिजूलखर्ची पर कुछ सवाल पूछ चुके थे। मीडिया से भी किसी की खुशी बरदाश्त नहीं होती! लिहाजा चौधरी टिकैत ने दूल्हे से कह दिया कि लड़की तो सुबह ही विदा होगी। दुल्हन तो नहीं उड़ पाई लेकिन दूल्हा पक्ष के निकटतम परिजन हेलीकॉप्टर से वापस हो गए।
अब हम बताते हैं कि मीडिया ने टिकैत पर क्या सवाल दागे। पत्रकारों ने पूछा कि शादी में कितने लोग आए तो टिकैत ने कहा कि मैने तो अभी तक सिर्फ दूल्हे को देखा है। जब उनसे पूछा गया कि पचास हजार लोगों के भोज का आयोजन किसके लिए था और कौन लोग शामिल हुए तो बाबा टिकैत मासूमियत से बोले कि सभी घर के लोग हैं। कितना खर्च हुआ? किसान नेता का जबाव था कि पांच रूपये की शादी है। कोई दिखावा नहीं। सादगी के साथ। इसके बाद जब उन्हें याद दिलाया कि आपने किसानों की पंचायत कर ये फैंसला लिया था कि शादी में कोई दिखावा नहीं होगा, पंद्रह लोगों से ज्यादा की बारात नहीं होगी और सादा भोजन कराया जाएगा, तब ये हेलीकॉप्टर और दिखावा क्यों हुआ? बड़ी मासूमियत से महात्मा जी बोले कि भई कहां आया हेलीकॉप्टर, मुझे तो मालूम नहीं....मैं तो यहां से कहीं निकला नहीं....और मेहमानों की आवभगत तो गांव वाले कर रहे हैं।
ये तो एक बानगी है। देश में रोज शादियां होती हैं और कुछ अपवादों को छोड़कर राजा से लेकर रंक तक सभी अपनी हैसियत के मुताबिक या हैसियत से ज्यादा खर्च करते हैं। हम भी उन समारोह का हिस्सा बनते हैं। क्या कभी हमें ये सब अखरता है। यदि अखरता है तो शुरुआत तो खुद से ही करनी होगी। अगर ये शुरूआत चौधरी टिकैत ने की होती तो इसका व्यापक असर होता क्योंकि वह उत्तर भारत में किसानों के सबसे बड़े अलंबरदार हैं।
कहते हैं कि आम हिंदुस्तानी जीवन में सबसे ज्यादा धन या तो मकान बनाने में खर्च करता है या शादी में। शादियां आमतौर पर दो सितारों का मिलन नहीं बल्कि स्टेटस सिंबल ज्यादा होती हैं। गरीब हो या अमीर, राजा हो या रंक; सभी अपनी हैसियत बनाने और दिखाने में नहीं चूकते। फकीरों की नुमाइंदगी करने वाले आधुनिक महाराजा हों या वजीर या फिर हर काल में राज करने वाले सेठों की शादियां हमेशा चर्चा में रहती हैं। ऐसी ही एक शादी में जाना हुआ तो सोचा कि ब्यौरा अपने ब्लाग साथियों से भी शेयर कर लिया जाए। ये शादी थी महात्मा टिकैत के घर में। जी हां! नंगे पैर घूमकर हुक्का गुड़गुड़ाते हुए किसान आंदोलन चलाने वाले उत्तर भारत के सबसे दमदार किसान नेता को लोग महात्मा टिकैत या बाबा टिकैत के नाम से ही जानते हैं। किसानों के हित में शासन से सीधी टक्कर लेने वाले किसान नेता चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत के घर उनकी पोती की शादी थी उनके गांव सिसौली में। गन्ना बाउल मुजफ्फरनगर के गांव सिसौली में इस शादी को देखकर आंखे चुंधिया रही थी।
अपनी सादगी के लिए मशहूर इस किसान नेता की शादी में पचास हजार से ज्यादा मेहमान आए। मेहनतकश किसानों की नुमाइंदगी करने वाले बाबा टिकैत के परिवार में इस शाही शादी का अंदाजा आप मेहमानों की संख्या से भी लगा सकते हैं। करीब एक बीघा जमीन में अतिथियों के लिए स्वरुचि भोज का आयोजन किया गया था और इस पंडाल में ऐसा कोई शाकाहारी व्यंजन अनुपलब्ध नहीं था जिसमें आपकी रुचि हो। करीब एक हजार कारीगर एक हफ्ते पहले से मेहमानों के लिए पकवान और मिष्ठान तैयार करने में जुटे हुए थे। दूध, जलेबी से लेकर बंगाली मिठाइयों और व्यंजनों की महक पूरे पंडाल में बिखरी हुई थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तमाम हैसियतदार लोग फास्ट फूड से लेकर देसी जायकों का चटखारा ले रहे थे। उत्तर से लेकर दक्षिण तक के व्यंजन विशाल पंडाल में लगी मेजों पर शाही दावत का हिस्सा थे।
दूल्हा राजा दिल्ली में डाक्टर हैं। बारात कारों से आई लेकिन दूल्हे राजा के लिए हेलीकॉप्टर बुक था। बुरा हो मौसम का जो उड़ान संभव न हो सकी तो दूल्हा को भी कार से आना पड़ा। कार तो कार है लेकिन लक्जीरियस विदेशी कार हो तो उसकी शान समाज में अलग ही होती है। दूल्हा राजा कार से गांव पंहुचे और विवाह स्थल तक उन्हें ट्रैक्टर पर बिठा कर लाया गया। आखिर किसानों के मसीहा के यहां शादी थी तो ट्रैक्टर प्रेम कैसे छूटता। विदाई के समय हेलीकॉप्टर आ गया। गांव में ही हेलीपेड बनबाया गया था। दुल्हन का ख्वाब था कि उसके सपनों का राजकुमार उसे आसमान में उड़ा कर ले जाए लेकिन तब तक मीडिया वाले बाबा से शादी की फिजूलखर्ची पर कुछ सवाल पूछ चुके थे। मीडिया से भी किसी की खुशी बरदाश्त नहीं होती! लिहाजा चौधरी टिकैत ने दूल्हे से कह दिया कि लड़की तो सुबह ही विदा होगी। दुल्हन तो नहीं उड़ पाई लेकिन दूल्हा पक्ष के निकटतम परिजन हेलीकॉप्टर से वापस हो गए।
अब हम बताते हैं कि मीडिया ने टिकैत पर क्या सवाल दागे। पत्रकारों ने पूछा कि शादी में कितने लोग आए तो टिकैत ने कहा कि मैने तो अभी तक सिर्फ दूल्हे को देखा है। जब उनसे पूछा गया कि पचास हजार लोगों के भोज का आयोजन किसके लिए था और कौन लोग शामिल हुए तो बाबा टिकैत मासूमियत से बोले कि सभी घर के लोग हैं। कितना खर्च हुआ? किसान नेता का जबाव था कि पांच रूपये की शादी है। कोई दिखावा नहीं। सादगी के साथ। इसके बाद जब उन्हें याद दिलाया कि आपने किसानों की पंचायत कर ये फैंसला लिया था कि शादी में कोई दिखावा नहीं होगा, पंद्रह लोगों से ज्यादा की बारात नहीं होगी और सादा भोजन कराया जाएगा, तब ये हेलीकॉप्टर और दिखावा क्यों हुआ? बड़ी मासूमियत से महात्मा जी बोले कि भई कहां आया हेलीकॉप्टर, मुझे तो मालूम नहीं....मैं तो यहां से कहीं निकला नहीं....और मेहमानों की आवभगत तो गांव वाले कर रहे हैं।
ये तो एक बानगी है। देश में रोज शादियां होती हैं और कुछ अपवादों को छोड़कर राजा से लेकर रंक तक सभी अपनी हैसियत के मुताबिक या हैसियत से ज्यादा खर्च करते हैं। हम भी उन समारोह का हिस्सा बनते हैं। क्या कभी हमें ये सब अखरता है। यदि अखरता है तो शुरुआत तो खुद से ही करनी होगी। अगर ये शुरूआत चौधरी टिकैत ने की होती तो इसका व्यापक असर होता क्योंकि वह उत्तर भारत में किसानों के सबसे बड़े अलंबरदार हैं।
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