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Friday, June 26, 2009

इंतजार में है धीमा जहर

गर्मी में जब आप घर से बाहर निकलते हैं तो प्‍यास लगती है। गला सूख जाता है। ठंडा पीने को मन करता है। लेकिन शीतल पेय के नाम पर मैंगो शेक, बेल का शर्बत या रसना के नाम पर परोसे जाने वाले पेय पदार्थों को पीने से पहले ये जान लीजिए कि कहीं आप धीमा जहर तो अपने पेट में नहीं उड़ेल रहे। क्‍या आपने कभी सोचा है कि तीन और पांच रूपये में बिकने वाले बेल के शर्बत पर मंहगाई की मार क्‍यों नहीं है? अट्ठाइस रूपये किलो चीनी और दस रुपये का बेलफल आपको मुफ्त के दामों में कैसे मिल रहा है। बाइस से तीस रूपये किलो के आम और चौबीस रूपये प्रति लीटर के दाम वाले दूध से बना मैंगो शेक पांच रूपये गिलास में कैसे बिक रहा है। खास बात ये है कि ये गोरखधंधा बस अड्डों, स्‍टेशनों या ऐसी जगह चलता है जहां मुसाफिरों की अच्‍छी-खासी तादाद रहती है। कचहरी या बस अड्डों के पास बिकने वाला पांच रूपये गिलास का मैंगो शेक हो या भीड़-भाड़ वाली जगहों पर रसना के नाम पर एक रूपये में बेचा जाने वाला मीठा शर्बत। इस तरह के सभी सस्‍ते ड्रिंक आपकी सेहत से खिलबाड़ कर रहे हैं।
बेल का शर्बत आयुर्वेदिक दवा भी है और ठंडा शर्बत भी। गर्मी में सूखते ओठ और गले को तर करने के लिए आपको तीन रूपये में यदि बेल का शर्बत मिले तो आप पानी की जगह वही पीना पसंद करेंगे। वैसे भी पेट और पेट से सं‍बंधित बीमारियों के लिए बेल का शर्बत फायदेमंद माना जाता है। लेकिन बाजार में मिलने वाला बेल के शर्बत में बेलफल नाम मात्र का होता है। आप कभी भी देखेंगे कि बेल के गूदे को पहले से तैयार एक सीरप में मिलाकर फेंटा जाता है। दरअसल पहले से तैयार ये घोल सेकरीन और अरारोट से मिलकर बनाया जाता है। बेल का ये शर्बत पेट में जाते ही आपको लगता है कि अंदर ठंडक गई लेकिन हकीकत ये है कि आप बेल का शर्बत नहीं बल्कि अपने पेट के अंदर बीमारियां धकेल रहे होते हैं। आपने कभी सोचा है कि इसके लिए जिम्‍मेदार कौन है। आप कहेंगे कि मिलावट करने वाले। लेकिन ये आधा सच है। जिम्‍मेदार आप भी हैं क्‍योंकि आप जानते हैं कि एक बेलफल फल की दुकान पर दस रूपये तक का मिलता है और चीनी के दाम तीस रूपये प्रति किलो के करीब हैं। अगर बेल के गूदे और चीनी के घोल से शर्बत बनेगा तो एक गिलास की लागत ही दस रूपये से ज्‍यादा बैठेगी। ऐसे में आप तीन या पांच रूपये खर्च कर जो बेल का शर्बत पी रहे होते हैं वह बिना गोलमाल के बन ही नहीं स‍कता।
ये कहानी सिर्फ बेल के शर्बत की नहीं है बल्कि खुले में बिकते किसी भी शीतल पेय की तरफ जब आप हाथ बढ़ाएंगे और सस्‍ते के लालच में आएंगे तो आपको धीमा जहर ही मिलेगा। पांच रूपये में मैंगो शेक हर शहर में मिलता है लेकिन उसमें होता है पपीता, एसेंश और सेकरीन का घोल। जब मैने एक मैंगो शेक बनाने वाले दुकानदार से बात की तो उसने माना कि इतने दाम में मैंगो शेक नहीं मिल सकता लेकिन उसने कहा कि वह ऐसा नहीं करता और मिलावट रहित मैंगो शेक बनाता है। क्‍या ये संभव है कि कोई व्‍यक्ति घाटे का कोई कारोबार करे। आप खुद सोचिए कि बीस से पच्‍चीस रूपये किलो आम और इसी भाव के चीनी और दूध से बना मैंगो शेक पांच रूपये में कैसे मिल सकता है। अगर आप खुले में सस्‍ता माल खरीदेंगे तो उसमें सड़ा-गला पपीता, ऐशेंस और सिंथेटिक पाउडर से बने दूध से तैयार मैंगो शेक ही मिलेगा जो आपके पेट की लुगदी बना देगा। इसी तरह कई प्रकार के शीतल पेय रास्‍ते में बिकते हैं और आप गर्मी से त्रस्‍त होने पर अपने को रोक नहीं पाते। कई जगह महंगाई के इस दौर में भी एक रूपये का शर्बत मिलता है। एक रूपये में तैयार रसना कह कर बेचे जाने वाले इस शर्बत में लागत आती है पचास पैसे और ये दिन भर में दो-ढाई सौ रूपये का मुनाफा कमा लेते हैं। यह शर्बत सेकरीन, रंग, कैमिकल दूध मिलाकर शर्बत तैयार होता है; बरना इतने पैसे में चीनी वाला शर्बत कैसे बन सकता है।
दरअसल हम असल लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था में जीते हैं। इसलिए यहां मिलावटखोरों और धीमा जहर परोसने वालों को भी खुली छूट है और उस विभाग को भी आराम फरमाने की जिसपर ये जिम्‍मेदारी है कि वह उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करें जो खान-पान में मिलावट कर आम आदमी की सेहत के साथ खिलवाड़ करते हैं। आप अपने शहर में देखें या किसी दूसरे शहर में जाएं; आपको पांच रूपये की लस्‍सी, एक रूपये का रसना शर्बत, तीन रूपये में बेल का शर्बत या फलों का शेक बिकते हुए दिखाई दे जाएगा। लोगों की भीड़ भी होगी लेकिन ये आपके उपर है कि आप बीमारियां पीना चाहते हो या आपको अपनी सेहत से प्‍यार है।

तकनीकी सहयोग- शैलेश भारतवासी

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