Saturday, December 18, 2010
तंदूर से फ्रिजर तक : भुनती और जमती औरत
Saturday, January 17, 2009
एक और दामिनी
गैंग रेप की शिकार एक युवती की बेबसी अब आंखों से झर-झर बहने लगी है। ये वही युवती है जिसके साथ करीब दो साल पहले मेरठ के एक नामी-गिरामी नर्सिंग होम में सामुहिक दुराचार हुआ था। जिस नर्सिंग होम में वह अपनी जीवन रक्षा के लिए आईसीयू में भर्ती थी, वहीं के रक्षकों ने इस युवती की इज्जत को तार-तार कर दिया था। इस घटना से गुस्साई जनता ने नर्सिंग होम में जमकर उत्पात मचाया था और बाद में नर्सिंग होम सील कर दिया गया था। तब से आज तक ये युवती इंसाफ के लिए लड़ रही है लेकिन अब फिर एक बार ये छली गई है। तब रक्षकों ने इस युवती की इज्जत तार-तार की थी और अब इस युवती के उन अपनों ने इसकी अस्मत का सौदा किया है जो इसे अपनी बहु बनाकर ले गए थे। फर्क इतना है कि जीवन रक्षकों को इस युवती की अस्मत लूटने के लिए नशे का इंजेक्शन देना पड़ा था और ससुरालियों ने इसके होशोहवास में इसकी अस्मत की कीमत लगाई सत्तरह लाख रूपये। जी हां! सत्तरह लाख रूपये में दुराचारियों से अपनी गृहलक्ष्मी की अस्मत का सौदा करने वाले पति परमेश्वर और ससुरालिए इस युवती को घर से इसलिए धक्का दे चुके हैं क्योंकि ये हर हाल में दुराचारियों को सलाखों के पीछे देखना चाहती है।
नर्सिंग होम की शिकार युवती और उसके परिजनों को क्या मालूम था कि जो परिवार इस हादसे के बाद देवतुल्य होकर आएगा, वही बाद में पिशाच यौनि में तब्दील होकर सामने खड़ा मिलेगा। निधि की शादी हापुड़ के शैलजा बिहार के सुमित से बीती 15 फरवरी को हुई थी और शादी के वक्त दूल्हे राजा ने वचन दिया था कि कभी भी वह निधि को उस हादसे की याद नहीं दिलाएगा। कभी उसे प्रताडि़त नहीं करेगा लेकिन शादी के कुछ दिनों बाद ही उसे जलील किया जाने लगा। उस पर दबाव बनाया जाने लगा कि वह मायके से पांच लाख रूपये लेकर आए जबकि निधि के घरवालों ने शादी में अपनी हैसियत से अधिक दस लाख रूपया खर्च किया था। इसी बीच सुमित और उसके घरवालों ने निधि के दुराचारियों से सत्तरह लाख रूपये में उसकी अस्मत का सौदा कर लिया और निधि से दुराचारियों को अदालत में क्लीन चिट देने को कहा तो वह इसके लिए तैयार नहीं हुई। दुराचारियों के बाद अपने ही ससुरालियों के अत्याचारों की शिकार युवती अब दुराचारियों के साथ-साथ अत्याचारी पति और ससुरालियों के खिलाफ भी उठ खड़ी हुई है। उसने मेरठ के आला अफसरों के यहां गुहार लगाकर इंसाफ दिलाने की मांग की है। फिलहाल निधि के चार दुराचारियों में से दो जेल में है जबकि षड्यंत्र में शामिल दो लोगों को जमानत मिल गई है और अदालत में निधि के बयान हो चुके हैं। देखना है कि इतने दबावों के बीच निधि की जंग का क्या परिणाम निकलता है और आला अफसरों के सामने लगाई गई गुहार आरोपियों और ससुरालियों पर कितनी लगाम लगा पाती है।
Tuesday, October 14, 2008
फिर याद आए मातादीन
ये कोई नई खबर नहीं है। बस! समय, स्थान और पात्र बदले हुए हैं। पुलिसिया किस्सों में ये आम हैं। परंपरागत हैं। लेकिन फिर भी ये घटनाएं जहां भी हों, परदे में नहीं रहनी चाहिएं। आप अपनी मनपसंद बात न सुनने या पढ़ने पर मीडिया को चाहें जितना भी कोसें लेकिन ये भी सच है कि ऐसे मामले गिनती की दुनिया से परे हैं जिनमें मीडिया की वजह से न्याय का दीपक जल पाता है।
इंस्पेक्टर मातादीन का किस्सा तो आपने सुना होगा। अगर नहीं तो हम सुनाए देते हैं। मातादीन को टास्क मिला कि उन चूहो को पकड़ कर लाया जाए जिसने सरकारी गोदाम के माल को चट कर दिया। तीन दिन का समय और मुश्किल टास्क लेकिन मातादीन ने मुमकिन कर दिखाया। कप्तान साहब के सामने मातादीन एक हाथी को लाकर खड़े हो गए और बोले कि हुजूर यही वह चूहा है। कप्तान साहब झल्लाए तो इंस्पेक्टर बोले कि हुजूर ये इकबाल-ए-जुर्म कर रहा है। इंस्पेक्टर ने हाथ के डंडे को हवा में लहराते हुए हाथी से पूछा कि बताओ सरकारी गोदाम के माल को चट करने वाले चूहे हो या नहीं? हाथी जोर-जोर से सूंड और सिर हिलाने लगा। ऐसा ही कुछ हुआ है उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में जहां पुलिस की कहानी में मार डाला गया बच्चा वापस आ गया और उसके अपहृता और कथित हत्यार छह महीने से जेल की हवा खा रहे हैं।
पुलिस की ऐसी कारगुजारियां अक्सर देखने-सुनने को मिलती हैं और निरपराध लोग सींखचों के पीछे चले जाते हैं। मुजफ्फरनगर के सुनील, सोनू और रवि पिछले छह महीने से मुजफ्फरनगर की जिला जेल में बंद हैं। मुजफ्फरनगर के भोपा थाना इलाके के रहने वाले इन तीनों लोगों पर छठी क्लास में पढ़ने वाले राजन के अपहरण और हत्या का इल्जाम है। पुलिस ने करीब छह महीने पहले राजन का बस्ता और हत्या में प्रयोग किया गया चाकू भी गंग नहर के किनारे से बरामद कर लिया और धारा एक सौ इकसठ के तहत अपराधियों के बयान भी दर्ज कर लिए जिसमें तीनों अभियुक्तों ने इकबाल-ए-जुर्म कुछ इस तरह से किया-''सोनू और रवि ने अपहृत राजन के हाथ पकड़े और सुनील ने उसकी पेट में चाकू घोंपकर नहर में फेंक दिया।'' इसी इकबाल-ए-जुर्म के बाद कथित अपराधियों की कथित निशानदेही पर आला कत्ल यानी हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया लेकिन अब राजन वापस आ गया है। यानी जिस बच्चे को अपहरण के बाद मार डाला गया और तीन युवक पिछले छह महीने से जेल की हवा खा रहे हैं, जबकि वह बच्चा अभी जिंदा है।
आप समझ ही सकते हैं कि राजन के वापस आ जाने के बाद क्या हो रहा होगा। राजन के वापस आते ही मुजफ्फरनगर पुलिस सकते में आ गई है तो दूसरी तरफ जेल में बंद राजन की कथित हत्या के हत्यारोपियों के घरवाले पुलिस की हाय-हाय कर प्रदर्शन कर रहें हैं। उनका आरोप है कि पुलिस ने रंजिश के चलते राजन के पिता से रिश्वत खाकर अपहरण और हत्या का ड्रामा करवाया और सुनील, सोनू और रवि को कई दिन तक अवैद्य हिरासत में रखकर जमकर मारा-पीटा और फिर कथित इकबाल-ए-जुर्म के आधार पर जेल भेज दिया। पिछले छह महीने से जेल में बंद तीनों युवकों के घर वाले अब इंसाफ मांग रहे हैं लेकिन साथ में वे शंका भी जता रहें हैं कि उन्हें न पहले इंसाफ मिला था और न अब उम्मीद है।
राजन के जिंदा लौटने पर पुलिसिया कहानी और षडयंत्र का आधा सच तो सामने आ चुका है लेकिन बाकी के सच पर पर्दा डाले रखने और महकमें की तार-तार हो रही लाज को बचाने के लिए पुलिस ने एक बार फिर से लीपापोती शुरू कर दी है। थानेदार साहब कह रहे हैं कि मामला उनसे पहले थानेदार साहब के कार्यकाल का है। और साथ ही साथ अपहृत राजन और उसके पिता को थाने में बुलाकर बिठा लिया है और वे दोनों अपहरण की कहानी को सच बता रहे हैं।
अब एक तरफ राजन और उसके परिजन अपने अपहरण की मॉलीवुड कथा सरीखी अपहरण की कहानी सुना रहे हैं वहीं अभियुक्तों के परिजनों का कहना है कि राजन पहले भी कई बार घर से भाग चुका है और गायब हो जाना उसकी फितरत है। सचाई क्या है? आधा सच तो सामने है। पुलिस के कागजों में मर चुका राजन वापस आ गया है। कब सामने आएगा बाकी बचा सच।
Saturday, September 6, 2008
जब प्यार किया तो डरना होगा
दक्षिण की मुझे जानकारी नहीं, इसलिए वहां के विषय में कुछ कहना बेमानी है। लेकिन ये सच है कि हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश इस मामले में खासे बदनाम है। इस बदनामी और कबीलाई संस्कृति पर अंकुश लगाने के लिए उत्तर प्रदेश की पुलिस ने कबायद शुरू की है। हांलाकि सोशल पुलिसिंग की ये कबायद अभी कागजों पर है लेकिन पुलिस को कोसने का यदि हमें हक है तो उसकी अच्छी पहल या सिर्फ 'सोच' की भी तारीफ की जानी चाहिए। अब पुलिस अपने मुखबिर तंत्र के माध्यम से गली, मोहल्ले और गांवों में बढ़ती प्रेम की पींगों पर नजर रखेगी। यानी हर थाने में प्रेमी युगलों का डाटा बैंक तैयार होगा। ग्राम चौंकीदार, बीट कांस्टेबल और मुखबिरों के माध्यम से पुलिस को जैसे ही पनपते प्रेम की कोई कहानी पता चलेगी तो वह प्रेमी-प्रेमिका के घर वालों को सूचित करेगी। अगर प्रेम संबंध इतने पर भी जारी रहे, युवक-युवती नहीं माने और संबंध प्रगाढ़ हो गए तो दोनों के अभिवावकों को बिठाकर सम्मानजनक तरीके से हल कराने की दिशा में प्रयास करेगी। मतलब साफ है कि प्रेम विवाह में पुलिस बिचौलिए की भूमिका निभाने से भी नहीं हिचकेगी। अब आप सोच सकते हैं कि आपरेशन मजनू चलाने वाली या डंडे की भाषा समझने-समझाने वाली पुलिस दिल और दिल्लगी के मामलों में कैसे पड़ गई। खाकी वर्दी के भीतर से यकायक प्रेमरस कैसे टपकने लगा। दरअसल प्रेम जहां नई तरह से जिंदगी जीने की कला सिखाता है वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ये अक्सर कानून व्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती बन जाता है। प्रेम संबंधों में हत्याएं ही नहीं दंगे तक हो जाते हैं, शायद यही वजह है कि उत्तर प्रदेश के पुलिस मुखिया ने सभी जिलों के थानों में टास्क आर्डर भेज कर पुलिस महकमे को एक नया काम दिया है। पुलिस विभाग का मानना है कि अक्सर युवा अपनी प्रेमिका को लुभाने के लिए अनाप-शनाप खर्च करते हैं जिसके लिए उन्हें हमेशा पैसे की दरकार रहती है। ऐसे में युवा लूट, चैन स्नेचिंग जैसे अपराधों की तरफ भी बढ़ जाते हैं। इसलिए पुलिस महकमें को आगाह किया गया है कि जैसे ही किसी युवा के प्रेम संबंधों का पता चले वैसे ही उन पर निगरानी बढ़ा दी जाए। उसकी आय, धन की आमद के सभी श्रोत और रंग-ढंग पर पैनी नजर रखी जाए। साथ ही प्रेमी-प्रेमिका के घर वालों को आगाह कर सामाजिक मान्यता दिलाने की पहल की जाए।
हांलाकि डंडा चलाने वाली पुलिस के लिए ये काम आसान नहीं है लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सामाजिक ढांचे में प्रेम संबंधों के चलते होने वाले हीनियस क्राइम को रोकने के लिए शायद सोशल पुलिसिंग के अलावा कोई और चारा भी नहीं है। तो आप समझ लीजिए कि यदि आप उत्तर प्रदेश में रहते हैं, युवा हैं, आपका दिल किसी के लिए धड़कता है, आप प्रेम की पींगे बढ़ा रहें हैं तो सावधान रहें क्योंकि हो सकता है कि कुछ आंखे हमेशा आपकी टोह में पीछे लगी रहें।
हमारा मानना है कि मौजूदा समय में सोशल पुलिसिंग की बेहद जरूरत है लेकिन इसमें मतभेद हो सकते हैं कि सोशल पुलिसिंग का स्ट्रक्चर और चेहरा कैसा हो। हम चाहते हैं कि हमारे सुधी पाठक, चिंतक और समाज के अलंबरदार इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचें। कैसी हो सोशल पुलिसिंग? कैसा हो उसका स्वरूप? सीमाएं क्या हों? ऐसे तमाम मुद्दों पर आपकी विस्तृत राय की अपेक्षा है।