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Saturday, December 18, 2010

तंदूर से फ्रिजर तक : भुनती और जमती औरत

करीब पंद्रह साल पहले एक आदमी ने अपने प्‍यार को तंदूर में भून डाला था और पंद्रह साल बाद एक दूसरे आदमी ने अपने प्‍यार को बर्फ में जमा दिया। पंद्रह सालों में दुनिया बदल गई लेकिन नहीं बदला तो 'मर्द' और उसकी 'मर्दानगी'। दुनिया में हम विकासशील से विकसित की दौड़ में पंहुच गए तो मर्द भी तंदूर से डीप-फ्रिजर तक पंहुच गया। कहते हैं कि शिक्षा के साथ संपन्‍नता और सभ्‍यता में भी इजाफा होता है लेकिन लगता है कि दरिंदगी की रफ्तार इन सबसे कई गुना चलती है; तभी तो देहरादून की अनुपमा बहत्‍तर टुकड़ों में कटकर डीप फ्रिजर में पड़ी रही और उसके कथित तौर पर शिक्षित, सभ्‍य और संपन्‍न पति सत्‍तावन दिनों तक एक दिन भी आत्‍मग्‍लानि नहीं हुई। कहते हैं कि हिंदु या भार‍तीय शादियां किसी लाटरी की तरह होती हैं। शादी के बाद ही पता चलता है कि लाटरी लाख की हुई या खाक की। लेकिन सोफ्टवेयर इंजीनियर राजेश गुलाटी ने तो उड़ीसा की अनुराधा को दिल की आवाज पर अपनी संगिनी बनाया था। दोनों ने लव मैरिज की थी और अमेरिका में रहने के बाद जब वह अपने वतन लौटे तो देहरादून में आकर बस गए। अनुराधा के जुड़वा बच्‍चे हुए जो उनके साथ ही रह रहे थे और अब चार साल के हैं। तब आखिर ऐसा क्‍या हुआ जिसने आदमी को दरिंदा बना दिया या यूं कहिए कि आदमी की खोल में छिपा दरिंदा यकायक बाहर आ गया। क्‍या मर्दानगी ही आदमी की दरिंदगी है या दरिंदगी में ही मर्दानगी का वास होता है या फिर औरत इस सृष्टि में इसी तरह के किसी हश्र के लिए जन्‍मी है।
आज से करीब पंद्रह साल पहले दो जुलाई 1995 को नैना साहनी तंदूर में मुर्गे की तरह भूनी गई थी। उसके राजनेता पति ने गोली मारकर उसे तंदूर में सेंक दिया था। नैना साहनी के दबंग पति सुशील शर्मा को शक था कि उसकी पत्‍नी के किसी दूसरे मर्द के साथ संबंध हैं। सुशील ने अपनी पायलट पत्‍नी की उड़ान बंद करने के लिए पहले उसे गोली मारी और फिर उसके टुकड़े कर उसे एक होटल के तंदूर में डालकर भूनना शुरु कर दिया ताकि कोई सुबूत ही न बचे लेकिन वहां से गुजर रहे एक सिपाही की आत्‍मा तंदूर से उठती गंध ने जगा दी और वह थाने से पुलिस लेकर पंहुच गया। सुशील शर्मा तो मौके से फरार हो गया लेकिन होटल का मालिक केशव हत्‍थे चढ़ गया तो पता चला कि दिल्‍ली युवा कांग्रेस का कद्दावर नेता सुशील अपनी पत्‍नी के टुकड़ों को तंदूर में भून रहा था। ठीक कुछ इसी तरह राजेश गुलाटी ने बीती 17 अक्‍टूबर को पहले अपनी पत्‍नी का वध किया और उसके बाद बाजार से डीप फ्रिजर लाकर उसमें जमा दिया। इसके बाद उसके शातिर दिमाग ने बाजार से पत्‍थर काटने का कटर और आरी लेकर उसके 72 टुकड़े किए और धीरे-धीरे एक-एक टुकड़े को वह मंसूरी की वादियों में फेंककर ठिकाने लगाता रहा। उसके बच्‍चे मां को याद करते तो वह उन्‍हें पुचकार कर चुप करा देता कि उनकी मां दिल्‍ली गई है, जल्‍दी आ जाएगी। यदि राजेश की ससुराल से फोन आता तो वह उन्‍हें भी कोई बहाना बनाकर टरका देता। बाहर का कोई आदमी राजेश पर दरिंदा होने का शक भी नहीं कर सकता था क्‍योंकि अमेरिका में नौकरी कर लौटा सोफ्टवेयर इंजीनियर राजेश आज की सोसायटी के लिए एक आयकॉन भी था। सुशील को तो मौत की सजा सुना दी गई और हो सकता है कि दस-बीस साल में राजेश का भी वही हश्र हो लेकिन सवाल उठता है कि समाज के उस वर्ग के लोग दरिंदंगी की सीमाएं क्‍यों पार कर रहे हैं जिनको समाज एक बिंब की तरह देखता है; जिन से प्रभावित होता है और उनकी तरफ देखकर वैसा ही बनने की आकांक्षा पालता है।
ऐसा नहीं है कि नैना और अनुपमा दो ही उदाहरण हैं। ऐसी घटनाएं हमारे समाज में अलग-अलग जगहों पर आए दिन घटित होती हैं। इनमें से बहुत सी घटनाएं तो कभी अखबारों की सुर्खियां भी नहीं बनतीं। जेसिका लाल, प्रियदर्शन मट्टू या कुसुम बुद्धिराजा जैसे नाम तो मीडिया की सुर्खियों की वजह से जाने जाते हैं वरना हमारा समाज आमतौर पर मर्द को माफ करने का ही हिमायती रहता है और बहुत सी अमानवीय दुराचार की कहानियां घर की चहारदीवारी से बाहर भी नहीं आ पातीं। अगर ऐसा न होता तो मुजफ्फरनगर की इमराना के बलात्‍कारी ससुर को गांव की पंचायत सिर्फ सात जूतों की सजा सुनाकर वरी न करती। यानी एक निरीह औरत की अस्‍मत गांव की पंचायत ने सिर्फ सात जूतों में ही निपटा दी लेकिन इमराना को भी हम मीडिया के जरिए ही जानते हैं वरना न जाने कितनी इमरानाएं रोजाना इस तरह के अत्‍याचार सहती हैं। समाज और पंचायते ही नहीं अदालतों का रवैया भी इससे कहीं इतर नहीं है। 1977 में महाराट की एक आदिवासी लड़की का थाने में ही बलात्‍कार हुआ था तब भी आरोपी सिपाहियों को वरी करते हुए मथुरा नाम की उस आदिवासी लड़की को ही निचली अदालत ने बदचलन करार दिया था। इस फैंसले पर भी खूब हंगामा हुआ और बाद में हाईकोर्ट ने दोनों बलात्‍कारी सिपाहियों को आजीवन कारावास की सजा दी लेकिन एक बात साफ है कि औरत की आबरू मर्द के नजरिए में कोई अहमियत नहीं रखती। हर साल करीब पच्‍चीस हजार महिलाओं की इज्‍जत तार-तार होती है, इतनी ही अगुवा की जाती हैं तो इससे तीस गुना या और भी अधिक घर पर 'मर्दो' के हाथों रोज पिटती हैं।
सवाल उठता है कि इसके लिए दोषी समाज है, गिरते नैतिक मूल्‍य हैं या अपसंस्‍कृति इसके लिए दोषी है? क्‍या हमारी लाचार कानून-व्‍यवस्‍था इन पवृतियों को निरंकुश करने में सहायता नहीं कर रही है? सच तो यही है कि आज हमारी कानून-व्‍यवस्‍था की हालत दिल दहला देने वाली है। जेसिका लाल, प्रियदर्शिनी मट्टू, शिवानी भटनागर, मनू शर्मा, बीएमडब्‍लू कांड लगातार हमारे दिमाग में हथौड़े नहीं बजाते। नैना साहनी कांड में लाश को टुकड़ों में विभाजित कर तंदूर में भूना जाना क्‍या हमारे समाज के गर्त में जाने, उसके अधोपतन के उदाहरण नहीं है। या फिर एक पढ़े-लिखे विदेश में रहे एक सोफ्टवेयर इंजीनियर द्वारा अपनी पत्‍नी की हत्‍या कर पत्‍थर काटने की मशीन से उसके टुकड़े कर उसे डीप फ्रिज में रखना आदमी के पत्‍थर हो जाने की कहानी नहीं तो और क्‍या है? आदमी के दरिंदा होने की कहानियां हमारे समाज में लगातार क्‍यों बढ़ रहीं हैं; ये एक ऐसा यक्षप्रश्‍न है जिसका हल किसी युधीष्ठिर के पास ही हो सकता है लेकिन अफसोस कि हमारा समाज आजकल दुशासन पैदा कर रहा है और उनके हाथ भी खून से रंगे हुए हैं जिनपर युगनिर्माण की जिम्‍मेदारी है। ऐसे में कहना मुश्किल है कि कब तक नैना तंदूर में और अनुपमा बर्फ में जमती रहेंगी...ये दो तो फिलहाल एक प्रतीक हैं वरना इस वेद में तो ऋचाएं बहुत हैं।

Saturday, January 17, 2009

एक और दामिनी

दामिनी सिर्फ मुंबईया फिल्‍म की एक पात्र ही नहीं बल्कि आज के समाज की कड़वी हकीकत है। ऐसी ही एक गैंग रेप की शिकार युवती एक बार फिर अपने ससुरालियों से छली गई। इस दामिनी के ससुरालियों ने उसकी अस्‍मत लूटने वालों से ही सत्‍तरह लाख रूपये में अस्‍मत का सौदा कर लिया। अब मेरठ की ये दामिनी दोराहे पर खड़ी है और अपनी अस्‍मत लूटने वालों को हर हालत में कानून से सजा दिलाना चा‍हती है। उसने ससुराल की दहलीज लांघ दी है और इंसाफ के लिए हुक्‍मरानों की दहलीज पर फरियाद की है। देखना है कि इस दामिनी को इंसाफ मिलता है या ये व्‍यवस्‍था के नक्‍कारखाने में तूती की आवाज बनकर रह जाती है।
गैंग रेप की शिकार एक युवती की बेबसी अब आंखों से झर-झर बहने लगी है। ये वही युवती है जिसके साथ करीब दो साल पहले मेरठ के एक नामी-गिरामी नर्सिंग होम में सामुहिक दुराचार हुआ था। जिस नर्सिंग होम में वह अपनी जीवन रक्षा के लिए आईसीयू में भर्ती थी, वहीं के रक्षकों ने इस युवती की इज्‍जत को तार-तार कर दिया था। इस घटना से गुस्‍साई जनता ने नर्सिंग होम में जमकर उत्‍पात मचाया था और बाद में नर्सिंग होम सील कर दिया गया था। तब से आज तक ये युवती इंसाफ के लिए लड़ रही है लेकिन अब फिर एक बार ये छली गई है। तब रक्षकों ने इस युवती की इज्‍जत तार-तार की थी और अब इस युवती के उन अपनों ने इसकी अस्‍मत का सौदा किया है जो इसे अपनी बहु बनाकर ले गए थे। फर्क इतना है कि जीवन रक्षकों को इस युवती की अस्‍मत लूटने के लिए नशे का इंजेक्‍शन देना पड़ा था और ससुरालियों ने इसके होशोहवास में इसकी अस्‍मत की कीमत लगाई सत्‍तरह लाख रूपये। जी हां! सत्‍तरह लाख रूपये में दुराचारियों से अपनी गृहलक्ष्‍मी की अस्‍मत का सौदा करने वाले पति परमेश्‍वर और ससुरालिए इस युवती को घर से इसलिए धक्‍का दे चुके हैं क्‍योंकि ये हर हाल में दुराचारियों को सलाखों के पीछे देखना चाहती है।
नर्सिंग होम की शिकार युवती और उसके परिजनों को क्‍या मालूम था कि जो परिवार इस हादसे के बाद देवतुल्‍य होकर आएगा, वही बाद में पिशाच यौनि में तब्‍दील होकर सामने खड़ा मिलेगा। निधि की शादी हापुड़ के शैलजा बिहार के सुमित से बीती 15 फरवरी को हुई थी और शादी के वक्‍त दूल्‍हे राजा ने वचन दिया था कि कभी भी वह निधि को उस हादसे की याद नहीं दिलाएगा। कभी उसे प्रताडि़त नहीं करेगा लेकिन शादी के कुछ दिनों बाद ही उसे जलील किया जाने लगा। उस पर दबाव बनाया जाने लगा कि वह मायके से पांच लाख रूपये लेकर आए जबकि निधि के घरवालों ने शादी में अपनी हैसियत से अधिक दस लाख रूपया खर्च किया था। इसी बीच सुमित और उसके घरवालों ने निधि के दुराचारियों से सत्‍तरह लाख रूपये में उसकी अस्‍मत का सौदा कर लिया और निधि से दुराचारियों को अदालत में क्‍लीन चिट देने को कहा तो वह इसके लिए तैयार नहीं हुई। दुराचारियों के बाद अपने ही ससुरालियों के अत्‍याचारों की शिकार युवती अब दुराचारियों के साथ-साथ अत्‍याचारी पति और ससुरालियों के खिलाफ भी उठ खड़ी हुई है। उसने मेरठ के आला अफसरों के यहां गुहार लगाकर इंसाफ दिलाने की मांग की है। फिलहाल निधि के चार दुराचारियों में से दो जेल में है जबकि षड्यंत्र में शामिल दो लोगों को जमानत मिल गई है और अदालत में निधि के बयान हो चुके हैं। देखना है कि इतने दबावों के बीच निधि की जंग का क्‍या परिणाम निकलता है और आला अफसरों के सामने लगाई गई गुहार आरोपियों और ससुरालियों पर कितनी लगाम लगा पाती है।

Tuesday, October 14, 2008

फिर याद आए मातादीन



ये कोई नई खबर नहीं है। बस! समय, स्‍थान और पात्र बदले हुए हैं। पुलिसिया किस्‍सों में ये आम हैं। परंपरागत हैं। लेकिन फिर भी ये घटनाएं जहां भी हों, परदे में नहीं रहनी चाहिएं। आप अपनी मनपसंद बात न सुनने या पढ़ने पर मीडिया को चाहें जितना भी कोसें लेकिन ये भी सच है कि ऐसे मामले गिनती की दुनिया से परे हैं जिनमें मीडिया की वजह से न्‍याय का दीपक जल पाता है।


इंस्‍पेक्‍टर मातादीन का किस्‍सा तो आपने सुना होगा। अगर नहीं तो हम सुनाए देते हैं। मातादीन को टास्‍क मिला कि उन चूहो को पकड़ कर लाया जाए जिसने सरकारी गोदाम के माल को चट कर दिया। तीन दिन का समय और मुश्किल टास्‍क लेकिन मातादीन ने मुमकिन कर दिखाया। कप्‍तान साहब के सामने मातादीन एक हाथी को लाकर खड़े हो गए और बोले कि हुजूर यही वह चूहा है। कप्‍तान साहब झल्‍लाए तो इंस्‍पेक्‍टर बोले कि हुजूर ये इकबाल-ए-जुर्म कर रहा है। इंस्‍पेक्‍टर ने हाथ के डंडे को हवा में लहराते हुए हाथी से पूछा कि बताओ सरकारी गोदाम के माल को चट करने वाले चूहे हो या नहीं? हाथी जोर-जोर से सूंड और सिर हिलाने लगा। ऐसा ही कुछ हुआ है उत्‍तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में जहां पुलिस की कहानी में मार डाला गया बच्‍चा वापस आ गया और उसके अपहृता और कथित हत्‍यार छह महीने से जेल की हवा खा रहे हैं।

पुलिस की ऐसी कारगुजारियां अक्‍सर देखने-सुनने को मिलती हैं और निरपराध लोग सींखचों के पीछे चले जाते हैं। मुजफ्फरनगर के सुनील, सोनू और रवि पिछले छह महीने से मुजफ्फरनगर की जिला जेल में बंद हैं। मुजफ्फरनगर के भोपा थाना इलाके के रहने वाले इन तीनों लोगों पर छठी क्‍लास में पढ़ने वाले राजन के अपहरण और हत्‍या का इल्‍जाम है। पुलिस ने करीब छह महीने पहले राजन का बस्‍ता और हत्‍या में प्रयोग किया गया चाकू भी गंग नहर के किनारे से बरामद कर लिया और धारा एक सौ इकसठ के तहत अपराधियों के बयान भी दर्ज कर लिए जिसमें तीनों अभियुक्‍तों ने इकबाल-ए-जुर्म कुछ इस तरह से किया-''सोनू और रवि ने अपहृत राजन के हाथ पकड़े और सुनील ने उसकी पेट में चाकू घोंपकर नहर में फेंक दिया।'' इसी इकबाल-ए-जुर्म के बाद कथित अपराधियों की कथित निशानदेही पर आला कत्‍ल यानी हत्‍या में प्रयुक्‍त चाकू भी बरामद कर लिया लेकिन अब राजन वापस आ गया है। यानी जिस बच्‍चे को अपहरण के बाद मार डाला गया और तीन युवक पिछले छह महीने से जेल की हवा खा रहे हैं, जबकि वह बच्‍चा अभी जिंदा है।

आप समझ ही सकते हैं कि राजन के वापस आ जाने के बाद क्‍या हो रहा होगा। राजन के वापस आते ही मुजफ्फरनगर पुलिस सकते में आ गई है तो दूसरी तरफ जेल में बंद राजन की कथित हत्‍या के हत्‍यारोपियों के घरवाले पुलिस की हाय-हाय कर प्रदर्शन कर रहें हैं। उनका आरोप है कि पुलिस ने रंजिश के चलते राजन के पिता से रिश्‍वत खाकर अपहरण और हत्‍या का ड्रामा करवाया और सुनील, सोनू और रवि को कई दिन तक अवैद्य हिरासत में रखकर जमकर मारा-पीटा और फिर कथित इकबाल-ए-जुर्म के आधार पर जेल भेज दिया। पिछले छह महीने से जेल में बंद तीनों युवकों के घर वाले अब इंसाफ मांग रहे हैं लेकिन साथ में वे शंका भी जता रहें हैं कि उन्‍हें न पहले इंसाफ मिला था और न अब उम्‍मीद है।

राजन के जिंदा लौटने पर पुलिसिया कहानी और षडयंत्र का आधा सच तो सामने आ चुका है लेकिन बाकी के सच पर पर्दा डाले रखने और महकमें की तार-तार हो रही लाज को बचाने के लिए पुलिस ने एक बार फिर से लीपापोती शुरू कर दी है। थानेदार साहब कह रहे हैं कि मामला उनसे पहले थानेदार साहब के कार्यकाल का है। और साथ ही साथ अपहृत राजन और उसके पिता को थाने में बुलाकर बिठा लिया है और वे दोनों अपहरण की कहानी को सच बता रहे हैं।

अब एक तरफ राजन और उसके परिजन अपने अपहरण की मॉलीवुड कथा सरीखी अपहरण की कहानी सुना रहे हैं वहीं अभियुक्‍तों के परिजनों का कहना है कि राजन पहले भी कई बार घर से भाग चुका है और गायब हो जाना उसकी फितरत है। सचाई क्‍या है? आधा सच तो सामने है। पुलिस के कागजों में मर चुका राजन वापस आ गया है। कब सामने आएगा बाकी बचा सच।

Saturday, September 6, 2008

जब प्यार किया तो डरना होगा

क्योंकि वह एक गैर जातीय युवक से प्रेम करती थी। कुछ दिन पहले उसे खेत में गोली मारी गई। जब गोली से उसके प्राण नहीं निकले तो उसे भीड़ के सामने अस्पताल में दाखिल करा दिया गया, लेकिन बाद में मामला कुछ ठंडा होते ही उसकी अस्पताल से छुट्टी कराकर घर ले जाते समय हत्या कर दी गई। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाति बिरादरी में अपनी झूठी शान बनाये रखने के नाम पर इस तरह की बेशर्म हत्याएं यानी 'ऑनर किलिंग' अब आम हैं। उत्तर भारत के कई राज्यों में अक्सर ऐसी घटनाएं हो जाती हैं जिनमें बाकायदा गांव की पंचायतें प्रेमी-प्रेमिका के लिये मौत का फरमान सुना देती हैं। प्रेमी युगलों को पंचायत के सामने पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी जाती है। ऐसा भी नहीं कि प्रेम संबंधों में केवल प्रेमी मारे जाते हों बल्कि प्रेम के नशे में ऐसे बुजुर्गों की भी बलि चढ़ जाती है जो प्रेमियों को प्रेम में बाधक नजर आते हैं।

दक्षिण की मुझे जानकारी नहीं, इसलिए वहां के विषय में कुछ कहना बेमानी है। लेकिन ये सच है कि हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश इस मामले में खासे बदनाम है। इस बदनामी और कबीलाई संस्कृति पर अंकुश लगाने के लिए उत्तर प्रदेश की पुलिस ने कबायद शुरू की है। हांलाकि सोशल पुलिसिंग की ये कबायद अभी कागजों पर है लेकिन पुलिस को कोसने का यदि हमें हक है तो उसकी अच्छी पहल या सिर्फ 'सोच' की भी तारीफ की जानी चाहिए। अब पुलिस अपने मुखबिर तंत्र के माध्यम से गली, मोहल्ले और गांवों में बढ़ती प्रेम की पींगों पर नजर रखेगी। यानी हर थाने में प्रेमी युगलों का डाटा बैंक तैयार होगा। ग्राम चौंकीदार, बीट कांस्टेबल और मुखबिरों के माध्यम से पुलिस को जैसे ही पनपते प्रेम की कोई कहानी पता चलेगी तो वह प्रेमी-प्रेमिका के घर वालों को सूचित करेगी। अगर प्रेम संबंध इतने पर भी जारी रहे, युवक-युवती नहीं माने और संबंध प्रगाढ़ हो गए तो दोनों के अभिवावकों को बिठाकर सम्मानजनक तरीके से हल कराने की दिशा में प्रयास करेगी। मतलब साफ है कि प्रेम विवाह में पुलिस बिचौलिए की भूमिका निभाने से भी नहीं हिचकेगी। अब आप सोच सकते हैं कि आपरेशन मजनू चलाने वाली या डंडे की भाषा समझने-समझाने वाली पुलिस दिल और दिल्लगी के मामलों में कैसे पड़ गई। खाकी वर्दी के भीतर से यकायक प्रेमरस कैसे टपकने लगा। दरअसल प्रेम जहां नई तरह से जिंदगी जीने की कला सिखाता है वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ये अक्सर कानून व्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती बन जाता है। प्रेम संबंधों में हत्याएं ही नहीं दंगे तक हो जाते हैं, शायद यही वजह है कि उत्तर प्रदेश के पुलिस मुखिया ने सभी जिलों के थानों में टास्क आर्डर भेज कर पुलिस महकमे को एक नया काम दिया है। पुलिस विभाग का मानना है कि अक्सर युवा अपनी प्रेमिका को लुभाने के लिए अनाप-शनाप खर्च करते हैं जिसके लिए उन्हें हमेशा पैसे की दरकार रहती है। ऐसे में युवा लूट, चैन स्नेचिंग जैसे अपराधों की तरफ भी बढ़ जाते हैं। इसलिए पुलिस महकमें को आगाह किया गया है कि जैसे ही किसी युवा के प्रेम संबंधों का पता चले वैसे ही उन पर निगरानी बढ़ा दी जाए। उसकी आय, धन की आमद के सभी श्रोत और रंग-ढंग पर पैनी नजर रखी जाए। साथ ही प्रेमी-प्रेमिका के घर वालों को आगाह कर सामाजिक मान्यता दिलाने की पहल की जाए।

हांलाकि डंडा चलाने वाली पुलिस के लिए ये काम आसान नहीं है लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सामाजिक ढांचे में प्रेम संबंधों के चलते होने वाले हीनियस क्राइम को रोकने के लिए शायद सोशल पुलिसिंग के अलावा कोई और चारा भी नहीं है। तो आप समझ लीजिए कि यदि आप उत्तर प्रदेश में रहते हैं, युवा हैं, आपका दिल किसी के लिए धड़कता है, आप प्रेम की पींगे बढ़ा रहें हैं तो सावधान रहें क्योंकि हो सकता है कि कुछ आंखे हमेशा आपकी टोह में पीछे लगी रहें।

हमारा मानना है कि मौजूदा समय में सोशल पुलिसिंग की बेहद जरूरत है लेकिन इसमें मतभेद हो सकते हैं कि सोशल पुलिसिंग का स्ट्रक्चर और चेहरा कैसा हो। हम चाहते हैं कि हमारे सुधी पाठक, चिंतक और समाज के अलंबरदार इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचें। कैसी हो सोशल पुलिसिंग? कैसा हो उसका स्वरूप? सीमाएं क्या हों? ऐसे तमाम मुद्दों पर आपकी विस्तृत राय की अपेक्षा है।

तकनीकी सहयोग- शैलेश भारतवासी

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