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Tuesday, November 4, 2008

फौज, फेयर सेक्‍स और उम्‍मीदें!

दिबेन देश के लब्‍धप्रतिष्ठित कथाकार हैं। अब तक उनके तीन कहानी संग्रह 'कांटे में फंसी मछली', 'आधा सच' और 'वो एक दिन' प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अलाव उनके दो उपन्‍यास 'चिदम्‍बरा' और 'नदी बीमार है' खासे चर्चित रहे हैं। 'कांच के ताजमहल' उनका कविता संग्रह है लेकिन दिबेन का एक रूप और है। वह समय-समय पर सामयिक मुद्दों पर अपनी कलम चलाते रहे हैं। उन्‍होंने इर्द-गिर्द के लिए अपना एक विचारोत्‍तेजक लेख भेजा है जो फौज में महिलाओं की स्थिति को तार-तार करता है।



बीते एक अक्‍तूबर को दुर्गानवमी थी। समूचे देश में मां दुर्गा के नवम् सिद्धिदात्री स्‍वरूप की पूजा की जा रही थी। इसी दिन वायुसेना अध्‍यक्ष एयरमार्शल होमी मेजर सा‍हब का बयान आया कि महिलाओं के लिए वायुसेना में भी कुछ कर दिखाने के बहुत से अवसर हैं। हांलाकि वायुसेना में महिलाओं को काफी पहले ही अवसर मिलने शुरू हो गए थे। पंजाब की एक वीरांगना को वायुसेना (नाम जानबूझकर नहीं दिया जा रहा है।) पहली फाईटर बनने का अवसर मिला था लेकिन दुर्भाग्‍य से वह वीर नायिका अपने हुनर दिखाने से पहले ही एक असमायिक दुर्घटना का शिकार होकर इस संसार को अलविदा कह गई थी। अभी तक महिलाएं रक्षा सेनाओं में शार्ट सर्विस कमिश्‍न्‍ड अफसर के रूप में ही अपनी सेवाएं दे पा रहीं थीं। यानी कि चौदह साल की सेवा के बाद बिना किसी पेंशन सुविधा के सेना से उनकी छट्टी कर दी जाती थी। अभी तक ऐसा हो भी रहा है।
इस बात को कुछ महिला अधिकारियों ने कुछ इस तरह भी कहा है कि अपने युवा जीवन के अमूल्‍य चौदह वर्ष देश के हित में सेना को समर्पित करने के बाद जब हम सेवा से विदा लेती हैं तो स्‍वयं को ठगा हुआ सा महसूस करती हैं।

इकत्‍तीस मई को खड़कवासला की राष्‍ट्रीय रक्षा अकादमी के कमांडेंट एयरमार्शल टी एस रणधावा ने अकादमी के एक सौ चौदह वेच के केडेट्स की पासिंग परेड के समापन के अवसर पर पत्रकारों को बताया कि अकादमी महिलाओं को सेना अधिकारियों के रूप में प्रशिक्षित किए जाने को पूरी तरह तैयार है। उन्‍होंने कहा कि सेना में महिलाओं को स्‍थायी कमीशन्ड अफसर के रूप में जज एडवोकेट जनरल (जे ए जी विभाग) और एजूकेशन कोर में भर्ती किए जाने पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। एयरमार्शल रणधावा ने जो बात कही उसकी पुष्‍टि भारत के रक्षामंत्री श्री ए के एंटनी ने इस प्रस्‍ताव पर अपनी सहमति जता कर कर दी। फिलवक्‍त रक्षा सेनाओं में पांच हजार एक सौ सैंतीस महिला सेना अधिकारी अपनी सेवाएं दे रहीं हैं। इनमें से सर्वाधिक चार हजार एक सौ एक थल सेना में, सात सो चौरासी वायुसेना में और दो सौ बावन नौसेना में पदस्‍थ हैं।
इस मुद्दे पर ब्रिगेडियर चितरंजन सावंत (वीएसएम) का स्‍पष्‍ट मत है कि एक समय था जब सेना में किसी महिला का नाम भी नहीं सुना जाता था। रक्षा सेना के आफिसर्स मेस के बार रूम अथवा भोजनालय में महिलाओं का प्रवेश तक वर्जित था। सैनिक अधिकारियों के मैस में महिलाओं के लिए लेडीज रूम बनाए जाते थे लेकिन वहां सेना अधिकारियों के परिवार की महिला सदस्‍य ही पंहुच सकती थीं।

जिस देश में नारी की पूजा किए जाने की बात की गई है उस देश की सैनिक इकाइयों में महिलाओं के साथ अछूतों जैसा बर्ताव करना हैरत में डालने वाला है। अगर हम अपने पौराणिक ग्रंथों से ही उदाहरण ढूंढे तो महारानी कैकेयी के बारे में कहा जाता है कि वह अपने पति महाराज दशरथ के साथ युद्ध के मैदान में जाती थीं और सहयोगी के रूप में युद्ध में भाग लेती थीं।

उन्‍नीसवी सदी में महारानी लक्ष्‍मीबाई ने ब्रिटिश सेनाओं के विरूद्ध युद्ध में भारतीय सेनाओं का नेतृत्‍व करते हुए देश के लिए अपना बलिदान दे दिया था। इसी प्रकार दक्षिण भारत में किट्टर की रानी चेनम्‍मा ने देश की स्‍वतंत्रता की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहूति दी थी। द्वितीय विश्‍व युद्ध में नेताजी सुभाष चंद बोस के नेतृत्‍व में गठित की गई आजाद हिंद फौज में एक अलग महिला रेजिमेंट का गठन किया गया था जिसकी कमान सुश्री लक्ष्‍मी सहगल को सौंपी गई थी। इसके बावजूद आजादी के बाद भी भारतीय रक्षा सेनाओं में वही सामंती नियम कायदे कायम हैं जो अंग्रेजी सेनिक नेतृत्‍व से विरासत में मिले थे।
राष्‍ट्रीय रक्षा अकादमी खड़कवासला के कमांडेंट एयर मार्शल टीएस रणधावा का कहना है कि एन डी ए में पुरूष कैडेट्स को ही प्रशिक्षण दिया जाता है इसलिए महिला कैडेट्स के प्रशिक्षण के लिए चैन्‍नई की सैन्‍य अकादमी में व्‍यवस्‍था की जाएगी। श्री रणधावा ने कहा कि सेना की महिला रक्षा अधिकारी सीधे युद्ध में भाग नहीं लेंगी। सेना के केवल उन्‍हीं अंगों में उन्‍हें स्‍थान दिया जाएगा जहां उन्‍हें शत्रु के साथ युद्ध में सीधे-सीधे भाग न लेना पड़े।

वास्‍तव में 1990 में ही भारतीय नौ सेना और वायुसेना में महिला अधिकारियों के लिए अवसरों के द्वार खोल दिए गए थे। इन महिला अधिकारियों को शार्ट सर्विस कमिशन्‍ड अधिकारी का दर्जा दिया गया था परन्‍तु इन महिला अधिकारियों को पुरूष अधिकारियों के समान कठोर प्रशिक्षण दिए जाने के बाद भी बहुत साधारण से कार्यों पर नियुक्‍त किया गया। इस सारी प्रक्रिया में लिंग भेद का अहसास सीधे-सीधे होता था। हांलाकि बिट्रेन की शाही सेना में महिला अधिकारियों को पुरूषों के समान ही सम्‍मान और अधिकार प्राप्‍त होते हैं लेकिन भारतीय सेना के उच्‍च अधिकारी अपनी सामन्‍ती सोच से उबर न पाने के कारण महिला अधिकारियों को अभी तक भी उनके पुरूष सहयोगियों के बराबर सम्‍मान के योग्‍य नहीं समझते।
भारतीय सेना के उपसेनाध्‍यक्ष लेफ्टीनेंट जनरल पट्टाभिरमन का स्‍पष्‍ट रूप से कहना है कि हमें यूनिट स्‍टर पर लेडी आफिसर्स की नहीं युवा जेंटलमेन आफिसर्स की भागीदारी की आवश्‍यकता है। वास्‍तव में खेलने की गुडि़याओं (बार्बी डाल्‍स) का युद्ध मैदान के बंकर्स में कोई स्‍थान नहीं होता है। उच्‍च सेना अधिकारियों की इसी मानसिकता के कारण सेना में कार्य कर रही महिला अधिकारियों के यौन उत्‍पीड़न और यौन शोषण की घटनाएं भी सामने आने लगीं।

महिलाओं को मामूली सी घटना पर भी चार्जशीट किया गया जबकि उनके पुरूष सहयोगी बड़ा अपराध करने पर भी छुट्टे छोड़ दिए गए। सेना के दस्‍तावेजों के अनुसार पिछले चौदह वर्षों में कम से कम सात महिला अधिकारियों का कोर्टमार्शल किया गया। इनमें से अधिकांश महिलाएं अपने शै‍क्षणिक जीवनकाल में ही अपनी विलक्षण प्रतिभाओं का प्रदर्शन कर चुकीं थीं। यदि वे चाहती तो सिविल सेवाओं में भी अपना कैरियर चुन सकती थीं लेकिन स्‍वदेश प्रेम का जज्‍बा ही उन्‍हें रक्षा सेना मे खींच कर लाया था। पर इसका परिणाम क्‍या निकला। यही कि रक्षा सेना में उन्‍हें तरह-तरह से अपमानित किया गया। इसका विरोध करने पर मामूली से मामूली (पेटी मेटर्स) बातों पर उन्‍हें चार्जशीट थमाई गई। उनका कोर्ट मार्शल किया गया और अपमानित करके रक्षा सेवा से बाहर का रास्‍ता दिखा दिया गया। अफसोस की बात तो यह है कि एक मामले में तो एक महिला अधिकारी पर मात्र दस रूपये के गबन का चार्ज लगा कर उसे सेना से बाहर का रास्‍ता दिखा दिया गया।

बातें बड़ी-बड़ी हैं पर सेना में कार्यरत महिला अधिकारियों की वा‍स्‍तविक हालत क्‍या है, इस बात का अनुमान लेफ्टीनेंट जनरल पद्मनाभन की टिप्‍पणीं से तो लगता ही है। एक सेना अधिकारी द्वारा अपने पिता को लिखे पत्रों से भी लगता है। 27 मार्च 98 को लिखे एक ऐसे ही पत्र में उसने लिखा था - पापा आपने हमेशा इतनी खुशियां दी हैं कि पता ही नहीं चला कि दुख क्‍या है। यहां आई एन एस हमला और कोची ने बहुत कुछ सिखा दिया। लेकिन यह सब सहन करना आसान भी तो नहीं है। मेरे पास परिवार का कोई ऐसा व्‍यक्ति भी नहीं है जिससे अपनी चिंताएं और पीड़ा बांट सकूं। घर फोन करके कुछ शांति मिलती है पर बारह दिनों में चार हजार रूपये फोन पर खर्च हो चुके हैं फिर भी सुकून नहीं है।

कभी कोई सीनियर अफसर बुलाता है तो उनके व्‍यवहार पर इतना गुस्‍सा आता है कि दुनिया पलटने को मन करता है। पापा! असल बात यह है कि फौज में लड़कियों को कोई इंसान नहीं समझता। आदर, सम्‍मान केवल दिखाने को है पर असल जिंदगी में ऐसा नहीं होता। कुछ दिनों के लिए इस एनवायरमेंट से भाग जाने को दिल करता है। हरिद्वार, देहरादून जाने को मन कर रहा है। अपने भाई-बहिनों के पास, आपके पास आने का मन है। यहां से उड़ जाने का मन कर रहा है। पापा! डिफेंस लड़कियों के लिए कितना गंदा है, यह बात सब को पता लगनी चाहिए। फौज में इतने लोग आत्‍महत्‍या क्‍यों करते हैं यह बात सब को पता लगनी चाहिए। हम सोचते हैं डिफेंस और ज्‍यूडिसियरी यही दो अच्‍छी जगह बची हुईं हैं जबकि ऐसा नहीं है।
...फिर लगता है कि ये बा‍तें बाहर गईं तो देश की अस्मिता को भी खतरा हो सकता है। बात उछली तो इंटरनेशनल लेवल तक खिंच सकती है। खैर छोड़ो यहां पीडि़त व्‍यक्ति का ही कोर्ट मार्शल होता है। ... इस कोर्ट मार्शल ने मुझे इन उच्‍च अधिकारियों का असली चेहरा तो दिखा ही दिया। वास्‍तव में इन लोगों को बेनकाब किया जाना चाहिए पर ऐसा हो नहीं सकता। ये सो काल्‍ड सीनियर आफिसर तो फिर भी बचे ही रहेंगे। क्‍योंकि न्‍याय तो इन्‍हें ही करना है। ... यहां फौज में अपराधियों को ही न्‍याय करने की पावर दी जाती है।
पत्र का मजबून तो दहलाने वाला है। ऐसे में फौज में महिलाओं को स्‍थाई कमीशन दिए जाने की बात बहुत ज्‍यादा उम्‍मीदें नहीं जगाती।

तकनीकी सहयोग- शैलेश भारतवासी

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