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Monday, March 23, 2009

गुदड़ी के लाल ने किया कमाल

अगर कोई संस्‍था कम्‍युनिटी रेडियो स्‍थापित करना चाहती है तो उसके लाइसेंस के लिए सूचना प्रसारण मंत्रालय की बहुत सी शर्तो को पूरा करने के अलावा कम से कम दस लाख का वजट चाहिए। लेकिन एक गांव के छोरे ने महज सात हजार रुपये में ये कमाल कर दिखाया है लेकिन वह नहीं जानता कि कम्‍युनिटी रेडियो क्‍या होता है? गांव के इस छोरे को नहीं मालूम है कि तरंगों के प्रसारण पर सरकार का पहरा होता है। वह अपने आविष्‍कार पर फूले नहीं समा रहा है और पूरा गांव अभिभूत है लेकिन पूरा गांव इससे अंजान है कि ये एक गुनाह भी है। उसने न तो किसी इंजीनियरिंग कालेज से पढ़ाई की और न उसके पास कोई खजाना था। अगर उसके पास कुछ था तो वह सिर्फ सपने और उन्‍हें पूरा करने का हौंसला या सनक। इसी सनक में उसने सात साल रात-दिन मेहनत की और खोल दिया एफएम स्‍टेशन। बारहवीं पास गांव के इस युवक से मुजफ्फरनगर के हथछोया गांव वाले फूले नहीं समा रहे हैं क्‍योंकि ये स्‍टेशन गांव के मनोरंजन का साधन ही नहीं बल्कि सामाजिक सरोकारों का केंद्र भी बन गया है।

मेरा मानना है कि रेडियो रिपेयर करने वाले इस युवक पर हम सबको गौरवान्वित महसूस करना चाहिए। इस युवक का आविष्‍कार एक नई रेडियो क्रांति की शुरुआत कर सकता है। कम्‍युनिटी रेडियो के आंदोलन को पंख लगा सकता है। इस युवक का नाम है संदीप तोमर मुजफ्फरनगर के हथछोया गांव का ये युवक किसी तकनीकी संस्‍थान में पढ़ाई करने नहीं गया। न ही इसके पास इतने रूपये थे कि ये किसी आईटीआई या आईआईए के किसी कालेज में दाखिला ले पाता। अगर इसके पास कुछ था तो मेहनत, लगन और भरोसा जिसकी ताकत पर इसने इलेक्‍ट्रानिक सामानों की रिपेयर सीखी। बाजार से किताब लाता और दिन-रात सिर खफा कर सर्किट तैयार करता; रिपेयर करता। इलेक्‍ट्रानिक कंपोनेंट्स को जोड़ते-तोड़ते ये रेडियो और दूसरे इलेक्‍ट्रॉनिक सामान रिपेयर करने लगा। घर में ही रिपेयर की दुकान खोल ली लेकिन उसके दिमाग में कुछ नया कर दिखाने और नाम कमाने की हलचल होती रहती थी। इसी दौरान उसे एक एफएम माइक हाथ लगा जिसने उसकी दुनिया बदल दी। एफएम माइक के सर्किट के साथ उसने प्रयोग शुरु किए और तैयार कर दिया एक एफएम स्‍टेशन जिसका विस्‍तार पांच किमी या उससे भी अधिक किया जा सकता है।

संदीप ने एफएम माइक पर रिसर्च करते हुए ये अनुभव किया कि इन तरंगों का विस्‍तार किया जा सकता है। उसे लगा कि इन तरंगों के जरिए वह अपने गांव में ही नहीं बल्कि आसपास के गांवों में भी आवाज पंहुचा सकता है। उसने खिलौना माइक के साथ प्रयोग शुरु किए। किताबे पढ़ीं और सात साल की मेहनत के बाद करीब सात हजार रूपये खर्च कर एक एफएम स्‍टेशन खड़ा कर दिया। एक अघोषित सामुदायिक रेडियो। लकड़ी के बांस जोड़कर उसने प्रसारण के लिए टावर बनाया और उपलब्‍ध सामान की जोड़तोड़ कर प्रसारण यंत्र की जुगाड़ बनाई और फिर गांव वालों को बुलाकर बताया कि उसने आविष्‍कार कर दिया है।

आज संदीप लोक संगीत से लेकर कव्‍वालियों तक की फरमाइश पूरी करता है। पूरे गांव को सूचना देता है कि वोटर आईडी कार्ड कहां बन रहे हैं और पोलियो का टीका कब और कैसे लगवाना है। चौपाल पर बैठे ग्रामीण हों या सिलाई
करती, चूल्‍हा फूंकती महिलाएं; सभी संदीप के आविष्‍कार से खुश हैं। संदीप का रेडियो हर मुसीवत में गांव के साथ खड़ा रहता है। खेतों में आग लग जाने या कोई आपदा आने पर लोग संदीप से उदघोषणा करवाते हैं और ग्रामीण उस विपदा से जूझने के लिए इकट्ठा हो जाते हैं। कई बार संदीप के सामुदायिक रेडियों ने गांव में कमाल कर दिखाया है। एक बार गन्‍ने के खेतों में आग लग गई तब संदीप के रेडियो स्‍टेशन से घोषणा हुई और पूरा गांव इकट्ठा होकर आग बुझाने में जुट गया और एक खेत से दूसरे खेत में फैल रही आग पर काबू पा लिया गया। इसी तरह हाइवे पर एक स्‍कूली बस के दुर्घटनाग्रस्‍त हो जाने पर रेडियो से सूचना पाते ही पूरा गांव मदद के लिए पंहुच गया और आनन-फानन में घायल बच्‍चों को हॉस्‍पीटल पंहुचा दिया गया। गांव वालों की तत्‍परता से सभी बच्‍चे हॉस्‍पीटल से ठीक होकर अपने-अपने घरों को चले गए।

संदीप नहीं जानता कि सामुदायिक रेडियो क्‍या है। उसे ये भी नहीं मालूम कि एयर कंडीशंड कमरों में बैठकर ग्रामीण भारत में सामुदायिक रेडियो क्रांति का बिगुल बजाया जा रहा है। उसे ये भी नहीं मालूम कि दुनिया भर की संस्‍थाओं ने सामुदायिक रेडियो के नाम पर खजाने खोल रखे हैं। लेकिन वह सिर्फ सरकार को जानता है और चाहता है कि सरकार उसके आविष्‍कार को देखकर उसकी इतनी मदद करे कि वह आसपास के कुछ और गांवों को भी इस सेवा से जोड़ सके।

तकनीकी सहयोग- शैलेश भारतवासी

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