अगर कोई संस्था कम्युनिटी रेडियो स्थापित करना चाहती है तो उसके लाइसेंस के लिए सूचना प्रसारण मंत्रालय की बहुत सी शर्तो को पूरा करने के अलावा कम से कम दस लाख का वजट चाहिए। लेकिन एक गांव के छोरे ने महज सात हजार रुपये में ये कमाल कर दिखाया है लेकिन वह नहीं जानता कि कम्युनिटी रेडियो क्या होता है? गांव के इस छोरे को नहीं मालूम है कि तरंगों के प्रसारण पर सरकार का पहरा होता है। वह अपने आविष्कार पर फूले नहीं समा रहा है और पूरा गांव अभिभूत है लेकिन पूरा गांव इससे अंजान है कि ये एक गुनाह भी है। उसने न तो किसी इंजीनियरिंग कालेज से पढ़ाई की और न उसके पास कोई खजाना था। अगर उसके पास कुछ था तो वह सिर्फ सपने और उन्हें पूरा करने का हौंसला या सनक। इसी सनक में उसने सात साल रात-दिन मेहनत की और खोल दिया एफएम स्टेशन। बारहवीं पास गांव के इस युवक से मुजफ्फरनगर के हथछोया गांव वाले फूले नहीं समा रहे हैं क्योंकि ये स्टेशन गांव के मनोरंजन का साधन ही नहीं बल्कि सामाजिक सरोकारों का केंद्र भी बन गया है।
मेरा मानना है कि रेडियो रिपेयर करने वाले इस युवक पर हम सबको गौरवान्वित महसूस करना चाहिए। इस युवक का आविष्कार एक नई रेडियो क्रांति की शुरुआत कर सकता है। कम्युनिटी रेडियो के आंदोलन को पंख लगा सकता है। इस युवक का नाम है संदीप तोमर मुजफ्फरनगर के हथछोया गांव का ये युवक किसी तकनीकी संस्थान में पढ़ाई करने नहीं गया। न ही इसके पास इतने रूपये थे कि ये किसी आईटीआई या आईआईए के किसी कालेज में दाखिला ले पाता। अगर इसके पास कुछ था तो मेहनत, लगन और भरोसा जिसकी ताकत पर इसने इलेक्ट्रानिक सामानों की रिपेयर सीखी। बाजार से किताब लाता और दिन-रात सिर खफा कर सर्किट तैयार करता; रिपेयर करता। इलेक्ट्रानिक कंपोनेंट्स को जोड़ते-तोड़ते ये रेडियो और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक सामान रिपेयर करने लगा। घर में ही रिपेयर की दुकान खोल ली लेकिन उसके दिमाग में कुछ नया कर दिखाने और नाम कमाने की हलचल होती रहती थी। इसी दौरान उसे एक एफएम माइक हाथ लगा जिसने उसकी दुनिया बदल दी। एफएम माइक के सर्किट के साथ उसने प्रयोग शुरु किए और तैयार कर दिया एक एफएम स्टेशन जिसका विस्तार पांच किमी या उससे भी अधिक किया जा सकता है।
संदीप ने एफएम माइक पर रिसर्च करते हुए ये अनुभव किया कि इन तरंगों का विस्तार किया जा सकता है। उसे लगा कि इन तरंगों के जरिए वह अपने गांव में ही नहीं बल्कि आसपास के गांवों में भी आवाज पंहुचा सकता है। उसने खिलौना माइक के साथ प्रयोग शुरु किए। किताबे पढ़ीं और सात साल की मेहनत के बाद करीब सात हजार रूपये खर्च कर एक एफएम स्टेशन खड़ा कर दिया। एक अघोषित सामुदायिक रेडियो। लकड़ी के बांस जोड़कर उसने प्रसारण के लिए टावर बनाया और उपलब्ध सामान की जोड़तोड़ कर प्रसारण यंत्र की जुगाड़ बनाई और फिर गांव वालों को बुलाकर बताया कि उसने आविष्कार कर दिया है।
आज संदीप लोक संगीत से लेकर कव्वालियों तक की फरमाइश पूरी करता है। पूरे गांव को सूचना देता है कि वोटर आईडी कार्ड कहां बन रहे हैं और पोलियो का टीका कब और कैसे लगवाना है। चौपाल पर बैठे ग्रामीण हों या सिलाई
करती, चूल्हा फूंकती महिलाएं; सभी संदीप के आविष्कार से खुश हैं। संदीप का रेडियो हर मुसीवत में गांव के साथ खड़ा रहता है। खेतों में आग लग जाने या कोई आपदा आने पर लोग संदीप से उदघोषणा करवाते हैं और ग्रामीण उस विपदा से जूझने के लिए इकट्ठा हो जाते हैं। कई बार संदीप के सामुदायिक रेडियों ने गांव में कमाल कर दिखाया है। एक बार गन्ने के खेतों में आग लग गई तब संदीप के रेडियो स्टेशन से घोषणा हुई और पूरा गांव इकट्ठा होकर आग बुझाने में जुट गया और एक खेत से दूसरे खेत में फैल रही आग पर काबू पा लिया गया। इसी तरह हाइवे पर एक स्कूली बस के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने पर रेडियो से सूचना पाते ही पूरा गांव मदद के लिए पंहुच गया और आनन-फानन में घायल बच्चों को हॉस्पीटल पंहुचा दिया गया। गांव वालों की तत्परता से सभी बच्चे हॉस्पीटल से ठीक होकर अपने-अपने घरों को चले गए।
संदीप नहीं जानता कि सामुदायिक रेडियो क्या है। उसे ये भी नहीं मालूम कि एयर कंडीशंड कमरों में बैठकर ग्रामीण भारत में सामुदायिक रेडियो क्रांति का बिगुल बजाया जा रहा है। उसे ये भी नहीं मालूम कि दुनिया भर की संस्थाओं ने सामुदायिक रेडियो के नाम पर खजाने खोल रखे हैं। लेकिन वह सिर्फ सरकार को जानता है और चाहता है कि सरकार उसके आविष्कार को देखकर उसकी इतनी मदद करे कि वह आसपास के कुछ और गांवों को भी इस सेवा से जोड़ सके।
मेरा मानना है कि रेडियो रिपेयर करने वाले इस युवक पर हम सबको गौरवान्वित महसूस करना चाहिए। इस युवक का आविष्कार एक नई रेडियो क्रांति की शुरुआत कर सकता है। कम्युनिटी रेडियो के आंदोलन को पंख लगा सकता है। इस युवक का नाम है संदीप तोमर मुजफ्फरनगर के हथछोया गांव का ये युवक किसी तकनीकी संस्थान में पढ़ाई करने नहीं गया। न ही इसके पास इतने रूपये थे कि ये किसी आईटीआई या आईआईए के किसी कालेज में दाखिला ले पाता। अगर इसके पास कुछ था तो मेहनत, लगन और भरोसा जिसकी ताकत पर इसने इलेक्ट्रानिक सामानों की रिपेयर सीखी। बाजार से किताब लाता और दिन-रात सिर खफा कर सर्किट तैयार करता; रिपेयर करता। इलेक्ट्रानिक कंपोनेंट्स को जोड़ते-तोड़ते ये रेडियो और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक सामान रिपेयर करने लगा। घर में ही रिपेयर की दुकान खोल ली लेकिन उसके दिमाग में कुछ नया कर दिखाने और नाम कमाने की हलचल होती रहती थी। इसी दौरान उसे एक एफएम माइक हाथ लगा जिसने उसकी दुनिया बदल दी। एफएम माइक के सर्किट के साथ उसने प्रयोग शुरु किए और तैयार कर दिया एक एफएम स्टेशन जिसका विस्तार पांच किमी या उससे भी अधिक किया जा सकता है।
संदीप ने एफएम माइक पर रिसर्च करते हुए ये अनुभव किया कि इन तरंगों का विस्तार किया जा सकता है। उसे लगा कि इन तरंगों के जरिए वह अपने गांव में ही नहीं बल्कि आसपास के गांवों में भी आवाज पंहुचा सकता है। उसने खिलौना माइक के साथ प्रयोग शुरु किए। किताबे पढ़ीं और सात साल की मेहनत के बाद करीब सात हजार रूपये खर्च कर एक एफएम स्टेशन खड़ा कर दिया। एक अघोषित सामुदायिक रेडियो। लकड़ी के बांस जोड़कर उसने प्रसारण के लिए टावर बनाया और उपलब्ध सामान की जोड़तोड़ कर प्रसारण यंत्र की जुगाड़ बनाई और फिर गांव वालों को बुलाकर बताया कि उसने आविष्कार कर दिया है।
आज संदीप लोक संगीत से लेकर कव्वालियों तक की फरमाइश पूरी करता है। पूरे गांव को सूचना देता है कि वोटर आईडी कार्ड कहां बन रहे हैं और पोलियो का टीका कब और कैसे लगवाना है। चौपाल पर बैठे ग्रामीण हों या सिलाई
करती, चूल्हा फूंकती महिलाएं; सभी संदीप के आविष्कार से खुश हैं। संदीप का रेडियो हर मुसीवत में गांव के साथ खड़ा रहता है। खेतों में आग लग जाने या कोई आपदा आने पर लोग संदीप से उदघोषणा करवाते हैं और ग्रामीण उस विपदा से जूझने के लिए इकट्ठा हो जाते हैं। कई बार संदीप के सामुदायिक रेडियों ने गांव में कमाल कर दिखाया है। एक बार गन्ने के खेतों में आग लग गई तब संदीप के रेडियो स्टेशन से घोषणा हुई और पूरा गांव इकट्ठा होकर आग बुझाने में जुट गया और एक खेत से दूसरे खेत में फैल रही आग पर काबू पा लिया गया। इसी तरह हाइवे पर एक स्कूली बस के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने पर रेडियो से सूचना पाते ही पूरा गांव मदद के लिए पंहुच गया और आनन-फानन में घायल बच्चों को हॉस्पीटल पंहुचा दिया गया। गांव वालों की तत्परता से सभी बच्चे हॉस्पीटल से ठीक होकर अपने-अपने घरों को चले गए।
संदीप नहीं जानता कि सामुदायिक रेडियो क्या है। उसे ये भी नहीं मालूम कि एयर कंडीशंड कमरों में बैठकर ग्रामीण भारत में सामुदायिक रेडियो क्रांति का बिगुल बजाया जा रहा है। उसे ये भी नहीं मालूम कि दुनिया भर की संस्थाओं ने सामुदायिक रेडियो के नाम पर खजाने खोल रखे हैं। लेकिन वह सिर्फ सरकार को जानता है और चाहता है कि सरकार उसके आविष्कार को देखकर उसकी इतनी मदद करे कि वह आसपास के कुछ और गांवों को भी इस सेवा से जोड़ सके।
42 comments:
ग्रामीण अंचल में प्रतिभाओं का खजाना है। अगर जरुरत है तो उन्हें मंच देने की। पहचानने की और हौंसलाअफजाई करने की। इस आविष्कारक को बधाई।
संदीप के एफएम के विषय में पढ़कर खुशी हुई कि हमारे वह बच्चे जिन्हें हम देहाती कहते हैं वह भी कितने होनहार हैं।
हमारे कानून किसी अविष्कारक के काम में बाधा न डालें और उसे प्रोत्साहित करें तो अच्छा रहेगा। हो सकता है आगे चलकर वह और अधिक शोध कर सकेगा, शर्त यही है कि उसे संसाधन मिले, सुविधाएं मिलें।
कुछ नया करने की ललक वाले इस प्रतिभा को मंच देने की कोशिश की जानी चाहिए ... ताकि भविष्य में वह और कुछ कर सके .... उसे बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं।
ये क्या छाप दिया आपने। इस तरह रेडियो चलाना अंग्रेज़ों के ज़माने से ही गैर कानूनी है। एक-दो दिन में कोई छोटा-मोटा सरकारी कारिंदा उस बेचारे के घर पहुंच जायेगा, डरायेगा-धमकायेगा घूस मांगेगा।
अब ये भी आपकी ज़िम्मेदारी है कि उस बेचारे के साथ इस तरह की कोई हरकत हो तो उसे भी इस ब्लॉग पर छापे और उसके समर्थन में माहौल बनायें।
यह तो बहुत अच्छी खबर है। ऐसे ही गाँव, शहर कहीं के भी युवा कुछ अच्छा करते रहें तो समाज बेहतर बन सकता है। इतने सकारात्मक काम जब लोग करने लगें तो नकारात्मक के लिए समय ही कहाँ बचेगा?
घुघूती बासूती
बहुत ही सुंदर लगा आप का यह लेख पढ कर हम भी दुनिया से कम नही लेकिन हमारे इन खोजी नोजवानो को शावाश देने की वजय धमकाया जाता है.
आप का धन्यवाद
आपने वाकई बहुत अच्छी खबर दी। सीआरएस को सरकार बहुत ज्यादा बढ़ावा देना चाहती हैं। इसकी लांइसैंस फीस अब मात्र कुछ हजार रूपये ही है। अब आप और मैं भी मात्र एक लाख की लागत से अपना सीआरएस शुरू कर सकते हैं। मेरठ लगभग 4 लोगो के पास सीआरएस का लाइसैंस हैं। और एक चल भी रहा है। सीआरएस पर किसी भी प्रकार का विज्ञापन चलाना प्रतिबन्धित हैं। विदेशो में कम्यूनिटी चैनल तक होते हैं। जैसे हमारे यहां अलग-अलग समाज के लोग अपनी-अपनी पत्रिकाए निकालते है। किसी की वैश्य दर्पण, प्रजापती समाज, कुरेशी मीडिया, हरिशचन्द बन्धु, अलवी आईना आदि वैसे ही दूसरे विकसित मुल्को में तो इनके खबरीया और सांस्कृतिक चैनल तक होते है। यह सीआरएस उसी की तर्ज पर है। जिसका मकसद एक समाज के एक तबके में जागृति का प्रसार करना होता है। हमारे यहां का सीआरएस जो शैक्षिणिक मकसद के साथ खोला गया है, विज्ञापन जमा करके आर्थिक लाभ कमा रहा है। जबकि इतनी बात पर सीआरएस का लांइसैस रदद हो जाता है। खैर जानकारी विशेष तौर पर एक आंचलिक सन्दर्भ में सराहनीय हैै।
एनोनिमस जी पते की बात कह रहे हैं। हमारे युवाओं की इस तरह की उपलब्धियों से प्रेरणा लेकर सरकार कुछ करने से तो रही। लेकिन उसके कारिंदे कानून बघारने जरूर पहुंच जाएंगे।
Hi, it is nice to go through ur blog...well written..by the way which typing tool are you suing for typing in Hindi..?
i understand that, now a days typing in an Indian language is not a big task... recently, i was searching for the user friendly Indian language typing tool and found.. " quillpad". do u use the same..?
Heard that it is much more superior than the Google's indic transliteration...!?
expressing our views in our own mother tongue is a great feeling...and it is our duty too...so, save,protect,popularize and communicate in our own mother tongue...
try this, www.quillpad.in
Jai..Ho...
बहुत अच्छी खबर है... ऐसे युवाओं को मदद करनी चाहिए...
bharat me pratibhaon ki kami nahi hai magar unhen na to koi manch milta hai na hi sarkaar ki taraf se kuchh hota hai sandeep ko badhai sarkaar se is baare me apeal karni chahiye.badhai aur sandeep ko shabaash
बढ़िया पोस्ट । कुछ साल पहले बिहार के लाल ने भी ऐसा ही कारनामा किया था। बाद में प्रशासन ने इस पर पाबंदी लगा दी। जैसा संकेत आपने भी किया है।
उम्मीद है, इस मामलै में लालफीताशाही नहीं चलेगी। इस पहल को बेहतर राह मिले...आमीन...
इस बालक का प्रयास प्रशंशनीय है.बधाई और शुभकामनाएं. बचपन में हमने भी घंटी वाली सर्किट के द्वारा एक पटिये पर बेटरी चालित एक यंत्र बनाया. उसके चलने से आस पड़ोस के सभी रेडियो ऊंची आवाज़ करने लगते थे. हमने लोगों को खूब तंग किया था.
यह दूसरे गावों के लिए एक मिसाल बन सकता है। ऐसे सामुदायिक रेडियो प्रसारण केंद्र एक तो गांवों को पारस्परिक और कौटुंबिक रिश्ते बढ़ाने में मदद करेंगे, प्राकृतिक और अन्य आपदाओं के समय उन्हें अलग-थलग और सिर्फ़ सरकारी सहायता का मोहताज नहीं रहने देंगे, निरंतर-सूचना और संपर्क से स्वास्थ्य, शिक्षा, विकास वगैरह की जानकारियों के अलावा एक ऐसी आत्मनिर्भरता पैदा होगी, जिसकी इस वक्त बहुत ज़रूरत है।
हां, चालू एफ़.एम. रेडियो के द्वारा फ़ैलाई जा रही लाल हरी मिर्ची की अपसंस्कृति का भी प्रतिकार होगा। बस, खतरे दो ही हैं- पहला जो अशोक जी ने कहा है...'मूढ़ सरकारी कारिंदे' और दूसरा स्वयम इन सर्किटों को चलाने वालों द्वारा इनका दुरुपयोग!
संदीप को बधाई !
Aisa laga jaise main kisi film ki kahani pad rahi huin...kyunki aisa aksar films main hi hota hai...Main India ke is asli future ko standing ovation deti huin...
Aur apako mubarak jo aise topics ko ujjagar karte hein.....
बहुत खुशी हुई यह जानकर और इनको प्रोत्साहित किया जाना चाहिये.
रामराम.
सारे गाँव वासी एक हो जाएँ तो सरकार कुछ नहीं कर सकेगी।
Keep it up.
इस प्रतिभाशाली युवक को शुभकामनाये
बहुत ही सुंदर लगा आप का यह लेख पढ कर
हरि जी ,
पढ़ कर मन खुश हो गया ..जिस काम के लिए अभिभावक लाखों रूपये खर्च कर डालते हैं फिर भी
उनके लाडले मात्र इंजिनियर का तमगा लगा कर बैठ जाते हैं ......उसे एक yuva मिस्त्री ने पूरा कर दिखाया ..
संदीप बधाई और तारीफ के साथ ही प्रोत्साहन पाने का भी हक़दार है ...उसे तो सरकार से हर मदद मिलनी ही चाहिए ...
हेमंत कुमार
ज़रूरत है संदीप जैसी प्रतिभाओं को हौसला देने की. आपकी पोस्ट तारीफ के काबिल है.
वाकई एक सराहनीय कार्य है...विपरीत हालत से गुजरते हुए अपने हौसलों को बचाए रखना ओर सिमित संसाधनों में भी बेहतरी के लिए काम करना .इसे ही ज़ज्बा कहते है .....सलाम
क्रिकेट और अन्य मनोविनोदों पर अरबों रुपये लुटाने वाले इस समाज में इस जैसे गुदड़ी के लालों के लिये भी कुछ बचा है क्या?
इण्टरेस्टिंग! हथछोया में रेडटेप का लपेटा लगा नहीं अभी! :)
ऐसे मेहनती लोग ही आगे बढते हैं इन अविष्कारक को हमारी ढेर सारी शुभकामनाएं और बधाई
बहुत ही बढिया खबर सुनाई आपने......नवयुवक का ये प्रयास वाकई में सराहनीय है....
हमारे यहाँ गावं के एक लड़के ने यह स्टेशन बनाया नाम था रेडियो कुद्दा अपने गावं के नाम पर . लेकिन सरकारी लोगो ने बंद करा दिया . इतनी फरमाइश विविध भारती नहीं आती थी जितनी उसके पास आती थी
आप भी बधाई के पात्र हैँ ,
इस ललक को समाज तक लाने के.
इस तरह की प्रतिभाओँ को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये.
we should encorage the boy,and government should give him award rather than accusing him.we indian should feel proud for him.jai hind
we should encorage the boy,and government should give him award rather than accusing him.we indian should feel proud for him.jai hind
Sandeep ki uplabdhi ke baare me jaankar kaphi khushi hui.Suvidhaon ki kami ke bavjood hamare desh ki pratibhayen kisi se kam nahin.Bas unhe uchit protsahan ki jarurat hai.
संदीप की उपलब्धी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा। प्रतिभा जगह की मोहताज कभी नहीं होती है। फिर गांव क्या और शहर क्या।
उस बच्चे में प्रतिभा है. ऐसे और लोग भी यत्र तत्र हैं. उनको मंच और प्रोत्साहन मिलना चाहिए.
bas itnaa hi kahungaa....bhyi waah.....waah....waah....!!
Pratibhashali Sandip ko badhai. Bahut pahle akhbaron mein Bihar ke kisi yuvak ke aise pryas ke bare mein padha tha, jiske bare mein wahan ke adhikariyon ne kahna tha ki koi complain aaye tabhi to ham kararvai karenge. To aise sarthak prayason ki complain honi bhi nahin chahiye, bas iska galat ishtemaal na ho.
I am happy to see the work of sandip,congrates to him on behalf of me.
thanks
diben
I have sent you a comment for sandip through a anonymous message
kindly communicate to sandip and encourage him for the job he has done.
diben
वरिष्ठ पत्रकार और तिब्बत के मामलों के महाकोष
विजय क्रांति के Photos की प्रदर्शनी दिल्ली की लोदी रोड पर इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में लगी है। मैं जा रहा हूं, समय मिले तो आप भी देखियेगा।
Tibetan Journey in Exile शीर्षक से लगी
इस प्रदर्शनी में दिखाये गये फोटो तिब्बत
के बारे में हैं और बिना देखे कह सकता हूं कि
शानदार होंगे। मैंने उनके कई फोटो देखे हैं
वो भी जो दस साल पहले स्विटज़रलैंड में
प्रदर्शित किये गये। उनका कोई मुकाबला नहीं होता है। प्रदर्शनी 30 मार्च तक चलेगी और आज अगर आप जाते हैं तो वहां विजय क्रांति से भी मिल सकते हैं। आजकल वो काफी व्यस्त रहते हैं इस बहाने उनसे भी मुलाकात हो जायेगी, मेरा तो मकसद यही है। पिछले साल नोएडा के चोर बिज़ारे में उनके साथ लंच किया था उसके बाद से फोन पर ही बात हो पाती है, मुलाकात नहीं हो सकी है।
गुरूजी ये वाकई अच्छी खबर है.. लेकिन इस तरह के सामुदायिक रेडियो स्थापित किये जाने से बड़ा खतरा भी पैदा हो सकता है.. पहले ही न्यूज़ चंनेलो की बाढ़ से सही गलत का फैसला नहीं हो पा रहा है ऐसे में यदि इस तरह नियमविरुद्ध इस तरह सामुदायिक रेडियो केंद्र खुलने लगे तो आने वाले समय में बड़ी परेशानी कड़ी हो जायेगी.. चंद हज़ार रुपैये खर्च कर ना जाने कितने लाला इस चौथे स्तम्भ में घुसपैठ कर देश के मान सम्मान को ठेस पहुंचा सकते हैं.. इस माध्यम के जरिये बड़ी संख्या में लोगो की विचारधारा को बदला जा सकता है.. आप खुद भी समझते हैं की आज महज 'प्रेस' जैसा शब्द अपने वाहनों पर लिखवाने के लिए लोग किस हद तक चले जाते हैं ऐसे में यदि इन सामुदायिक रेडियो केन्द्रों को छूट मिल गयी तो शायद कुछ लोगो को इसकी आड़ में अपनी मन मानी करने की इजाज़त मिल जायेगी..
भारत मे एसे होन्हारो कि कोइ कमि नहि है. जरुरत उन्कि कदर कर्ने कि है. नितिन
Post a Comment