दैनिक जागरण समूह के आई-नेक्स्ट (I-next) अखबार में एक खबर छपी है- एक तू ही धनवान। खबर मंदिरो से होने वाली आय पर है। हांलाकि ये खबर सिर्फ मेरठ से ताल्लुक रखती है लेकिन यदि आप अपने इर्द-गिर्द देखेंगे तो आपको लगेगा कि पूरे देश में ही भगवान ही धनवान है। उन पर मंदी का कोई असर नहीं बल्कि कारोबार और बढ़ ही गया है। खबर यूं है-
भक्ति और दौलत में क्या संबंध हो सकता है? लेकिन आस्था कई मंदिरों में दौलतमंद बना देती है। दुनिया का सबसे रईस धार्मिक स्थल तिरुपति बालाजी हिंदुस्तान में ही है। मेरठ में भी श्रद्धा के साथ मंदिरों पर पैसा बरस रहा है। मंदी के इस दौर में भक्ति रिसेशन से मुक्त है और आस्था आधारित इकॉनामी का टर्नओवर बढ़ रहा है। है न प्रभु की लीला..
वैश्विक मंदी से भले ही उद्योग-धंधे कराह रहे हों लेकिन श्रद्धा और विश्वास के स्थल उससे अछूते हैं। प्रभु के प्रति भक्ति बढ़ रही है तो डोनेशन भी। यह वृद्धि दर बीस फीसदी से उपर पंहुच चुकी है। मेरठ के प्रमुख मंदिरों की सालाना आय दो करोड़ को पार कर चुकी है। पांच साल पहले तक ये आमदनी एक करोड़ से कम ही थी।
मुश्किलों के समय में भगवान की याद कुछ ज्यादा ही आने लगती है। यह एग्जाम का समय है, सो भक्ति छात्रों के सिर चढ़कर बोल रही है। अभिवावक भी पीछे नहीं हैं। इस कारण चढ़ावे में भी खासी वृद्धि हो रही है। दान में कैश तो है ही, सोना चांदी के गहने भी डोनेट हो रहे हैं। मंदी की मार से प्रभावित उद्यमियों का एक बड़ा तबका तो नियमित रूप से मंदिरों में जाने लगा है। वैसे सबसे ज्यादा दान त्योहारों में आता है। खासकर शिवरात्रि, नवरात्र और रामनवमी पर। इसके अलावा शनिवार को शनि मंदिर, सोमवार को शिवालय, मंगलवार-शनिवार को हनुमान मंदिरों में खास दिन होता है।
साईं बाबा चमत्कार के किस्से टीवी चैनलों में में खूब आने लगे तो मेरठ में भी भक्तों की लाइन लंबी होती गई। कंकरखेड़ा हो या गढ़ रोड या फिर सूरजकुंड का मंदिर, हर जगह भक्तों की भीड़ देखी जा सकती है। यहां मनौती पूरी होने पर भक्त काफी दान करते हैं। साईं बाब के मंदिरों से होने वाली इनकम की बात करें तो यह सालाना पचास लाख से ज्यादा है। दान में आई रकम मंदिर के रख-रखाव, वेतन और गरीबों की सेवा पर खर्च की जाती है।
ऐतिहासिक काली पल्टन मंदिर की बाबा औघड़नाथ मंदिर के नाम से जानते हैं। ये वही मंदिर है जहां से 1857 की क्रांति शुरु हुई थी। यहां सुबह-शाम दर्शन करने वालों की संख्या सबसे ज्यादा होती है। मंदिर प्रबंधन की मानें तो श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। यहां की सालाना आमदनी करीब छत्तीस लाख रुपये तक जा पंहुची है। इसका काफी हिस्सा सामाजिक कार्यों पर खर्च किया जा रहा है। भविष्य में स्कूल खोलने की भी तैयारी चल रही है।
जागृति विहार स्थित मंशा देवी मंदिर और शहर में जगह-जगह चल रहे शनि देव मंदिरों की सालाना आमदनी तकरीबन पचास लाख बैठती है। इसके अलावा भी दर्जनों मंदिर है जिनकी इनकम से धार्मिक कार्य हो रहे हैं। मंदिरों के आसपास चल रही दुकाने भी मंदिर प्रबंधन के ही देख-रेख में चल रहीं हैं। ये इनकम दान और चढ़ावे में आने वाली राशि से अलग है। सभी प्रमुख मंदिर ट्रस्ट के तौर पर काम कर रहे ळें। लेकिन कई मंदिर निजी तौर पर भी संचालित हो रहे हैं। चर्चित मंदिरों में जो बिना ट्रस्ट के चल रहे हैं, उनमें बुढ़ाना गेट का हनुमान मंदिर और मंशा देवी मंदिर प्रमुख है।
...और चलते-चलते। मंदिरों के माल का सभी को पता है। इसलिए चोरों की नजर हमेशा दान पात्र और भगवान के आभूषणों पर लगी रहती है। चोरों के लिए शायद भगवान सॉफ्ट टारगेट हैं। बीते छह महीनों में ही चोर भगवान के छह घरों से माल साफ कर चुके हैं।
भक्ति और दौलत में क्या संबंध हो सकता है? लेकिन आस्था कई मंदिरों में दौलतमंद बना देती है। दुनिया का सबसे रईस धार्मिक स्थल तिरुपति बालाजी हिंदुस्तान में ही है। मेरठ में भी श्रद्धा के साथ मंदिरों पर पैसा बरस रहा है। मंदी के इस दौर में भक्ति रिसेशन से मुक्त है और आस्था आधारित इकॉनामी का टर्नओवर बढ़ रहा है। है न प्रभु की लीला..
वैश्विक मंदी से भले ही उद्योग-धंधे कराह रहे हों लेकिन श्रद्धा और विश्वास के स्थल उससे अछूते हैं। प्रभु के प्रति भक्ति बढ़ रही है तो डोनेशन भी। यह वृद्धि दर बीस फीसदी से उपर पंहुच चुकी है। मेरठ के प्रमुख मंदिरों की सालाना आय दो करोड़ को पार कर चुकी है। पांच साल पहले तक ये आमदनी एक करोड़ से कम ही थी।
मुश्किलों के समय में भगवान की याद कुछ ज्यादा ही आने लगती है। यह एग्जाम का समय है, सो भक्ति छात्रों के सिर चढ़कर बोल रही है। अभिवावक भी पीछे नहीं हैं। इस कारण चढ़ावे में भी खासी वृद्धि हो रही है। दान में कैश तो है ही, सोना चांदी के गहने भी डोनेट हो रहे हैं। मंदी की मार से प्रभावित उद्यमियों का एक बड़ा तबका तो नियमित रूप से मंदिरों में जाने लगा है। वैसे सबसे ज्यादा दान त्योहारों में आता है। खासकर शिवरात्रि, नवरात्र और रामनवमी पर। इसके अलावा शनिवार को शनि मंदिर, सोमवार को शिवालय, मंगलवार-शनिवार को हनुमान मंदिरों में खास दिन होता है।
साईं बाबा चमत्कार के किस्से टीवी चैनलों में में खूब आने लगे तो मेरठ में भी भक्तों की लाइन लंबी होती गई। कंकरखेड़ा हो या गढ़ रोड या फिर सूरजकुंड का मंदिर, हर जगह भक्तों की भीड़ देखी जा सकती है। यहां मनौती पूरी होने पर भक्त काफी दान करते हैं। साईं बाब के मंदिरों से होने वाली इनकम की बात करें तो यह सालाना पचास लाख से ज्यादा है। दान में आई रकम मंदिर के रख-रखाव, वेतन और गरीबों की सेवा पर खर्च की जाती है।
ऐतिहासिक काली पल्टन मंदिर की बाबा औघड़नाथ मंदिर के नाम से जानते हैं। ये वही मंदिर है जहां से 1857 की क्रांति शुरु हुई थी। यहां सुबह-शाम दर्शन करने वालों की संख्या सबसे ज्यादा होती है। मंदिर प्रबंधन की मानें तो श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। यहां की सालाना आमदनी करीब छत्तीस लाख रुपये तक जा पंहुची है। इसका काफी हिस्सा सामाजिक कार्यों पर खर्च किया जा रहा है। भविष्य में स्कूल खोलने की भी तैयारी चल रही है।
जागृति विहार स्थित मंशा देवी मंदिर और शहर में जगह-जगह चल रहे शनि देव मंदिरों की सालाना आमदनी तकरीबन पचास लाख बैठती है। इसके अलावा भी दर्जनों मंदिर है जिनकी इनकम से धार्मिक कार्य हो रहे हैं। मंदिरों के आसपास चल रही दुकाने भी मंदिर प्रबंधन के ही देख-रेख में चल रहीं हैं। ये इनकम दान और चढ़ावे में आने वाली राशि से अलग है। सभी प्रमुख मंदिर ट्रस्ट के तौर पर काम कर रहे ळें। लेकिन कई मंदिर निजी तौर पर भी संचालित हो रहे हैं। चर्चित मंदिरों में जो बिना ट्रस्ट के चल रहे हैं, उनमें बुढ़ाना गेट का हनुमान मंदिर और मंशा देवी मंदिर प्रमुख है।
...और चलते-चलते। मंदिरों के माल का सभी को पता है। इसलिए चोरों की नजर हमेशा दान पात्र और भगवान के आभूषणों पर लगी रहती है। चोरों के लिए शायद भगवान सॉफ्ट टारगेट हैं। बीते छह महीनों में ही चोर भगवान के छह घरों से माल साफ कर चुके हैं।
9 comments:
हरी भाई .....
देखो भगवान् हम सब को माफ़ करता है......कभी हमें भी उसे माफ़ कर देना चाहिए ......एक बात कहूँगी ....बात आपकी सही है ...सोलह आने सही .....
जय हो आपकी...भगवान की गुल्लक पर भी नजर।
शोधपरक आलेख है, लेकिन विचारणीय। इतने पैसे से तो बहुत कुछ बदलाव किया जा सकता है। समाज के किसी भी हिस्से की बेहतरी के लिये काम हो सकता हैं। मैं एक बड़े उपन्यास पर काम कर रहा हूं उसमे भी कुछ ऐसा ही है। आपने जानकारी दी है अगर कुछ प्रश्न भी छोड़ते तो कुछ दिमागी कसरत हो जाती।
दुनिया का सबसे रईस धार्मिक स्थल तिरुपति बालाजी हिंदुस्तान में ही है। मेरठ में भी श्रद्धा के साथ मंदिरों पर पैसा बरस रहा है। मंदी के इस दौर में भक्ति रिसेशन से मुक्त है और आस्था आधारित इकॉनामी का टर्नओवर बढ़ रहा है। है न प्रभु की लीला..
acchi jankari mili aapse ...!!
पूँजीवाद का युग है । भगवान भी बखूबी जानता है कि भक्तों के पास भरपूर दौलत है । वो बिना लिये दिये कोई काम नहीं करता । आखिर भगवान को भी तो अपने खिदमतग़ारों की फ़िक्र करना है । इसके लिये चाहिए पैसा । वैसे भी हिन्दू मान्यता है कि हज़ार पापों को दान धर्म कर पुण्य में बदला जा सकता है । लोग साल में दो-चार मर्तबा दान पेटी में गड्डियाँ डालकर हर-हर गंगे कर लेते हैं ।
सामाजिक कार्यों में खर्च करने की जगह हमलोग मंदिरों में व्यर्थ का खर्च करते हैं ... उससे देश का कोई कल्याण नहीं होनेवाला।
हरी जी, आप ने बात बहुत ही सही लिखी है, हमारे यहां एक मंदिर खुला, पहले पहल वहा खुब भीड जाती थी सब चंदा भी देते थे, फ़िर जब हिसाब किताब का समय आया, ओर अगए मेबर चुनने का समय आया तो पहले मेमबरो ने झगडा करना शुरु किया,कोई हिसाब कितान नही दिया, अब धीरे धीरे लोगो ने जाना ही छोड दिया.
भारत मै भी हर मंदिर मै यही झगडा होता है चडावे पर किस का अधिकार, वहां भी कोई इस बात को ले कर नही झगडता की सफ़ाई कोन करेगा, बाकी को काम करेगी सभी लोग उस चढावे को ले कर ही क्यो लडाते है??? बात आप ने साफ़ कर दी अपने लेख मै, यानि अब भगवान भी भाग गये इन मंदिरो से वहा अब पंख्डियो, गुंडो का ही या फ़िर इन नेताओ का ही राज चलता है.
राम राम राम राम
चलो बनाये हम भी एक मंदिर फ़िर मोजा ही मोजा
आपकी सोच बिलकुल सही है.. आज लोग बड़े-बड़े मंदिरों में जा दान-दक्षिणा देना पसंद करते हैं.. वहीँ भगवान् के नाम पर दान में आये इन करोडो रुपैये की बन्दर-बाट को कई बार मंदिर समिति के लोग भी आपस में उलझ जाते हैं.. ऐसे कई नजारे मेरठ में देखे भी गए हैं.. मंदिर में होने वाली इसी धनवर्षा का नतीजा है की चमत्कारों के जरिये श्रधालुओ को बढाने की कोशिश भी इन्ही लोगो द्वारा की जाती है.. कोई भी धर्म हो वो निष्ठा, सदाचार और इंसानियत का सबक देता है लेकिन कुछ पाखंडियो ने इसी 'भगवान' से 'धनवान' बनाने की कोशिश में धर्म को भी शरमसार कर दिया है..
आज १७-१२-२०१० को आपकी यह रचना चर्चामंच में रखी है.. आप वहाँ अपने विचारों से अनुग्रहित कीजियेगा .. http://charchamanch.blogspot.com ..आपका शुक्रिया
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