(बस्ती में घुस आये एक भूखे और कमज़ोर बाघ को गांव वालों ने मिलकर मार डाला। शेर ने मरने से पहले एसडीएम साहब को बयान कलमबद्ध कराया। आप भी पढ़िये।)
अगले जनम मोहे बाघ नी कीजो सोलह साल पहले जब मेरा जन्म हुआ जंगल में काफी उथल पुथल हुई। पिता जी बताते थे गाड़ियों में बैठकर, शिकारियों जैसी बंदूके लेकर अफसर आये, जंगल में बने गांव वालों को हटने के लिये कहां, धमकाया, लालच दिया। नहीं माने तो जबरदस्ती धकिया दिया। पहली बार तब ऐसा हुआ कि सदियों से हम जिन गांव वालों के साथ रह रहे थे, जिनको हमसे और हमको जिनसे कोई बैर नहीं था, हमारी बिरादरी को उन्होने खूब गालियां दीं। वरना इससे पहले तो कोई शिकारी आ भी जाये जंगल में तो वो हमारे किसी चाचा-ताऊ तक पहुंचने से पहले ही गांव वालों के हत्थे चढ़ जाता था और वो उसकी वो गत बनाते थे कि बस पूछिये मत। हमारे पूर्वजों ने कभी गांव वालों का कुछ नहीं बिगाड़ा सिवाय तब के जब कोई बड़ा बुजुर्ग शिकार के लिये हिरण के पीछे लंबी दौड़ नहीं लगा पाया हो और तब हारकर उसने गांव में जाकर किसी बाड़े से बकरी उठा ली हो। बस इससे ज़्यादा कुछ नहीं। लेकिन कभी कोई बाघ गांव पहुंच गया और पकड़ में आ गया तो गांव वालों ने कनस्तर बजाकर भगा दिया, मारा नहीं। लेकिन जंगल से बाहर होते ही वो हमारी जान के दुश्मन हो गये। हमारी क्या गलती थी एसडीएम साहब। सरकार ने, नेताओं ने, अफसरों ने अपनी दुकान चलाने के लिये नेशनल पार्क बनाये, अभयारण्य बनाये। हमारी आज़ादी छिनी, एक इलाके में कैद कर दिया गया। उनको लगा कि जंगल हमे दे दिया गया है, लेकिन हमारा भी तो नहीं हुआ जंगल एसडीएम साहब।
जिस जगह से लोग भगाये गये वो हमारे पास थोड़े ही आई, वहां तो होटल खुल गये, रिजॉर्ट्स बन गये। हमे पास से देखने के लिये लोग आते हैं धुंआ उड़ाती और जंगल की शांति को खत्म करती गाड़ियों में बैठकर, और इन आलीशान होटलों में ठहरते हैं। लेकिन हम तो और अंदर जा चुके हैं जंगल के, बदनामी मिली सो अलग। पीली नदी के किनारे में पला-बढ़ा लेकिन बाद में तो पानी पीने के लिये वहां रात को आता था। शिकारी इतने मंडराते हैं कि बस पूछिये मत। मेरे पिता को भी इन्ही कंबख्तों ने मार डाला। गांव वाले होते तो किसी की मजाल थी कि मेरे पिता को हाथ लगा देते। एक बार किसी शिकारी ने हमारे एक बिरादर पर गोली चला दी थी गांव वालों ने बिना डरे उसकी इतनी सेवा की कि बस पूछिये मत। वो टीक हो गये तो जंगल में भिजवा दिया वापस। लेकिन सरकार हमारी दोस्ती देख नहीं सकी साहब, दुश्मन बना दिया।
जंगल में पेड़ कटे तो घास खत्म हुई, घास खत्म हुई तो सब हिरण-खरगोश खत्म हो गये, हम क्या खाते। गांवों पर धावा बोलने लगे। लेकिन कभी किसी इंसान को कुछ नहीं कहा, एसडीएम साहब। पेट भरने के लिये रघुपुरा से मैने बकरियां उठाई लेकिन उनको चराने वाले किसी बच्चे को कभी कुछ नहीं कहा, डराया भी नहीं। वो भी तो किसी के बच्चे हैं जैसे मेरे थे। मेरे तो दोनों बच्चे गांव वालों के मार डाले साहब। मैं तो उनको शिकार करना भी नहीं सिखा पाया, कोई जानवर मिले तब तो सिखाता। शाकाहारी हम हो नहीं सकते। क्या करते बेचारे, सियार की तरह एक मरे जानवर का मांस खा रहे थे, गांव में हल्ला हो गया, घेरकर मार डाला। मेरी पत्नी पानी ढूंढने गई थी लौटकर आई तब तक सब कुछ खत्म। उसके बाद उसकी एक झलक ही देख पाया हूं साहब। उसकी आंखों में मेरे लिये आंखों में नफरत थी कि मैं कैसा राजा हूं, ना अपने बच्चों को कुछ खिला सकता हू ना बचा सकता हूं। वो दिन है और आज का दिन है मेरी लक्ष्मी दिखी नहीं।
अकेला पड़ा तो इधर चला आया गांव की तरफ। सारा दिन गाव वालों और शिकारियों से बचने में निकल जाता। मैंने पेट भरने के लिये घास खाने की कोशिश की लेकिन नहीं खा सका। बहुत भूख लगी तो एक बकरी पर झपटा, लेकिन बकरी तो भाग गई। मैं पड़ गया गांव वालों के हत्थे। ये गांव वाले मेरे रिश्ते के भाई बब्बर शेर की पूजा करते हैं क्योंकि वो मां दुर्गा के वाहन हैं, लेकिन मेरी ज़रा भी लाज नहीं रखी। डंडा, बल्लम, तलवार जिसके पास जो था लेकर पिल पड़े। एसडीएम साहब देख लीजियेगा मैंने किसी को ना पंजा मारा ना नाखून, मैं तो अपनी जान बचाने की कोशिश करता रहा। लेकिन इनके मन में कितनी नफरत भर दी गई है हमारे लिये देखिये मुझे कितनी बुरी तरह से मारा है। एक हड्डी साबुत नहीं बची। इससे तो कोई शिकारी एक गोली सीने में उतार देता तो आसानी से मर तो जाता। लेकिन इनकी भी क्या गलती है एसडीएम साहब। इनको भी तो जीना है, डर तो लगता ही ना बाघ से। मेरे मौसी के वंशज चीते तो राजे-माहारजों ने खत्म कर दिये, बाघों को लगता है ये लोग खत्म कर देंगे। सरकार कहती है डेढ़ हज़ार बाघ बचे हैं देश में, मैं कहता हूं डेढ़ सौ भी नहीं बचे। और जो बचे हैं मेरी तरह मार दिये जायेंगे दो-चार साल में। एसडीएम मरने से पहले मैं अपने बिरादरों के लिये एक सलाह देना चाहता हूं। खाने को मिले ना मिले, जो जंगल बचा है उसी मे पड़े रहना। ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा शिकारी गोली मारेगा, चैन की मौत तो मरोगे। मेरी तरह एक-एक हड्डी तो नहीं टूटेगी कम से कम। साहब, मैंने गांव वालों को माफ किया, मेरी एक मंशा पूरी तक दीजिये मेरा बयान टीवी पर चलवा दीजियेगा। आजकल तो ज़्यादातर बाघ पेट भरने के चक्कर में इधर-उधर ही घूमते रहते हैं, किसी के घर टीवी चलता देखकर जान लेंगे मेरी गत। बस्तियों के राजा खत्म हुए लगता है अब जंगल के राजा भी खत्म हो जायेंगे। एसडीएम साहब अब बोला नहीं जा रहा मैं जा रहा हूं।
अलविदा इंसानों, इंसानियत बचाये रखना।
-बाघ बहादुर, मूल निवास पीली नदी का जंगल, उसके बाद खानाबदोश