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Monday, May 4, 2009

बिन साजन कैसे बने सुहागन

डोली सजी। दुल्‍हनियां उड़ी। ससुराल पंहुची। स्‍वागत हुआ। लेकिन दूल्‍हे राजा गायब मिले। अब ससुरालियों के हाथ-पांव फूले हुए हैं कि दुल्‍हन बिन साजन सुहागिन कैसे रहेगी। पहले तो यही ढिंढोरा पिटता रहा कि दूल्‍हे राजा घर में ही हैं लेकिन शर्मा कर सामने नहीं आ रहे हैं। दुबके-दुबके घूम रहें हैं लेकिन झूठ कितने दिन छिपता। सच सामने आना ही था। अब सच सामने आ ही गया तो कह रहे हैं कि जैसे दुल्‍हन लाए वैसे ही दूल्‍हे का भी आयात कर लेंगे। जी हां! हम किसी साधारण दुल्‍हन की बात नहीं कर रहे बल्कि जिस दुल्‍हन की बात कर रहें हैं उसका नाम रानी है और उसका मायका है बांधवगढ़। बांधवगढ़ बाघ अभयारण की बाघिन को पन्‍ना बाघ अभयारण लाया गया था ताकि वहां बचे बाघ को साथिन मिल जाए और दोनों के समागम से बाघों की संख्‍या में कुछ इजाफा हो जाए। इसी तरह एक बाघिन कान्‍हा नेशनल पार्क से लाई गई थी लेकिन मार्च में लाईं गईं दोनों बाघिन पन्‍ना के जंगलों में तन्‍हा घूम रही हैं।
वैसे तो पन्‍ना टाइगर रिजर्व है लेकिन वहां टाइगर ही नहीं बचा है। ये खुलासा अभी हाल में पन्‍ना में बाघों की संख्‍या की जांच करने केंद्र से गई एक तीन सदस्‍यीय कमेटी ने किया है। राष्‍ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के एक पूर्व निदेशक की अगुवाई में भेजी गई भारत सरकार की इस कमेटी ने गहन जांच-पड़ताल के बाद पाया कि पन्‍ना टाइगर रिजर्व में एक भी बाघ की मौजूदगी नहीं है ज‍बकि पन्‍ना टाइगर रिजर्व का प्रबंधन यहां बीस बाघों की मौजूदगी बताता रहा है। बाघ संरक्षण प्राधिकरण को टाइगर रिजर्व के बाहर तो एक बाघ होने के प्रमाण मिले हैं लेकिन कई दिन की ट्रैकिंग के बाद कमेटी इस निष्‍कर्ष पर पंहुची कि ये बाघ भी पन्‍ना टाइगर रिजर्व की सरहद में नहीं घुस रहा बल्कि उससे बाहर ही घूमता रहता है। आखिर ऐसा क्‍यों है? वैसे बाघ तो राजा है उसे किसी परिधि में बांधकर रखना तो मुमकिन नहीं लेकिन क्‍या जंगल का राजा भी टाइगर रिजर्व की सरहद में घुसने से डर रहा है। पन्‍ना के जिन जंगलों में कभी इस राष्‍ट्रीय पशु की भरमार हुआ करती थी वहां बचा हुआ इकलौता बाघ भी पन्‍ना टाइगर रिजर्व को कुछ इस अंदाज में अलविदा कह गया- ए मेरे दिल कहीं और चल......
बाघ आदमखोर हो जाए तो उसे मार गिराने के लिए जंगल की पूरी मशीनरी सक्रिय हो जाती है। हल्‍ला मच जाता है। नाटक किया जाता है कि बाघ को जिंदा पकड़ना है। पिंजरे लगाए जाते हैं और फिर नौटंकी का समापन किसी एक बाघ को गोली का निशाना बना कर किया जाता है। शिकारी और वन विभाग के हुक्‍मरान अपना सीना चौड़ा कर बेजान हो चुके जंगल के राजा की लाश के साथ अपने फोटो खिंचवाते हैं। इसके कुछ दिन बाद फिर खबर आती है कि बाघ ने किसी गांव पर हमला बोला और पशुओं को खा गया। ऐसी खबरों के साथ, फिर आवाजे उठती हैं कि मारा गया बाघ तो वह था ही नहीं जिसने आदम पर हमला किया था। लेकिन कभी आपने बाघखोरों के खिलाफ आवाजे सुनी हैं। क्‍या आपने कभी सुना है कि बाघखोरों के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई हो। पन्‍ना टाइगर रिजर्व के बाघ खत्‍म हो गए लेकिन इस नेशनल पार्क का प्रबंधन बाघों की झूठी मौजूदगी बताकर करोड़ों रुपये का हेरफेर करता रहा।
पन्‍ना टाइगर रिजर्व का प्रबंधन किस तरह आंखों में धूल झोंकता रहा है उसके लिए 2002 और 2006 में कराए गई बाघ गणना के आंकड़े उसे आईना दिखाते हैं। 2002 में पंजों के निशान के आधार पर हुई गणना में अभयारण्‍य में तैतीस बाघ होने की बात कही गई थी जिसमें प्रति सौ किमी के दायरे में एक बाघ के साथ तीन बाघिन दर्शायी गईं थीं। इसके चार साल बाद यानी 2006 में कैमरा ट्रैप तकनीक से गणना हुई जिसमें आंकड़ा एकदम उलटा था। कैमरा ट्रैप तकनीक से हुई गणना में एक बाघिन पर तीन बाघ थे। लेकिन यदि राष्‍ट्रीय बाघ संरक्षण के पूर्व निदेशक की पड़ताल पर यकीन करें तो 2008 तक पन्‍ना टाइगर रिजर्व से बाघों का नामोनिशान ही मिट चुका था। ऐसे में अब तक बीस बाघों के होने का दावा करने वाला पन्‍ना रिजर्व टाइगर का प्रबंधन आखिर फर्जी आंकड़े क्‍यों दे रहा था और जब बाघ था ही नहीं तो कान्‍हा और बांधवगढ़ से बाघिन लाकर पन्‍ना के टाइगर रिजर्व में क्‍यों छोड़ी गईं। क्‍यों ये कहा गया कि दुल्‍हन बनाकर लाईं गईं बाघिनों की गतिविधियों पर पैनी नजर रखी जा रही है। बाघों की वंशवृद्धि के लिए राष्‍ट्र के साथ इतना भद्दा मजाक क्‍यों किया गया। अब भारत सरकार की ये समिति इस बात की जांच करेगी कि 2002 से अब तक चौंतीस बाघों के रखरखाब, भोजन और संरक्षण के लिए अब तक खर्च हुए करोड़ो रुपये कहां गए। अब समिति ये पड़ताल भी कर रही है कि भारत कि किस अधिकारी के कार्यकाल में कितना खर्च हुआ।
फिलहाल पन्‍ना की दोनों दुल्‍हनें वीरान है। बिन साजन वह कैसे बने सुहागन। लेकिन पन्‍ना का बेशर्म प्रबंधन कह रहा है कि हमने यहां दूसरी जगह से बाघों को लाकर पन्‍ना के टाइगर रिजर्व में बसाने का प्रस्‍ताव भेजा हुआ है। इससे ज्‍यादा शर्म की बात और क्‍या हो सकती है कि अपने बाघ तो बचाए नहीं गए और अब बेशर्मी की हदों को भी पन्‍ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन पार कर रहा है। अब आप ही बताइए कि बाघ आदमखोर है या उसके रखवाले ही बाघखोर बन गए हैं।

Sunday, April 26, 2009

एक बाघ का डाइंग डिक्लेरेशन

(बस्ती में घुस आये एक भूखे और कमज़ोर बाघ को गांव वालों ने मिलकर मार डाला।
शेर ने मरने से पहले एसडीएम साहब को बयान कलमबद्ध कराया। आप भी पढ़िये।)

अगले जनम मोहे बाघ नी कीजो

सोलह साल पहले जब मेरा जन्म हुआ जंगल में काफी उथल पुथल हुई। पिता जी बताते थे गाड़ियों में बैठकर, शिकारियों जैसी बंदूके लेकर अफसर आये, जंगल में बने गांव वालों को हटने के लिये कहां, धमकाया, लालच दिया। नहीं माने तो जबरदस्ती धकिया दिया। पहली बार तब ऐसा हुआ कि सदियों से हम जिन गांव वालों के साथ रह रहे थे, जिनको हमसे और हमको जिनसे कोई बैर नहीं था, हमारी बिरादरी को उन्होने खूब गालियां दीं। वरना इससे पहले तो कोई शिकारी आ भी जाये जंगल में तो वो हमारे किसी चाचा-ताऊ तक पहुंचने से पहले ही गांव वालों के हत्थे चढ़ जाता था और वो उसकी वो गत बनाते थे कि बस पूछिये मत। हमारे पूर्वजों ने कभी गांव वालों का कुछ नहीं बिगाड़ा सिवाय तब के जब कोई बड़ा बुजुर्ग शिकार के लिये हिरण के पीछे लंबी दौड़ नहीं लगा पाया हो और तब हारकर उसने गांव में जाकर किसी बाड़े से बकरी उठा ली हो। बस इससे ज़्यादा कुछ नहीं। लेकिन कभी कोई बाघ गांव पहुंच गया और पकड़ में आ गया तो गांव वालों ने कनस्तर बजाकर भगा दिया, मारा नहीं। लेकिन जंगल से बाहर होते ही वो हमारी जान के दुश्मन हो गये। हमारी क्या गलती थी एसडीएम साहब। सरकार ने, नेताओं ने, अफसरों ने अपनी दुकान चलाने के लिये नेशनल पार्क बनाये, अभयारण्य बनाये। हमारी आज़ादी छिनी, एक इलाके में कैद कर दिया गया। उनको लगा कि जंगल हमे दे दिया गया है, लेकिन हमारा भी तो नहीं हुआ जंगल एसडीएम साहब।
जिस जगह से लोग भगाये गये वो हमारे पास थोड़े ही आई, वहां तो होटल खुल गये, रिजॉर्ट्स बन गये। हमे पास से देखने के लिये लोग आते हैं धुंआ उड़ाती और जंगल की शांति को खत्म करती गाड़ियों में बैठकर, और इन आलीशान होटलों में ठहरते हैं। लेकिन हम तो और अंदर जा चुके हैं जंगल के, बदनामी मिली सो अलग। पीली नदी के किनारे में पला-बढ़ा लेकिन बाद में तो पानी पीने के लिये वहां रात को आता था। शिकारी इतने मंडराते हैं कि बस पूछिये मत। मेरे पिता को भी इन्ही कंबख्तों ने मार डाला। गांव वाले होते तो किसी की मजाल थी कि मेरे पिता को हाथ लगा देते। एक बार किसी शिकारी ने हमारे एक बिरादर पर गोली चला दी थी गांव वालों ने बिना डरे उसकी इतनी सेवा की कि बस पूछिये मत। वो टीक हो गये तो जंगल में भिजवा दिया वापस। लेकिन सरकार हमारी दोस्ती देख नहीं सकी साहब, दुश्मन बना दिया।
जंगल में पेड़ कटे तो घास खत्म हुई, घास खत्म हुई तो सब हिरण-खरगोश खत्म हो गये, हम क्या खाते। गांवों पर धावा बोलने लगे। लेकिन कभी किसी इंसान को कुछ नहीं कहा, एसडीएम साहब। पेट भरने के लिये रघुपुरा से मैने बकरियां उठाई लेकिन उनको चराने वाले किसी बच्चे को कभी कुछ नहीं कहा, डराया भी नहीं। वो भी तो किसी के बच्चे हैं जैसे मेरे थे। मेरे तो दोनों बच्चे गांव वालों के मार डाले साहब। मैं तो उनको शिकार करना भी नहीं सिखा पाया, कोई जानवर मिले तब तो सिखाता। शाकाहारी हम हो नहीं सकते। क्या करते बेचारे, सियार की तरह एक मरे जानवर का मांस खा रहे थे, गांव में हल्ला हो गया, घेरकर मार डाला। मेरी पत्नी पानी ढूंढने गई थी लौटकर आई तब तक सब कुछ खत्म। उसके बाद उसकी एक झलक ही देख पाया हूं साहब। उसकी आंखों में मेरे लिये आंखों में नफरत थी कि मैं कैसा राजा हूं, ना अपने बच्चों को कुछ खिला सकता हू ना बचा सकता हूं। वो दिन है और आज का दिन है मेरी लक्ष्मी दिखी नहीं।
अकेला पड़ा तो इधर चला आया गांव की तरफ। सारा दिन गाव वालों और शिकारियों से बचने में निकल जाता। मैंने पेट भरने के लिये घास खाने की कोशिश की लेकिन नहीं खा सका। बहुत भूख लगी तो एक बकरी पर झपटा, लेकिन बकरी तो भाग गई। मैं पड़ गया गांव वालों के हत्थे। ये गांव वाले मेरे रिश्ते के भाई बब्बर शेर की पूजा करते हैं क्योंकि वो मां दुर्गा के वाहन हैं, लेकिन मेरी ज़रा भी लाज नहीं रखी। डंडा, बल्लम, तलवार जिसके पास जो था लेकर पिल पड़े। एसडीएम साहब देख लीजियेगा मैंने किसी को ना पंजा मारा ना नाखून, मैं तो अपनी जान बचाने की कोशिश करता रहा। लेकिन इनके मन में कितनी नफरत भर दी गई है हमारे लिये देखिये मुझे कितनी बुरी तरह से मारा है। एक हड्डी साबुत नहीं बची। इससे तो कोई शिकारी एक गोली सीने में उतार देता तो आसानी से मर तो जाता। लेकिन इनकी भी क्या गलती है एसडीएम साहब। इनको भी तो जीना है, डर तो लगता ही ना बाघ से। मेरे मौसी के वंशज चीते तो राजे-माहारजों ने खत्म कर दिये, बाघों को लगता है ये लोग खत्म कर देंगे। सरकार कहती है डेढ़ हज़ार बाघ बचे हैं देश में, मैं कहता हूं डेढ़ सौ भी नहीं बचे। और जो बचे हैं मेरी तरह मार दिये जायेंगे दो-चार साल में। एसडीएम मरने से पहले मैं अपने बिरादरों के लिये एक सलाह देना चाहता हूं। खाने को मिले ना मिले, जो जंगल बचा है उसी मे पड़े रहना। ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा शिकारी गोली मारेगा, चैन की मौत तो मरोगे। मेरी तरह एक-एक हड्डी तो नहीं टूटेगी कम से कम। साहब, मैंने गांव वालों को माफ किया, मेरी एक मंशा पूरी तक दीजिये मेरा बयान टीवी पर चलवा दीजियेगा। आजकल तो ज़्यादातर बाघ पेट भरने के चक्कर में इधर-उधर ही घूमते रहते हैं, किसी के घर टीवी चलता देखकर जान लेंगे मेरी गत। बस्तियों के राजा खत्म हुए लगता है अब जंगल के राजा भी खत्म हो जायेंगे। एसडीएम साहब अब बोला नहीं जा रहा मैं जा रहा हूं।
अलविदा इंसानों, इंसानियत बचाये रखना।
-बाघ बहादुर, मूल निवास पीली नदी का जंगल, उसके बाद खानाबदोश

तकनीकी सहयोग- शैलेश भारतवासी

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