चारों तरफ शिव की जय-जयकार। हर-हर महादेव और बोल बम के जयघोष के साथ हरिद्वार से दिल्ली राजमार्ग पर बारह दिन तक सिर्फ कांवड़ियों का राज चलता है। इस हाइवे पर या तो शिवभक्त कांवड़िये चल सकते हैं या फिर कांवड़ियों के भक्त। हिंदी तिथि के मुताबिक सावन के महीने में पड़ने वाली शिवरात्रि से पहले शिवभक्त हरिद्वार पंहुचते हैं और वहां से गंगाजल को अपने कंधे पर रखी कांवड़ में रखकर अपने अपने शिवालयों की तरफ चल पड़ते हैं। शिव की आराधना की यह परम्परा पूरे उत्तर भारत में है और जहां से गंगा बहती है, शिवभक्त वहीं से गंगाजल लेकर शिवालय पंहुचते हैं लेकिन हरिद्वार में तो कांवड़ियों का महाकुंभ लग जाता है। भक्तों के इस सैलाब में न कोई अमीर होता है और न गरीब, न कोई अवर्ण होता है और न सवर्ण। हरिद्वार से जब कांबड़िये मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद, दिल्ली, राजस्थान और हरियाणा की तरफ कांवड़ लेकर चलते हैं तो भक्ति की रसधारा बहती है लेकिन यह तस्वीर का एक पहलू है। तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि जरा सी बात हो जाने पर कांवड़िए उत्पाती हो जाते हैं। बारह दिनों के बीच कांवड़ मार्ग में उपद्रव होना भी एक परम्परा बन गया है। कांवड़ मार्ग में हर कांवड़िया शिव के तीसरे नेत्र के समान गुस्सैल हो जाता है।
इस बार साठ लाख कांवड़ियों के हरिद्वार पंहुचने की उम्मीद है। यह संख्या हर साल बढ़ती ही जा रही है और हर साल पुलिस प्रशासन को कुछ खास इंतजाम करने पड़ते हैं। सुरक्षा इंतजामों के मद्देनजर शिवरात्रि से करीब दस दिन पहले दिल्ली हरिद्वार हाइवे पर यातायात रोक दिया जाता है। इस बीच यदि किसी बीमार को भी एंबुलेंस से गुजरना हो तो उसे परिवर्तित मार्ग, जो गांव और कस्बों से होकर गुजरते हैं, जाना होता है। यानी कुछ घंटे की यात्रा कई घंटों में तब्दील हो जाती है। इतना ही नहीं ये सड़कें ऐसी हैं जिनमें गड्डे नहीं हैं बल्कि गड्डों में सड़क हैं। अब जरा आप सोचिए कि राजमार्ग का इस तरह के भक्तिमार्ग में तब्दील हो जाना उचित है? भारत जैसे देश में किसी महोत्सव में श्रद्धालुओं को रोका नहीं जा सकता लेकिन यह तो सोचना ही होगा कि कई सौ किमी तक राजमार्ग पर पड़ने वाले सभी शहरों और कस्बों की जिंदगी ही थम जाए। मरीज अस्पताल न जा सकें। कारोबार की चूलें हिल जाएं। मेरठ, मुजफ्फरनगर और गाजियाबाद जैसे शहरों में आदमी घर में कैद होकर बैठ जाएं। क्या आज हम इन हालातों को वहन कर पाने की स्थिति में हैं?
जरा सोचिए! इन बारह दिनों की यात्रा में कारोबारियों को बीस अरब का चूना लगता है, जिसमें सरकार को राजस्व की होने वाला नुकसान शामिल नहीं है। एशिया की सबसे बड़ी गुड़ मंडी मुजफ्फरनगर सहित हापुड़, मेरठ और मंगलौर की मंडियों में कारोबार ठप है। दालों सहित सब्जियों के दाम आवक कम होने से बढ़ने लगे हैं। मेरठ का सराफा हो या स्पोर्टस गुड्स उद्योग या फिर मुजफ्फरनगर का इस्पात उद्योग, सभी जगह कारोबार करीब करीब ठप है क्योंकि न ग्राहक आ पा रहें हैं और न कारीगर। न माल बाहर जा पा रहा है और न कच्चा माल आ पा रहा है। ऐसे में कौन प्रसन्न होगा?
यह एक अलग बहस का मुद्दा है कि विकास के पहियों में ब्रेक लगाने वाले, रफ्तार की सांसों पर अवरोधक बनने वाली और दूसरों को कष्ट पंहुचाने वाली भक्ति से क्या भगवान प्रसन्न होते है? लेकिन सत्ता में बैठे हमारे आका इतना तो कर ही सकते हैं कि ऐसी व्यवस्था बनाए जिससे आम आदमी को कम से कम कष्ट हो। आम आदमी की मांग पर उत्तर प्रदेश सरकार ने गंगा का पानी दिल्ली तक पंहुचाने वाली गंग नहर के किनारे कांवड़ मार्ग बनाया था लेकिन इस मार्ग का उपयोग केवल एक साल हो सका क्योंकि भारी वाहनों की आवाजाही से ये मार्ग पैदल यात्रियों के लिए भी सही सलामत नहीं बचा और मरम्मत के लिए सरकार कंगली थी। तो क्या ये माना जाए कि बारह दिन जनजीवन अस्त-व्यस्त रखने के लिए भक्ति से अधिक शक्ति यानी हमारे शासक जिम्मेदार हैं?
हम मानते हें कि हमारे मित्र और सुधीजन इस पर जरूर विचार मंथन करेंगे और अपने सुझाव भेजकर यह सुझाएंगे कि कैसे इस तरह की समस्या का हल हो कि भक्ति की धारा भी बहती रहे और जिंदगी की रफ्तार भी न थमे। इस मंच पर आपकी प्रतिक्रियाओं का हमें इंतजार रहेगा।
इस बार साठ लाख कांवड़ियों के हरिद्वार पंहुचने की उम्मीद है। यह संख्या हर साल बढ़ती ही जा रही है और हर साल पुलिस प्रशासन को कुछ खास इंतजाम करने पड़ते हैं। सुरक्षा इंतजामों के मद्देनजर शिवरात्रि से करीब दस दिन पहले दिल्ली हरिद्वार हाइवे पर यातायात रोक दिया जाता है। इस बीच यदि किसी बीमार को भी एंबुलेंस से गुजरना हो तो उसे परिवर्तित मार्ग, जो गांव और कस्बों से होकर गुजरते हैं, जाना होता है। यानी कुछ घंटे की यात्रा कई घंटों में तब्दील हो जाती है। इतना ही नहीं ये सड़कें ऐसी हैं जिनमें गड्डे नहीं हैं बल्कि गड्डों में सड़क हैं। अब जरा आप सोचिए कि राजमार्ग का इस तरह के भक्तिमार्ग में तब्दील हो जाना उचित है? भारत जैसे देश में किसी महोत्सव में श्रद्धालुओं को रोका नहीं जा सकता लेकिन यह तो सोचना ही होगा कि कई सौ किमी तक राजमार्ग पर पड़ने वाले सभी शहरों और कस्बों की जिंदगी ही थम जाए। मरीज अस्पताल न जा सकें। कारोबार की चूलें हिल जाएं। मेरठ, मुजफ्फरनगर और गाजियाबाद जैसे शहरों में आदमी घर में कैद होकर बैठ जाएं। क्या आज हम इन हालातों को वहन कर पाने की स्थिति में हैं?
जरा सोचिए! इन बारह दिनों की यात्रा में कारोबारियों को बीस अरब का चूना लगता है, जिसमें सरकार को राजस्व की होने वाला नुकसान शामिल नहीं है। एशिया की सबसे बड़ी गुड़ मंडी मुजफ्फरनगर सहित हापुड़, मेरठ और मंगलौर की मंडियों में कारोबार ठप है। दालों सहित सब्जियों के दाम आवक कम होने से बढ़ने लगे हैं। मेरठ का सराफा हो या स्पोर्टस गुड्स उद्योग या फिर मुजफ्फरनगर का इस्पात उद्योग, सभी जगह कारोबार करीब करीब ठप है क्योंकि न ग्राहक आ पा रहें हैं और न कारीगर। न माल बाहर जा पा रहा है और न कच्चा माल आ पा रहा है। ऐसे में कौन प्रसन्न होगा?
यह एक अलग बहस का मुद्दा है कि विकास के पहियों में ब्रेक लगाने वाले, रफ्तार की सांसों पर अवरोधक बनने वाली और दूसरों को कष्ट पंहुचाने वाली भक्ति से क्या भगवान प्रसन्न होते है? लेकिन सत्ता में बैठे हमारे आका इतना तो कर ही सकते हैं कि ऐसी व्यवस्था बनाए जिससे आम आदमी को कम से कम कष्ट हो। आम आदमी की मांग पर उत्तर प्रदेश सरकार ने गंगा का पानी दिल्ली तक पंहुचाने वाली गंग नहर के किनारे कांवड़ मार्ग बनाया था लेकिन इस मार्ग का उपयोग केवल एक साल हो सका क्योंकि भारी वाहनों की आवाजाही से ये मार्ग पैदल यात्रियों के लिए भी सही सलामत नहीं बचा और मरम्मत के लिए सरकार कंगली थी। तो क्या ये माना जाए कि बारह दिन जनजीवन अस्त-व्यस्त रखने के लिए भक्ति से अधिक शक्ति यानी हमारे शासक जिम्मेदार हैं?
हम मानते हें कि हमारे मित्र और सुधीजन इस पर जरूर विचार मंथन करेंगे और अपने सुझाव भेजकर यह सुझाएंगे कि कैसे इस तरह की समस्या का हल हो कि भक्ति की धारा भी बहती रहे और जिंदगी की रफ्तार भी न थमे। इस मंच पर आपकी प्रतिक्रियाओं का हमें इंतजार रहेगा।
29 comments:
पंडित जी, कॉमरेड हो गये आप तो।
पंडित जी, फोटो तो इंटर के आई कार्ड वाला लगा रखा है।
बहस का मुद्दा है
बहस का मुद्दा है
being a positive thing u r right but there r so many people who does not like this.
they dont like the road blokes but they dont know if there will be any misshappining on the road then they will be first crying police kaya kar rahi hai. so in this case road block will be must infavour of pepple.
kuch kam nahi bacha hai kaya
पण्डित जी। यह बात भी आप और हम ही कर सकते हैं। और नहीं करेंगे। करेंगे तो कावड़ियों का तीसरा नेत्र खुलेगा।
स्वागत है। एकदम सही लिखा आपने ।
बहुत अच्छा लिखा है। स्वागत है।
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.
वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.
हिन्दी ब्लॉग परिवार में आपका स्वागत है। हम आपसे नियमित ब्लॉग लेखन की अपेक्षा करते हैं।
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Bilkul sahi likha.kai bar ye kanvariye apne aapko shiv g se bhi bada samajhne lagte hain
उड़न तश्तरी जी की टिप्पणी मेरी तरफ से भी मानी जाय।
1-जोशी जी का ब्लाग
kishore kamal (kishorekamaldelhi@gmail.com)
to yashwantdelhi@gmail.com
date 25 Jul 2008 13:50
subject जोशी जी का ब्लॉग
mailed-by gmail.com
मेरठ के पत्रकार जगत में गुरुजी के नाम से मशहूर पंडित हरिशंकर जोशी ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भागदोड़ से कुछ समय निकालकर अपना ब्लॉग बनाया है, नाम है इर्दगिर्द http://www.irdgird.blogspot.com/ जोशी जी ने उस समय वीडियो कैमरा संभाला था जब इस देश में बमुश्किल एक दो वीडियो कैमरे थे। वो अपने मामाजी के साथ एबीसी के लिये काम करते थे। लेकिन बाद में वो अमर उजाला से जुड़ गये और स्टिल फोटोग्रॉफी करते रहे। उनके फोटो धर्मयुग जैसी पत्रिकाओं में भी पहले पेज पर कई बार छपे हैं। कैमरे पर उनकी पकड़ सीएनबीसी आवाज़ में उनकी खबरों में साफ नज़र आती है।
Maine Kabhee joshi ji ko dhara ke sath bahte nahin dekha. jab bhakti ki ganga bah rahi hai to vo nastikon jaisi bate karte hain. jab 100 kog kisi ke samarthan men khade hon to wo akele virodh ka jhanda lekar khade ho jaate hen. bhole baba unhe sadbuddhi den.
कहते हैं कि इक्कीसवीं सदी में किसी के पास समय नहीं है लेकिन दूसरी तरफ साठ लाख कांबड़ियों को देखकर लगता है कि लोगों के पास समय की कमी नहीं है। ये संभव है कि अपने बीमार पड़ोसी या पिता को लोग नजरंदाज कर जांए लेकिन भोले को कैसे भूल सकते हैं क्योंकि दस दिन की मौजमस्ती का मामला है।
ब्लागजगत में आपका स्वागत है
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है । आपके विचार पढ कर लगा कि कि हां अब कोई बढिया लेखक चिट्ठाजगत में आया है । आशा है कि हमें को आपके विचार नियमित पढने को मिलेगें ।
http://indi-live.blogspot.com/2008/07/blog-post.html
सोशल बुकमार्किंग का अर्थ है, इंटरनेट पर मौजूद सामग्री को पाठक समूह द्वारा दूसरे पाठकों के लिए रेटिंग देना और उन्हें उस सामग्री को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना। यह एक तरह की वोटिंग है। इसे किसी ब्लॉग पोस्ट को पाठकों द्वारा की गई वोटिंग से समझा जा सकता है। पाठकों को जो पोस्ट पसंद आती हैं, वे उसे वोट देते हैं और वे पोस्ट सोशल बुकमार्किंग साइट्स पर पहुंच जाती हैं। जिस पोस्ट को जितने ज्यादा वोट मिलते हैं, पोस्ट उतनी ही ऊपर होती जाती है। इस तरह किसी ब्लॉग के क्वालिटी कंटेंट को ज्यादा पाठक मिलते जाते हैं। तो इस बुकमार्किंग के जरिए किसी ब्लॉग का प्रचार किया जा सकता है। जानते हैं हिन्दी ब्लॉग के लिए इंडियन सोशल बुकमार्किंग विजेट लगाने का तरीका- (यह विजेट इस पोस्ट के सबसे अंत में प्रचार करें के रूप में देखा जा सकता है।)
1. प्रचारदिस पर जाएं और पंजीयन करें।
2. भाषा के विकल्प में अपने ब्लॉग की भाषा चुनें।
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4. अपने ब्लॉग के डेशबोर्ड में जाएं।
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6. एड ए पेज एलिमेंट पर क्लिक करें।
7. जावास्क्रिप्ट/एचटीएमएल विकल्प चुनें।
8. टाइटल खाली छोड़ दें और नीचे बॉक्स में कॉपी किया गया कोड पेस्ट कर दें।
9. परिवर्तन को सेव कर दें।
आपके ब्लॉग पर यह विजेट लग चुका है। हिन्दी सोशल बुकमार्किंग के लिहाज से यह साइट ठीक है। अगर आप अंग्रेजी विजेट यूज करना चाहते हैं तो सबसे अच्छा विजेट एडदिस पर उपलब्ध है।
aapne sahi likha hai....mai samjh sakti hu is lekh ki sachhai
verification hata de to comment karne mai suvidha hogi
बहस का मुद्दा है
आशा है कि हमें को आपके विचार नियमित पढने को मिलेगें ।
highway per har kanwariyan swanm ek shiv hota hai aur uski teesri ankh to band hone ka nam hi nahi leti. sab ko bahut pareshani hoti hai magar kam se kam meerut mein crime to kam hota hai kyunki sare criminals to yatra pin hote hain.
ab to yeh halaat hein ki bhagwan shiv swanm inhe nahi rok sakte magar excellent article
Aalekh badhiyaa hai lekin hame positive way se sochnaa chaahiye. Sirf trafic ki pareshaani ke kaaran Kanvariyo ki bhaavnaao pe aaghaat karnaa bemaani hai. Iss samasya ke hal ke liye aur tareeke bhi ho sakte hain. Jaise unke liye alag se shortcut raaste viksit kiye jaaye. Kanvariyo ki bhakti ko mahaj mauj-masti kahkar badnaam karnaa theek nahi hai. Basharte hamaari secular sarkaare imaandaari se kuch karnaa chaahe. Unke samaan parishram se Bhakti karnaa aapke-hamaare jaise vyakti ke bas ki baat nahi hai.
pandit ji,
lagta hai bahut dino ke bad kalam uthai hai.vicharottejak lekh ke liye meri hardik badhai aur shubhkamnay.
your aritcle is quite near to the problems what we face during kanwar yatra, but this is the single side of coin on which you focus. This is the topic which need big discussion. Every developed country tries to motivates it culture and reliegion in such when due to kanwar yatra if some traffic problem arises it does'nt mean that kanwar yatra creates problem or it's full of irregularities. Few peoples creat neusance and bring shame for whole kanwar yatra. In my view Kanwar Yatra is sacred religious occassion full of sacrifice.
your sincere rajnish chauhan
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