गर्मी में जब आप घर से बाहर निकलते हैं तो प्यास लगती है। गला सूख जाता है। ठंडा पीने को मन करता है। लेकिन शीतल पेय के नाम पर मैंगो शेक, बेल का शर्बत या रसना के नाम पर परोसे जाने वाले पेय पदार्थों को पीने से पहले ये जान लीजिए कि कहीं आप धीमा जहर तो अपने पेट में नहीं उड़ेल रहे। क्या आपने कभी सोचा है कि तीन और पांच रूपये में बिकने वाले बेल के शर्बत पर मंहगाई की मार क्यों नहीं है? अट्ठाइस रूपये किलो चीनी और दस रुपये का बेलफल आपको मुफ्त के दामों में कैसे मिल रहा है। बाइस से तीस रूपये किलो के आम और चौबीस रूपये प्रति लीटर के दाम वाले दूध से बना मैंगो शेक पांच रूपये गिलास में कैसे बिक रहा है। खास बात ये है कि ये गोरखधंधा बस अड्डों, स्टेशनों या ऐसी जगह चलता है जहां मुसाफिरों की अच्छी-खासी तादाद रहती है। कचहरी या बस अड्डों के पास बिकने वाला पांच रूपये गिलास का मैंगो शेक हो या भीड़-भाड़ वाली जगहों पर रसना के नाम पर एक रूपये में बेचा जाने वाला मीठा शर्बत। इस तरह के सभी सस्ते ड्रिंक आपकी सेहत से खिलबाड़ कर रहे हैं।
बेल का शर्बत आयुर्वेदिक दवा भी है और ठंडा शर्बत भी। गर्मी में सूखते ओठ और गले को तर करने के लिए आपको तीन रूपये में यदि बेल का शर्बत मिले तो आप पानी की जगह वही पीना पसंद करेंगे। वैसे भी पेट और पेट से संबंधित बीमारियों के लिए बेल का शर्बत फायदेमंद माना जाता है। लेकिन बाजार में मिलने वाला बेल के शर्बत में बेलफल नाम मात्र का होता है। आप कभी भी देखेंगे कि बेल के गूदे को पहले से तैयार एक सीरप में मिलाकर फेंटा जाता है। दरअसल पहले से तैयार ये घोल सेकरीन और अरारोट से मिलकर बनाया जाता है। बेल का ये शर्बत पेट में जाते ही आपको लगता है कि अंदर ठंडक गई लेकिन हकीकत ये है कि आप बेल का शर्बत नहीं बल्कि अपने पेट के अंदर बीमारियां धकेल रहे होते हैं। आपने कभी सोचा है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है। आप कहेंगे कि मिलावट करने वाले। लेकिन ये आधा सच है। जिम्मेदार आप भी हैं क्योंकि आप जानते हैं कि एक बेलफल फल की दुकान पर दस रूपये तक का मिलता है और चीनी के दाम तीस रूपये प्रति किलो के करीब हैं। अगर बेल के गूदे और चीनी के घोल से शर्बत बनेगा तो एक गिलास की लागत ही दस रूपये से ज्यादा बैठेगी। ऐसे में आप तीन या पांच रूपये खर्च कर जो बेल का शर्बत पी रहे होते हैं वह बिना गोलमाल के बन ही नहीं सकता।
ये कहानी सिर्फ बेल के शर्बत की नहीं है बल्कि खुले में बिकते किसी भी शीतल पेय की तरफ जब आप हाथ बढ़ाएंगे और सस्ते के लालच में आएंगे तो आपको धीमा जहर ही मिलेगा। पांच रूपये में मैंगो शेक हर शहर में मिलता है लेकिन उसमें होता है पपीता, एसेंश और सेकरीन का घोल। जब मैने एक मैंगो शेक बनाने वाले दुकानदार से बात की तो उसने माना कि इतने दाम में मैंगो शेक नहीं मिल सकता लेकिन उसने कहा कि वह ऐसा नहीं करता और मिलावट रहित मैंगो शेक बनाता है। क्या ये संभव है कि कोई व्यक्ति घाटे का कोई कारोबार करे। आप खुद सोचिए कि बीस से पच्चीस रूपये किलो आम और इसी भाव के चीनी और दूध से बना मैंगो शेक पांच रूपये में कैसे मिल सकता है। अगर आप खुले में सस्ता माल खरीदेंगे तो उसमें सड़ा-गला पपीता, ऐशेंस और सिंथेटिक पाउडर से बने दूध से तैयार मैंगो शेक ही मिलेगा जो आपके पेट की लुगदी बना देगा। इसी तरह कई प्रकार के शीतल पेय रास्ते में बिकते हैं और आप गर्मी से त्रस्त होने पर अपने को रोक नहीं पाते। कई जगह महंगाई के इस दौर में भी एक रूपये का शर्बत मिलता है। एक रूपये में तैयार रसना कह कर बेचे जाने वाले इस शर्बत में लागत आती है पचास पैसे और ये दिन भर में दो-ढाई सौ रूपये का मुनाफा कमा लेते हैं। यह शर्बत सेकरीन, रंग, कैमिकल दूध मिलाकर शर्बत तैयार होता है; बरना इतने पैसे में चीनी वाला शर्बत कैसे बन सकता है।
दरअसल हम असल लोकतांत्रिक व्यवस्था में जीते हैं। इसलिए यहां मिलावटखोरों और धीमा जहर परोसने वालों को भी खुली छूट है और उस विभाग को भी आराम फरमाने की जिसपर ये जिम्मेदारी है कि वह उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करें जो खान-पान में मिलावट कर आम आदमी की सेहत के साथ खिलवाड़ करते हैं। आप अपने शहर में देखें या किसी दूसरे शहर में जाएं; आपको पांच रूपये की लस्सी, एक रूपये का रसना शर्बत, तीन रूपये में बेल का शर्बत या फलों का शेक बिकते हुए दिखाई दे जाएगा। लोगों की भीड़ भी होगी लेकिन ये आपके उपर है कि आप बीमारियां पीना चाहते हो या आपको अपनी सेहत से प्यार है।
बेल का शर्बत आयुर्वेदिक दवा भी है और ठंडा शर्बत भी। गर्मी में सूखते ओठ और गले को तर करने के लिए आपको तीन रूपये में यदि बेल का शर्बत मिले तो आप पानी की जगह वही पीना पसंद करेंगे। वैसे भी पेट और पेट से संबंधित बीमारियों के लिए बेल का शर्बत फायदेमंद माना जाता है। लेकिन बाजार में मिलने वाला बेल के शर्बत में बेलफल नाम मात्र का होता है। आप कभी भी देखेंगे कि बेल के गूदे को पहले से तैयार एक सीरप में मिलाकर फेंटा जाता है। दरअसल पहले से तैयार ये घोल सेकरीन और अरारोट से मिलकर बनाया जाता है। बेल का ये शर्बत पेट में जाते ही आपको लगता है कि अंदर ठंडक गई लेकिन हकीकत ये है कि आप बेल का शर्बत नहीं बल्कि अपने पेट के अंदर बीमारियां धकेल रहे होते हैं। आपने कभी सोचा है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है। आप कहेंगे कि मिलावट करने वाले। लेकिन ये आधा सच है। जिम्मेदार आप भी हैं क्योंकि आप जानते हैं कि एक बेलफल फल की दुकान पर दस रूपये तक का मिलता है और चीनी के दाम तीस रूपये प्रति किलो के करीब हैं। अगर बेल के गूदे और चीनी के घोल से शर्बत बनेगा तो एक गिलास की लागत ही दस रूपये से ज्यादा बैठेगी। ऐसे में आप तीन या पांच रूपये खर्च कर जो बेल का शर्बत पी रहे होते हैं वह बिना गोलमाल के बन ही नहीं सकता।
ये कहानी सिर्फ बेल के शर्बत की नहीं है बल्कि खुले में बिकते किसी भी शीतल पेय की तरफ जब आप हाथ बढ़ाएंगे और सस्ते के लालच में आएंगे तो आपको धीमा जहर ही मिलेगा। पांच रूपये में मैंगो शेक हर शहर में मिलता है लेकिन उसमें होता है पपीता, एसेंश और सेकरीन का घोल। जब मैने एक मैंगो शेक बनाने वाले दुकानदार से बात की तो उसने माना कि इतने दाम में मैंगो शेक नहीं मिल सकता लेकिन उसने कहा कि वह ऐसा नहीं करता और मिलावट रहित मैंगो शेक बनाता है। क्या ये संभव है कि कोई व्यक्ति घाटे का कोई कारोबार करे। आप खुद सोचिए कि बीस से पच्चीस रूपये किलो आम और इसी भाव के चीनी और दूध से बना मैंगो शेक पांच रूपये में कैसे मिल सकता है। अगर आप खुले में सस्ता माल खरीदेंगे तो उसमें सड़ा-गला पपीता, ऐशेंस और सिंथेटिक पाउडर से बने दूध से तैयार मैंगो शेक ही मिलेगा जो आपके पेट की लुगदी बना देगा। इसी तरह कई प्रकार के शीतल पेय रास्ते में बिकते हैं और आप गर्मी से त्रस्त होने पर अपने को रोक नहीं पाते। कई जगह महंगाई के इस दौर में भी एक रूपये का शर्बत मिलता है। एक रूपये में तैयार रसना कह कर बेचे जाने वाले इस शर्बत में लागत आती है पचास पैसे और ये दिन भर में दो-ढाई सौ रूपये का मुनाफा कमा लेते हैं। यह शर्बत सेकरीन, रंग, कैमिकल दूध मिलाकर शर्बत तैयार होता है; बरना इतने पैसे में चीनी वाला शर्बत कैसे बन सकता है।
दरअसल हम असल लोकतांत्रिक व्यवस्था में जीते हैं। इसलिए यहां मिलावटखोरों और धीमा जहर परोसने वालों को भी खुली छूट है और उस विभाग को भी आराम फरमाने की जिसपर ये जिम्मेदारी है कि वह उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करें जो खान-पान में मिलावट कर आम आदमी की सेहत के साथ खिलवाड़ करते हैं। आप अपने शहर में देखें या किसी दूसरे शहर में जाएं; आपको पांच रूपये की लस्सी, एक रूपये का रसना शर्बत, तीन रूपये में बेल का शर्बत या फलों का शेक बिकते हुए दिखाई दे जाएगा। लोगों की भीड़ भी होगी लेकिन ये आपके उपर है कि आप बीमारियां पीना चाहते हो या आपको अपनी सेहत से प्यार है।
32 comments:
निसंदेह खाध पदार्थ के मामले में हमारा कानून ढीला है ओर इसकी गंभीरता लोग समझते नहीं है.कानून कडा हो जाए तो इस पर कुछ नकेल लगे .पर अन्त्तत बेचारा गरीब आदमी ही इनके जाल में फंसता है
shukriya ek achchhi jaankari di ...........sahi baat hai aise khaadya padartho ke chakkar me garib hi aata hai.........our samaj ke madhya lower varg.............parasaashan ka rukha thoda kada hona chahiye par kya kaha jaye.........ek samasya hai ........isaka samadhan jald honi chahiye.....thankyou
खबरदार करता लेख लेकिन ऐसे शर्बतों को पीने वाला वर्ग इंटरनेट पर नहीं मिलता। जरूरत है जागृति अभियान चलाने की।
हम जब किसानों की मीटिंग करते हैं तो उन्हें यही बात बताते हैं mgr hmaare देश की jantaa pr एक ही kahaawat laaguu hotee है ---aankh ojhal pahaad ojhal
स्वास्थ्य विभाग जब बेहोशी में हो तो आम आदमी को जागरूक करना ही विकल्प बचता है।
बहुत खुब,लेकिन कोन मानेगा, सब एक दुसरे को देख कर पी रहे है.... कानून ढीला नही उस का मुंह बन्द कर दिया होता है....
ओर फ़िर एक दिन बिमारियो से मरता सीधा साधा आदमी ही है.
बहुत अच्छा लिखा.
धन्यवाद
खाद्य पदार्थों की स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए फूड इंस्पेक्टर या स्वच्छता निरीक्षक जैसे अधिकारी होते हैं, लेकिन ये अवैध वसूली करने और उस वसूली का निर्धारित हिस्सा उपर तक पहुंचाने के सिवाय कुछ भी नहीं करते। ऐसे पदों को समाप्त किया जाना चाहिए या यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वे अपना दायित्व निभाएं। आखिर उनके वेतन-भत्ते पर जनता का पैसा खर्च होता है।
एक बेहतरीन लेख
प्रशंसनीय लेख लिखा है जी आपने ! बधाई !
बड़े पते की बात कही है आपने। फलों का रस अगर संभव हो तो घर पर ही बनाकर पी लेने में ही भलाई है।
हम इतने जहरीले हो गए है की यह मीठा जहर हमें लुभाता है . क्या करे रिअल जूस के पैसे कहाँ से लाये
महत्वपूर्ण जानकारी। पर राजेन्द्र जी की बात भी सही है। आवश्यकता है ऐसे शर्बतों के उपभोक्ताओं तक यह जानकारी और जागरूकता पहुंचाने की।
आपका समवेत ब्लाग उत्कृष्ट लगा ।
@Editer-in-Chief: Hari Joshi
कृपया स्पेलिंग ठीक कर लें ।
jaanakaaree ke liye dhanyavaad.
जहर जेब के रास्ते शरीर में प्रवेश कर रहा है। वैसे आपने जिसे धीमा जहर कहा है, वो इतना धीमा भी नहीं है। हां, उसकी गति सामान्य से कुछ कम अवश्य है पर इतनी कम भी नहीं, जितना हम समझ रहे हैं। इसकी गति पर विराम लगाने वाले कानून में तो गति है ही नहीं। मात्र कुछ पैसे पाने के लालच में कानून की गति पर तो विराम ही लग जाता है। वहां पर जेब भर भर जाती है। उस भरी जेब से भी भला नहीं होता है। उस कमाई से भी जहर ही खरीदा जाता है और वो हलक के जरिए जिस्मों में जाता है। इसलिए जेब से होकर या जेब के लिए की जाने वाली हर हरकत दुर्गति को पहुंचाकर ही दम लेती है। पर इसका निवारण सिर्फ जागृति लाकर ही किया जा सकता है। सरकार स्तर पर तो असर होना ही नहीं है। वहां पर इस तरह की करतूतों को रोकने के लिए तैयार ही नहीं है कोई। जो होगा उसे ठहरने नहीं दिया जाएगा। जिनके स्वार्थों की पूर्ति में आड़े आएगा उसे इन लोगों द्वारा आड़े हाथों लिए जाने की खबरें हम रोज पढ़ सुन और भोग रहे हैं।
आपने एक अच्छी समस्या की ओर ध्यान खींचा है और इससे एक प्रतिशत भी जागरूकता आए तो ऐसे प्रयास जारी रहने चाहिए। चैनल जो टी आर पी बढ़ाने के लिए सुर्खियां परोसते रहते हैं। वे भी इस ओर से उदासीन हैं। जबकि उनकी भूमिका वास्तव में काफी कारगर हो सकती है।
ब्लॉगवासियों में जो बंधु चैनलों से जुड़े हुए हैं उन्हें इस ओर पहल करनी चाहिए। तो निश्चय ही परिणाम अच्छे आयेंगे और धीमा जहर तेजी से सिमटेगा।
Mahatwapurn jaankari di hai aapne, magar botalband jahar ki tulna mein prakritik utpaad samajh log inki or aakarshit ho hi jate hain.
हरी जी आपने जो आलेख लगाया है इसके लिए हिमा बधाई की पात्र हैं, आलेख जितना गंभीर है उतनी ही सुन्दर टिप्पणियाँ भी मिली है
der aayed durust aayed. is baat par kisi ka dhyan hi nahin gaya tha.
हिमा जी ,
ये तो आपने बहुत अच्छी सूचना दी ..मैं तो अक्सर बेल का शरबत बाजार में पीता था इसे सबसे शुद्ध पेय मानकर .....पर अब ....
वैसे आपकी रोचक शैली किसी भी विषय को पूरा पढ़ने के लिए प्रेरित करती है ..
हेमंत कुमार
bahut badiya jaankari hai vaise mai bahar kaa sharbat kabhi nahin peeti ab to aur bhi savdhan rahoongi dhanyavad
bahut badiya jaankari hai vaise mai bahar kaa sharbat kabhi nahin peeti ab to aur bhi savdhan rahoongi dhanyavad
आजकल यही हर जगह हो रहा है। हर खाने की चीज में यही मिलावट है।
sachet karta huaa ik uttam lekh !!
kash kuch loog bhee samajh jaye .
wonderful post
Thanx for visiting my blog too
Abhaar !!
यथार्थ और सुन्दर विश्लेषण किया आपने.......
Joshi ji kiya kanver lene chle gye ho? Blog kab likhoge?
कांवर लेने नहीं
फेस बुक में
देखा गया है
जोशी जी को
जोश के साथ।
बात पते की....
आपका लेख आंखे खोलने वाला है .हम भी कितने बेबस हैं -किसी भी मामले मैं विरोध का
स्वर बुलंद करने में झिझक जाते हैं .सब जानते हैं कि नकली तथा मिलावट करने वाले
कौन और कहाँ हैं लेकिन हम उनकी निशानदेही करने का साहस क्यों नहीं कर पाते?
मैं कुछ सरल से सवाल पूछ रहा हूँ -इनका उत्तर कौन देगा ?
मेरे पास इन सवालों के जवाब हैं -पर देखना यह है कि कितने बेबाकी से
साफ -साफ बात करते हैं. निर्मल
jab aadmi ko jahar hi bhaane lage to amrit kee kyaa bisaat bhalaa....!!?
hari bhai, ब्लॉग की दुनिया में टहलते-टहलते आपसे मुलाक़ात हुई, मेरठ के सारे दिन पिक्चर की तरह सामने आ गए, बेहद अच्छा लगा. आज़ादी के दिन से अपना ब्लॉग शुरू किया है- देशनामा. आशा है अब ब्लॉग के ज़रिये आपसे संवाद बना रहेगा.
आन्खे खोलने वाला अच्छा लेख
आपका प्रयास सराहनीय है. बहुत-बहुत बधाई. एक बार पुन डेरों शुभकामनाये ......................
Post a Comment