इश्क़ और काम पर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म Nazm Faiz Ahmad Faiz
इश्क़ और काम पर महान शायर फैज अहमद फैज की एक नज़्म हम इर्द-गिर्द में प्रस्तुत कर रहें हैं। आमतौर पर आम आदमी के प्रेम और कामकाज के बीच रहने वाले द्वंद या उलझाव पर यह एक यथार्थवादी रचना है। प्रेम के मौसम की आहट पर यह नज़्म निश्चय ही आपको रोमांचित करेगी। यहां हम आपके पठन-पाठन के लिए नज़्म को टंकित भी कर रहें हैं। नाकाम इश्क या प्रेम में नाकामयाबी की वजह या फिर कामकाजी लोगों के इश्क़ या सपाट शब्दों में रोटी और प्रेम के रिश्तों के बीच तार-तार होती जिंदगी की असलियत पर लिखी इस रचना को सुनिए भी और पढ़िए भी।
वो लोग बहुत खुशकिस्मत थे जो इश्क को काम समझते थे या काम से आशिकी रखते थे हम जीते जी नाकाम रहे ना इश्क किया ना काम किया काम इश्क में आड़े आता रहा और इश्क से काम उलझता रहा फिर आखिर तंग आकर हमने दोनों को अधूरा छोड़ दिया
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