आज से इर्द-गिर्द पर हमारे साथ निर्मल गुप्त जुड़ रहें हैं। पश्चिम बंगाल में जन्में निर्मल किशोरावस्था में मेरठ चले आए और यहां से उन्होंने इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। निर्मल जी को लेखन का कीड़ा किशोरावस्था में ही लग गया था और इसकी शुरुआत उन्होंने कहानियों से की; फिर कविताएं और व्यग्ंय भी लिखे। अब तक देश की सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में उनकी सैंकड़ों रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं और एक कहानी संग्रह के अलावा एक कविता संग्रह भी प्रकाशित हुआ है। इर्द-गिर्द पर वह अपनी शुरुआत एक व्यंग्य से कर रहें हैं। आशा है आप उनका स्वागत करेंगे।
एक पत्रकार ने प्रेस कांफ्रेंस के दौरान गृह मंत्री को जूता फेंका। देश भर के सारे खबरिया चैनल जूता फेंकने के दृश्य को स्लो मोशन में बार-बार दिखाने लगे। मेरे कानों में तब राजकपूर पर फिल्माया गया यह गाना गूंजा- मेरा जूता है जापानी। हांलाकि सबसे आगे की होड़ में लगे लगभग सभी चैनल लगभग एक ही समय पर यह न्यूज ब्रेक कर रहे थे कि जूता अमेरिका की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी का बना हुआ था। वैसे भी अब कोई जापानी जूता पहनता ही कहां है, पहनता भी होगा तो उसे पहनकर कोई इतराता नहीं। आर्थिक मंदी के इस दौर में भी जूतों से पैरों की दूरियां अभी बढ़ीं हुईं हैं। पहनने वालों को तो हर ब्रांड का जूता खुले, काले, पीले, ग्रे बाजार में आसानी से मिल ही जाता है।
मैने जूता फेंकने के इस मनोरम दृश्य को बार-बार देखा। पता लगा कि यह जूता किसी को मारने के लिए नहीं सिर्फ दिखाने के लिए फेंका गया था। इराकी पत्रकार ने तत्कालीन अमेरिकन राष्ट्रपति बुश पर एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान जूत चलाकर जूता फेंक महापर्व की एक शालीन शुरुआत की थी। इराकी पत्रकार ने तब एक नहीं दो जूते चलाए थे। निशाना भी साधा था। बुश के रिफलेक्सिस अच्छे थे कि वह जूता खाने से बच गए। इराकी पत्रकार ने अपने देश की बनी कंपनी का जूता विश्व के सबसे बड़े बाहुवली पर फेंका था। यदि वह अमेरिका का बना जूता फेंकता तो यह कहावत चरितार्थ हो जाती कि जिसका जूता उसी का सिर...लेकिन ऐसा हो न सका।
हमारा पत्रकार इस मुद्दे पर इराकी पत्रकार तीन कारणों से फिसड्डी साबित हुआ। पहले तो उसने एक ही जूता फेंका, दूसरा उसने निशाना साधने की कोई कोशिश तक नहीं की, तीसरी बात ये है कि उसने अपने मुल्क का जूता इस पुनीत कार्य के लिए इस्तेमाल नहीं किया। यही कारण है कि जूता चल भी गया, किसी को लगा भी नहीं, फिर भी दो बेचारे कांग्रसी प्रत्याशियों की संसद में पंहुचने की दावेदारी मुफ्त में जाती रही। गृहमंत्री ने दरियादिली दिखाई और पत्रकार को माफ कर दिया। पत्रकार ने भी कह दिया कि जो मैने किया वह सही नहीं था। इसका निहितार्थ तो यही हुआ कि जूता फेंकने की कार्रवाई तो गलत थी लेकिन उसे जिस कारण से फेंका गया, वह जायज था। यह तो वही बात हुई जैसे जायज मां की कोख से नाजायज औलाद पैदा हो।
बहरहाल, लोकतंत्र के इस बेरंग चुनावी महापर्व का वातावरण अनायास ही जीवंत हो उठा है। चारों तरफ चर्चाओं के चरखों पर कयासों की कपास काती जानी शुरु हो गई है। सत्ता के दरवाजे तक कौन पंहुचेगा, यह तो किसी को पता नहीं, पर सत्ता के गलियारों में इस जूते की पदचाप बार-बार सुनी जाएगी। फिलहाल तो सारा चुनावी माहौल ही जूता-जूता हो गया है।
मैने जूता फेंकने के इस मनोरम दृश्य को बार-बार देखा। पता लगा कि यह जूता किसी को मारने के लिए नहीं सिर्फ दिखाने के लिए फेंका गया था। इराकी पत्रकार ने तत्कालीन अमेरिकन राष्ट्रपति बुश पर एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान जूत चलाकर जूता फेंक महापर्व की एक शालीन शुरुआत की थी। इराकी पत्रकार ने तब एक नहीं दो जूते चलाए थे। निशाना भी साधा था। बुश के रिफलेक्सिस अच्छे थे कि वह जूता खाने से बच गए। इराकी पत्रकार ने अपने देश की बनी कंपनी का जूता विश्व के सबसे बड़े बाहुवली पर फेंका था। यदि वह अमेरिका का बना जूता फेंकता तो यह कहावत चरितार्थ हो जाती कि जिसका जूता उसी का सिर...लेकिन ऐसा हो न सका।
हमारा पत्रकार इस मुद्दे पर इराकी पत्रकार तीन कारणों से फिसड्डी साबित हुआ। पहले तो उसने एक ही जूता फेंका, दूसरा उसने निशाना साधने की कोई कोशिश तक नहीं की, तीसरी बात ये है कि उसने अपने मुल्क का जूता इस पुनीत कार्य के लिए इस्तेमाल नहीं किया। यही कारण है कि जूता चल भी गया, किसी को लगा भी नहीं, फिर भी दो बेचारे कांग्रसी प्रत्याशियों की संसद में पंहुचने की दावेदारी मुफ्त में जाती रही। गृहमंत्री ने दरियादिली दिखाई और पत्रकार को माफ कर दिया। पत्रकार ने भी कह दिया कि जो मैने किया वह सही नहीं था। इसका निहितार्थ तो यही हुआ कि जूता फेंकने की कार्रवाई तो गलत थी लेकिन उसे जिस कारण से फेंका गया, वह जायज था। यह तो वही बात हुई जैसे जायज मां की कोख से नाजायज औलाद पैदा हो।
बहरहाल, लोकतंत्र के इस बेरंग चुनावी महापर्व का वातावरण अनायास ही जीवंत हो उठा है। चारों तरफ चर्चाओं के चरखों पर कयासों की कपास काती जानी शुरु हो गई है। सत्ता के दरवाजे तक कौन पंहुचेगा, यह तो किसी को पता नहीं, पर सत्ता के गलियारों में इस जूते की पदचाप बार-बार सुनी जाएगी। फिलहाल तो सारा चुनावी माहौल ही जूता-जूता हो गया है।
10 comments:
चिदंबरम जी ग्लोबल अर्थव्यवस्था के पंडित हैं; अंग्रेजी बोलते हैं; इसलिए शायद अमेरिकी जूता उछाला गया। लेकिन हरियाणा के रिटायर्ड मास्साब ने तो पी भी देसी और उछाला भी देसी।..जूता तो जूता ही होता है जनाब।
रात मुझे अटल जी सपने में आए और बोले- ये अच्छी बात नहीं हैं...तो हम भी यही कहेंगे कि जूता किसी का भी हो और कहीं भी चले लेकिन ये अच्छी बात नहीं है।
ये जूते फेंकने वाले भी नम्बरी बेवकूफ हैं ...अरे बेकार ही इतने महंगे जूते बेकार कर रहे हैं.
ऐसे जूता फेंक लोगों को चाहिए की टायर वाली चप्पल ,प्लास्टिक वाले स्लीपरों का इस्तेमाल करें .इस मंदी के दौर में कुछ तो बचत होगी ....
निर्मल जी को अच्छे व्यंग्य के लिए बधाई.
हेमंत कुमार
एक टीवी चैनल दिखा रहा था, रोज़-रोज़ जूता मत मारो यार, जूता घिस जायेगा। फिर नेताओं के साथ ही जूते की भी मरम्मत की ज़रुरत पड़ेगी। खास जूता आम हो जायेगा। वाकई सही बात कह रहा था। नेताओं को कोई फर्क पड़ता है क्या इससे। जूते और बेकार जायेंगे।
साहब जी आजकल चारों तरफ जूता महाराज की जय जयकार है
पहले कहा जाता था पानी पानी हो गया
अब कहा जा रहा है जूता जूता हो गया
जयहो जूता जी की जय हो जूतमपैजार की
जूते की माया जानकर सब जूतामय हो गए
साभार-जूते की माया से
जय हो जय हो जूते की
निर्मल जी का स्वागत है॥बहुत ही सटीक और साध कर अक्षर-बाण चलाये हैं।
मेरा खयाल है जूता किसी पर भी फेंका जाए, गलत है। यह एक गलत परंपरा की शरुआत है। यह बंद होना चाहिए। यह भारत की परंपरा नहीं।
शुरुआत जूते से हुई है। आगे-आगे देखिये होता है क्या।
jutaa jutaa ho gaya... jaha dekhe bas ek dusre pe jute phekne ka daur chala hai. lagta hai shaayad jutaa ab kisi paksh ka chunaav chinha ho jayega...
bahut hi badhiya likha hai
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