सात समन्दरों की
मिथकीय दूरी को लांघ
एक नाजुक से धागे का
या चावल के चंद दानों
और रोली का
बरस-दर-बरस
मुझ तक निरापद चला आना
हैरतअंगेज है!
खून से लबरेज
बारूद की गंध को
नथुनों में भरे
इस सशंकित सहमी दुनिया में
तेरे नेह का
यथावत बने रहना
हैरतअंगेज है!
दो संस्कृतियों की
सनातन टकराहट के बीच
सूचना क्रांति के शोरोगुल
और निजत्व के बाजार में
मारक प्रतिस्पर्धा के बावजूद
मानवीय संबंधों की उष्मा की
अभिव्यक्ति का
सदियों पुराना दकियानूसी तरीका
अभी तक कामयाब है
हैरतअंगेज है!
तमाम अवरोध हैं फिर भी
कुछ है जो बचा रहता है
किसी पहाड़ी नदी पर बने
काठ के पुल की तरह
जिस पर से होकर
युग गुजर गए निर्बाध
भावनाओं की आवाजाही की तकनीक
अबूझ पहेली है अब तक
हैरतअंगेज है!
मेरी बहन;
कोई कहे कुछ भी तेरे स्नेह-सिक्त
चावल के दानों से
प्रवाहित होती स्नेह की बयार का
तेरे भेजे नाजुक से धागे
के जरिए
मेरे मन के अतल गहराइयों में
तिलक बन कर सज जाना
बरस-दर-बरस
कम से कम मेरे लिए
कतई हैरतअंगेज नहीं है।
Monday, October 19, 2009
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10 comments:
सचमुच में आज के हालातों में नेह का यथावत बने रहना हैरतअंगेज है। अच्छी कविता के लिए बधाई। आज बहुत दिन बाद इर्द-गिर्द आबाद देखकर खुशी हुई।
हर कदम पर हैरत अंगेज़ अहसास है आज के प्रक्षेप में..और आपने जिस बखूबी से शब्दो मे बांधा है काबिले तारीफ है.
बहुत सुंदर कविता.
रामराम.
इतने सुदर ढंग से भावों का प्रस्तुतीकरण भी तो हैरतअंगेज करनेवाला है .. आपको भाईदूज की बधाई !!
बहुत सुंदर भाव लिये है आप की यह कविता.
धन्यवाद
भाई बहन को बहुत सलीके से बयां किया है आपने। भाई दूज की शुभकामनाएं।
( Treasurer-S. T. )
thanks aap active to hue.
अति सुंदर, मन को छूती भावनाएँ से ओतप्रोत लगी आपकी ये कविता !
तमाम अवरोध हैं फिर भी
कुछ है जो बचा रहता है
किसी पहाड़ी नदी पर बने
काठ के पुल की तरह
जिस पर से होकर
युग गुजर गए निर्बाध
भावनाओं की आवाजाही की तकनीक
अबूझ पहेली है अब तक
हैरतअंगेज है!
bemisal ..well said......
आप सबने मेरी कविता पढ़ी और सराहा -आभारी हूँ .इस आपाधापी के समय में लोग कविता पढ़ रहे हैं और उस पर राय व्यक्त करने का अवकाश उनके पास अभी भी है -हैरतअन्गेज़ है .निर्मल गुप्त
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