कटते जा रहे हैं
पेङ
पीढी दर पीढी
बढता जा रहा है
धुंआ
सीढी दर सीढी
अपने अस्तित्व की
रक्षा के लिये ,
चिन्तित है -
कागजी समुदाय
हावी होता जा रहा है
कम्पयुटर,
दिन ब दिन ,
फिर भी
समाप्त नहीं हुआ -
महत्व,
कागज का अब तक
बावजूद
इन्टरनेट के ,
कागज
आज भी प्रासंगिक है -
नानी की चिठ्ठियों में ,
दद्दू की वसीयत में
कागज ही
होता है इस्तेमाल ,
हर मोङ पर
जिन्दगी के
परन्तु
थकने भी लगा है
कागज
बिना वजह
छपते छपते
कागज के अस्तितव के लिये
जितने जरूरी हैं
पेङ,
पर्यावरण,
आदि आदि ,
उतना ही जरूरी है -
उनका सदुपयोग -
सकारण
अकारण नहीं
नवीन सी चतुर्वेदी
Thursday, November 25, 2010
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2 comments:
पर्यावरण के प्रति आपकी सजगता को नमन
कविता के सराहना के लिए आभार अर्चना जी|
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