एक गीत -
हमने तुमको ओ साथी पुकारा बहुत,
मुड़ के तुमने ही एक बार देखा नहीं
चौंधियाए रहे रूप की धूप से
और ह्रदय में बसा प्यार देखा नहीं ।
क्या बताऊँ कि कल रात को किस तरह
चाँद तारे मेरे साथ जगते रहे
जाने कब तुम चले आओ ये सोच कर
खिड़की दरवाजे सब राह तकते रहे
महलों- महलों मगर तुम भटकते रहे
इस कुटी का खुला द्वार देखा नहीं
कल की रजनी पपीहा भी सोया नहीं
पी कहाँ- पी कहाँ वो भी गाता रहा
एक झोंका हवा का किसी खोज में
द्वार हर एक का खटखटाता रहा
स्वप्न माला मगर गूँथते तुम रहे
फूल का सूखता हार देखा नहीं
फूल से प्यार करना है अच्छा मगर
प्यार की शूल को ही अधिक चाह है
अहमियत मंजिलों की उन्ही के लिए
जिनके बढ़ने को आगे नहीं राह है
बिन चले मंजिले तुमको मिलती रहीं
तुमने राहों का विस्तार देखा नहीं
हमने तुमको ओ साथी पुकारा बहुत
मुड़ के तुमने ही एक बार देखा नहीं .
-कुमार अनिल
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6 comments:
वाह , क्या बात है . बहुत बढ़िया
वाह , क्या बात है . बहुत बढ़िया
बहुत खूब - एक बार देखा नही
सुन्दर!
अहमियत मंजिलों की उन्ही के लिए
जिनके बढ़ने को आगे नहीं राह है
अभिनंदन कुमार अनिल जी| अत्युत्तम|
बहुत ही सुंदर शब्दों में विरह का सजीव चित्रण !
प्रशंसा के लिए शब्द कम ही पड़ेंगे....
सम्मान के साथ
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