हमें इक दूसरे से गर गिला शिकवा नहीं होता|
तो फिर गैरों ने हम को इस तरह बाँटा नहीं होता|१|
नयों को हौसला भी दो, फकत ग़लती ही ना ढूँढो|
बड़े शाइर का भी हर इक शिअर आला नहीं होता|२|
हज़ारों साल पहले सीसीटीवी आ गई होती|
युधिष्ठिर जो शकुनि के सँग जुआ खेला नहीं होता|३|
अदब से पेश आना चाहिए साहित्य में सबको|
कोई लेखक किसी भी क़ौम का चेहरा नहीं होता|४|
ज़रा समझो कि अब तो कॉरपोरेट भी मानता है ये|
गृहस्थी से जुड़ा इन्सान लापरवा[ह] नहीं होता|५|
नवीन सी चतुर्वेदी
Sunday, January 30, 2011
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7 comments:
बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद
अदब से पेश आना चाहिए साहित्य में सबको|
कोई लेखक किसी भी क़ौम का चेहरा नहीं होता|४|
bahut pasand aayee.
राज भाटिया जी, मृदुला प्रधान जी आप जैसे साहित्य रसिकों का उत्साह वर्धन मेरे लिए संजीवनी समान है| आपका स्नेह बनाए रखिएगा|
बहुत सुन्दर रचना के लिए कोटि कोटि अभिनन्दन......
भाई श्री प्रकाश डिमरी जी उत्साह वर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया|
"कोई लेखक किसी भी कौम का चेहरा नहीं होता" बहुत अच्छी गजल है |
भाई कुमार अनिल को मुबारकबाद --- अमरनाथ मधुर
भाई अमरनाथ माथुर जी मेरी कोशिश आप को अच्छी लगी, बहुत बहुत धन्यवाद
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