अपना घर सारी दुनिया से हट कर है|
हर वो दिल, जो तंग नहीं, अपना घर है|१|
माँ-बेटे इक संग नज़ारे देख रहे|
हर घर की बैठक में इक जलसाघर है|२|
जिसने हमको बारीकी से पहचाना|
अकबर उस का नाम नहीं, वो बाबर है|३|
बिन रोये माँ भी कब दूध पिलाती है|
सब को वो दिखला, जो तेरे अन्दर है|४|
उस से पूछो महफ़िल की रंगत को तुम|
महफ़िल में, जो बंद - आया पी कर है|५|
'स्वाती' - 'सीप' नहीं मिलते सबको, वर्ना|
पानी का तो कतरा-कतरा गौहर है|६|
सदियों से जो दबा रहा, दमनीय रहा|
दुनिया में अब वो ही सब से ऊपर है|७|
मेरी बातें सुन सब मुझे से कहते हैं|
क्या तू भी पगला-दीवाना-शायर है|८|
पहले घर, घर होते थे, दफ्तर, दफ्तर|
अब दफ्तर-दफ्तर घर, घर-घर दफ्तर है|९|
http://thalebaithe.blogspot.com
नवीन सी चतुर्वेदी
Thursday, February 17, 2011
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2 comments:
'मेरी बातें सुन सब मुझसे कहते हैं,क्या तू भी पगला-दीवाना-शायर है' आपने हमारे दिल की बात कह दी है | आपको अच्छे अशआर के लिए मुबारकबाद |
ममार्नाथ 'मधुर '
भाई अमरनाथ जी, सराहना के लिए सहृदय आभार
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