इर्द-गिर्द में हम आपके समक्ष तीन प्रेम कविताएं प्रस्तुत कर रहे हैं। मेरी पसंद की यह तीनों कविताएं नायाब हैं, पर तीनों का धरातल अलग है। प्रेम पर केंद्रित कर लिखीं गईं पृथक भाव वाली इन कविताओं की विशेषता इनके अनूठे रूपक और विम्ब हैं जो प्रीति के अनूठे संसार मे ले जाते हैं।
काव्यमाला का प्राम्भ मैंने केदारनाथ सिंह की कविता से किया है। चार पंक्तियों की इस कविता का कैनवास बहुत व्यापक है। प्रेम के गहरे अर्थों वाली यह आकार में बहुत छोटी सी यह कविता चार पंक्तियों का महाकाव्य है। सही मायनों में यह कविता सामयिक है जो दुनिया को प्रेम की तरह खूबसूरत बनाने की परिकल्पना है। पढ़िए या सुनिए इस कविता को-
उसका हाथ
अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा
दुनिया को
हाथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए।
केदारनाथ की कविता का पाठ करने के बाद दूसरी मेरी पसंदीदा कविता छायावाद के महान कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की है। प्रेम के कोमल भावों को उकेरती, उसके सामाजिक स्वरूप को रेखांकित करती हुई यह कविता भारतीय समाज में प्रेम की अवधारणा को उकेरती है। निराला जी ने यह कविता अपनी पत्नी मनोहरा देवी की याद में गंगा किनारे बैठकर लिखी थी। किशोरावस्था या युवावस्था में जब किसी स्त्री को देखकर आसक्ति होती है, जिस तरह के मनोभाव उफनते हैं उसका सहज चित्रण तो इस कविता में है ही, साथ में स्वरक्षा करने वाली मर्यादित भारतीय स्त्री भी परिलक्षित होती है। पढ़ेंगे-सुनेंगे तो आनंदित होंगे-
बाँधो न नाव इस ठाँव, बन्धु!
पूछेगा सारा गाँव, बन्धु!
यह घाट वही जिस पर हँसकर,
वह कभी नहाती थी धँसकर,
आँखें रह जाती थीं फँसकर,
कँपते थे दोनों पाँव बन्धु!
बाँधो न नाव इस ठाँव, बन्धु!
पूछेगा सारा गाँव, बन्धु!
वह हँसी बहुत कुछ कहती थी,
फिर भी अपने में रहती थी,
सबकी सुनती थी, सहती थी,
देती थी सबके दाँव, बन्धु!
बाँधो न नाव इस ठाँव, बन्धु!
इसी क्रम में आखिरी कविता वर्तमान युग के प्रयोगधर्मी कवि बद्रीनारायण की है। शीर्षक है- प्रेत आएगा। संवेदना के स्तर पर उनकी यह प्रेम कविता बहुत गहरे जाकर चोट करती है। सामाजिक चेतना के साथ यह नाजुक सी कविता मस्तिष्क को झकझोर देती है। कवि ने प्रेम को आधार बना कर हमारी सामाजिक संरचना और प्रेम के प्रति जनमानस के दृष्टिकोण को विलक्षण रूपक गढ़कर उकेरा है। श्रुतियों के माध्यम से मैंने जाना कि बद्रीनारायण स्वयं मानते हैं कि प्रेम को अभिव्यक्त करना बेहद कठिन है क्योंकि प्रेम प्रवाहमान है और भाषा उसे स्थिर करने का प्रयास करती है।
सच कहूँ तो यह मेरी सर्वाधिक पसंदीदा कविताओं में से एक है। पढ़िए और सुनिए-
किताब से निकाल ले जायेगा प्रेमपत्र
गिद्ध उसे पहाड़ पर नोच-नोच खायेगा
चोर आयेगा तो प्रेमपत्र ही चुराएगा
जुआरी प्रेमपत्र ही दांव लगाएगा
ऋषि आयेंगे तो दान में मांगेंगे प्रेमपत्र
बारिश आयेगी तो प्रेमपत्र ही गलाएगी
आग आयेगी तो जलाएगी प्रेमपत्र
बंदिशें प्रेमपत्र पर ही लगाई जाएंगी
सांप आएगा तो डसेगा प्रेमपत्र
झींगुर आयेंगे तो चाटेंगे प्रेमपत्र
कीड़े प्रेमपत्र ही काटेंगे
प्रलय के दिनों में सप्तर्षि मछली और मनु
सब वेद बचायेंगे
कोई नहीं बचायेगा प्रेमपत्र
कोई रोम बचायेगा कोई मदीना
कोई चांदी बचायेगा कोई सोना
मै निपट अकेला कैसे बचाऊंगा तुम्हारा प्रेमपत्र
संभव है कि प्रस्तुतिकरण में कुछ त्रुटियां हों। कुछ आपको अच्छा न लगे या मुझे गरियाना चाहें तो टिप्पणी में जरूर लिखिएगा। आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।
2 comments:
सुन्दर कविताओं के लिये आभार।
SUNDER MANMOHAK KAVITAYEIN.
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