दुष्यंत
कुमार की दो हिंदी गजलें
हिंदी ग़ज़ल
को शीर्ष
पर ले
जाने वाले
हिंदी कवि
दुष्यंत कुमार
की दो
हिंदी गजलें
इर्द-गिर्द
में प्रस्तुत
हैं। आशा
है यह
समसामयिक ग़ज़ल
आपको पसंद
आएगी।
Classic
YouTube Hindi poetry channel Ird Gird present Hindi poetry by well-known author
Dushyant Kumar.
आप यहां
दोनों ग़ज़ल
पढ़ भी
सकते हैं-
होने लगी
है जिस्म
में जुंबिश
तो देखिये
होने लगी है जिस्म में
जुंबिश तो देखिये
इस
पर
कटे
परिंदे
की
कोशिश
तो
देखिये
गूँगे
निकल
पड़े
हैं,
ज़ुबाँ
की
तलाश
में
सरकार
के
ख़िलाफ़
ये
साज़िश
तो
देखिये
बरसात
आ
गई
तो
दरकने
लगी
ज़मीन
सूखा
मचा
रही
है
ये
बारिश
तो
देखिये
उनकी
अपील
है
कि
उन्हें
हम
मदद
करें
चाकू
की
पसलियों
से
गुज़ारिश
तो
देखिये
जिसने
नज़र
उठाई
वही
शख़्स
गुम
हुआ
इस
जिस्म
के
तिलिस्म
की
बंदिश
तो
देखिये
ये सारा
जिस्म झुक
कर बोझ
से दुहरा
हुआ होगा
ये
सारा
जिस्म
झुक
कर
बोझ
से
दुहरा
हुआ
होगा
मैं
सजदे
में
नहीं
था
आपको
धोखा
हुआ
होगा
यहाँ
तक
आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ
मुझे
मालूम
है
पानी
कहाँ
ठहरा
हुआ
होगा
ग़ज़ब
ये
है
कि
अपनी
मौत
की
आहट
नहीं
सुनते
वो
सब
के
सब
परीशाँ
हैं
वहाँ
पर
क्या
हुआ
होगा
तुम्हारे
शहर
में
ये
शोर
सुन-सुन कर तो लगता है
कि
इंसानों
के
जंगल
में
कोई
हाँका
हुआ
होगा
कई
फ़ाक़े
बिता
कर
मर
गया
जो
उसके
बारे
में
वो
सब
कहते
हैं
अब,
ऐसा
नहीं,ऐसा हुआ होगा
यहाँ
तो
सिर्फ़
गूँगे
और
बहरे
लोग
बसते
हैं
ख़ुदा
जाने
वहाँ
पर
किस
तरह
जलसा
हुआ
होगा
चलो,
अब
यादगारों
की
अँधेरी
कोठरी
खोलें
कम-अज-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा
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