हिंदी
में
ग़ज़ल
मज़लूम
कोई
जब
भी
परेशान
रह
गया
वक़्त
के
माथे
पर
एक
निशान
रह
गया
चले
गए
वो
लोग
जो
रहते
थे
यहां
पर
उनके
बाद
खा़ली
ये
मकान
रह
गया
बचने
की
कोई
कोशिश
की
नहीं
मैंने
क़ातिल
मेरा
ये
देख
कर
हैरान
रह
गया
उसके
बाद
यूँ
तो
कुछ
भी
कमी
नहीं
दिल
का
एक
कोना
बस
वीरान
रह
गया
मुसीबतें
टूटी
है
नशेमन
पे
रोज़
ही
आने
को
अब
ना
बाक़ी
कोई
तूफ़ान
रह
गया
कोशिश
तो
ज़माने
भर
ने
की
बहुत
मग़र
वो
क्यूँ
नहीं
बदला
यूँ
ही
नादान
रह
गया
तसबीह
एक,एक कासा और ये लबादा,
फक़ीर
की
ज़ायदाद
में
ये
सामान
रह
गया
हम
भी
कभी
साथ
उसके
चलते
दो
क़दम
दिल
ही
दिल
में
बाक़ी
ये
अरमान
रह
गया
जीस्त ने नवाज़े बस ग़म ही जीते जी
शायरों
का
हासिल
बस
दीवान
रह
गया
@अपर्णा
No comments:
Post a Comment