Saturday, March 21, 2020

Enjoy New Hindi Ghazal Poem By Aparna Patrikar




हिंदी में ग़ज़ल

मज़लूम कोई जब भी परेशान रह गया
वक़्त के माथे पर एक निशान रह गया

चले गए वो लोग जो रहते थे यहां पर
उनके बाद खा़ली ये मकान रह गया

बचने की कोई कोशिश की नहीं मैंने
क़ातिल मेरा ये देख कर हैरान रह गया

उसके बाद यूँ तो कुछ भी कमी नहीं
दिल का एक कोना बस वीरान रह गया

मुसीबतें टूटी है नशेमन पे रोज़ ही
आने को अब ना बाक़ी कोई तूफ़ान रह गया

कोशिश तो ज़माने भर ने की बहुत मग़र
वो क्यूँ नहीं बदला यूँ ही नादान रह गया

तसबीह एक,एक कासा और ये लबादा,
फक़ीर की ज़ायदाद में ये सामान रह गया

हम भी कभी साथ उसके चलते दो क़दम
दिल ही दिल में बाक़ी ये अरमान रह गया

जीस् ने नवाज़े बस ग़म ही जीते जी
शायरों का हासिल बस दीवान रह गया

@अपर्णा

No comments:

तकनीकी सहयोग- शैलेश भारतवासी

Back to TOP