गाज़ियाबाद से दिल्ली की ओर आते हुए यमुना नदी पर बने निज़ामुद्दीन पुल पर जैसे ही आप गाड़ी धीमी करेंगे एक लड़का आपकी ओर भागता हुआ आयेगा, “अंकल लाओ हम डाल दें, अंकल लाओ हम डाल दे। “ थोड़ा आगे चलें तो दूसरा आयेगा। और आगे तीसरा और त्योहार का समय हो तो चौथा भी। ये लड़के नहीं बाल महंत हैं जो पूजा का सामान यमुना नदी में विसर्जित करने में आपकी मदद करते हैं। आपने पैसे दे दिये तो बड़े महंतों की तरह दुआ और नहीं दिये तो आपकी सात पीढ़ियों को चुनिंदा गालियां, ये 8-10 साल के बच्चे हैं।
यमुना में आप पूजा का सामान ना डाल पायें इसलिये पुल पर ऊंची-ऊंची जाली लगवा दी हैं दिल्ली सरकार ने (मुझे कैमरे से नेट पर डाउनलोड करना नहीं आता वरना मैं फोटो भी डालता)। लाखों के वारे-न्यारे हो गये अब किसी को चिंता नहीं। कुछ महीनों बाद इन पर हरा रंग होता अवश्य नज़र आ जाता है। जाली का क्या हाल है यमुना को उससे कुछ फायदा भी हुआ या नहीं, कोई नहीं फिक्र करता। पूजा का सामान यमुना मैया को समर्फित कर उसे तिल-तिल मारने वाले भक्तों की सेवा के लिये आसपास रहने वाले बच्चों ने तीन-चार जगह से जाली हटा दी है। हर जाली पर तीन-चार बच्चों का कब्ज़ा है। एक सड़क पर खड़े होकर गाड़ियों में बैठे लोगों को इसारे से जाली में बना ली गई खिड़की की ओर बताता है, यहां से डालिये। दूसरा लपककर उसके हाथ से पूजा का सामान भरी पॉलिथिन लेता और तीसरा जाली के छेद पर बैठे लड़के को थमाता है। तक सामान हाथ से लेने वाला और गाड़ी रोकने वाला पैसा मांगना शुरु कर देते हैं। दे दिये तो ठीक वरना जाली की खिड़की पर बैठा लड़का गालियां बकते हुए आपकी पॉलिथिन वापस कर देगा। सड़क और जाली के बीच में एक दीवार है कम से कम तीन फुट ऊंची, हर कोई पार नहीं कर सकता। अगर सामान विसर्जित करना है तो मजबूरी में आपको उन महंतों को 20-30 रूपये देने पड़ते हैं। और अगर खुद हिम्मत की तो पहले तो जाली की खिड़की पर बैठा महंत आपको रोकने की कोशिश करेगा, यहां से मत डालो आगे से डालना..वगैरा वगैरा। और अगर आपने ज़बरदस्ती डाल भी दिया तो नया नाटक। हर छेद के नीचे यमुना में एक लड़का इस तरह से तैर रहा होता है कि आपका सामान उसके आसपास ही जाकर गिरता है। अगर आप बाल महंतों की मर्जी के बगैर सामान डालते हैं तो गालियों के आदान-प्रदान की आवाज़ से नीचे उस तक सदेश पहुंच चुका होता है। सामान गिरते ही नीचे से आवाज़ आती है मर गया। जाली पर बैठा लड़का चिल्लाता है, अंकल आपने उसके सिर पर मार दिया। खून निकल रहा है वो डूब जायेगा। दूसरे लड़के आपकी गाड़ी के सामने जाकर खड़े हो जाते हैं, मानो आपने कोई मर्डर कर दिया है और आप भाग नहीं सकते। तब तक माजरा समझकर दूसरी खिड़कियों पर बैठे महंत, सहायक महंत, उप महंत, प्रशिक्षु महंत भी भाग आते हैं। एक-दो तुरंत वहीं से पानी में कूद जाते हैं उसको बचाने का ड्रामा करने के लिये। सब कुछ 5 मिनट में। ऐसा ड्रामा खड़ा हो जाता है कि बस पूछिये मत। ज़रा-ज़रा से लड़के आपको रुला देते हैं।
20-30 रुपये की डील 1000 में पड़ती है क्योंकि उनमें से एक दो कहते हैं हम उसकी मरहम-पट्टी करवा देते हैं। आप 5000 दे दो। लेकिन ज़्यादा देर नहीं लगती, बात 1000 पर आकर खत्म हो जाती है। ज़्यादा हिम्मत बताते हुए आपने गाड़ी आगे बढ़ाने की कोशिश की तो ये अनपढ़ से लड़के 100 नंबर पर फोन करने और यमुना को गंदा करने की शिकायत करने की धमकियां देने लगते हैं। गलती तो आप कर ही चुके होते हैं, फंस जाते हैं, उन लड़कों के चक्कर में जो 8-10 साल से ज़्यादा के नहीं। ये तय है कि उनके पीछे कोई बड़ा गिरोह है, माफिया है। वरना खुलेआम इस तरह की लूट कहां संभव है। मेरी राय तो है कि यमुना को इस तरह से प्रदूषित करने से बचें, ये लड़के किसी दिन आपको बड़ी मुश्किल में डाल सकते हैं।
यमुना में आप पूजा का सामान ना डाल पायें इसलिये पुल पर ऊंची-ऊंची जाली लगवा दी हैं दिल्ली सरकार ने (मुझे कैमरे से नेट पर डाउनलोड करना नहीं आता वरना मैं फोटो भी डालता)। लाखों के वारे-न्यारे हो गये अब किसी को चिंता नहीं। कुछ महीनों बाद इन पर हरा रंग होता अवश्य नज़र आ जाता है। जाली का क्या हाल है यमुना को उससे कुछ फायदा भी हुआ या नहीं, कोई नहीं फिक्र करता। पूजा का सामान यमुना मैया को समर्फित कर उसे तिल-तिल मारने वाले भक्तों की सेवा के लिये आसपास रहने वाले बच्चों ने तीन-चार जगह से जाली हटा दी है। हर जाली पर तीन-चार बच्चों का कब्ज़ा है। एक सड़क पर खड़े होकर गाड़ियों में बैठे लोगों को इसारे से जाली में बना ली गई खिड़की की ओर बताता है, यहां से डालिये। दूसरा लपककर उसके हाथ से पूजा का सामान भरी पॉलिथिन लेता और तीसरा जाली के छेद पर बैठे लड़के को थमाता है। तक सामान हाथ से लेने वाला और गाड़ी रोकने वाला पैसा मांगना शुरु कर देते हैं। दे दिये तो ठीक वरना जाली की खिड़की पर बैठा लड़का गालियां बकते हुए आपकी पॉलिथिन वापस कर देगा। सड़क और जाली के बीच में एक दीवार है कम से कम तीन फुट ऊंची, हर कोई पार नहीं कर सकता। अगर सामान विसर्जित करना है तो मजबूरी में आपको उन महंतों को 20-30 रूपये देने पड़ते हैं। और अगर खुद हिम्मत की तो पहले तो जाली की खिड़की पर बैठा महंत आपको रोकने की कोशिश करेगा, यहां से मत डालो आगे से डालना..वगैरा वगैरा। और अगर आपने ज़बरदस्ती डाल भी दिया तो नया नाटक। हर छेद के नीचे यमुना में एक लड़का इस तरह से तैर रहा होता है कि आपका सामान उसके आसपास ही जाकर गिरता है। अगर आप बाल महंतों की मर्जी के बगैर सामान डालते हैं तो गालियों के आदान-प्रदान की आवाज़ से नीचे उस तक सदेश पहुंच चुका होता है। सामान गिरते ही नीचे से आवाज़ आती है मर गया। जाली पर बैठा लड़का चिल्लाता है, अंकल आपने उसके सिर पर मार दिया। खून निकल रहा है वो डूब जायेगा। दूसरे लड़के आपकी गाड़ी के सामने जाकर खड़े हो जाते हैं, मानो आपने कोई मर्डर कर दिया है और आप भाग नहीं सकते। तब तक माजरा समझकर दूसरी खिड़कियों पर बैठे महंत, सहायक महंत, उप महंत, प्रशिक्षु महंत भी भाग आते हैं। एक-दो तुरंत वहीं से पानी में कूद जाते हैं उसको बचाने का ड्रामा करने के लिये। सब कुछ 5 मिनट में। ऐसा ड्रामा खड़ा हो जाता है कि बस पूछिये मत। ज़रा-ज़रा से लड़के आपको रुला देते हैं।
20-30 रुपये की डील 1000 में पड़ती है क्योंकि उनमें से एक दो कहते हैं हम उसकी मरहम-पट्टी करवा देते हैं। आप 5000 दे दो। लेकिन ज़्यादा देर नहीं लगती, बात 1000 पर आकर खत्म हो जाती है। ज़्यादा हिम्मत बताते हुए आपने गाड़ी आगे बढ़ाने की कोशिश की तो ये अनपढ़ से लड़के 100 नंबर पर फोन करने और यमुना को गंदा करने की शिकायत करने की धमकियां देने लगते हैं। गलती तो आप कर ही चुके होते हैं, फंस जाते हैं, उन लड़कों के चक्कर में जो 8-10 साल से ज़्यादा के नहीं। ये तय है कि उनके पीछे कोई बड़ा गिरोह है, माफिया है। वरना खुलेआम इस तरह की लूट कहां संभव है। मेरी राय तो है कि यमुना को इस तरह से प्रदूषित करने से बचें, ये लड़के किसी दिन आपको बड़ी मुश्किल में डाल सकते हैं।
18 comments:
ye hai mera india. kuchh log to lahren gin kar bhee kaam chalaa lete hain.
अब तक इस तरह की संगठित ठगी के किस्से धर्मस्थलों पर तो सुने थे लेकिन बाल कलाकार इतने स्याने हो जाएंगे; ये तो सोचा भी नहीं जा सकता।
कुछ ऐसा ही नज़ारा हर धार्मिक स्थल पर दिख जाता है.लोक परलोक सुधारने का खौफ खडा करने वाले ये ठग आस्थाओं की बहुत क्षति कर चुके है,कई लोग आजकल इनके डर से उत्तर भारत के 'कथित' पुराणकालीन स्थलों की यात्राओं पर जाना त्याग चुके है. हर चौथा मंदिर सिर्फ एक पेंटर के ज़रिये 'प्राचीन' बता दिया जाता है. बहुत बढ़िया और महत्वपूर्ण लिखा है आपने.
धार्मिक स्थलों का सोचा-समझा व्यसायिकरण अब आम बात हो गया है, अपना बुढ़ाना गेट, हनुमान मन्दिर इसकी ताजा मिसाल बनेगा।
ऐसा भी होता है ... सचमुच न्यू आइडियाज डाट काम ... जिस तरह वे संगठित हैं ... उस तरह जनता संगठित होकर पुलिस में शिकायत क्यों नहीं करती ?
कुछ और भी सवाल उठाता है आपका आलेख:-
1:- वे बच्चे स्कूल, पार्क, खेल के मैदान, या घर में टीवी के सामने क्यों नहीं हैं?
2:- उन्हें पैसा कमाने की ज़रूरत क्यों पड़ रही है?
3:- उनके लिये पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक भोजन, कपड़े, शिक्षा, बालोचित मन-बहलाव के साधन, दवा आदि की व्यवस्था सुनिश्चित कर दी गई है क्या?
वैसे तो मैं नदी को गंदा करने के इस तौर तरीके के ही खिलाफ हूं। फिर भी आपने लोगों को लूटने और ठगने वाले गिरोह के बारे में इतने तफ्सील के जो जानकारी दी है वह वाकई में महत्वपूर्ण है। सबको इससे सीख लेनी चाहिए जो नदी को गंदा करते हैं वह भी धर्म के नाम पर। पूजा पाठ के नाम पर।
डा0 अमर ज्योति ने सटीक सवाल उठाएं हैं। उन्होंने देश के बहुतायत बच्चों का एक स्केच बना दिया है लेकिन अक्सर देखा गया है कि कुछ पेशेवर लोगों द्वारा बच्चों को आगे रखकर इस तरह के धंधे कराए जाते हैं। ये भी जरूरी नहीं कि पूजा सामग्री नाले से भी बदतर यमुना में बहाई जाए; उसे किसी पीपल बगैरह के पेड़ के नीचे भी डाला जा सकता है। ऐसे में वह प्रदूषण की जगह खाद का काम करेगी।
Aapne bohot achha kiya jo ye likha, warna dharm yaa mazhabke baareme, chahe wo kewal reeti reevaaj ho/adharm ho, koyi mooh nahee kholnaa chahta...aksar chuppee sadh lete hain..
Hamlogbhee to apne bheetar aastha naa dekh kaheen bahar khojte rehte hain..!Iseekaa fayada/gaifayda uthaya jaata hai..
20-30 रुपये की डील 1000 में पड़ती है क्योंकि उनमें से एक दो कहते हैं हम उसकी मरहम-पट्टी करवा देते हैं। आप 5000 दे दो। लेकिन ज़्यादा देर नहीं लगती, बात 1000 पर आकर खत्म हो जाती है। ज़्यादा हिम्मत बताते हुए आपने गाड़ी आगे बढ़ाने की कोशिश की तो ये अनपढ़ से लड़के 100 नंबर पर फोन करने और यमुना को गंदा करने की शिकायत करने की धमकियां देने लगते हैं....
एक नयी जानकारी मिली आपसे.......!!
ये तो जाहिर है कि इन बच्चो के पीछे एक पूरा गिरोह है ...एक सोची समझी स्कीम ....आजकल काम करने पर उतनी कमाई नहीं होती जीतनी इस तरह की चालों से....प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिए ...शायद उनका भी कमिशन बीच में हो ....!!
यमुना को प्रदूषित होने से बचने के लिए ही तो शासन ने जाली वाली लगा रखी है. यह हम सब की बेवकूफी ही तो है कि फिर भी बाज नहीं आते. इस बात का फायदा माफिया उठा रहा है. पुलिस की तो निश्चित ही मिली भगत होगी. तथाकथित समाज सेवी संघठन क्या कर रहे हैं.
aapne ghatna ko sahi dhang se prastut kiya hai ... humko to yah pata nahui tha delhi me aisa bhii hota hai...sach me new ideas .com...
thanks for this post...
डॉ. अमर ज्योति के सवाल दोहरा रहा हूँ।
जोशीजी यह गोरखधंधा ये बच्चे तो अपनी रोजीरोटी के बतौर चला रहे हैं मगर इससे खतरनाक धंधा को देश को चलाने वाले कर रहे हैं जो देश और निरीह जनता दोनों को ठग रहे हैं।
mandhata ji ki baat se sahmat hoon
यह हाल है ,इसमें कैसे सुधार हो ,यह भी सबको सोचना होगा .
आप का ब्लाग बहुत अच्छा लगा।
मैं अपने तीनों ब्लाग पर हर रविवार को
ग़ज़ल,गीत डालता हूँ,जरूर देखें।मुझे पूरा यकीन
है कि आप को ये पसंद आयेंगे।
बढिया कहानी।
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