Monday, November 8, 2010

२ गजलें

(१)

हर शख्श है लुटा- लुटा हर शय तबाह है
ये शह्र कोई शह्र है या क़त्ल-गाह है

जिसने हमारे खून से खेली हैं होलियाँ
हाकिम का फैसला है कि वो बेगुनाह है

ये हो रहा है आज जो मजहब के नाम पर
मजहब अगर यही है तो मजहब गुनाह है

हम आ गए कहाँ कि यहाँ पर तो दोस्तों
रोशन- जहन है कोई, न रोशन निगाह है

दह्शतजदा परिंदा जो बैठा है डाल पर
यह सारे हादसों का अकेला गवाह है

मेरी ग़जल ने जो भी कहा, सब वो सच कहा
ये बात दूसरी है कि सच ये सियाह है

ये शहरे सियासत है यहाँ आजकल 'अनिल'
इंसानियत की बात भी करना गुनाह है

(२)

सुरमई शाम का मंज़र होते, तो अच्छा होता
आप दिल के भी समंदर होते, तो अच्छा होता

बिन मिले तुमसे मैं लौट आया, कोई बात नहीं
फिर भी कल शाम को तुम घर होते, तो अच्छा होता

माना फनकार बहुत अच्छे हो तुम दोस्त मगर
काश इन्सान भी बेहतर होते , तो अच्छा होता

हम से बदहालों, नकाराओं, बेघरों के लिए
काश फुटपाथ ये बिस्तर होते, तो अच्छा होता

मैं जिसमे रहता भरा ठन्डे पानियों की तरह
आप माटी की वो गागर होते, तो अच्छा होता

यूं तो जीवन में कमी कोई नहीं है, फिर भी
माँ के दो हाथ जो सर पर होते, तो अच्छा होता

तवील रास्ते ये कुछ तो सफ़र के कट जाते
तुम अगर मील का पत्थर होते, तो अच्छा होता

तेरी दुनिया में हैं क्यूं अच्छे- बुरे, छोटे- बड़े
सारे इन्सान बराबर होते तो, अच्छा होता

इनमें विषफल ही अगर उगने थे हर सिम्त 'अनिल'
इससे तो खेत ये बंजर होते , तो अच्छा होता

-कुमार अनिल

5 comments:

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

कुमार अनिल जी की ये दोनों गज़ल..बेहतरीन .. धन्यवाद इनेह शेयर करने के लिए..

Deepak chaubey said...

मेरे एक मित्र जो गैर सरकारी संगठनो में कार्यरत हैं के कहने पर एक नया ब्लॉग सुरु किया है जिसमें सामाजिक समस्याओं जैसे वेश्यावृत्ति , मानव तस्करी, बाल मजदूरी जैसे मुद्दों को उठाया जायेगा | आप लोगों का सहयोग और सुझाव अपेक्षित है |
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HEMANT PATHAK said...

बहुत ही बेहतर, सुन्दर ,

ऋचा said...

आज के हालातों को बयां करती धारदार गजलों के लिए बधाई।

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

बेहतरीन

तकनीकी सहयोग- शैलेश भारतवासी

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