Saturday, March 9, 2019

हिंदी कविता, चलो इस बार फिर से रंगों की होली मनाते हैं





अबीर,
गुलाल, टेसू का पानी

वोही अलख जगाते हैं

For a change

चलो इस बार फिर से

रंगों की होली मनाते हैं।

(1)

नफ़रत की गलियों में

कब तक सिर टकराएंगे

ना तुमको बैकुंठ मिलेगा

ना हम जन्नत को जाएंगे

फाड़ बरक्के बैर भाव के

प्यार की जिल्द बनाते हैं

For a change

चलो इस बार फिर से

रंगों की होली मनाते हैं। 

(2)

युद्ध गीत और जंग तराने

सबकी भुजा फड़काएंगे

ठंडी, बुझती आग को ये तो

और..और भड़काएंगे

माफ़ करो नादान को वीरा

जब तक दम ......समझाते हैं

For a change

चलो इस बार फिर से

रंगों की होली मनाते हैं।

(3)

धांय-धांय और गोला बारी

कौन बहादुर सोता है

पापा पीटीएम में कब आओगे

उसका बच्चा भी रोता है

सरहद से कुछ दिन को ..

उसको भी leave दिलवाते हैं

For a change

चलो इस बार फिर से

रंगों की होली मनाते हैं।

(4)

यूएस, जर्मन, रूस, चाइना

क्या फतेह किसी की होती है

जो जीते हैं उनके यहां भी

ना जाने कितनी...अम्मा-बीवी रोती हैं

उनको बम टपकाने दो

हम तो फूल बरसाते हैं

For a change

चलो इस बार फिर से

रंगों की होली मनाते हैं।

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पुरालेख

तकनीकी सहयोग- शैलेश भारतवासी

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