पुष्प की अभिलाषा//माखनलाल चतुर्वेदी
*पुष्प की अभिलाषा*/माखनलाल चतुर्वेदी
पुष्प
की
अभिलाषा
चाह
नहीं
मैं
सुरबाला
के,
गहनों
में
गूँथा
जाऊँ,
चाह
नहीं
प्रेमी-माला में,
बिंध
प्यारी
को
ललचाऊँ,
चाह
नहीं,
सम्राटों
के
शव,
पर,
हे
हरि,
डाला
जाऊँ
चाह
नहीं,
देवों
के
शिर
पर,
चढ़ूँ
भाग्य
पर
इठलाऊँ!
मुझे
तोड़
लेना
वनमाली!
उस
पथ
पर
देना
तुम
फेंक,
मातृभूमि
पर
शीश
चढ़ाने
जिस
पथ
जाएँ
वीर
अनेक।
पुष्प
की
अभिलाषा
कविता
का
सारांश
:
मेरी
इच्छा
ये
नहीं
कि
मैं
किसी
सूंदर
स्त्री
के
बालों
का
गजरा
बनूँ
मुझे
चाह
नहीं
कि
मैं
दो
प्रेमियों
के
लिए
माला
बनूँ
मुझे
ये
भी
चाह
नहीं
कि
किसी
राजा
के
शव
पे
मुझे
चढ़ाया
जाये
मुझे
चाह
नहीं
कि
मुझे
भगवान
पर
चढ़ाया
जाये
और
मैं
अपने
आपको
भागयशाली
मानूं
हे
वनमाली
तुम
मुझे
तोड़कर
उस
राह
में
फेंक
देना
जहाँ
शूरवीर
मातृभूमि
की
रक्षा
के
लिए
अपना
शीश
चढाने
जा
रहे
हों।
मैं
उन
शूरवीरों
के
पैरों
तले
आकर
खुद
पर
गर्व
महसूस
करूँगा।
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