Classic Hindi poetry
channel Ird gird (इर्द-गिर्द) present two classic Hindi ghazal by
Legend Hindi poet Dushyant Kumar. Great Hindi Author Dushyant Kumar known for
his remarkable Hindi poetic verse form called Ghazal.
इर्द-गिर्द में फिर से एक बार दुष्यन्त कुमार की दो ग़ज़लें प्रस्तुत हैं। कई मित्रों ने दुष्यंत कुमार की कुछ और ग़ज़लें सुनने की आकांक्षा प्रकट की थी। माननीय टीकाराम डोभाल जी ने आग्रह किया था कि मैं उनकी पसंदीदा ग़ज़ल- तुम्हारे पाँव के नीचे कोई ज़मीन नहीं कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं.. सुनाऊं। उनकी पसंद के साथ मैंने विद्रोही कवि दुष्यन्त कुमार की एक और ग़ज़ल- नज़र-नवाज़ नज़ारा बदल न जाए कहीं.. भी प्रस्तुत वीडियो में शामिल की है। उम्मीद है कि हिंदी में ग़ज़ल के शहंशाह दुष्यंत कुमार की ये दो हिंदी में ग़ज़लें आपको पसंद आएंगी। आपकी प्रतिक्रियाओं की हमें प्रतीक्षा रहेगी। कमेंट बॉक्स में आपकी टिप्पणी हमारा हौसला बढ़ाएगी।
यहां
आप
दोनों
ग़ज़लें
पढ़
भी
सकते
हैं
यानी
लिरिक्स
भी
साथ
में
हैं-
तुम्हारे
पाँव
के
नीचे
कोई
ज़मीन
नहीं
-दुष्यंत कुमार
तुम्हारे
पाँव
के
नीचे
कोई
ज़मीन
नहीं
कमाल
ये
है
कि
फिर
भी
तुम्हें
यक़ीन
नहीं
मैं
बेपनाह
अँधेरों
को
सुब्ह
कैसे
कहूँ
मैं
इन
नज़ारों
का
अँधा
तमाशबीन
नहीं
तेरी
ज़ुबान
है
झूठी
ज्म्हूरियत
की
तरह
तू
एक
ज़लील-सी गाली से बेहतरीन नहीं
तुम्हीं
से
प्यार
जतायें
तुम्हीं
को
खा
जाएँ
अदीब
यों
तो
सियासी
हैं
पर
कमीन
नहीं
तुझे
क़सम
है
ख़ुदी
को
बहुत
हलाक
न
कर
तु
इस
मशीन
का
पुर्ज़ा
है
तू
मशीन
नहीं
बहुत
मशहूर
है
आएँ
ज़रूर
आप
यहाँ
ये
मुल्क
देखने
लायक़
तो
है
हसीन
नहीं
ज़रा-सा तौर-तरीक़ों में हेर-फेर करो
तुम्हारे
हाथ
में
कालर
हो,
आस्तीन
नहीं
हालाते
जिस्म,
सूरते-जाँ और भी ख़राब
चारों
तरफ़
ख़राब
यहाँ
और
भी
ख़राब
नज़रों
में
आ
रहे
हैं
नज़ारे
बहुत
बुरे
होंठों
पे
आ
रही
है
ज़ुबाँ
और
भी
ख़राब
पाबंद
हो
रही
है
रवायत
से
रौशनी
चिमनी
में
घुट
रहा
है
धुआँ
और
भी
ख़राब
मूरत
सँवारने
से
बिगड़ती
चली
गई
पहले
से
हो
गया
है
जहाँ
और
भी
ख़राब
रौशन
हुए
चराग
तो
आँखें
नहीं
रहीं
अंधों
को
रौशनी
का
गुमाँ
और
भी
ख़राब
आगे
निकल
गए
हैं
घिसटते
हुए
क़दम
राहों
में
रह
गए
हैं
निशाँ
और
भी
ख़राब
सोचा
था
उनके
देश
में
मँहगी
है
ज़िंदगी
पर
ज़िंदगी
का
भाव
वहाँ
और
भी
ख़राब
…….
……….
नज़र-नवाज़ नज़ारा बदल न जाए कहीं
-दुष्यंत कुमार
नज़र-नवाज़ नज़ारा बदल न जाए कहीं
जरा-सी बात है मुँह से निकल न जाए कहीं
वो
देखते
है
तो
लगता
है
नींव
हिलती
है
मेरे
बयान
को
बंदिश
निगल
न
जाए
कहीं
यों
मुझको
ख़ुद
पे
बहुत
ऐतबार
है
लेकिन
ये
बर्फ
आंच
के
आगे
पिघल
न
जाए
कहीं
चले
हवा
तो
किवाड़ों
को
बंद
कर
लेना
ये
गरम
राख़
शरारों
में
ढल
न
जाए
कहीं
तमाम
रात
तेरे
मैकदे
में
मय
पी
है
तमाम
उम्र
नशे
में
निकल
न
जाए
कहीं
कभी
मचान
पे
चढ़ने
की
आरज़ू
उभरी
कभी
ये
डर
कि
ये
सीढ़ी
फिसल
न
जाए
कहीं
ये
लोग
होमो-हवन में यकीन रखते है
चलो
यहां
से
चलें,
हाथ
जल
न
जाए
कही
1 comment:
Bahut sundar.
Good Morning Quotes padhen padhayen, life ko happy banayen.
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