गणतंत्र
दिवस
पर
विशेष,
हमारे
लोकतंत्र
की
कविता
इर्द-गिर्द पर सुनिए हिंदी कविता- कहने को आज़ाद हैं हम। यह हिंदी कविता गणतंत्र दिवस पर विशेष रूप से प्रस्तुत है क्योंकि यह हमारे लोकतंत्र की कविता है बल्कि लोक और तंत्र के बीच फैली विसंगतियों की कविता भी है।
Listen Aparna Atrikar's hindi poem for republic
day on current situation and the reality of democracy. Classic YouTube Hindi Poetry channel
ird gird present this latest hindi poem by Aparna Patrikar.
अपर्णा
की
कविता
: कहने
को
आज़ाद
हम
कहने
को
आज़ाद
हम,
नाम
के
स्वतंत्र
हैं
देश
है
स्वतंत्र
अवाम
तो
पर
तंत्र
है
कहने
को
आज़ाद
हम
नाम
के
स्वतंत्र
हैं
अस्त
है,
व्यस्त
हैं
मनमनियों
से
त्रस्त
है
तंत्र
है
मजबूत
लड़खड़ाता
लोकतंत्र
है
कहने
को
आज़ाद
हम
नाम
के
स्वतंत्र
हैं
मज़हब,
ज़बान,
दैर
ओ
हरम,
अब
जानवर
के
नाम
पर
इंसानियत
को
है
शिकस्त,
ये
कैसा
भीड़तंत्र
है
कहने
को
आज़ाद
हम
नाम
के
स्वतंत्र
हैं
है
कलम
बिकी
हुई
और
मौका
परस्त
है
झूठ
है
सिरमौर,
सच
वहशियत
त्रस्त
है
आईनो
के
हौसले,पत्थरों से पस्त है
ये
कैसा
प्रजातंत्र
है
कहने
को
आज़ाद
हम
नाम
के
स्वतंत्र
हैं
कुर्बानियां
बेमोल,
राह
लूट
की
प्रशस्त
है
मक्कारियों
का
खंजर
सीने
मे
पैबस्त
है
साध्य
है
सत्ता
और
स्वार्थ
ही
बस
मंत्र
है
कहने
को
आज़ाद
हम
नाम
के
स्वतंत्र
हैं
काबिल
यंहा
बेकार
है,
नाकारा
अलमस्त
है
जुगाड़
में
सब
मुफ्त
के,
कर्तव्य
से
विरक्त
है
अपनी
जड़ों
को
खोदने
का,
ये
कैसा
षड्यंत्र
है
कहने
को
आज़ाद
हम
नाम
के
स्वतंत्र
हैं
रंग
केसरी
है
हिंदू
का,
हरा
रँग
मुसलमानी
है
अखंड
ये
तिरंगा,
खंड
खंड
में
विभक्त
हैं
बातों
का
ये
दौर,
सब
लफ्फाज़ीयों
मे
व्यस्त
हैं
सोचिए
फिर
से
ज़रा
क्या
सच
में
हम
स्वतंत्र
हैं
कहने
को
आज़ाद
हम
नाम
के
स्वतंत्र
हैं।
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