दुष्यंत
कुमार
की
परंपरा
को
आगे
बढ़ाने
वाले
राजेश
रेड्डी
हमारे
अहद
के
महत्वपूर्ण
हिंदी
कवि
हैं।
1952 में
जयपुर,
राजस्थान
में
जन्में
राजेश
रेड्डी
की
शायरी
बेमिसाल
है।
राजेश
रेड्डी
कवि
भी
हैं
और
चिंतक
भी।
राजेश
रेड्डी
के
शेर
सुनकर
या
पढ़कर
लगता
है
कि
वे
हमारे
इर्द-गिर्द के व्यक्ति हैं। सीधी-सरल भाषा में उनकी ग़ज़लें यकीनन बहुत पैनी हैं। ग़ज़ल हिंदी में लिखने और हिंदी में ग़ज़ल लेखन की परंपरा को एक नया मुकाम देने में राजेश रेड्डी का लेखन संसार अतुलनीय है।
राजेश
रेड्डी
की
ग़ज़ल
शाम
को
जिस
वक़्त
ख़ाली
हाथ
घर
जाता
हूँ
मैं
मुस्कुरा
देते
हैं
बच्चे
और
मर
जाता
हूँ
मैं
जानता
हूँ
रेत
पर
वो
चिलचिलाती
धूप
है
जाने
किस
उम्मीद
में
फिर
भी
उधर
जाता
हूँ
मैं
सारी
दुनिया
से
अकेले
जूझ
लेता
हूँ
कभी
और
कभी
अपने
ही
साये
से
भी
डर
जाता
हूँ
मैं
ज़िन्दगी
जब
मुझसे
मज़बूती
की
रखती
है
उमीद
फ़ैसले
की
उस
घड़ी
में
क्यूँ
बिखर
जाता
हूँ
मैं
आपके
रस्ते
हैं
आसाँ
आपकी
मंजिल
क़रीब
ये
डगर
कुछ
और
ही
है
जिस
डगर
जाता
हूँ
मैं
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